आज तो सब कुछ हिन्दीमय लग रहा है
यह कातिलाना अंदाज़ किसको ठग रहा है
लगता है कोई अधूरा स्वप्न जग रहा है
क्या सूखे फूल पर तितली मँड़राती है ?
किस अँधेरे में यह कोयल गाती है
अब तो दिया अलग है अलग बाती है
यह जो जुगाड़ू हिंदीवालों की थाती है
अंग्रेजी पीती है और अंग्रेजी खाती है
देशी को हिंदीबाज़ी से फुसलाती है
स्वघोषित मूर्धन्यों की कलाबाज़ी है
परम्परा में छेद खोजता प्रगतिवादी है
टूटे तेवर में कितना उछल रहा है
अपना देश कितना फुसल रहा है
भाषाओँ के ढेर में विविध अंदाज़ हैं
कोलाहल करते कितने ही साज़ है
भाषा है और कितनी ही विभाषा है
राष्ट्र तुम्हारे आवाज़ की क्या परिभाषा है ?
तुम तो कई भाषाओँ में बोलते हो
कितनों का गुप्त राज खोलते हो
तुम तो अनेक रहते हुए में एक हो
भाषा के मामले में भी प्रत्येक हो
कदम कदम पर ले रहे टेक हो
इसी में यह हिंदी आ जाती है
टिटिहिरी की तरह टर्राती है
हिन्दीवाले भी बूझते है
अहिन्दी वाले भी बूझते है
विचित्र बात पर जूझते है
गाते बजाते एक संग्राम है
यही हिंदी दिवस का प्रोग्राम है
भाई साहब आज हिंदी में सलाम है ।
अनिल कुमार शर्मा
१४/०९/२०१६