अपना शहर छोड़कर
कहां जायेंगे ,
यहां की गलियां यहां के चौराहे
बहुत याद आयेंगे ,
कुछ पुरानी यादें ,पुराने किस्से
कैसे भूल पाएंगे ,
पुराने मित्रों की टोली
वह हंसी ठिठोली ,
सुबह की मॉर्निंग वॉक
और दुनिया भर की टॉक
कैसे भूल पाएंगे
बहुत मजबूरी में छूटता है
अपना शहर ,
जब टूटती है किसी की कमर
हो जाते है दर बदर ,
तो काम आते हैं अपने ही
शहर के लोग ,
कैसे जा सकता है कोई
अपना शहर छोड़कर