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16. स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय

7 फरवरी 2022

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रोगी जब तक बीमार रहता है उसे सुध नहीं रहती कि कौन मेरी औषधि करता है, कौन मुझे देखने के लिए आता है। वह अपने ही कष्ट मं इतना ग्रस्त रहता है कि किसी दूसरे के बात का ध्यान ही उसके हृदय मं उत्पन्न नहीं होता; पर जब वह आरोग्य हो जाता है, तब उसे अपनी शुश्रष करनेवालों का ध्यान और उनके उद्योग तथा परिश्रम का अनुमान होने लगता है और उसके हृदय में उनका प्रेम तथा आदर बढ़ जाता है। ठीक यही श वृजरानी की थी। जब तक वह स्वयं अपने कष्ट में मग्न थी, कमलाचरण की व्याकुलता और कष्टों का अनुभव न कर सकती थी। निस्सन्देह वह उसकी खातिरदारी में कोई अंश शेष न रखती थी, परन्तु यह व्यवहार-पालन के विचार से होती थी, न कि सच्चे प्रेम से। परन्तु जब उसके हृदय से वह व्यथा मिट गयी तो उसे कमला का परिश्रम और उद्योग स्मरण हुआ, और यह चिंता हुई कि इस अपार उपकार का प्रति-उत्तर क्या दूँ? मेरा धर्म था सेवा-सत्कार से उन्हें सुख देती, पर सुख देना कैसा उलटे उनके प्राण ही की गाहक हुई हूं! वे तो ऐसे सच्चे दिल से मेरा प्रेम करें और मैं अपना कर्त्तव्य ही न पालन कर सकूँ! ईश्वर को क्या मुँह दिखाँऊगी? सच्चे प्रेम का कमल बहुधा कृपा के भाव से खिल जाया करता है। जहॉं, रुप यौवन, सम्पत्ति और प्रभुता तथा स्वाभाविक सौजन्य प्रेम के बीच बोने में अकृतकार्य रहते हैं, वहाँ, प्राय: उपकार का जादू चल जाता है। कोई हृदय ऐसा वज्र और कठोर नहीं हो सकता, जो सत्य सेवा से द्रवीभूत न हो जाय।
कमला और वृजरानी में दिनोंदिन प्रीति बढ़ने लगी। एक प्रेम का दास था, दूसरी कर्त्तव्य की दासी। सम्भव न था कि वृजरानी के मुख से कोई बात निकले और कमलाचरण उसको पूरा न करे। अब उसकी तत्परता और योग्यता उन्हीं प्रयत्नों में व्यय होती थीह। पढ़ना केवल माता-पिता को धोखा देना था। वह सदा रुख देख करता और इस आशा पर कि यह काम उसकी प्रसन्न्त का कारण होगा, सब कुछ करने पर कटिबद्ध रहता। एक दिन उसने माधवी को फुलवाड़ी से फूल चुनते देखा। यह छोटा-सा उद्यान घर के पीछे था। पर कुटुम्ब के किसी व्यक्ति को उसे प्रेम न था, अतएव बारहों मास उस पर उदासी छायी रहती थी। वृजरानी को फूलों से हार्दिक प्रेम था। फुलवाड़ी की यह दुर्गति देखी तो माधवी से कहा कि कभी-कभी इसमं पानी दे दिया कर। धीरे-धीरे वाटिका की दशा कुछ सुधर चली और पौधों में फूल लगने लगे। कमलाचरण के लिए इशारा बहुत था। तन-मन से वाटिका को सुसज्जित करने पर उतारु हो गया। दो चतुर माली नौकर रख लिये। विविध प्रकार के सुन्दर-सुन्दर पुष्प और पौधे लगाये जाने लगे। भॉँति-भॉँतिकी घासें और पत्तियॉँ गमलों में सजायी जाने लगी, क्यारियॉँ और रविशे ठीक की जाने लगीं। ठौर-ठौर पर लताऍं चढ़ायी गयीं। कमलाचरण सारे दिन हाथ में पुस्तक लिये फुलवाड़ी में टहलता रहता था और मालियों को वाटिका की सजावट और बनावट की ताकीद किया करता था, केवल इसीलिए कि विरजन प्रसन्न होगी। ऐसे स्नेह-भक्त का जादू किस पर न चल जायगा। एक दिन कमला ने कहा-आओ, तुम्हें वाटिका की सैर कराँऊ। वृजरानी उसके साथ चली।
चॉँद निकल आया था। उसके उज्ज्वल प्रकाश में पुष्प और पत्ते परम शोभायमान थे। मन्द-मन्द वायु चल रहा था। मोतियों और बेले की सुगन्धि मस्तिषक को सुरभित कर रही थीं। ऐसे समय में विरजन एक रेशमी साड़ी और एक सुन्दर स्लीपर पहिने रविशों में टहलती दीख पड़ी। उसके बदन का विकास फूलों को लज्जित करता था, जान पड़ता था कि फूलों की देवी है। कमलाचरण बोला-आज परिश्रम सफल हो गया।
जैसे कुमकुमे में गुलाब भरा होता है, उसी प्रकार वृजरानी के नयनों में प्रेम रस भरा हुआ था। वह मुसकायी, परन्तु कुछ न बोली।
कमला-मुझ जैसा भाग्यवान मुनष्य संसा में न होगा।
विरजन-क्या मुझसे भी अधिक?
केमला मतवाला हो रहा था। विरजन को प्यार से गले लगा दिया।
कुछ दिनों तक प्रतिदिन का यही नियम रहा। इसी बीच में मनोरंजन की नयी सामग्री उपस्थित हो गयी। राधाचरण ने चित्रों का एक सुन्दर अलबम विरजन के पास भेजा। इसमं कई चित्र चंद्रा के भी थे। कहीं वह बैठी श्यामा को पढ़ा रही है कहीं बैठी पत्र लिख रही है। उसका एक चित्र पुरुष वेष में था। राधाचरण फोटोग्राफी की कला में कुशल थे। विरजन को यह अलबम बहुत भाया। फिर क्या था? फिर क्या था? कमला को धुन लगी कि मैं भी चित्र खीचूँ। भाई के पास पत्र लिख भेजा कि केमरा और अन्य आवश्यक सामान मेरे पास भेज दीजिये और अभ्यास आरंभ कर दिया। घर से चलते कि स्कूल जा रहा हूँ पर बीच ही में एक पारसी फोटोग्राफर की दूकान पर आ बैठते। तीन-चार मास के परिश्रम और उद्योग से इस कला में प्रवीण हो गये। पर अभी घर में किसी को यह बात मालूम न थी। कई बार विरजन ने पूछा भी; आजकल दिनभर कहाँ रहते हो। छुट्टी के दिन भी नहीं दिख पड़ते। पर कमलाचरण ने हूँ-हां करके टाल दिया।
एक दिन कमलाचरण कहीं बाहर गये हुए थे। विरजन के जी में आया कि लाओ प्रतापचन्द्र को एक पत्र लिख डालूँ; पर बक्सखेला तो चिट्ठी का कागज न था माधवी से कहा कि जाकर अपने भैया के डेस्क में से कागज निकाल ला। माधवी दौड़ी हुई गयी तो उसे डेस्क पर चित्रों का अलबम खुला हुआ मिला। उसने आलबम उठा लिया और भीतर लाकर विरजन से कहा-बहिन! दखों, यह चित्र मिला।
विरजन ने उसे चाव से हाथ में ले लिया और पहिला ही पन्ना उलटा था कि अचम्भा-सा हो गया। वह उसी का चित्र था। वह अपने पलंग पर चाउर ओढ़े निद्रा में पड़ी हुई थी, बाल ललाट पर बिखरे हुए थे, अधरों पर एक मोहनी मुस्कान की झलक थी मानों कोई मन-भावना स्वप्न देख रही है। चित्र के नीचे लख हुआ था–‘प्रेम-स्वप्न’। विरजन चकित थी, मेरा चित्र उन्होंने कैसे खिचवाया और किससे खिचवाया। क्या किसी फोटोग्राफर को भीतर लाये होंगे? नहीं ऐसा वे क्या करेंगे। क्या आश्चय्र है, स्वयं ही खींच लिया हो। इधर महीनों से बहुत परिश्रम भी तो करते हैं। यदि स्वयं ऐसा चित्र खींचा है तो वस्तुत: प्रशंसनीय कार्य किया है। दूसरा पन्ना उलटा तो उसमें भी अपना चित्र पाया। वह एक साड़ी पहने, आधे सिर पर आँचल डाले वाटिका में भ्रमण कर रही थी। इस चित्र के नीचे लख हुआ था–‘वाटिका-भ्रमण। तीसरा पन्ना उलटा तो वह भी अपना ही चित्र था। वह वाटिका में पृथ्वी पर बैठी हार गूँथ रही थी। यह चित्र तीनों में सबसे सुन्दर था, क्योंकि चित्रकार ने इसमें बड़ी कुशलता से प्राकृतिक रंग भरे थे। इस चित्र के नीचे लिखा हुआ था–‘अलबेली मालिन’। अब विरजन को ध्याना आया कि एक दिन जब मैं हार गूँथ रही थी तो कमलाचरण नील के काँटे की झाड़ी मुस्कराते हुए निकले थे। अवश्य उसी दिन का यह चित्र होगा। चौथा पन्ना उलटा तो एक परम मनोहर और सुहावना दृश्य दिखयी दिया। निर्मल जल से लहराता हुआ एक सरोवर था और उसके दोंनों तीरों पर जहाँ तक दृष्टि पहुँचती थी, गुलाबों की छटा दिखयी देती थी। उनके कोमल पुष्प वायु के झोकां से लचके जात थे। एसका ज्ञात होता था, मानों प्रकृति ने हरे आकाश में लाल तारे टाँक दिये हैं। किसी अंग्रेजी चित्र का अनुकरण प्रतीत होता था। अलबम के और पन्ने अभी कोरे थे।
विरजन ने अपने चित्रों को फिर देखा और साभिमान आनन्द से, जो प्रत्येक रमणी को अपनी सुन्दरता पर होता है, अलबम को छिपा कर रख दिया। संध्या को कमलाचरण ने आकर देखा, तो अलबम का पता नहीं। हाथों तो तोते उड़ गये। चित्र उसके कई मास के कठिन परिश्रम के फल थे और उसे आशा थी कि यही अलबम उहार देकर विरजन के हृदय में और भी घर कर लूँगा। बहुत व्याकुल हुआ। भीतर जाकर विरजन से पूछा तो उसने साफ इन्कार किया। बेचारा घबराया हुआ अपने मित्रों के घर गया कि कोई उनमं से उठा ले गया हो। पह वहां भी फबतियों के अतिरिक्त और कुछ हाथ न लगा। निदान जब महाशय पूरे निराश हो गये तोशम को विरजन ने अलबम का पता बतलाया। इसी प्रकार दिवस सानन्द व्यतीत हो रहे थे। दोनों यही चाहते थे कि प्रेम-क्षेत्र मे मैं आगे निकल जाँऊ! पर दोनों के प्रेम में अन्तर था। कमलाचरण प्रेमोन्माद में अपने को भूल गया। पर इसके विरुद्ध विरजन का प्रेम कर्त्तव्य की नींव पर स्थित था। हाँ, यह आनन्दमय कर्त्तव्य था।
तीन वर्ष व्यतीत हो गये। वह उनके जीवन के तीन शुभ वर्ष थे। चौथे वर्ष का आरम्भ आपत्तियों का आरम्भ था। कितने ही प्राणियों को सांसार की सुख-सामग्रियॉँ इस परिमाण से मिलती है कि उनके लिए दिन सदा होली और रात्रि सदा दिवाली रहती है। पर कितने ही ऐसे हतभाग्य जीव हैं, जिनके आनन्द के दिन एक बार बिजली की भाँति चमककर सदा के लिए लुप्त हो जाते है। वृजरानी उन्हीं अभागें में थी। वसन्त की ऋतु थी। सीरी-सीरी वायु चल रही थी। सरदी ऐसे कड़ाके की पड़ती थी कि कुओं का पानी जम जाता था। उस समय नगरों में प्लेग का प्रकोप हुआ। सहस्रों मनुष्य उसकी भेंट होने लगे। एक दिन बहुत कड़ा ज्वर आया, एक गिल्टी निकली और चल बसा। गिल्टी का निकलना मानो मृत्यु का संदश था। क्या वैद्य, क्या डाक्टर किसी की कुछ न चलती थी। सैकड़ो घरों के दीपक बुझ गये। सहस्रों बालक अनाथ और सहस्रों विधवा हो गयी। जिसको जिधर गली मिली भाग निकला। प्रत्येक मनुष्य को अपनी-अपनी पड़ी हुई थी। कोई किसी का सहायक और हितैषी न था। माता-पिता बच्चों को छोड़कर भागे। स्त्रीयों ने पुरषों से सम्बन्ध परित्याग किया। गलियों में, सड़को पर, घरों में जिधर देखिये मृतकों को ढेर लगे हुए थे। दुकाने बन्द हो गयी। द्वारों पर ताले बन्द हो गया। चुतुर्दिक धूल उड़ती थी। कठिनता से कोई जीवधारी चलता-फिरता दिखायी देता था और यदि कोई कार्यवश घर से निकला पड़ता तो ऐसे शीघ्रता से पॉव उठाता मानों मृत्यु का दूत उसका पीछा करता आ रहा है। सारी बस्ती उजड़ गयी। यदि आबाद थे तो कब्रिस्तान या श्मशान। चोरों और डाकुओं की बन आयी। दिन–दोपहार तोल टूटते थे और सूर्य के प्रकाश में सेंधें पड़ती थीं। उस दारुण दु:ख का वर्णन नहीं हो सकता।
बाबू श्यामचरण परम दृढ़चित्त मनुष्य थे। गृह के चारों ओर महल्ले-के महल्ले शून्य हो गये थे पर वे अभी तक अपने घर में निर्भय जमे हुए थे लेकिन जब उनका साहस मर गया तो सारे घर में खलबली मच गयी। गॉँव में जाने की तैयारियॉँ होने लगी। मुंशीजी ने उस जिले के कुछ गॉँव मोल ले लिये थे और मझगॉँव नामी ग्राम में एक अच्छा-सा घर भी बनवा रख था। उनकी इच्छा थी कि पेंशन पाने पर यहीं रहूँगा काशी छोड़कर आगरे में कौन मरने जाय! विरजन ने यह सुना तो बहुत प्रसन्न हुई। ग्राम्य-जीवन के मनोहर दृश्य उसके नेत्रों में फिर रहे थे हरे-भरे वृक्ष और लहलहाते हुए खेत हरिणों की क्रीडा और पक्षियों का कलरव। यह छटा देखने के लिए उसका चित्त लालायित हो रहा था। कमलाचरण शिकार खेलने के लिए अस्त्र-शस्त्र ठीक करने लगे। पर अचनाक मुन्शीजी ने उसे बुलाकर कहा कि तम प्रयाग जाने के लिए तैयार हो जाओ। प्रताप चन्द्र वहां तुम्हारी सहायता करेगा। गॉवों में व्यर्थ समय बिताने से क्या लाभ? इतना सुनना था कि कमलाचरण की नानी मर गयी। प्रयाग जाने से इन्कार कर दिया। बहुत देर तक मुंशीजी उसे समझाते रहे पर वह जाने के लिए राजी न हुआ। निदान उनके इन अंतिम शब्दों ने यह निपटारा कर दिया-तुम्हारे भाग्य में विद्या लिखी ही नहीं है। मेरा मूर्खता है कि उससे लड़ता हूँ!
वृजरानी ने जब यह बात सुनी तो उसे बहुत दु:ख हुआ। वृजरानी यद्यपि समझती थी कि कमला का ध्यान पढ़ने में नहीं लगता; पर जब-तब यह अरुचि उसे बुरी न लगती थी, बल्कि कभी-कभी उसका जी चाहता कि आज कमला का स्कूल न जाना अच्छा था। उनकी प्रेममय वाणी उसके कानों का बहुत प्यारी मालूम होती थी। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि कमला ने प्रयाग जाना अस्वीकार किया है और लालाजी बहुत समझ रहे हैं, तो उसे और भी दु:ख हुआ क्योंकि उसे कुछ दिनों अकेले रहना सहय था, कमला पिता को आज्ञज्ञेल्लघंन करे, यह सह्रय न था। माधवी को भेजा कि अपने भैया को बुला ला। पर कमला ने जगह से हिलने की शपथ खा ली थी। सोचता कि भीतर जाँऊगा, तो वह अवश्य प्रयाग जाने के लिए कहेगी। वह क्या जाने कि यहाँ हृदय पर क्या बीत रही है। बातें तो ऐसी मीठी-मीठी करती है, पर जब कभी प्रेम-परीक्षा का समय आ जाता है तो कर्त्तव्य और नीति की ओट में मुख छिपाने लगती है। सत्य है कि स्त्रीयों में प्रेम की गंध ही नहीं होती।
जब बहुत देर हो गयी और कमला कमरे से न निकला तब वृजरानी स्वयं आयी और बोली-क्या आज घर में आने की शपथ खा ली है। राह देखते-देखते ऑंखें पथरा गयीं।
कमला–भीतर जाते भय लगता है।
विरजन–अच्छा चलो मैं संग-संग चलती हूँ, अब तो नहीं डरोगे?
कमला–मुझे प्रयाग जाने की आज्ञा मिली है।
विरजन–मैं भी तुम्हारे सग चलूँगी!
यह कहकर विरजन ने कमलाचरण की ओर आंखे उठायीं उनमें अंगूर के दोन लगे हुए थे। कमला हार गया। इन मोहनी ऑखों में ऑंसू देखकर किसका हृदय था, कि अपने हठ पर दृढ़ रहता? कमेला ने उसे अपने कंठ से लगा लिया और कहा-मैं जानता था कि तुम जीत जाओगी। इसीलिए भीतर न जाता था। रात-भर प्रेम-वियोग की बातें होती रहीं! बार-बार ऑंखे परस्पर मिलती मानो वे फिर कभी न मिलेगी! शोक किसे मालूम था कि यह अंतिम भेंट है। विरजन को फिर कमला से मिलना नसीब न हुआ। 

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रचनाएँ
वरदान
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। 'वरदान' दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। विश्व के महान कथा-शिल्पी प्रेमचन्द के उपन्यास वरदान में सुदामा अष्टभुजा देवी से एक ऐसे सपूत का वरदान मांगती है, जो जाति की भलाई में संलग्न हो। इसी ताने-बाने पर प्रेमचन्द की सशक्त कलम से बुना कथानक जीवन की स्थितियों की बारीकी से पड़ताल करता है। सुदामा का पुत्र प्रताप एक ऐसा पात्र है जो दीन-दुखियों, रोगियों, दलितों की निस्वार्थ सहायता करता है।
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वरदान 1.

7 फरवरी 2022
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वरदान (उपन्यास) मुंशी प्रेमचंद (‘वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्मा

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2. वैराग्य

7 फरवरी 2022
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मुंशी शालिग्राम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन-वृति वकालत थी और पैतृक सम्पत्ति भी अधिक थी। दशाश्वमेध घाट पर उनका वैभवान्वित गृह आकाश को स्पर्श करता था। उदार ऐसे कि पचीस-तीस हजार की वाषिर्क आय भी व्यय को

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4. एकता का संबंध पुष्ट होता है

7 फरवरी 2022
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कुछ काल से सुवामा ने द्रव्याभाव के कारण महाराजिन, कहार और दो महरियों को जवाब दे दिया था क्योंकि अब न तो उसकी कोई आवश्यकता थी और न उनका व्यय ही संभाले संभलता था। केवल एक बुढ़िया महरी शेष रह गयी थी। ऊपर

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5. शिष्ट जीवन के दृश्य

7 फरवरी 2022
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दिन जाते देर नहीं लगती। दो वर्ष व्यतीत हो गये। पण्डित मोटेराम नित्य प्रात: काल आत और सिद्धान्त-कोमुदी पढ़ाते, परन्त अब उनका आना केवल नियम पालने के हेतु ही था, क्योकि इस पुस्तक के पढ़न में अब विरजन का

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6. डिप्टी श्यामाचरण

7 फरवरी 2022
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डिप्टी श्यामाचरण की धाक सारे नगर में छाई हुई थी। नगर में कोई ऐसा हाकिम न था जिसकी लोग इतनी प्रतिष्ठा करते हों। इसका कारण कुछ तो यह था कि वे स्वभाव के मिलनसार और सहनशील थे और कुछ यह कि रिश्वत से उन्हें

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7. निष्ठुरता/निठुरता और प्रेम

7 फरवरी 2022
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सुवामा तन-मन से विवाह की तैयारियां करने लगीं। भोर से संध्या तक विवाह के ही धन्धों में उलझी रहती। सुशीला चेरी की भांति उसकी आज्ञा का पालन किया करती। मुंशी संजीवनलाल प्रात:काल से सांझ तक हाट की धूल छानत

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8. सखियाँ

7 फरवरी 2022
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डिप्टी श्यामाचरण का भवन आज सुन्दरियों के जमघट से इन्द्र का अखाड़ा बना हुआ था। सेवती की चार सहेलियॉ-रूक्मिणी, सीता, रामदैई और चन्द्रकुंवर-सोलहों सिंगार किये इठलाती फिरती थी। डिप्टी साहब की बहिन जानकी

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9. ईर्ष्या

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र ने विरजन के घर आना-जाना विवाह के कुछ दिन पूर्व से ही त्याग दिया था। वह विवाह के किसी भी कार्य में सम्मिलित नहीं हुआ। यहॉ तक कि महफिल में भी न गया। मलिन मन किये, मुहॅ लटकाये, अपने घर बैठा

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10. सुशीला की मृत्यु

7 फरवरी 2022
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तीन दिन और बीते, सुशीला के जीने की अब कोई संभावना न रही। तीनों दिन मुंशी संजीवनलाल उसके पास बैठे उसको सान्त्वना देते रहे। वह तनिक देर के लिए भी वहां से किसी काम के लिए चले जाते, तो वह व्याकुल होने लगत

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11. विरजन की विदा

7 फरवरी 2022
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राधाचरण रूड़की कालेज से निकलते ही मुरादाबाद के इंजीनियर नियुक्त हुए और चन्द्रा उनके संग मुरादाबाद को चली। प्रेमवती ने बहुत रोकना चाहा, पर जानेवाले को कौन रोक सकता है। सेवती कब की ससुराल आ चुकी थी। यहा

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12. कमलाचरण के मित्र

7 फरवरी 2022
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जैसे सिन्दूर की लालिमा से मांग रच जाती है, जैसे ही विरजन के आने से प्रेमवती के घर की रौनक बढ गयी। सुवामा ने उसे ऐसे गुण सिखाये थे कि जिसने उसे देखा, मोह गया। यहां तक कि सेवती की सहेली रानी को भी प्रेम

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13. कायापलट

7 फरवरी 2022
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पहला दिन तो कमलाचरण ने किसी प्रकार छात्रालय में काटा। प्रात: से सायंकाल तक सोया किये। दूसरे दिन ध्यान आया कि आज नवाब साहब और तोखे मिर्जा के बटेरों में बढ़ाऊ जोड़ हैं। कैसे-कैसे मस्त पट्ठे हैं! आज उनकी

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14. भ्रम

7 फरवरी 2022
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वृजरानी की विदाई के पश्चात सुवामा का घर ऐसा सूना हो गया, मानो पिंजरे से सुआ उड़ गया। वह इस घर का दीपक और शरीर की प्राण थी। घर वही है, पर चारों ओर उदासी छायी हुई है। रहनेचाला वे ही है। पर सबके मुख मलिन

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

7 फरवरी 2022
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जब तक विरजन ससुराल से न आयी थी तब तक उसकी दृष्टि में एक हिन्दु-पतिव्रता के कर्तव्य और आदर्श का कोई नियम स्थिर न हुआ था। घर में कभी पति-सम्बंधी चर्चा भी न होती थी। उसने स्त्री-धर्म की पुस्तकें अवश्य पढ

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

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16. स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय

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रोगी जब तक बीमार रहता है उसे सुध नहीं रहती कि कौन मेरी औषधि करता है, कौन मुझे देखने के लिए आता है। वह अपने ही कष्ट मं इतना ग्रस्त रहता है कि किसी दूसरे के बात का ध्यान ही उसके हृदय मं उत्पन्न नहीं होत

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17. कमला के नाम विरजन के पत्र

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1. ‘प्रियतम, प्रेम पत्र आया। सिर पर चढ़ाकर नेत्रों से लगाया। ऐसे पत्र तुम न लख करो! हृदय विदीर्ण हो जाता है। मैं लिखूं तो असंगत नहीं। यहाँ चित्त अति व्याकुल हो रहा है। क्या सुनती थी और क्या देखती है

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18. प्रतापचंद और कमलाचरण

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र को प्रयाग कालेज में पढ़ते तीन साल हो चुके थे। इतने काल में उसने अपने सहपाठियों और गुरुजनों की दृष्टि में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी। कालेज के जीवन का कोई ऐसा अंग न था जहाँ उनकी प्रत

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19. दुःख-दशा

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सौभाग्यवती स्त्री के लिए उसक पति संसार की सबसे प्यारी वस्तु होती है। वह उसी के लिए जीती और मारती है। उसका हँसना-बोलना उसी के प्रसन्न करने के लिए और उसका बनाव-श्रृंगार उसी को लुभाने के लिए होता है। उसक

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20. मन का प्राबल्य

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मानव हृदय एक रहस्यमय वस्तु है। कभी तो वह लाखों की ओर ऑख उठाकर नहीं देखता और कभी कौड़ियों पर फिसल पड़ता है। कभी सैकड़ों निर्दषों की हत्या पर आह ‘तक’ नहीं करता और कभी एक बच्चे को देखकर रो देता है। प्रत

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21. विदुषी वृजरानी

7 फरवरी 2022
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जब से मुंशी संजीवनलाल तीर्थ यात्रा को निकले और प्रतापचन्द्र प्रयाग चला गया उस समय से सुवामा के जीवन में बड़ा अन्तर हो गया था। वह ठेके के कार्य को उन्नत करने लगी। मुंशी संजीवनलाल के समय में भी व्यापार

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22. माधवी

7 फरवरी 2022
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कभी–कभी वन के फूलों में वह सुगन्धित और रंग-रुप मिल जाता है जो सजी हुई वाटिकाओं को कभी प्राप्त नहीं हो सकता। माधवी थी तो एक मूर्ख और दरिद्र मनुष्य की लड़की, परन्तु विधाता ने उसे नारियों के सभी उत्तम गु

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23. काशी में आगमन

7 फरवरी 2022
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ब से वृजरानी का काव्य–चन्द्र उदय हुआ, तभी से उसके यहां सदैव महिलाओं का जमघट लगा रहता था। नगर मे स्त्रीयों की कई सभाएं थी उनके प्रबंध का सारा भार उसी को उठाना पडता था। उसके अतिरिक्त अन्य नगरों से भी बह

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24. प्रेम का स्वप्न

7 फरवरी 2022
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मनुष्य का हृदय अभिलाषाओं का क्रीड़ास्थल और कामनाओं का आवास है। कोई समय वह थां जब कि माधवी माता के अंक में खेलती थी। उस समय हृदय अभिलाषा और चेष्टाहीन था। किन्तु जब मिट्टी के घरौंदे बनाने लगी उस समय मन

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25. विदाई

7 फरवरी 2022
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दूसरे दिन बालाजी स्थान-स्थान से निवृत होकर राजा धर्मसिंह की प्रतीक्षा करने लगे। आज राजघाट पर एक विशाल गोशाला का शिलारोपण होने वाला था, नगर की हाट-बाट और वीथियाँ मुस्काराती हुई जान पड़ती थी। सडृक के दो

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26. मतवाली योगिनी

7 फरवरी 2022
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माधवी पहले ही से मुरझायी हुई कली थी। निराशा ने उसे खाक मे मिला दिया। बीस वर्ष की तपस्विनी योगिनी हो गयी। उस बेचारी का भी कैसा जीवन था कि या तो मन में कोई अभिलाषा ही उत्पन्न न हुई, या हुई दुदैव ने उसे

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