मौन है बोले
समर्पण-भाषा
प्रेमद्वार खोले।
प्रीत की रीत
त्याग है पहचाने
होती नहीं जीत।
खुश रहे सदा
मन ये मानता
वैसा न दूजा।
सदा है बांधता
मोह का बंधन
प्रेम का चंदन
आती हर आहट
उनकी है चाहत
देती कहां राहत ।
संदेशा ये मिला
आकर चले गये
दिल पूरा हिला।