मेरी किताब का "नाम ख़ुद की तराश" है। ख़ुद की तराश किताब में मैंने कुछ कविताएं लिखी हैं। मैं यह नहीं कहती कि मैं बहुत अच्छी कावित्री हूँ। मैंने अभी कविताएं लिखना शुरू किया है और मैं कविता लिखना सीख रही हूँ। यह कविताएं मेरी छोटी सी पहल हैं। मैंने अपनी इस किताब में कुछ कविताएं लिखी हैं। उन्हीं कविताओं में से एक कविता जिसका नाम ख़ुद की तराश है। इस कविता में मैंने ख़ुद का दुःख साझा किया है। हमारे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि दुख बांटने से कम होता है। अगर हम दुख अपने अंदर ही छिपाकर रखते हैं, तो वह दुख और भी बढ़ता जाता है। और इंसान अंदर ही अंदर खोखला होता जा रहा होता है। देखो, यह सब जानते हैं कि पढ़ाई मानव के लिए कितनी जरूरी है। बिना ज्ञान के मानव जीवन मानों जैसे जानवर है। ज्ञान प्राप्त करना हर किसी का अधिकार है। लेकिन आजकल तो यह अधिकार भी पैसे से मिलता है। अगर किसी स्कूल में एडमिशन करवाना है, तो कोई ग्रेड, कोई नंबर पूछता है। अगर पूछते हैं तो, फीस है आपके पास। बिना पैसों के कोई एडमिशन नहीं देता। जिसके पास पैसा है, वहीं पढ़ सकता है। जिसके पास पैसा नहीं है, वह पढ़ने में चाहें कितना भी अच्छा हो, उसे मजदूरी ही करनी पड़ती है। हमारे भारत देश में एक बात कमाल की है। जिसके माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई पर पैसे खर्च करते हैं, वह बच्चे पढ़ते नहीं हैं। लेकिन फिर भी वह पैसों के दम पर आगे पढ़ते हैं। और पैसों के दम पर ही उन्हें अच्छी नौकरी भी मिल जाती है। और दूसरी जो बच्चे पढ़ाई में होशियार होते हैं, उनके माता-पिता के पास इतना पैसा नहीं होता कि वह अपने बच्चों को पढ़ा सकें। जैसे कि हम पर ही लगालो। हम सभी भाई-बहन होशियार हैं। कोई अपनी कक्षा में सेकंड, कोई थर्ड पोजिशन पर। लेकिन उसका क्या फ़ायदा हुआ? और हमारी कक्षा के वो विद्यार्थी जिन्होंने कभी एग्जाम में 8 या फिर कभी 10 मार्क्स आते थे, वह अभी बीए सेकंड ईयर में हैं। उन्हें देखकर पता नहीं क्यों अजीब सा महसूस होता है। उनके सामने जाने से भी डर लगता है कि कहीं वह हमें चिढ़ाएं ना कि क्लास में सारा दिन पढ़ने वाले अब यूं ही धक्के खाते हैं। जब आगे पढ़ नहीं पाएं। यही कारण है कि हमारे देश में अमीर और भी अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और भी गरीब होते जा रहे हैं। शायद यही कारण है कि भारत देश में गरीबी कम नहीं होती।
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