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4. एकता का संबंध पुष्ट होता है

7 फरवरी 2022

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कुछ काल से सुवामा ने द्रव्याभाव के कारण महाराजिन, कहार और दो महरियों को जवाब दे दिया था क्योंकि अब न तो उसकी कोई आवश्यकता थी और न उनका व्यय ही संभाले संभलता था। केवल एक बुढ़िया महरी शेष रह गयी थी। ऊपर का काम-काज वह करती रसोई सुवामा स्वयं बना लेगी। परन्तु उस बेचारी को ऐसे कठिन परिश्रम का अभ्यास तो कभी था नहीं, थोड़े ही दिनों में उसे थकान के कारण रात को कुछ ज्वर रहने लगा। धीरे-धीरे यह गति हुई कि जब देखें ज्वर विद्यमान है। शरीर भुना जाता है, न खाने की इच्छा है न पीने की। किसी कार्य में मन नहीं लगता। पर यह है कि सदैव नियम के अनुसार काम किये जाती है। जब तक प्रताप घर रहता है तब तक वह मुखाकृति को तनिक भी मलिन नहीं होने देती परन्तु ज्यों ही वह स्कूल चला जाता है, त्यों ही वह चद्दर ओढ़कर पड़ी रहती है और दिन-भर पड़े-पड़े कराहा करती है।
प्रताप बुद्धिमान लड़का था। माता की दशा प्रतिदिन बिगड़ती हुई देखकर ताड गया कि यह बीमार है। एक दिन स्कूल से लौटा तो सीधा अपने घर गया। बेटे को देखते ही सुवामा ने उठ बैठने का प्रयत्न किया पर निर्बलता के कारण मूर्छा आ गयी और हाथ-पांव अकड़ गये। प्रताप ने उसं संभाला और उसकी और भर्त्सना की दृष्टि से देखकर कहा-अम्मा तुम आजकल बीमार हो क्या? इतनी दुबली क्यों हो गयी हो? देखो, तुम्हारा शरीर कितना गर्म है। हाथ नहीं रखा जाता।
सुवाम ने हंसने का उद्योग किया। अपनी बीमारी का परिचय देकर बेटे को कैसे कष्ट दे? यह नि:स्पृह और नि:स्वार्थ प्रेम की पराकाष्टा है। स्वर को हलका करके बोली नहीं बेटा बीमार तो नहीं हूं। आज कुछ ज्वर हो आया था, संध्या तक चंगी हो जाऊंगी। आलमारी में हलुवा रखा हुआ है निकाल लो। नहीं, तुम आओ बैठो, मैं ही निकाल देती हूं।
प्रताप-माता, तुम मुझ से बहाना करती हो। तुम अवश्य बीमार हो। एक दिन में कोई इतना दुर्बल हो जाता है?
सुवाता–(हंसकर) क्या तुम्हारे देखने में मैं दुबली हो गयी हूं।
प्रताप–मैं डॉक्टर साहब के पास जाता हूं।
सुवामा–(प्रताप का हाथ पकड़कर) तुम क्या जानों कि वे कहां रहते हैं?
ताप–पूछते-पूछते चला जाऊंगा।
सुवामा कुछ और कहना चाहती थी कि उसे फिर चक्कर आ गया। उसकी आंखें पथरा गयीं। प्रताप उसकी यह दशा देखते ही डर गया। उससे और कुछ तो न हो सका, वह दौड़कर विरजन के द्वार पर आया और खड़ा होकर रोने लगा।
प्रतिदिन वह इस समय तक विरजन के घर पहुंच जाता था। आज जो देर हुई तो वह अकुलायी हुई इधर-उधर देख रही थी। अकस्मात द्वार पर झांकने आयी, तो प्रताप को दोनों हाथों से मुख ढांके हुए देखा। पहले तो समझी कि इसने हंसी से मुख छिपा रखा है। जब उसने हाथ हटाये तो आंसू दीख पड़े। चौंककर बोली–लल्लू क्यों रोते हो? बता दो।
प्रताप ने कुछ उत्तर न दिया, वरन् और सिसकने लगा।
विरजन बोली–न बताओगे! क्या चाची ने कुछ कहा? जाओ, तुम चुप नही होते।
प्रताप ने कहा–नहीं, विरजन, मां बहुत बीमार है।
यह सुनते ही वृजरानी दौड़ी और एक सांस में सुवामा के सिरहाने जा खड़ी हुई। देखा तो वह सुन्न पड़ी हुई है, आंखे मुंद हुई हैं और लम्बी सांसे ले रही हैं। उनका हाथ थाम कर विरजन झिंझोड़ने लगी–चाची, कैसी जी है, आंखें खोलों, कैसा जी है?
परन्तु चाची ने आंखें न खोलीं। तब वह ताक पर से तेल उतारकर सुवाम के सिर पर धीरे-धीरे मलने लगी। उस बेचारी को सिर में महीनों से तेल डालने का अवसर न मिला था, ठण्डक पहुंची तो आंखें खुल गयीं।
विरजन–चाची, कैसा जी है? कहीं दर्द तो नहीं है?
सुवामा–नहीं, बेटी दर्द कहीं नहीं है। अब मैं बिल्कुल अच्छी हूं। भैया कहां हैं?
विरजन-वह तो मेर घर है, बहुत रो रहे हैं।
सुवामा–तुम जाओ, उसके साथ खेलों, अब मैं बिल्कुल अच्छी हूं।
अभी ये बातें हो रही थीं कि सुशीला का भी शुभागमन हुआ। उसे सुवाम से मिलने की तो बहुत दिनों से उत्कष्ठा थी, परन्तु कोई अवसर न मिलता था। इस समय वह सात्वना देने के बहाने आ पहुंची।विरजन ने अपन माता को देखा तो उछल पड़ी और ताली बजा-बजाकर कहने लगी–मां आयी, मां आयी।
दोनों स्त्रीयों में शिष्टाचार की बातें होने लगीं। बातों-बातों में दीपक जल उठा। किसी को ध्यान भी न हुआकि प्रताप कहां है। थोड़ देर तक तो वह द्वार पर खड़ा रोता रहा,फिर झटपट आंखें पोंछकर डॉक्टर किचलू के घर की ओर लपकता हुआ चला। डॉक्टर साहब मुंशी शालिग्राम के मिञों में से थे। और जब कभी का पड़ता, तो वे ही बुलाये जाते थे। प्रताप को केवल इतना विदित था कि वे बरना नदी के किनारे लाल बंगल में रहते हैं। उसे अब तक अपने मुहल्ले से बाहर निकलने का कभी अवसर न पड़ा था। परन्तु उस समय मातृ भक्ती के वेग से उद्विग्न होने के कारण उसे इन रुकावटों का कुछ भी ध्यान न हुआ। घर से निकलकर बाजार में आया और एक इक्केवान से बोला-लाल बंगल चलोगे? लाल बंगला प्रसाद स्थान था। इक्कावान तैयार हो गया। आठ बजते-बजते डॉक्टर साहब की फिटन सुवामा के द्वार पर आ पहुंची। यहां इस समय चारों ओर उसकी खोज हो रही थी कि अचानक वह सवेग पैर बढ़ाता हुआ भीतर गया और बोला-पर्दा करो। डॉक्टर साहब आते हैं।
सुवामा और सुशीला दोनों चौंक पड़ी। समझ गयीं, यह डॉक्टर साहब को बुलाने गया था। सुवामा ने प्रेमाधिक्य से उसे गोदी में बैठा लिया डर नहीं लगा? हमको बताया भी नहीं यों ही चले गये? तुम खो जाते तो मैं क्या करती? ऐसा लाल कहां पाती? यह कहकर उसने बेटे को बार-बार चूम लिया। प्रताप इतना प्रसन्न था, मानों परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया। थोड़ी देर में पर्दा हुआ और डॉक्टर साहब आये। उन्होंने सुवामा की नाड़ी देखी और सांत्वना दी। वे प्रताप को गोद में बैठाकर बातें करते रहे। औषधियॉ साथ ले आये थे। उसे पिलाने की सम्मति देकर नौ बजे बंगले को लौट गये। परन्तु जीर्णज्वर था, अतएव पूरे मास-भर सुवामा को कड़वी-कड़वी औषधियां खानी पड़ी। डॉक्टर साहब दोनों वक्त आते और ऐसी कृपा और ध्यान रखते, मानो सुवामा उनकी बहिन है। एक बार सुवाम ने डरते-डरते फीस के रुपये एक पात्र में रखकर सामने रखे। पर डॉक्टर साहब ने उन्हें हाथ तक न लगाया। केवल इतना कहा-इन्हें मेरी ओर से प्रताप को दे दीजिएगा, वह पैदल स्कूल जाता है, पैरगाड़ी मोल ले लेगा।
विरजन और उनकी माता दोनों सुवामा की शुश्रूषा के लिए उपस्थित रहतीं। माता चाहे विलम्ब भी कर जाए, परन्तु विरजन वहां से एक क्षण के लिए भी न टलती। दवा पिलाती, पान देती जब सुवामा का जी अच्छा होता तो वह भोली-भोली बातों द्वारा उसका मन बहलाती। खेलना-कूदना सब छूट गया। जब सुवाम बहुत हठ करती तो प्रताप के संग बाग में खेलने चली जाती। दीपक जलते ही फिर आ बैठती और जब तक निद्रा के मारे झुक-झुक न पड़ती, वहां से उठने का नाम न लेती वरन प्राय: वहीं सो जाती, रात को नौकर गोद में उठाकर घर ले जाता। न जाने उसे कौन-सी धुन सवार हो गयी थी।
एक दिन वृजरानी सुवामा के सिरहाने बैठी पंखा झल रही थी। न जाने किस ध्यान में मग्न थी। आंखें दीवार की ओर लगी हुई थीं। और जिस प्रकार वृक्षों पर कौमुदी लहराती है, उसी भांति भीनी-भीनी मुस्कान उसके अधरों पर लहरा रही थी। उसे कुछ भी ध्यान न था कि चाची मेरी और देख रही है। अचानक उसके हाथ से पंखा छूट गया। ज्यों ही वह उसको उठाने के लिए झुकी कि सुवामा ने उसे गले लगा लिया। और पुचकार कर पूछा-विरजन, सत्य कहो, तुम अभी क्या सोच रही थी?
विरजन ने माथा झुका लिया और कुछ लज्जित होकर कहा–कुछ नहीं, तुमको न बतलाऊंगी।
सूवामा–मेरी अच्छी विरजन। बता तो क्या सोचती थी?
विरजन-(लजाते हुए) सोचती थी कि.....जाओ हंसो मत......न बतलाऊंगी।
सुवामा-अच्छा ले, न हसूंगी, बताओ। ले यही तो अब अच्छा नही लगता, फिर मैं आंखें मूंद लूंगी।
विरजन-किस से कहोगी तो नहीं?
सुवामा–नहीं, किसी से न कहूंगी।
विरजन-सोचती थी कि जब प्रताप से मेरा विवाह हो जायेगा, तब बड़े आनन्द से रहूंगी।
सुवामा ने उसे छाती से लगा लिया और कहा–बेटी, वह तो तेरा भाई हे।
विरजन–हां भाई है। मैं जान गई। तुम मुझे बहू न बनाओगी।
सुवामा–आज लल्लू को आने दो, उससे पूछूँ देखूं क्या कहता है?
विरजन–नहीं, नहीं, उनसे न कहना मैं तुम्हारे पैरों पडूं।
सुवामा–मैं तो कह दूंगी।
विरजन–तुम्हे हमारी कसम, उनसे न कहना। 

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रचनाएँ
वरदान
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। 'वरदान' दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। विश्व के महान कथा-शिल्पी प्रेमचन्द के उपन्यास वरदान में सुदामा अष्टभुजा देवी से एक ऐसे सपूत का वरदान मांगती है, जो जाति की भलाई में संलग्न हो। इसी ताने-बाने पर प्रेमचन्द की सशक्त कलम से बुना कथानक जीवन की स्थितियों की बारीकी से पड़ताल करता है। सुदामा का पुत्र प्रताप एक ऐसा पात्र है जो दीन-दुखियों, रोगियों, दलितों की निस्वार्थ सहायता करता है।
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वरदान 1.

7 फरवरी 2022
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वरदान (उपन्यास) मुंशी प्रेमचंद (‘वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्मा

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2. वैराग्य

7 फरवरी 2022
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मुंशी शालिग्राम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन-वृति वकालत थी और पैतृक सम्पत्ति भी अधिक थी। दशाश्वमेध घाट पर उनका वैभवान्वित गृह आकाश को स्पर्श करता था। उदार ऐसे कि पचीस-तीस हजार की वाषिर्क आय भी व्यय को

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4. एकता का संबंध पुष्ट होता है

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कुछ काल से सुवामा ने द्रव्याभाव के कारण महाराजिन, कहार और दो महरियों को जवाब दे दिया था क्योंकि अब न तो उसकी कोई आवश्यकता थी और न उनका व्यय ही संभाले संभलता था। केवल एक बुढ़िया महरी शेष रह गयी थी। ऊपर

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5. शिष्ट जीवन के दृश्य

7 फरवरी 2022
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दिन जाते देर नहीं लगती। दो वर्ष व्यतीत हो गये। पण्डित मोटेराम नित्य प्रात: काल आत और सिद्धान्त-कोमुदी पढ़ाते, परन्त अब उनका आना केवल नियम पालने के हेतु ही था, क्योकि इस पुस्तक के पढ़न में अब विरजन का

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6. डिप्टी श्यामाचरण

7 फरवरी 2022
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डिप्टी श्यामाचरण की धाक सारे नगर में छाई हुई थी। नगर में कोई ऐसा हाकिम न था जिसकी लोग इतनी प्रतिष्ठा करते हों। इसका कारण कुछ तो यह था कि वे स्वभाव के मिलनसार और सहनशील थे और कुछ यह कि रिश्वत से उन्हें

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7. निष्ठुरता/निठुरता और प्रेम

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सुवामा तन-मन से विवाह की तैयारियां करने लगीं। भोर से संध्या तक विवाह के ही धन्धों में उलझी रहती। सुशीला चेरी की भांति उसकी आज्ञा का पालन किया करती। मुंशी संजीवनलाल प्रात:काल से सांझ तक हाट की धूल छानत

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8. सखियाँ

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डिप्टी श्यामाचरण का भवन आज सुन्दरियों के जमघट से इन्द्र का अखाड़ा बना हुआ था। सेवती की चार सहेलियॉ-रूक्मिणी, सीता, रामदैई और चन्द्रकुंवर-सोलहों सिंगार किये इठलाती फिरती थी। डिप्टी साहब की बहिन जानकी

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9. ईर्ष्या

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र ने विरजन के घर आना-जाना विवाह के कुछ दिन पूर्व से ही त्याग दिया था। वह विवाह के किसी भी कार्य में सम्मिलित नहीं हुआ। यहॉ तक कि महफिल में भी न गया। मलिन मन किये, मुहॅ लटकाये, अपने घर बैठा

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10. सुशीला की मृत्यु

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तीन दिन और बीते, सुशीला के जीने की अब कोई संभावना न रही। तीनों दिन मुंशी संजीवनलाल उसके पास बैठे उसको सान्त्वना देते रहे। वह तनिक देर के लिए भी वहां से किसी काम के लिए चले जाते, तो वह व्याकुल होने लगत

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11. विरजन की विदा

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राधाचरण रूड़की कालेज से निकलते ही मुरादाबाद के इंजीनियर नियुक्त हुए और चन्द्रा उनके संग मुरादाबाद को चली। प्रेमवती ने बहुत रोकना चाहा, पर जानेवाले को कौन रोक सकता है। सेवती कब की ससुराल आ चुकी थी। यहा

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12. कमलाचरण के मित्र

7 फरवरी 2022
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जैसे सिन्दूर की लालिमा से मांग रच जाती है, जैसे ही विरजन के आने से प्रेमवती के घर की रौनक बढ गयी। सुवामा ने उसे ऐसे गुण सिखाये थे कि जिसने उसे देखा, मोह गया। यहां तक कि सेवती की सहेली रानी को भी प्रेम

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13. कायापलट

7 फरवरी 2022
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पहला दिन तो कमलाचरण ने किसी प्रकार छात्रालय में काटा। प्रात: से सायंकाल तक सोया किये। दूसरे दिन ध्यान आया कि आज नवाब साहब और तोखे मिर्जा के बटेरों में बढ़ाऊ जोड़ हैं। कैसे-कैसे मस्त पट्ठे हैं! आज उनकी

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14. भ्रम

7 फरवरी 2022
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वृजरानी की विदाई के पश्चात सुवामा का घर ऐसा सूना हो गया, मानो पिंजरे से सुआ उड़ गया। वह इस घर का दीपक और शरीर की प्राण थी। घर वही है, पर चारों ओर उदासी छायी हुई है। रहनेचाला वे ही है। पर सबके मुख मलिन

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

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जब तक विरजन ससुराल से न आयी थी तब तक उसकी दृष्टि में एक हिन्दु-पतिव्रता के कर्तव्य और आदर्श का कोई नियम स्थिर न हुआ था। घर में कभी पति-सम्बंधी चर्चा भी न होती थी। उसने स्त्री-धर्म की पुस्तकें अवश्य पढ

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

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16. स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय

7 फरवरी 2022
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रोगी जब तक बीमार रहता है उसे सुध नहीं रहती कि कौन मेरी औषधि करता है, कौन मुझे देखने के लिए आता है। वह अपने ही कष्ट मं इतना ग्रस्त रहता है कि किसी दूसरे के बात का ध्यान ही उसके हृदय मं उत्पन्न नहीं होत

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17. कमला के नाम विरजन के पत्र

7 फरवरी 2022
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1. ‘प्रियतम, प्रेम पत्र आया। सिर पर चढ़ाकर नेत्रों से लगाया। ऐसे पत्र तुम न लख करो! हृदय विदीर्ण हो जाता है। मैं लिखूं तो असंगत नहीं। यहाँ चित्त अति व्याकुल हो रहा है। क्या सुनती थी और क्या देखती है

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18. प्रतापचंद और कमलाचरण

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र को प्रयाग कालेज में पढ़ते तीन साल हो चुके थे। इतने काल में उसने अपने सहपाठियों और गुरुजनों की दृष्टि में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी। कालेज के जीवन का कोई ऐसा अंग न था जहाँ उनकी प्रत

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19. दुःख-दशा

7 फरवरी 2022
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सौभाग्यवती स्त्री के लिए उसक पति संसार की सबसे प्यारी वस्तु होती है। वह उसी के लिए जीती और मारती है। उसका हँसना-बोलना उसी के प्रसन्न करने के लिए और उसका बनाव-श्रृंगार उसी को लुभाने के लिए होता है। उसक

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20. मन का प्राबल्य

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मानव हृदय एक रहस्यमय वस्तु है। कभी तो वह लाखों की ओर ऑख उठाकर नहीं देखता और कभी कौड़ियों पर फिसल पड़ता है। कभी सैकड़ों निर्दषों की हत्या पर आह ‘तक’ नहीं करता और कभी एक बच्चे को देखकर रो देता है। प्रत

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21. विदुषी वृजरानी

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जब से मुंशी संजीवनलाल तीर्थ यात्रा को निकले और प्रतापचन्द्र प्रयाग चला गया उस समय से सुवामा के जीवन में बड़ा अन्तर हो गया था। वह ठेके के कार्य को उन्नत करने लगी। मुंशी संजीवनलाल के समय में भी व्यापार

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22. माधवी

7 फरवरी 2022
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कभी–कभी वन के फूलों में वह सुगन्धित और रंग-रुप मिल जाता है जो सजी हुई वाटिकाओं को कभी प्राप्त नहीं हो सकता। माधवी थी तो एक मूर्ख और दरिद्र मनुष्य की लड़की, परन्तु विधाता ने उसे नारियों के सभी उत्तम गु

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23. काशी में आगमन

7 फरवरी 2022
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ब से वृजरानी का काव्य–चन्द्र उदय हुआ, तभी से उसके यहां सदैव महिलाओं का जमघट लगा रहता था। नगर मे स्त्रीयों की कई सभाएं थी उनके प्रबंध का सारा भार उसी को उठाना पडता था। उसके अतिरिक्त अन्य नगरों से भी बह

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24. प्रेम का स्वप्न

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मनुष्य का हृदय अभिलाषाओं का क्रीड़ास्थल और कामनाओं का आवास है। कोई समय वह थां जब कि माधवी माता के अंक में खेलती थी। उस समय हृदय अभिलाषा और चेष्टाहीन था। किन्तु जब मिट्टी के घरौंदे बनाने लगी उस समय मन

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25. विदाई

7 फरवरी 2022
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दूसरे दिन बालाजी स्थान-स्थान से निवृत होकर राजा धर्मसिंह की प्रतीक्षा करने लगे। आज राजघाट पर एक विशाल गोशाला का शिलारोपण होने वाला था, नगर की हाट-बाट और वीथियाँ मुस्काराती हुई जान पड़ती थी। सडृक के दो

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26. मतवाली योगिनी

7 फरवरी 2022
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माधवी पहले ही से मुरझायी हुई कली थी। निराशा ने उसे खाक मे मिला दिया। बीस वर्ष की तपस्विनी योगिनी हो गयी। उस बेचारी का भी कैसा जीवन था कि या तो मन में कोई अभिलाषा ही उत्पन्न न हुई, या हुई दुदैव ने उसे

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