मैने अपनी पुस्तक, "सफलता की ओर", में एक विधवा औरत की कहानी लिखी है, जिसका नाम सुरजीत है। सुरजीत ने अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा किया। सुरजीत से बहुत लोगों ने कहा कि मिनी को पढ़ाने-लिखाने का तुम्हें क्या फायदा, इसने तो अपने ससुराल चले जाना है। लेकिन सुरजीत ने किसी की बातों में ना आकर मिनी को पुलिस अफसर बनाया और अपने पति का सपना पूरा किया। मेरी द्वारा लिखी इस कहानी में सुरजीत का पात्र बहुत मेहनती और ईमानदार है। मिनी का पात्र साहसी है। बलवीर का पात्र अपनी जिम्मेदारी को निभाने वाला है। शरनजीत का पात्र थोड़ा कान का कच्चा है और बेटियों को अपने घर में ना पसंद करने वाला पात्र है। बुआ सास का भी कुछ ऐसा ही पात्र है। यह कहानी सच्ची तो नहीं है, लेकिन इस कहानी के पात्रों के जरिए कहानी में जान डालने की कोशिश की गई है। इस कहानी के जरिए समझाने की कोशिश की गई है कि अपनी बेटियों को अपने सिर का बोझ ना मानकर।
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