हिमाच्छादित पहाड़ की छटा, उनमें उमड़ते-घुमड़ते मखमली बादल, दूर तक कल-कल करते झरनों-सरिताओं के स्वर, देखने-सुनने में जितने मनमोहक होते हैं, वहाँ का जीवन उतना ही कठिन होता है। कभी भूस्खलन तो कभी बादल फटने जैसी घटनाएँ आमतौर पर देखी जाती हैं। सुख-सुविधाओ
एक संवाद लगातार बना रहता है अकेली यात्राओं में। मैंने हमेशा उन संवादों के पहले का या बाद का लिखा था... आज तक। ठीक उन संवादों को दर्ज करना हमेशा रह जाता था। इस बार जब यूरोप की लंबी यात्रा पर था तो सोचा, वो सारा कुछ दर्ज करूँगा जो असल में एक यात्री अपन
उर्मिलेश उन थोड़े से पत्रकारों में है, जिन्होंने हिन्दी पत्रकारिता का सम्मान इस कठिन और चुनौतीपूर्ण समय में बचाकर रखा है। वह पत्रकार होने के साथ निःसंदेह एक अच्छे गद्यकार- संस्मरणकार भी हैं। यह पुस्तक खोजी-पत्रकारिता का एक अलग तरह का उदाहरण है। उर्मिल
एक दुनिया जो हमारे इर्द-गिर्द होती है, जहाँ हम रहते हैं, हमारे कम्फ़र्ट ज़ोन की दुनिया और एक दुनिया उससे कहीं दूर- हमारे सपनों की दुनिया। लेकिन उस दूसरी दुनिया तक पहुँचना इतना आसान नहीं होता।वहाँ पहुँचने के लिए कुछ सीमाएँ लाँघनी पड़ती हैं,पार करने होते
अजय सोडानी की किताब 'दरकते हिमालय पर दर-ब-दर’ इस अर्थ में अनूठी है कि यह दुर्गम हिमालय का सिर्फ़ एक यात्रा-वृत्तान्त भर नहीं है, बल्कि यह जीवन-मृत्यु के बड़े सवालों से जूझते हुए वाचिक और पौराणिक इतिहास की भी एक यात्रा है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए बार-बार
संस्कृति की लीक पर उल्टा चलूँ तो शायद वहाँ पहुँच सकूँ, जहाँ भारतीय जनस्मृतियाँ नालबद्ध हैं। वांछित लीक के दरस हुए दन्तकथाओं तथा पुराकथाओं में और आगाज़ हुआ हिमालय में घुमक्कड़ी का। स्मृतियों की पुकार ऐसी ही होती है। नि:शब्द। बस एक अदृश्य-अबूझ खेंच, अन
अनुराधा बेनीवाल पहले एक घुमक्कड़ हैं, जिज्ञासु हैं, समाजों और देशों के विभाजनों के पार देखने में सक्षम एक संवेदनशील ‘सेल्फ़’ हैं, उसके बाद, और इस सबको मिलाकर, एक समर्थ लेखक हैं। हरियाणा के एक गाँव से निकली एक लड़की जो अलग-अलग देशों में जाती है, अल
पहाड़ कहीं के भी हों, बहुत आकर्षित करते हैं। प्रकृति का सानिध्य पाने के लिए लालायित पर्यटकों को सबसे ज्यादा सुहाने लगते हैं पहाड़। बर्फ मढ़ी चोटियां, बल खाती नदियां, इठलाते झरने और सनन सन चलती हवा, लेकिन इन पहाड़ों के जीवन की असलियत कितनों को पता होत
आत्मीयता के सघन राग से सृजित लेखक की जीवन यात्रा जिसके विभिन्न पड़ाव, शहर और अविस्मरणीय चरित्रा सहज ही पाठक को भी अपना सहयात्रा बना लेते हैं।—अशोक अग्रवाल आपका लिखा ‘देखा’ हुआ-सा लगता है। शब्द नहीं, जैसे हज़ारों हज़ार आँखें हों एक-एक लर्ज़िश को दुलार
दिल्ली से पूर्वी उत्तर में स्थित जौनपुर की एक बार यात्रा करते हुए डॉ. कलाम बादशाहनगर नामक छोटे से शहर में चाय पीने के लिए रुके। अपने आसपास के नजारे देखकर उन्हें हैरानी हुई। जगह-जगह दूर-दराज से पैसे को मोबाइल ट्रांसफर करने की सुविधा प्राप्त थी और हिन्
‘‘सौ पहाड़ चढ़ लिये मैंने, हज़ारों मील चला हूँ मैं लाखों जीवन जी लिए कैलाश तक पहुँचने के लिए जो कैलाश की तरफ़ पहला कदम उठाते हैं वे जानते हैं कि न तो यह केवल तीर्थयात्रा है, न ही यह रोमांच का सफ़र है। कैलाश का संसार ऐसा है कि वहाँ हर व्यक्ति को अलग-अ
अजय सोडानी जानते हैं कि देखे हुए को दिखाया कैसे जाए। जैसे कि सफ़र के दौरान अगर एक कैमरा उनके हाथ में है तो एक भीतर भी है जो बाहर के चित्रों को शब्दों की शक्ल में कहीं अंकित करता चलता है। यही कारण है कि उनके यात्रा-वृत्तान्त, ख़ासकर जब वे हिमालय के बा
जितनी बड़ी दुनिया बाहर है, उतनी ही बड़ी एक दुनिया हमारे अन्दर भी है, अपने ऋषियों-मुनियों की कहानियाँ सुनकर लगता है कि वे सिर्फ़ भीतर ही चले होंगे। यह किताब इन दोनों दुनियाओं को जोड़ती हुई चलती है। यह महसूस कराते हुए कि भीतर की मंज़िलों को हम बाहर चलते
दुनिया के एक अजूबे, वीरान और बर्फ़ीले द्वीप की यात्रा जहाँ लेखक वाइकिंगों और ‘गेम ऑफ़ थ्रोन्स’ के किरदारों से गुजरते हुए तांत्रिकों की दुनिया में पहुँच जाते हैं। एक ऐसी आधुनिक पश्चिमी भूमि जहाँ अंधविश्वास और भूत-प्रेत संस्कृति में गुंथी हुई है। भूकंप
दूर दुर्गम दुरुस्त दरअसल पूर्वोत्तर से जुड़ी यात्राओं की एक दस्तावेज़ है। इसे आप एक घुमक्कड़ की मन-कही भी कह सकते हैं जो अक्सर अनकही रह जाती है। मुख्यधारा में पूर्वोत्तर की जितनी भी चर्चा होती है, उसमें उसके दुर्गम भूगोल की चीख-पुकार ही शामिल रहती है
लेखक ऋषि राज को दो बार कारगिल जाने का अवसर प्राप्त हुआ है। अपनी इन यात्राओं के दौरान उन्होंने उन जगहों को बहुत नजदीक से देखा, जहाँ हमारे वीर शहीदों के बलिदान की अमर गाथा लिखी गई। द्रास, कारगिल, काकसर और बटालिक के इलाके मूक गवाह हैं, हमारे जवानों द्वा
ट्रेजर गर्ल, जीवन को दाँव पर लगाके| अपने सपने को हासिल कर लेने की कहानी है। ऑकलैंड (न्यूज़ीलैंड) की रहने वाली एक लड़की ‘चेल्सी’, जिसका ख़्वाब दुनिया की सबसे बड़ी ऑर्कियोलॉजिस्ट बनना है। एक रोज वह सपना देखती है कि ऑकलैंड से हजारों मील दूर, भारत के प्राचीन
मैं उस आदमी से दूर भागना चाह रहा था जो लिखता था। बहुत सोच-विचार के बाद एक दिन मैंने उस आदमी को विदा कहा जिसकी आवाज़ मुझे ख़ालीपन में ख़ाली नहीं रहने दे रही थी। मैंने लिखना बंद कर दिया। क़रीब तीन साल कुछ नहीं लिखा। इस बीच यात्राओं में वह आदमी कभी-कभी मेर
यह पुस्तक समावेश है यात्रा-वृत्तांत और वीरों से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का, जिसमें लेखक ने प्रयास किया है कि वे अत्यंत रोचक तरीके से आज की पीढ़ी को हमारे देश के स्वर्णिम इतिहास से अवगत करवाएँ। इस पुस्तक की शुरुआत 1857 की क्रांति से जुड़े स्थानों जैसे क
‘साँझ की उदास-उदास बाँहें अँधिआरे से आ लिपटीं। मोहभरी अलसाई आँखें झुक-झुक आईं और हरियाली के बिखरे आँचल में पत्थरों के पहाड़ उभर आए। चौंककर तपन ने बाहर झाँका। परछाई का सा सूना स्टेशन, दूर जातीं रेल की पटरियाँ और सिर डाले पेड़ों के उदास साए। पीली पाटी