
ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि रिजल्ट और रिश्तेदार की राशि एक ही होती है। रिजल्ट का खराब होना तब तक बुरा नहीं लगता जब तक घर में अनचाहा रिश्तेदार न आ जाए। क्योंकि फेल होने के तुरंत बाद कुटाई नहीं होती है। पहले सांत्वना दी जाती है कि इस साल मेहनत करना, दिल लगाकर पढ़ाई करना वगैरह, वगैरह... लेकिन रिश्तेदार, केमेस्ट्री के किसी उत्प्रेरक एलिमेंट की तरह घर में आते हैं और मम्मी पापा को उकसा कर चले जाते हैं। इसके बाद पापा और मम्मी अपनी सहूलियत के हिसाब से आपकी शारीरिक और मानसिक कुटाई कर डालते हैं।
रिजल्ट के ही दिन हमें पता चलता है कि पड़ोसियों, रिश्तेदारों को हमारी जिंदगी में कितना इंटरेस्ट है। जिन रिश्तेदारों को फेसबुक पर ब्लॉक कर रखा था, वो भी फोन करके जानकारी मांगने लगते हैं कि आपका तो रिजल्ट आने वाला था। कुछ एक रिश्तेदार तो इतने धूर्त होते हैं कि यह उन्हीं लोगों के घर जाते हैं जिनके नंबर कम आते हैं। ऐसी स्थिति में उन बच्चों के लिए सुकुन भरा दिन होता है जो सम्मानजनक तरीके से पास हो जाते हैं। घर आते लोगों को एक एक छेने के रसगुल्ले में निपटा दिया जाता है। चूंकि मामला यूपी बोर्ड का है इसलिए काजू की बरफी लिखना मानकों के खिलाफ लग रहा था।
इतनी सारी बुराई के अलावा रिजल्ट में एक अच्छी बात भी होती है। ये हमारे सिकुड़ते हुए समाज को पसरने की जगह देता है। इंसान जहां दिन भर सोशल मीडिया और जिंदगी की उधेड़ बुन में फंस कर भन्नाया रहता है, वहां रिजल्ट के बहाने ही सही, पड़ोसी से बोलता बतियाता तो है, दूसरों की जिन्दगी में झांकने के लिए ही सही, कम से कम हंसता मुस्कुराता तो है। पता तो चलता है उसे कि भदोही वाली अम्मा को गुजरे तीन साल हो चुके हैं। और जिसका रिजल्ट आज आया है, वो उनका पोता नहीं बल्कि परपोता है। जिनका रिजल्ट अच्छा आया है उनके लिए शुभकामनाएं और जिनका बिगड़ गया है, उनके घर हम आ रहे हैं... क्या करेंगे, समझ तो गए ही होंगे।