प्राय: ऐसा होता है कि जब हम काम आरम्भ करते हैं तो बड़े उत्साह से करते हैं। किन्तु ज्यों-ज्यों उस कार्य में आगे बढ़ते हैं, त्यों-त्यों उत्साह में कमी आने लगती है, लगन शिथिल पढ़ने लगती है। ऐसा क्यों है, कभी आपने सोचा। ऐसा आत्मचिन्तन के अभाव में होता है। निज किए हुए कार्यों का चिन्तन करने वाला और मन में कार्यों का लेखाजोखा रखने वाला व्यक्ति कभी निराश नहीं होता है। यह जान लीजिए कि आत्मचिन्तन को आत्मविश्वास का जनक कहा जाता है। आत्मचिन्तन से अपनी गलतियों का आभास हो जाता है, फलत: नए उत्साह की उत्पत्ति होती है। उत्साह निराशा का प्रबल शत्रु है और सफलता का सहायक है। सफल वही होता है जिसके पास एक लक्ष्य होता है, उस लक्ष्य को पाने का संकल्प होता है और वहां तक पहुंचने के लिए भरपूर प्रयास होता है, बाधाएं आने पर आत्मचिन्तन करके उनका कारण जानकर निरन्तर उत्साह सहित सक्रिय रहता है।