गुजरती गई मेरी जिंदगी
यूं ही तमाम होकर ,
सोचा था कुछ ,हुआ कुछ ,
करना था कुछ, हो गया कुछ ,
रास्ते ऐसे ही बदलते गए,
किस्मत भी रोज टालती रही ,
दूसरो से कोई गिला न था ,
अपने ही पैर कुतरते रहे ,
सोचा था जो करने के लिए ,
वह भी मैं कर ना सका ,
किससे करु शिकवा शिकायत ,
जब अपने ही रुख बदलते रहे ,
मौसम भी बदलता है वक्त पर ,
पर इंसान बदलते हैं हर दम ,
किस पर भरोसा करे अब ,
जब अपना ही साया साथ ना दिया ,।।