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स्वतंत्रता सेनानी सुखदेव थापर

16 मई 2023

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   स्वतंत्रता के लिए अपने को पूर्ण रूप से समर्पित करने वाले क्रांतिकारियों के मध्य सुखदेव थापर एक ऐसा नाम है जो टिप्पणी की तरह अपनी चमक और कीर्ति भी खेलता हुआ बिछड़ता हुआ दिव्य आभा को से दमक रहा है शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य मित्र के रूप में जब भी उनके मित्रों का नाम लिया जाएगा सुखदेव थापर का नाम सदैव सबसे ऊपर आएगा ।
अपनी देशभक्ति साहस और मातृभूमि पर कुर्बान होने के लिए सुखदेव थापर का नाम स्वर्ण अक्षरों में  हमारे इतिहास में सुशोभित है ।
ब्रिटिश हुकूमत को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से खौफ पैदा करने वाले सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1960 को पंजाब के लुधियाना शहर में हुआ था । सुखदेव थापर के पिता श्री राम लाल थापर बा माता श्रीमती रल्ली देवी थीं।
बचपन से ही सुखदेव थापर ने ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों को देखा था और इन अत्याचारों रूपी बेड़ियों को काटने के लिए सुखदेव थापर के मन में क्रांति ब्रिटिश हुकूमत से भिड़ने के लिए क्रांतिकारी दल में शामिल हो गए हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य सुखदेव के मन में देश भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी
भगत सिंह और सुखदेव के परिवार पासी पास रहते थे और इन दोनों परिवारों में गहरी दोस्ती थी साथ इसके साथ ही भगत सिंह और सुखदेव लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे
  और वह युवाओं को क्रांति के लिए प्रेरित करते अपने साथ के छात्रों के मध्य वार्तालाप में सुखदेव भारत के प्राचीन गौरव की बातें करके उनको पुनः वापस लाने के लिए अपने साथियों को उत्साहित करते अपने साथियों के साथ मिलकर सुखदेव ने लाहौर में नौजवान भारत सभा शुरू की यह संगठन युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करता था
1928 में पुलिस की बर्बरता से की गई पिटाई से लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए क्रांतिकारी राजगुरु ने 19 दिसंबर 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स की हत्या कर दी ।
जेपी सांडर्स की हत्या के बाद ब्रिटिश सरकार को अपनी जड़े हिलती दिखाई दी जेपी सांडर्स की हत्या के लिए सुखदेव को आरोपी माना गया जेपी सांडर्स की हत्या के मामले को लाहौर षड्यंत्र के नाम से जाना जाता है इस मामले में राजगुरु ,सुखदेव और भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई ।
इसमें सन 1929 में जेल में कैदियों के साथ ब्रिटिश सैनिकों द्वारा अमानवीय व्यवहार किए जाने के विरोध में राजनीतिक बंदियों द्वारा की गई व्यापक हड़ताल में भी सुखदेव थापर ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया गांधी इरविन समझौता के संदर्भ में सुखदेव थापर ने गांधी जी को अंग्रेजी में कुछ गंभीर प्रश्न किए थे उसका उत्तर मिलने की जगह समय से पूर्व ही सुखदेव राजगुरु और भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया

23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चुन लिया और देश के युवाओं में एक संदेश दिया कि देश की आजादी के लिए अपने तन मन धन को समर्पित करके ही हम अपनी पहचान युगों युगों तक स्थापित कर सकते हैं शहादत के समय सुखदेव के उम्र मात्र 24 साल थी अंग्रेजों ने इन वीर क्रांतिकारियों भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को तो खत्म कर दिया पर इनकी विचार श्रंखला लोगों के मध्य रहकर सब को प्रेरित करती रहती थी वीरगति को प्राप्त होने से पहले ही यह तीनों क्रांतिकारी नौजवान देश की आजादी की नींव रख चुके थे भारत के गौरव को स्थायित्व प्रदान करने के लिए हम जब भी क्रांतिकारियों को याद करेंगे भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु हमारी स्मृतियों में सदैव रहेंगे
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