महान योद्धा बंदा सिंह बहादुर (बन्दा बैरागी ) -जन्म दिन 27 अक्तूबर,1670
मुगलों को नाकों चने चबवाने वाले योद्धा बन्दा बैरागी का जन्म जम्मू कश्मीर के पुंछ में 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, में श्री रामदेव के घर हुआ। गुरु गोविन्द सिंह ने बन्दा बहादुर नाम दिया और उन्हें पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा दिया । उन्होंने बंदा बहादुर को अपने दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले, सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।
कुछ कर गुज़रने को तत्पर बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। बंदा बहादुर एक तूफ़ान बन गए जिसे रोकना किसी के बस में नहीं था । सबसे पहले उन्होंने श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर गुरु गोविन्द सिंह के दोनों पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब वजीर खान का वध किया।
उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और धोखे से 17 दिसंबर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। मुग़ल इतने डरे हुए थे कि बंदा बहादुर को प्रताड़ित करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी । बंदा बहादुर को अपमानित करने के लिए उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बंदी बनाकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। युद्ध में जिन सिख सैनिकों ने वीरगति पायी थी उनके सिर काटकर, उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया, ताकि रास्ते में सभी इस भयावह दृश्य को देखें । उनके साथ हजारों सिख भी कैद किये गये थे। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।
अत्याचारी मुग़लों ने बन्दा को भयभीत करने के लिए उनके 5 वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर, बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया। बन्दा ने अपने ही बेटे की हत्या करने से मना कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस पाँच साल के बच्चे के दो टुकड़े कर उसके दिल का माँस निकलकर बन्दा के मुँह में ठूँस दिया। पर वीर बंदा बैरागी तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ ही बची थीं। इतने निर्मम अत्याचार करने के बाद भी जब बंदा का मनोबल नहीं टूटा तो 9 जून, 1716 को दुश्मनों ने इस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा बैरागी वीरगति को प्राप्त हुए । अपनी कौम की रक्षा के लिए बंदा बैरागी का बलिदान विलक्षण है ।