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प्रेमचन्द के उपन्यासों में सामाजिक चेतना

19 जून 2016

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     मानव स्वयं सामाजिक प्राणी है। समाज हमारे-आपके जीवन की प्रतिध्वनि होता है। समाज शब्द अत्यन्त व्यापक और उसकी समस्याएं इससे कहीं अधिक व्यापक हैं। सारी चेतना जो व्यक्ति विशेष की न होकर एक ही काल में अनेक व्यक्तियों या समुदाय, समाज, राष्ट्र या सम्पूर्ण मानव जाति की सम्पत्ति ही सामाजिक चेतना है। किसी देश व काल विशेष से संबंधित मानव समाज में अभिव्यक्ति परिवर्तनशील जागृति से है। सामाजिक चेतना समाजगत्‌ होने से समाज के साथ और उसके अभिन्नांग राजनीति, अर्थशास्त्र, धर्म, संस्कृति आदि के परस्पर संबंध का अवलोकन कर लेना ही है। संक्षेप में काल विशेष में समाज में सुधार के लिए किए गए प्रयास ही सामाजिक चेतना के अन्तर्गत आते हैं। यह चेतना प्रेमचन्द के साहित्य में स्वतः परिलक्षित होती है।

     प्रेमचन्द के साहित्यिक जीवन का प्रारम्भ सन्‌ 1901 से होकर अन्त अक्टूबर सन्‌ 1936 में उनके स्वर्गारोहण के साथ समाप्त हो जाता है। यह काल राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से उथल-पुथल का था। देश में चेतना की एक लहर फैल रही थी। प्रेमचन्द के काल में समाज सुधार का आन्दोलन तीव्र गति से आगे बढ़ने लगा था। सामाजिक चेतना की लहर अठखेलियां कर रही थी ऐसे में प्रेमचन्द रूपी कलम के सिपाही ने उपन्यास के रूप में 11 मोती लिखे 1904 में प्रेमा या प्रतिज्ञा, 1906 में वरदान, 1914 में सेवासदन, 1918 में प्रेमाश्रम, 1923 में निर्मला, 1924 में रंगभूमि, 1928 में कायाकल्प, 1930 में गबन, 1932 में कर्मभूमि, 1936 में गोदान और मंगलसूत्र(अपूर्ण)।

     विधवा समस्या को प्रतिज्ञा में, राजनीतिक आंदोलनों एवं आदर्शों की चर्चा वरदान में, मध्यम वर्ग की दुर्बलता एवं वेश्या समस्या का सजीव चित्रण सेवासदन में, किसानों का शोषण तथा नए आदर्श के आलोक में तत्कालीन राजनीतिक चर्चा प्रेमाश्रम में, दहेज व अनमेल विवाह पर आधारित नारी जीवन की व्यथा का चित्रण निर्मला में, जीवन के प्रत्येक पहलू का चित्रण रंगभूमि में, मध्यमवर्गी के मिथ्यादर्प की व्यापक चर्चा कायाकल्प में करी है, निम्न मध्य वर्ग की आर्थिक समस्या का चित्रण गबन में, किसान और अछूत समस्या को सुलझाने में तत्पर कर्मभूमि, भारतीय किसानों की महागाथा का चित्रण गोदान में एवं अपने अन्तिम अपूर्ण उपन्यास मंगलसूत्र में साहित्य साधना के कष्टों को उजागर किया है। प्रेमचन्द का अनन्त जीवन-संग्राम जिसमें वे गिरे, फिर उठे, डूबे और फिर तैरने लगे। इसी अनुभवों ने उनकी कलम को मांझकर समाजिक चेतना को प्रतिफलित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, प्रमाण के लिए उनके द्वारा रचित उपन्यास साहित्य में शामिल 11 मोती ही बहुत हैं, कोई भी पढ़कर उनके आदर्शों पर चल पड़ेगा, यह स्वाभाविक है। प्रेमचन्द कथा-सम्राट यूं ही नहीं कहलाए, उन्होंने सच में ऐसी समाजिक चेतना का सूत्रपात किया जोकि अपना प्रभाव दीर्घकाल तक छोड़ ही नहीं गयी, अपितु सदा के लिए सक्रिय हो गई, जो भी उनके उपन्यास साहित्य को पढ़ेगा वो सदैव उस पथ पर चलने को तत्पर हो उठेगा। उन्होंने यथार्थ को वाणी दी पर आदर्शों को नहीं छोड़ा।

      हिन्दी में सामाजिक उपन्यासों का प्रारम्भ मुंशी प्रेमचन्द से होता है। इनके उपन्यासों में करुणा और व्यंग्य का प्रसार, पात्रों का सामाजिक रूप, समाज का आधार परिवार, मानवतावादी दृष्टिकोण, सामाजिकता को महत्त्व। प्रेमचन्द के उपन्यासों को वर्गीकृत करें तो इस प्रकार होगा-

      1. सामाजिक उपन्यास-सेवासदन, वरदान, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन।

      2. राष्ट्रीय उपन्यास-प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि।

      3. राजनीतिक उपन्यास-कायाकल्प, गोदान।

       सेवासदन-सेवासदन में मध्यवर्गीय परिवार के विभिन्न स्तरों का जीवन अंकित किया है और बदलती सामाजिक मान्यताएं प्रस्तुत की हैं। सामाजिक समस्याओं के साथ ही आर्थिक और धार्मिक समस्याओं पर भी दृष्टि डाली गई है। सेवासदन दहेज, अनमेल विवाह और वेश्या प्रथा पर दृष्टि डाली है। इसमें वे प्रश्न की कठिनता को प्रस्तुत करते हैं। उन्हें लगता था कि सदियों से बिगड़ा हुआ हिन्दू समाज जल्द सुधरने वाला नहीं है। इसमें उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों के चित्रण के साथ-साथ उस पर प्रहार भी किया है और लोगों में चेतना का संचार किया है। प्रेमचन्द की सुधारवादी मनोवृत्ति का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

      वरदान-इसमें मध्यवर्गीय समाज के सीमित पक्ष का चित्रण किया है। प्रेमचन्द ने प्रेम और अनमेल विवाह की समस्या पर दृष्टिपात किया है। इसमें किसानों की समस्या का वर्णन किया है। किसानों की ऋण समस्या की भी चर्चा की है। इसमें अनमेल विवाह और दहेज की समस्या पर दृष्टि डालकर सामाजिक चेतना का विकास किया है।

        निर्मला-इसमें प्रेमचन्द ने समाज में व्याप्त दहेज की समस्या व अनमेल विवाह की समस्या का सजीव चित्रण कियाहै। इसमें मुख्य रूप से दहेज की प्रथा और तद्जन्य सामाजिक विकृतियों का चित्रण कर सामाजिक चेतना जागृत की गई है। उन्होंने समाज को यह सन्देश दिया है कि इस कुप्रथा का अन्त करने का निश्चय कर लें। उनकी दृष्टि में विवाह का आधार धर्म एवं प्रेम होना चहिए न कि व्यवसाय एवं वासना। उनका कहना है कि जब लड़कों की तरह लड़कियों की शिक्षा और जीविका की सुविधाएं निकल आएंगी तो दहेज प्रथा भी विदा हो जाएगी उसके पहले संभव नहीं। इसमें अनमेल विवाह और दहेज प्रथा को समाप्त करने का सन्देश देते हैं।

        प्रतिज्ञा-इसमें विधवा समस्या के विभिन्न पक्षों का निरूपण मध्यवर्गीय समाज की आधार भूमि पर किया है। उन्होंने स्वयं जो विधवा विवाह किया है वह इस समाधान में उनकी आस्था का सजीव प्रमाण है। इसके अलावा इस उपन्यास में समसामयिक समस्याओं की मांग को ठुकरा नहीं सके हैं और उन्होंने उनका भी सजीव चित्रण कर दिया है। इस उपन्यास में वे स्त्रियों की आत्मनिर्भरता के समर्थक थे। सामाजिक चेतना को मुखर करने में इस उपन्यास का कोई सानी नहीं है।

        गबन-इसमें मध्यवर्गीय समाज का चित्रण है। इसमें उन्होंने आभूषण को समाज व्यापी रोग के रूप में चित्रित किया है। इसमें उनका लक्ष्य समाज के मध्यवर्ग का यथार्थ जीवन चित्रित करना तथा पुलिस के कारनामों का पर्दाफाश करना। वे जानते थे कि रिश्वत लेना समाज विरोधी आचरण है। पूंजीवादी व्यवस्था का ही यह परिणाम है, जहां धन ही सब कुछ हो वहां पढे+-लिखे लोग भी स्वार्थ से अंधे बन जाते हैं। श्रम का महत्व घट गया है। शहरों के सामाजिक जीवन में धोखा, छल, अशांति अतृप्ति कितनी है इसे दिखाते हुए प्रेमचन्द मानो यह सन्देश देते हैं कि गांव की सादगी की ओर चलें।

        प्रेमाश्रम-इसमें कृषक समाज का यथार्थ चित्रण किया है। इसमें शिक्षा पद्धति की आलोचना की गयी है उसमें नौकरशाही की निरंकुशता और लूट-खसोट का विस्तृत चित्रण है। कृषकों की भूमि समस्या है जिसमें जमींदार और अधिकारी वर्ग भी किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। इसमें ग्रामीण समाज को शोषित दिखाया है। उसे भूमिपति, अधिकारियों और महाजनों की सम्मिलित शक्ति ने निचोड़ लिया है। प्रेमचन्द देख रहे थे देहात उजड़ते जाते हैं और शहरों की आबादियां बढ़ती जाती हैं। उन्होंने अविकसित समाज व्यवस्था में रहने वाले शोषित मनुष्यों के प्रति अधिक जागरूकता दिखाई है। इस उपन्यास में जमींदारी प्रथा के अनर्थकारी प्रभाव का चित्रण किया गया है और विश्वास प्रकट किया गया है कि इस प्रथा के उन्मूलन से ग्रामीण समाज में चेतना आएगी और कृषकों का उद्धार हागा। वे राजनीतिक चेतना जगाने के लिए सामाजिक दायित्व के अहसास को आवश्यक समझते थे इसलिए यह एक राजनीतिक-सामाजिक उपन्यास है जिसमें सामाजिक चेतना कूट-कूट कर भरी है।

         रंगभूमि-इसमें यथार्थवादी दृष्टि से सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक गतिविधियों व परिस्थितियों का चित्रण कर बदलती हुई मान्यताओं की ओर संकेत करके नया जीवन दर्शन प्रस्तुत कर सामाजिक चेतना लाने का प्रयास किया है। इस उपन्यास में प्रेमचन्द ने ग्रामीण और नागरिक जीवन का कोई भी ऐसा जीवन पक्ष नहीं जिसका विशद् रूप चित्रित न किया गया हो। यह उपन्यास उस समय प्रकाशित हुआ था जब समाज में नित नए परिवर्तन हो रहे थे। आजादी के लिए प्रयास हो रहे थे। नित नए आन्दोलन से समाज को जूझना पड़ रहा था। ऐसे में प्रेमचन्द ने इस उपन्यास से समाज में एक नई चेतना जागृत करने का प्रयास किया था। वे जानते थे राजनैतिक आजादी से समाज का भला नहीं होगा, आजादी के बाद सबसे पहले गरीबी के मसले का हल खोजना होगा।

          कर्मभूमि-इसमें तत्कालीन प्रणाली की आलोचना एवं किसानों की शोषित दशा का चित्रण किया है। शहर व ग्रामों में व्याप्त अछूत समस्या के प्रति उपन्यासकार जागरूक दृष्टि से देखता है। उस समय की शिक्षा, धर्म, अस्पृश्यता, नारी स्थिति, किसानों का शोषण आदि का चित्रण कर प्रेमचन्द अपनी सामाजिक सजगता का परिचय देते हैं। इसमें तत्कालीन मध्यवर्गीय समाज व ग्राम के निम्नवर्गीय समाज का चित्रण है। मध्यवर्गीय समाज समझौतावादी होता है। लोग ऊपरी प्रदर्शन को मुख्य समझने लगे थे। धन के प्रति पूजींपतियों में मोह था, दिखावे का त्याग एवं ढोंग था। यह उपन्यास शोषण एवं अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की कथा है। प्रेमचन्द साहित्य, समाज और राजनीति को पृथक्‌-पृथक्‌ करके देखने के पक्ष में नहीं थे। वे कहते थे कि स्वस्थ समाज से ही स्वस्थ राजनीति का उदय हो सकता है। समाज निकृष्ट है तो सबकुछ उत्कृष्ट की कल्पना की ही नहीं जा सकती है। इस उपन्यास से समाज में उत्कृष्टता लाने का प्रयास किया है।

           कायाकल्प-इसमें प्रेमचन्द ने तत्कालीन समस्याओं की ओर संकेत किया है। प्रेमचंद के समकालीन धर्म की खोखली मान्यताओं ने समाज में विकराल रूप धारण कर लिया था। उन्होंने इस सांप्रदायिकता को दूर कर सामाजिक चेतना के द्वारा पारस्परिक सद्भावना, सहयोग के द्वारा समाधान प्रस्तुत किया है। वे कहते हैं-जब तक हम सच्चे धर्म का अर्थ न समझेंगे, हमारी दशा यही रहेगी। मुश्किल यह है कि जिन महान पुरुषों से अच्छी धर्मनिष्ठा की आशा की जाती है, वे अपने अशिक्षित भाइयों से बढ़कर उद्दण्ड, हो जाते हैं। मैं तो नीति को ही धर्म समझता हूं और सभी संप्रदायों की नीति एक-सी है...हमें राम, कृष्ण, ईसा, मुहम्मद, बुद्ध सभी महात्माओं का समान आदर करना चाहिए...बुरे हिंदू से अच्छा मुसलमान उतना ही अच्छा है, जितना बुरे मुसलमान से अच्छा हिंदू देखना यह चाहिए कि वह कैसा आदमी है, न कि वह किस धर्म का आदमी है। कायाकल्प पर विद्वानों ने अनेक आक्षेप, लगाये उनके बावजूद यह सामाजिक चेतना, जनचेतना में सहायक है। वे बताते हैं कि जनता दमन से आतंकित न होकर उसका मुकाबला करने बढ़ती है। वस्तुतः यह उपन्यास तंत्र-मंत्र, अवतारवाद, बहुविवाह, भोग-विलास, पुनर्जन्म आदि का जीवन्त पर्दाफाश करने वाला है।

          गोदान-इसमें भारतीय जनजीवन की यथार्थ झांकी अपनी तमाम दुर्बलता और सबलता, परम्परा और जातीयता, संस्कृति और सामाजिकता के साथ वर्गभेद जन्य शोषण और अत्याचार और उनके विरुद्ध जीवन संघर्ष के सुख-दुख, घात-प्रतिघात, उत्थान पतन के विविध रूपों का सजीव चित्रण है। यह उपन्यास भारतीय जीवन का गद्य महाकाव्य है। इसमें जनजीवन तथा समाज या देश की धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों का जितना विशद् चित्रण किया है उतना संपूर्ण उपन्यास साहित्य में ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। इसमे उपन्यासकार ने कृषक की परंपराओं, रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, कष्ट कथाओं और अतृप्त अभिलाषाओं का जीवंत चित्र प्रस्तुत कर समाज में एक नई चेतना को जागृत किया है। धार्मिक पाखण्ड को आड़े हाथ लिया है। पुलिस द्वारा कैसा शोषण हो सकता है इसका सजीव चित्रण कर सम्पूर्ण समाज को सचेत किया है। उपन्यासकार प्रेमचन्द ने तत्कालीन भारत का यथार्थ चित्र खींचा है, इससे अधिक निष्पक्ष चित्रण हो ही नहीं सकता है। इसमें सम्पूर्ण समाज को सचेत किया है।

         मंगलसूत्र-इस अपूर्ण उपन्यास में भी उन्होंने पुरानी मान्यताओं को तिलांजलि देकर कुछ नया विकास इसमें देना चाहते थे। पर कृति पूर्ण नहीं कर पाए, लेकिन जितना भी लिखा वह गोदान से अधिक विकसित है। यदि पूर्ण हो जाती तो गोदान से आगे का विकास होता। इसमें भी अपने युग के सत्य को उजागर किया है। इसमें मजदूर आन्दोलन व पूजींवादी शोषण संबंधी समस्या को उजागर करता है। इस अधूरे उपन्यास में भी सामाजिक चेतना कूट-कूट कर भरी है।

         प्रेमचन्द ने साहित्यकारों को कल्पना के आकाश से यथार्थ धरातल पर लाकर यह सन्देश दिया कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज का जैसा रूप देखना है उसके लिए सामाजिक चेतना भी वैसी ही लानी होगी। सामाजिक चेतना का विशद् वर्णन प्रेमचन्द्र ने अति सजीव रूप में अपने उपन्यास साहित्य किया है। उन्होंने अपने उपन्यास साहित्य से तत्कालीन समाज का सजीव चित्रण करके समाज को एक दिशा प्रदान की है। समस्याएं देशकाल व परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है। लेकिन उसका मूल अर्थ हर समय समाज में विद्यमान रहता है, उससे जूझने की सामर्थ्य व साधन परिवर्तित हो जाते हैं। उन्होंने मूल समस्या व उसका समाधान बताकर सम्पूर्ण समाज को एक दिशा प्रदान कर यह बता दिया है कि समाज में चेतना लाकर एक दिशा प्रदान की जा सकती है।

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रचनाएँ
hindigadyasahitya
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हिन्दी साहित्य की चर्चा करेंगे!
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सफलता की चाबी

14 जून 2016
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सफलता हमारे द्वारा किए गए कामों पर निर्भर करती है। सफलता की चाबी उसे मिलती है जो एक लक्ष्य और काम को व्यवस्थित ढंग से करता  है।  सफलता  के लिए काम अवश्‍य करें और निरन्‍तर करें। एक समय में एक काम करें, दो या दो से अधिक काम एक साथ प्रारम्‍भ करने से एक भी काम पूरा नहीं होता है। काम सदैव अच्‍छा ही कीजिए

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युक्ति

15 जून 2016
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एक बार मैं मेरठ से कानपुर तक की यात्रा कर रही थी। मेरी सीट खिड़की के पास थी। बायीं ओर डिब्‍बे में सामने वाली सीट पर एक वृद्ध बैठे थे। हापुड़ से कुछ लड़के उसी डिब्‍बे में सवार हुए और वृद्ध के सामने वाली सीट पर बैठ गए। उनमें से एक लड़का बहुत शरारती था। शायद वह उस वृद्ध व्‍यक्ति को परेशान कर मजा लेना च

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आत्मचिन्तन

15 जून 2016
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प्राय: ऐसा होता है कि जब हम काम आरम्‍भ करते हैं तो बड़े उत्‍साह से करते हैं। किन्‍तु ज्‍यों-ज्‍यों उस कार्य में आगे बढ़ते हैं, त्‍यों-त्‍यों उत्‍साह में कमी आने लगती है, लगन शिथिल पढ़ने लगती है। ऐसा क्‍यों है, कभी आपने सोचा। ऐसा आत्‍मचिन्‍तन के अभाव में होता है। निज किए हुए कार्यों का चिन्‍तन करने व

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जिन खोजा तिन पाइयां

16 जून 2016
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एक ग्राम में सभी लोग श्रमदान करके एक मार्ग बना रहे थे जिससे लोगों को आने-जाने में असुविधा न हो। ग्राम के स्‍त्री-पुरुष, बच्‍चे और बूढ़े सभी कठिन परिश्रम कर रहे थे। जो निर्बल या कमजोर थे वे हल्‍का श्रम कर सहयोग कर रहे थे।एक तरफ एक आदमी उदास सा खड़ा सबको कार्य करता हुआ देख रहा था। ग्राम का प्रधान उसके

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निर्लिप्‍तता

17 जून 2016
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वुडरो विल्‍सन अमेरिका के सर्वोच्‍च पद की शोभा बढ़ाने के अलावा एक विद्वान और सुविचारक भी थे। वे लम्‍बी बीमारी के बाद भी जब स्‍वस्‍थ नहीं हुए तो एक दिन उनके अभिन्‍न मित्र ने उनसे कहा,'मित्र, अब तो शायद आपका समय निकट आ ही गया है।' मित्र की बात सुनकर वुडरो विल्‍सन मुस्‍कराकर बोले,'मेरे प्रिय मित्र, मैं

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समकालीन उपन्यास साहित्य में नारी विमर्श

17 जून 2016
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वैदिक काल में नारी की स्थिति अत्यन्त उच्च थी। उस काल में यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता की कहावत चरितार्थ होती थी। भारतीयों के सभी आदर्श रूप नारी में पाए जाते थे, जैसे सरस्वती(विद्या का आदर्श), लक्ष्मी(धन का आदर्श), दुर्गा(शक्ति का आदर्श), रति(सौन्दर्य का आदर्श) एवं गंगा(पवित्राता का आदर

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भूमंडलीकरण के दौर में हिन्दी

18 जून 2016
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     आज भूमंडलीकरण और मुक्त अर्थव्यवस्था का युग है। सूचना प्रौद्योगिकी और तकनीकी क्रान्ति के माध्यम से वर्तमान पूंजीवाद विश्व-बाजार या भूमंडलीय बाजार की अवस्था में पहुंच गया है। तकनीकी क्रान्ति ने पूंजी-निर्माण की गति को तेज किया है। यह पूंजी सम्पूर्ण संसार को एक बड़े बाजार में परिवर्तित कर देती है।

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प्रेमचन्द के उपन्यासों में सामाजिक चेतना

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एकता

19 जून 2016
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जाति एक भ्रान्ति है-मानव को मानव से तोड़ने की, मानवता से मोड़ने की, भेदभाव से जोड़ने की। यह सार्वभौमिक सत्य है-हर धमनी में दौड़ता खून लाल है। समानता की सबसे बड़ी मिसाल है। सर्वधर्म, समभाव की भावना यह होगी सबकी कामना तब वो दिन दूर न होगा- जब एकता के वटवृक्ष उगेंगे शान्ति के दीपक जलेंगे और इस जाति नाम

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प्रेमचन्द के उपन्यासों में बाल मनोविज्ञान

20 जून 2016
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          प्रेमचन्द हिन्दी के प्रथम मौलिक उपन्यासकार हैं। उन्होंने एक क्रमबद्ध एवं संगठित कथा देने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। उन्होंने हिन्दी के पाठकों की अभिरुचि को तिलिस्मी उपन्यासों की गर्त से निकालकर शुद्ध साहित्यिक नींव पर स्थिर किया। उनकी कला, उनका आदर्शवाद, उनकी कल्पना और सौन्दर्यानुभूति

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योग

21 जून 2016
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योग व्यक्ति को तन और मन से जोड़ता है। तन से जुड़ने का का मतलब है शरीर की देखभाल इस देखभाल से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और मन सेे जुड़ने का मतलब है मन की एकाग्रता। इस प्रकार तन और मन पर व्यक्ति का नियंत्रण हो जाता है जिससे संयम, विवेक और साहस बढ़ता है और व्यक्ति स्वस्थ व प्रसन्नचित्त रहता है। वस्तुतः यो

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उन्नति

22 जून 2016
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उन्नति सभी चाहते हैं लेकिन उन्नति उनको मिलती है जो जीवन में इन पांच सूत्रों को अपनाते हैं-1. अपने क्षेत्र में सदैव ज्ञान के मामले में अद्यतन रहते हैं। 2. आगे बढ़कर काम पकड़ते हैं। 3. जोखिम उठाने से कभी पीछे नहीं हटते हैं।4. काम सदैव पूरा रखते हैं। 5. नए अवसर क़ी ताक में रहते हैं। जो इन पांच सूत्रों क

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बीमार ही नहीं पड़ेंगे!

23 जून 2016
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डाॅ. केनेथ वाकर ने अपनी आत्मकथा में कहा है-‘आप जितना खाते हैं उसके आधे भोजन से पेट भरता है और आधे भोजन से डाॅक्टरों का पेट भरता है। आप आधा भोजन ही करें तो आप बीमार ही नहीं पड़ेंगे और डाॅक्टरों की कोई खास आवश्यकता नहीं रह जाएगी।’ डाॅ. केनेथ की यह बात अनुभूत है और व्यवहारोपयोगी है। सच में भूख से कम खा

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प्रेम

25 जून 2016
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मौन   है  बोले समर्पण-भाषाप्रेमद्वार खोले।          प्रीत   की   रीत          त्याग है पहचाने          होती नहीं जीत। खुश रहे सदा मन ये मानतावैसा न दूजा।            सदा है बांधता            मोह का बंधन           प्रेम का चंदन आती हर आहट उनकी है चाहतदेती कहां राहत ।          संदेशा ये मिला          आ

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सड़क और कविताएं

26 जून 2016
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सत्य की सड़क मिथ्या की चाैखट पर पहुंचकरमात्र एक गैलरी रह जाती हैऔर शेष भूमि परकविताएं लिख दी जाती हैं,कविताएंजो कभी भी किसी भी सूरत मेंसड्कें नहीं बन सकतीं।प्रशस्ति पत्रों से लिपटी सहमी ग्रामीण दुल्हनों जैसी जीवन भर चक्की पीसती रहती है, रोटियां पकाती रहती है और उधर मिथ्या की काली गैलरी में जेबें काट

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मंजिल

27 जून 2016
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जिंदगी   है   इक  झरोखा झांकते रहिये।लक्ष्य  से  भी  अपनी  दूरी  नापते  रहिये। साथ-साथ  चलेंगे तो पा ही लेंगे  मंजिलें। बस एक दूजे के दु:खों को  बांटते रहिये।

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रात सिर्फ रात नहीं

28 जून 2016
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रात सिर्फ रात नहींएक मंजिल भी है।      सुबह की  लगन की      दोपहर के सफर की      शाम  की कथन की। ख्वाब सिर्फ ख्वाब नहीं एक   तस्कीन   भी   है      जख्म पर मरहम सी      अजनबी   चुभन-सी      बांहों   में   दुल्हन-सी। गीत सिर्फ गीत नहीं एक  सहारा  भी  है।      तन्हाई में साथी-सा             कश्ती में म

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न्याय का घंटा

29 जून 2016
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    महाभारत में विजयी होकर युधिष्ठिर ने राज्य सत्ता संभाली। सबको समान न्याय मिले, उनके राज्य में कोई दुःखी नह हो इसके लिए उन्होंने ‘न्याय घंटा’ लगवा दिया ताकि प्रत्येक व्यक्ति की फरियाद सुन सकें।    एक बार एक निर्धन व्यक्ति ने न्याय मांगने के लिए घंटा बजाया। युधिष्ठर राजकाज में व्यस्त थे, उन्होंने

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बात जो दिल को छू गई

1 जुलाई 2016
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बात उन दिनों की है जब मैं दसवी कक्षा की छात्रा थी। किसी के नाम के पूर्व डाॅ. की उपाधि देखकर मन असंख्य अभिलाषाओं से भर उठता। मैं  सोचती  काश, मेरे नाम से पूर्व भी यह उपाधि लगे। साहित्य लेखन में रुचि होने के कारण कविता, कहानी आदि की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी जिससे  मैं स्कूल की प्राचार्या से 

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कर्म प्रधान विश्व रचि राखा

2 जुलाई 2016
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जीवन राह देता है पर हम उसे पकड़ नही पाते हैं। अकर्मण्यता या आलस्य वश ऐसा होता है। भाग्य भी पुरुषार्थ से फलीभूत होता है। कर्म के योग से कुशलता प्राप्त होती है। कर्म की महत्ता सर्वोपरि है। बिना कर्म के कुछ नहीं मिलता है। ईश्वर आशीष से हमें जो यह अनमोल जीवन मिला है इसे सार्थक करने के लिए हमें कर्म को म

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सफलता का शाॅर्टकट

3 जुलाई 2016
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आप स्कूटर की टंकी फुल कराकर मेरठ से अलीगढ़ की यात्रा करने के लिए निकल पड़े हैं पर आपका पेट्रोल आधे रास्ते में ही समाप्त हो गया और आपकी यात्रा रुक गयी। स्पष्ट है कि जब तक आपके पास क्षमता  है तब तक ही आप सफलता की सीढ़ी चढ़ सकेंगे। सफलता उसी अनुपात में मिलती हैजिस अनुपात में आपके पास वांछित वस्तु पाने 

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अधिकार किसका

4 जुलाई 2016
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बस दलपतपुर आकर रुक गई। सवारियों का आवागमन चरम सीमा पर था। बस ठसाठस भरी थी। लेकिन फिर भी कंडक्टर का आवाज दे-देकर यात्रियों को बुलाना वातावरण में कोलाहल पैदा कर रहा था।  एक बूढ़ी औरत के बस के पायदान पर पैर रखते ही कंडक्टर ने सीटी दे दी। कंपकंपाते हाथों से बुढि़या की पोटली सड़क पर ही गिर पड़ी। ‘रुकके भ

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जीत

7 जुलाई 2016
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हार स्वीकार करने वाला ही जीवन में निराश होता है। जो हारने के उपरान्त भी हार नहीं मानते हैं और अपने हार के कारणों को खोजकर उनमें सुधार लाते हुए पुनः प्रयास करते हैं, वे अवश्य जीतते हैं! न हार मानने वाला ही पुनः प्रयास करता है। वस्तुतः यह सत्य है कि हार के बाद ही जीत है! 

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प्रशंसा में सृजन की क्षमता होती है!

10 जुलाई 2016
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प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रशंसा चाहता है। सही अर्थों में प्रशंसा एक प्रकार का प्रोत्साहन है! प्रशंसा में सृजन की क्षमा होती है। इसलिए प्रशंसा करने का जब भी अवसर मिले उसे व्यक्त करने से नहीं चूकना चाहिए। प्रशंसा करने से प्रशंसक की प्रतिष्ठा बढ़ती है। सभी में गुण व दोष होते हैं। ऐसा नहीं है कि बुरे से ब

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चहुंमुखी विकास

11 जुलाई 2016
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जीवन में एक विकल्प या एक सोच रखकर प्रयास करने पर जीवन का चहुंमुखी विकास नहीं होता है। जीवन का विकास अनेक विकल्पों या अनेक प्रकार की सोच को फलीभूत करने के लिए प्रयास करने पर चहुंमुखी विकास के संग ढेरों खुुशियां मिलती हैं। लेकिन यह ध्यान रखें कि जितने विकल्प होंगे उतने अधिक प्रयास और बहुत-सा परिश्रम भ

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उपयोगी

12 जुलाई 2016
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उपयोगी को ग्राह्य कर लेना चाहिए और अनुपयोगी को त्याज्य देना चाहिए। एक बार की बात है कि गांधी जी को किसी युवक द्वारा लिखा एक पत्र मिला जिसमें गांधी जी को बहुत गालियां दी गई थीं।  गांधी जी ने शान्त भाव से तीन पन्नों का पत्र पढ़ा था और उसमें लगी आॅलपिन को निकालकर रख लिया और पत्र फाड़कर रद्दी की टोकरी म

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व्यक्तित्व निर्माण का मूलाधार

16 जुलाई 2016
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व्यक्तित्व का निर्माण मूल रूप से विचारों पर निर्भर है। चिन्तन मन के साथ-साथ शरीर को भी प्रभावित करता है। चिन्तन की उत्कृष्टता को व्यवहार में लाने से ही भावात्मक व सामाजिक सामंजस्य बनता है। हमारे मन की बनावट ऐसी है कि वह चिन्तन के लिए आधार खोजता है। चिन्तन का जैसा माध्यम होगा वैसा ही उसका स्तर होगा।न

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मोक्ष मार्ग निर्गुणी को ही मिलता है!

18 जुलाई 2016
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       प्रकृति त्रिगुणमयी है इसलिए हमारा जीवन इनसे प्रभावित होता है। गुण तीन हैं-तमोगुण, रजोगुण व सतोगुण! तमोगुण अर्थात्  सुस्ती, आलस्य। ये कुछ भी मन से नहीं करते हैं, मजबूरी में करते हैं। ऐसे लोग अच्छा जीवन कदापि नहीं जीते हैं। ये कुछ करने से पहले सुविधा का सोचते हैं! ये अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर

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गुरु से तात्पर्य क्या है?

19 जुलाई 2016
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गुरु शब्द में दो व्यंजन (अक्षर) गु और रु के अर्थ इस प्रकार से हैं- गु शब्द का अर्थ है अज्ञान, जो कि अधिकांश मनुष्यों में होता है ।रु शब्द का अर्थ है, जो अज्ञान का नाश करता है ।अतः गुरु वह है जो मानव जाति के आध्यात्मिक अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाते हैं और उसे आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं । गुरु से

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निरंतरता

20 जुलाई 2016
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निरंतरता सीखनी चाहिए। जब तक आप कोई संकल्प लेकर उसमें निरंतरता नहीं रखेंगे उसका अच्छा प्रभाव भी नहीं मिलेगा और संकल्प भी अधूरा रह जाएगा। मान लो आपन संकल्प लिया कि कल से मैं प्रतिदिन आधा घंटा व्यायाम करूंगा। आपने अपने संकल्प के अनुसार प्रारम्भ भी कर दिया पर किसी न किसी कारणवश आप नागा करने लगे। ऐसा करन

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चरित्र से व्यक्तित्व का विकास होता है!

21 जुलाई 2016
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चरित्र व्यक्ति की  मौलिक विशेषता व उसके द्वारा ही निर्मित होता है। चरित्र से व्यक्ति के निजी दृष्टिकोण, निश्चय, संकल्प व साहस के साथ-साथ बाह्य प्रभाव भी समिश्रित रहता है। परिस्थितियां सदैव सामान्य स्तर के लोगों पर हावी होती हैं। मौलिक विशेषता वाले लोग नदी के प्रवाह के विपरीत मछली सदृश निज पूंछ के बल

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सफलता हमारे पास होगी!

24 जुलाई 2016
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अनेक लोग अपना कार्य बीच में ही छोड़कर बैठ जाते हैं जबकि उन्हें सफलता मिलने वाली होती है। मन में करो या मरो की भावना जाग्रत रखने की भावना इनमें होती तो वे सफलता के शीर्ष पर होते। जो सफलता मिलने के पूर्व ही कार्य छोड़ देते हैं वे कभी आगे नहीं बढ़ सकते हैं। ऐसा उन्हीं के साथ होता है जिनके मन में स्वार्

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सौभाग्यशाली कौन बनता है?

26 जुलाई 2016
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अवसर का सदुपयोग ही भाग्य है।भाग्य का सदुपयोग सफलता है। जीवन को सफल वही बना पाता है जो प्राप्त अवसरों का उपयोग करने हेतु पूर्ण तत्परता सहित प्रस्तुत रहता है। प्रायः अवसर सभी के समक्ष आते हैं पर हम उन अवसरों को पकड़कर उपयोग में लाने के लिए सजग नहीं होते हैं। सच्चाई से कार्य करने वाले, पूर्ण समर्पण भाव

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रचनात्मकता

10 अगस्त 2016
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व्यक्ति की रचनात्मक प्रवृत्ति तब अधिक निखर कर आती है जब वह मुक्त होकर सोचता है। मुक्त सोच के अनुसार कुछ नया करने का प्रयास करने पर भी रचनात्मकता आती है। अपनी मुक्त सोच को अपनी रचनात्मक रुचि के अनुसार विकसित करें। ऐसा करने से आपके कार्य में नवीनता होगी और लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करने में भी 

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विजयादशमी

11 अक्टूबर 2016
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दीपावली

30 अक्टूबर 2016
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दीपपर्व सभी को मंगलमय हो!

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नववर्ष मंगलमय हो!

1 जनवरी 2017
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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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मृत्‍यु के समय क्‍या साथ जाता है

3 मई 2017
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मृत्‍यु के समय क्‍या साथ जाता है (MRt‍yu ke samay k‍yaa saath jaataa hai)इस वीडियो में यह बताने का प्रयास किया गया है कि मृत्‍यु के समय क्‍या साथ जाता है। मृत्‍यु के समय क्‍या साथ जाता है (MRt‍yu ke samay k‍yaa saath jaataa hai) - YouTu

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क्‍या दान पाप नाशक होता है

4 मई 2017
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क्‍या दान पाप नाशक होता है (K‍yaa daan paapanaashak hotaa hai)इस वीडियो में यह बताने का प्रयास किया गया है कि क्‍या दान पाप नाशक होता है। क्‍या दान पाप नाशक होता है (K‍yaa daan paapanaashak hotaa hai) - YouTube

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विश्‍व योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं (योग की सार्थकता कब है)

21 जून 2017
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विश्‍व योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं (योग की सार्थकता कब है)आज 21 जून विश्‍व योग दिवस है। इस वीडियो में विश्‍व योग दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए एक सन्‍देश दिया गया है। इस सन्‍देश का अनुसरण करने पर ही योग की सार्थकता है। यदि अभी तक आपने हमारे चैनल को सबस्‍क्राईब नह

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माईग्रेन से राहत कैसे पाएं

14 जुलाई 2017
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माईग्रेन से राहत कैसे पाएं इस वीडियो में यह बताने का प्रयास किया गया है कि माईग्रेन से राहत कैसे पाएं। यदि अभी तक आपने हमारे चैनल को सबस्‍क्राईब नहीं किया है तो अवश्‍य करें और नयी ज्ञानवर्धक, प्रेरणास्‍पद् और मनोरंजक वीडियो की जानकारी पाएं।Share, Support, Subscribe!!!Sub

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भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां प्रत्‍येक नागरिक को ज्ञात होनी चाहिएं

19 जुलाई 2017
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26 जनवरी, 1950 को संविधान के अस्तित्व में आने के साथ ही देश ने लोकतांत्रिक गणराज्य का दर्जा प्राप्‍त किया। गणराज्य का जो प्रधान निर्वाचित होगा उसको राष्ट्रपति कहा जाता है। संविधान के अनुसार भारत का एक राष्ट्रपति होगा जोकि संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों

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एसीडिटी कैसे ठीक करें

27 जुलाई 2017
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एसीडिटी कैसे ठीक करेंआज मंगलवार है और प्रत्‍येक मंगल को सेहत संबंधी चर्चा करेंगे। आज इस वीडियो में यह बताने का प्रयास किया गया है कि एसीडिटी कैसे ठीक करें। यदि अभी तक आपने हमारे चैनल को सबस्‍क्राईब नहीं किया है तो अवश्‍य करें और नयी ज्ञानवर्धक, प्रेरणास्‍पद् और मनोरंजक वी

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स्‍वतन्‍त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

15 अगस्त 2017
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स्‍वतन्‍त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आज मंगलवार है और प्रत्‍येक मंगल को सेहत संबंधी चर्चा करते हैं पर आज स्‍वतन्‍त्रता दिवस होने के कारण आज की वीडियो में आप सबको स्‍वतन्‍त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं दे रहे हैं। आप सबको स्‍वतन्‍त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। यद

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उदर विकार नाशक चूर्ण

12 सितम्बर 2017
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उदर विकार नाशक चूर्ण आज की वीडियो में यह बताएंगे कि उदर विकार नाशक चूर्ण कैसे बनाएं।यदि अभी तक आपने हमारे चैनल को सबस्‍क्राईब नहीं किया है तो अवश्‍य करें और नयी ज्ञान वर्धक, प्रेरणास्‍पद् और मनोरंजक वीडियो की जानकारी पाएं।Share, Support

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Vayu Mudraa(In Hindi) वायु मुद्रा - YouTube

17 सितम्बर 2017
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वायु मुद्राआज की वीडियो में योग के अन्‍तर्गत वायु मुद्रा की चर्चा करेंगे और यह बताएंगे कि वायु मुद्रा क्‍या है और कैसे बनती है तथा इसको करने से क्‍या लाभ होता है।यदि आपने अभी तक आपने हमारे चैनल को सबस्‍क्राईब नहीं किया है तो अवश्‍य करें और नयी ज्ञानवर्धक, प्रेरणास्‍पद्, म

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किस प्रकार का भोजन लाभदायक होता है

19 सितम्बर 2017
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किस प्रकार का भोजन लाभदायक होता है आज की वीडियो में यह बताएंगे कि किस प्रकार का भोजन लाभदायक होता है।यदि अभी तक आपने हमारे चैनल को सबस्‍क्राईब नहीं किया है तो अवश्‍य करें और नयी ज्ञानवर्धक, प्रेरणास्‍पद् और मनोरंजक वीडियो की जानकारी पाएं।Share, Support, Subscribe!!!Subs

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