चरित्र व्यक्ति की मौलिक विशेषता व उसके द्वारा ही निर्मित होता है।
चरित्र से व्यक्ति के निजी दृष्टिकोण, निश्चय, संकल्प व साहस के साथ-साथ बाह्य प्रभाव भी समिश्रित रहता है।
परिस्थितियां सदैव सामान्य स्तर के लोगों पर हावी होती हैं।
मौलिक विशेषता वाले लोग नदी के प्रवाह के विपरीत मछली सदृश निज पूंछ के बल पर आगे बढ़ते रहते हैं।
व्यक्ति का पुरुषार्थ, अन्तःशक्ति व निज साहस के द्वारा स्वयं को प्रभावशाली बनाते हैं और व्यक्तित्व के बल पर जन सम्मान पाते हैं।
चरित्र से ही व्यक्तित्व का विकास होता है। चरित्र के निर्माण में सजग रहना चाहिए। जैसा चरित्र होगा वैसा व्यक्तित्व भी होगा।
जैसा व्यक्तित्व होगा वैसा प्रभाव भी होगा।