एक बार मैं मेरठ से कानपुर तक की यात्रा कर रही थी। मेरी सीट खिड़की के पास थी। बायीं ओर डिब्बे में सामने वाली सीट पर एक वृद्ध बैठे थे। हापुड़ से कुछ लड़के उसी डिब्बे में सवार हुए और वृद्ध के सामने वाली सीट पर बैठ गए। उनमें से एक लड़का बहुत शरारती था। शायद वह उस वृद्ध व्यक्ति को परेशान कर मजा लेना चाहता था। उस लड़के ने अपने पैर फैलाकर उस वृद्ध के पैरों में ठोकर मारी तो वृद्ध ने अपने पैर सिकोड़ लिये। मैं चुपचाप यह तमाशा देख रही थी।
थोड़ी देर में उसने फिर ठोकर मारी तो शायद वृद्ध उसके मनोभाव को समझ गया था, लेकिन उसने कहा कुछ नहीं, शायद वृद्ध ने उस लड़के को सबक सिखाने का मन बना लिया था।
तीसरी बार जब उस शरारती लड़के ने वृद्ध को ठोकर मारी तो वृद्ध न उस लड़के की टांग अपने हाथों में लेकर कहा-'बेटे, शायद तेरी टांग दर्द कर रही है, तभी तू बार-बार मुझे ठोकर मार रहा है। ला, तेरी टांग दबा दूं, दर्द में आराम मिलेगा।'
उस वृद्ध के इतना कहते ही उस लड़के पर घड़ों पानी पड़ गया। वह एकदम शान्त बैठा रहा। यहां तक वृद्ध की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा। मैं वृद्ध की युक्ति देखकर मन ही मन मुस्करा पड़ी।