मेरे प्यारे अलबेले मित्रों !
बारम्बार नमन आपको🙏🙏
एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने युवाओं के विषय में समझाते हुए कहा था कि युवावस्था उत्साह,उमंग, कर्मठता, प्रयोग -धर्मिता और नवोन्मेष का सकारात्मक संयोजन है जिससे युवा कभी हार न माने,अपने दिल दिमाग परनकारात्मकता को हावी न होने दे,निराश और हताश न हो और कोई ऐसा कार्य करे जिससे उसकी पहचान बने ।
युवा नकारात्मकता के मकड़जाल में उलझकर चिंता को आमंत्रण देता है जो मानसिक तनाव की जड़ है। मानसिक चिंता और नकारात्मक विचार युवाओं के शरीर की श्वसन प्रक्रिया और रक्त परिसंचरण को बुरी तरह प्रभावित करते हैं जिसके परिणामस्वरूप युवा ऊँचरक्तचाप, माइग्रेन, डिप्रेशन,हाइपरटेंशन,सिर दर्द आदि गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं ।
युवा सकरात्मक विचार को अपनाकर अपने शारीरिक विकास को मजबूती प्रदान कर सकते हैं क्योंकि जब जीवन में जैसे हीं सकारात्मकता का प्रवेश होता है नकारात्मकता स्वतः तिरोहित होने लगती है,उड़नछू होने लगती है और शारीरिक सकारात्मकता के कारण स्वास्थ्य लाभ पाते हैं ।
हर काल में युवाओं ने अपने-अपने देश को बुलंदियों पर पहुँचाया है किन्तु वर्त्तमान में छोटी-छोटी बिफलताओं के कारण वही उत्सुक युवा निराशा और हताशा जैसी नकारात्मकता के मकड़जाल में फँसकर आत्महत्या जैसे पाप कर्म करने लगे हैं ।
अतः यौवन के उत्साह को सकारात्मक ज्ञान और समझदारी का संबल प्रदान किया जाए तो युवा अपने दिल दिमाग से नकारात्मकता को बाय-बाय बोलकर शारीरिक सकारात्मकता के सहयोग से अपना सुनहरा भविष्य गढ़ नए कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं ।
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:-अंजनी कुमार आज़ाद,आरा,पटना,बिहार