सत्य की सड़क
मिथ्या की चाैखट पर पहुंचकर
मात्र एक गैलरी रह जाती है
और शेष भूमि पर
कविताएं लिख दी जाती हैं,
कविताएं
जो कभी भी किसी भी सूरत में
सड्कें नहीं बन सकतीं।
प्रशस्ति पत्रों से लिपटी सहमी
ग्रामीण दुल्हनों जैसी
जीवन भर चक्की पीसती रहती है,
रोटियां पकाती रहती है
और उधर
मिथ्या की काली गैलरी में
जेबें काट ली जाती हैं
चोरियां, डाके पड़ जाते हैं,
कत्ल हो जाते हैं
अनर्थ हो जाते हैं
और श्रोता
काव्य-रस
शरबत जानकर
पी जाते हैं
और न समझकर भी
वाह वाह कर जाते हैं।