व्यक्तित्व का निर्माण मूल रूप से विचारों पर निर्भर है।
चिन्तन मन के साथ-साथ शरीर को भी प्रभावित करता है।
चिन्तन की उत्कृष्टता को व्यवहार में लाने से ही भावात्मक व सामाजिक सामंजस्य बनता है।
हमारे मन की बनावट ऐसी है कि वह चिन्तन के लिए आधार खोजता है।
चिन्तन का जैसा माध्यम होगा वैसा ही उसका स्तर होगा।
निम्न स्तर का चिन्तन होता है तो व्यक्ति के कार्य भी घटिया होते हैं और ऐसा व्यक्ति अपने जैसे दुराचारी व्यक्ति ही बढ़ाएगा।
उच्च स्तर का चिन्तन होगा तो व्यक्ति का निर्माण भी उत्कृष्ट कोटि का होगा। फलस्वरूप अच्छे लोग, सन्त व मनीषी ही बढ़ेंगे।
स्पष्ट है कि मनुष्य के जैसे विचार और उसका चिन्तन होगा वैसे ही उसके आदर्श होंगे। जैसे आदर्श होंगे वैसा ही उसका व्यक्तित्व बनेगा।
आदर्श श्रेष्ठ व उत्कृष्ट होंगे तो उसका चिन्तन व गतिविधियां भी श्रेष्ठ व उत्कृष्ट होंगी फलस्वरूप व्यक्तित्व उत्कृष्ट ही होगा।
इसके विपरीत आदर्श निकृष्ट व निम्नगामी होंगे तो व्यक्तित्व भी निकृष्ट बनेगा।