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5. शिष्ट जीवन के दृश्य

7 फरवरी 2022

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दिन जाते देर नहीं लगती। दो वर्ष व्यतीत हो गये। पण्डित मोटेराम नित्य प्रात: काल आत और सिद्धान्त-कोमुदी पढ़ाते, परन्त अब उनका आना केवल नियम पालने के हेतु ही था, क्योकि इस पुस्तक के पढ़न में अब विरजन का जी न लगता था। एक दिन मुंशी जी इंजीनियर के दफतर से आये। कमरे में बैठे थे। नौकर जूत का फीता खोल रहा था कि रधिया महर मुस्कराती हुई घर में से निकली और उनके हाथ में मुह छाप लगा हुआ लिफाफा रख, मुंह फेर हंसने लगी। सिरना पर लिखा हुआ था-श्रीमान बाबा साह की सेवा में प्राप्त हो।
मुंशी-अरे, तू किसका लिफाफा ले आयी? यह मेर नहीं है।
महरी–सरकार ही का तो है, खोले तो आप।
मुंशी-किसने हुई बोली–आप खालेंगे तो पता चल जायेगा।
मुंशी जी ने विस्मित होकर लिफाफा खोला। उसमें से जो पञ-निकला उसमें यह लिखा हुआ था-
बाबा को विरजन क प्रमाण और पालागन पहुंचे। यहां आपकी कृपा से कुशल-मंगल है आपका कुशल श्री विश्वनाथजी से सदा मनाया करती हूं। मैंने प्रताप से भाषा सीख ली। वे स्कूल से आकर संध्या को मुझे नित्य पढ़ाते हैं। अब आप हमारे लिए अच्छी-अच्छी पुस्तकें लाइए, क्योंकि पढ़ना ही जी का सुख है और विद्या अमूल्य वस्तु है। वेद-पुराण में इसका महात्मय लिखा है। मनुषय को चाहिए कि विद्या-धन तन-मन से एकञ करे। विद्या से सब दुख हो जाते हैं। मैंने कल बैताल-पचीस की कहानी चाची को सुनायी थी। उन्होंने मुझे एक सुन्दर गुड़िया पुरस्कार में दी है। बहुत अच्छी है। मैं उसका विवाह करुंगी, तब आपसे रुपये लूंगी। मैं अब पण्डितजी से न पढूंगी। मां नहीं जानती कि मैं भाषा पढ़ती हूं।
आपकी प्यारी
विरजन
प्रशस्ति देखते ही मुंशी जी के अन्त: करण में गुदगुद होने लगी।फिर तो उन्होंने एक ही सांस में भारी चिट्रठी पढ़ डाली। मारे आनन्द के हंसते हुए नंगे-पांव भीतर दौड़े। प्रताप को गोद में उठा लिया और फिर दोनों बच्चों का हाथ पकड़े हुए सुशीला के पास गये। उसे चिट्रठी दिखाकर कहा-बूझो किसी चिट्ठी है?
सुशीला-लाओ, हाथ में दो, देखूं।
मुंशी जी-नहीं, वहीं से बैठी-बैठी बताओ जल्दी।
सुशीला-बूझ् जाऊं तो क्या दोगे?
मुंशी जी-पचास रुपये, दूध के धोये हुए।
सुशीला–पहिले रुपये निकालकर रख दो, नहीं तो मुकर जाओगे।
मुंशी जी–मुकरने वाले को कुछ कहता हूं, अभी रुपये लो। ऐसा कोई टुटपुँजिया समझ लिया है?
यह कहकर दस रुपये का एक नोट जेसे निकालकर दिखाया।
सुशीला–कितने का नोट है?
मुंशीजी–पचास रुपये का, हाथ से लेकर देख लो।
सुशीला–ले लूंगी, कहे देती हूं।
मुंशीजी–हां-हां, ले लेना, पहले बता तो सही।
सुशीला–लल्लू का है लाइये नोट, अब मैं न मानूंगी। यह कहकर उठी और मुंशीजी का हाथ थाम लिया।
मुंशीजी–ऐसा क्या डकैती है? नोट छीने लेती हो।
सुशीला–वचन नहीं दिया था? अभी से विचलने लगे।
मुंशीजी–तुमने बूझा भी, सर्वथा भ्रम में पड़ गयीं।
सुशीला–चलो-चलो, बहाना करते हो, नोट हड़पन की इच्छा है। क्यों लल्लू, तुम्हारी ही चिट्ठी है न?
प्रताप नीची दृष्टि से मुंशीजी की ओर देखकर धीरे-से बोला-मैंने कहां लिखी?
मुंशीजी–लजाओ, लजाओ।
सुशीला–वह झूठ बोलता है। उसी की चिट्ठी है, तुम लोग गँठकर आये हो।
प्रताप-मेरी चिट्ठी नहीं है, सच। विरजन ने लिखी है।
सुशीला चकित होकर बोली–विजरन की? फिर उसने दौड़कर पति के हाथ से चिट्ठी छीन ली और भौंचक्की होकर उसे देखने लगी, परन्तु अब भी विश्वास आया।विरजन से पूछा–क्यें बेटी, यह तुम्हारी लिखी है?
विरजन ने सिर झुकाकर कहा-हां।
यह सुनते ही माता ने उसे कष्ठ से लगा लिया।
अब आज से विरजन की यह दशा हो गयी कि जब देखिए लेखनी लिए हुए पन्ने काले कर रही है। घर के धन्धों से तो उस पहले ही कुछ प्रयोज न था, लिखने का आना सोने में सोहागा हो गया। माता उसकी तल्लीनता देख-देखकर प्रमुदित होती पिता हर्ष से फूला न समाता, नित्य नवीन पुस्तकें लाता कि विरजन सयानी होगी, तो पढ़ेगी। यदि कभी वह अपने पांव धो लेती, या भोजन करके अपने ही हाथ धोने लगती तो माता महरियों पर बहुत कुद्र होती-आंखें फूट गयी है। चर्बी छा गई है। वह अपने हाथ से पानी उंड़ेल रही है और तुम खड़ी मुंह ताकती हो।
इसी प्रकार काल बीतता चला गया, विरजन का बारहवां वर्ष पूर्ण हुआ, परन्तु अभी तक उसे चावल उबालना तक न आता था। चूल्हे के सामने बैठन का कभी अवसर ही न आया। सुवामा ने एक दिन उसकी माता ने कहा–बहिन विरजन सयानी हुई, क्या कुछ गुन-ढंग सिखाओगी।
सुशीला-क्या कहूं, जी तो चाहता है कि लग्गा लगाऊं परन्तु कुछ सोचकर रुक जाती हूं।
सुवामा-क्या सोचकर रुक जाती हो?
सुशीला-कुछ नहीं आलस आ जाता है।
सुवामा-तो यह काम मुझे सौंप दो। भोजन बनाना स्त्रियों के लिए सबसे आवश्यक बात है।
सुशीला-अभी चूल्हे के सामन उससे बैठा न जायेगा।
सुवामा-काम करने से ही आता है।
सुशीला-(झेंपते हुए) फूल-से गाल कुम्हला जायेंगे।
सुवामा–(हंसकर) बिना फूल के मुरझाये कहीं फल लगते हैं?
दूसरे दिन से विरजन भोजन बनाने लगी। पहले दस-पांच दिन उसे चूल्हे के सामने बैठने में बड़ा कष्ट हुआ। आग न जलती, फूंकने लगती तो नेञों से जल बहता। वे बूटी की भांति लाल हो जाते। चिनगारियों से कई रेशमी साड़ियां सत्यानाथ हो गयीं। हाथों में छाले पड़ गये। परन्तु क्रमश: सारे क्लेश दूर हो गये। सुवामा ऐसी सुशीला स्ञी थी कि कभी रुष्ट न होती, प्रतिदिन उसे पुचकारकर काम में लगाय रहती।
अभी विरजन को भोजन बनाते दो मास से अधिक न हुए होंगे कि एक दिन उसने प्रताप से कहा–लल्लू,मुझे भोजन बनाना आ गया।
प्रताप-सच।
विरजन-कल चाची ने मेर बनाया भोजन किया था। बहुत प्रसन्न।
प्रताप-तो भई, एक दिन मुझे भी नेवता दो।
विरजन ने प्रसन्न होकर कहा-अच्छा,कल।
दूसरे दिन नौ बजे विरजन ने प्रताप को भोजन करने के लिए बुलाया। उसने जाकर देखा तो चौका लगा हुआ है। नवीन मिट्टी की मीटी-मीठी सुगन्ध आ रही है। आसन स्वच्छता से बिछा हुआ है। एक थाली में चावल और चपातियाँ हैं। दाल और तरकारियॉँ अलग-अलग कटोरियों में रखी हुई हैं। लोटा और गिलास पानी से भरे हुए रखे हैं। यह स्वच्छता और ढंग देखकर प्रताप सीधा मुंशी संजीवनलाल के पास गया और उन्हें लाकर चौके के सामने खड़ा कर दिया। मुंशीजी खुशी से उछल पड़े। चट कपड़े उतार, हाथ-पैर धो प्रताप के साथ चौके में जा बैठे। बेचारी विरजन क्या जानती थी कि महाशय भी बिना बुलाये पाहुने हो जायेंगे। उसने केवल प्रताप के लिए भोजन बनाया था। वह उस दिन बहुत लजायी और दबी ऑंखों से माता की ओर देखने लगी। सुशीला ताड़ गयी। मुस्कराकर मुंशीजी से बोली-तुम्हारे लिए अलग भोजन बना है। लड़कों के बीच में क्या जाके कूद पड़े?
वृजरानी ने लजाते हुए दो थालियों में थोड़ा-थोड़ा भोजन परोसा।
मुंशीजी-विरजन ने चपातियाँ अच्छी बनायी हैं। नर्म, श्वेत और मीठी।
प्रताप-मैंने ऐसी चपातियॉँ कभी नहीं खायीं। सालन बहुत स्वादिष्ट है।
‘विरजन! चाचा को शोरवेदार आलू दो,’ यह कहकर प्रताप हँने लगा। विरजन ने लजाकर सिर नीचे कर लिया। पतीली शुष्क हो रही थी।
सुशीली-(पति से) अब उठोगे भी, सारी रसोई चट कर गये, तो भी अड़े बैठे हो!
मुंशीजी-क्या तुम्हारी राल टपक रही है?
निदान दोनों रसोई की इतिश्री करके उठे। मुंशीजी ने उसी समय एक मोहर निकालकर विरजन को पुरस्कार में दी। 

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रचनाएँ
वरदान
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। 'वरदान' दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। विश्व के महान कथा-शिल्पी प्रेमचन्द के उपन्यास वरदान में सुदामा अष्टभुजा देवी से एक ऐसे सपूत का वरदान मांगती है, जो जाति की भलाई में संलग्न हो। इसी ताने-बाने पर प्रेमचन्द की सशक्त कलम से बुना कथानक जीवन की स्थितियों की बारीकी से पड़ताल करता है। सुदामा का पुत्र प्रताप एक ऐसा पात्र है जो दीन-दुखियों, रोगियों, दलितों की निस्वार्थ सहायता करता है।
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वरदान 1.

7 फरवरी 2022
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वरदान (उपन्यास) मुंशी प्रेमचंद (‘वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्मा

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2. वैराग्य

7 फरवरी 2022
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मुंशी शालिग्राम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन-वृति वकालत थी और पैतृक सम्पत्ति भी अधिक थी। दशाश्वमेध घाट पर उनका वैभवान्वित गृह आकाश को स्पर्श करता था। उदार ऐसे कि पचीस-तीस हजार की वाषिर्क आय भी व्यय को

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4. एकता का संबंध पुष्ट होता है

7 फरवरी 2022
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कुछ काल से सुवामा ने द्रव्याभाव के कारण महाराजिन, कहार और दो महरियों को जवाब दे दिया था क्योंकि अब न तो उसकी कोई आवश्यकता थी और न उनका व्यय ही संभाले संभलता था। केवल एक बुढ़िया महरी शेष रह गयी थी। ऊपर

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5. शिष्ट जीवन के दृश्य

7 फरवरी 2022
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6. डिप्टी श्यामाचरण

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डिप्टी श्यामाचरण की धाक सारे नगर में छाई हुई थी। नगर में कोई ऐसा हाकिम न था जिसकी लोग इतनी प्रतिष्ठा करते हों। इसका कारण कुछ तो यह था कि वे स्वभाव के मिलनसार और सहनशील थे और कुछ यह कि रिश्वत से उन्हें

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7. निष्ठुरता/निठुरता और प्रेम

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सुवामा तन-मन से विवाह की तैयारियां करने लगीं। भोर से संध्या तक विवाह के ही धन्धों में उलझी रहती। सुशीला चेरी की भांति उसकी आज्ञा का पालन किया करती। मुंशी संजीवनलाल प्रात:काल से सांझ तक हाट की धूल छानत

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8. सखियाँ

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डिप्टी श्यामाचरण का भवन आज सुन्दरियों के जमघट से इन्द्र का अखाड़ा बना हुआ था। सेवती की चार सहेलियॉ-रूक्मिणी, सीता, रामदैई और चन्द्रकुंवर-सोलहों सिंगार किये इठलाती फिरती थी। डिप्टी साहब की बहिन जानकी

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9. ईर्ष्या

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र ने विरजन के घर आना-जाना विवाह के कुछ दिन पूर्व से ही त्याग दिया था। वह विवाह के किसी भी कार्य में सम्मिलित नहीं हुआ। यहॉ तक कि महफिल में भी न गया। मलिन मन किये, मुहॅ लटकाये, अपने घर बैठा

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10. सुशीला की मृत्यु

7 फरवरी 2022
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तीन दिन और बीते, सुशीला के जीने की अब कोई संभावना न रही। तीनों दिन मुंशी संजीवनलाल उसके पास बैठे उसको सान्त्वना देते रहे। वह तनिक देर के लिए भी वहां से किसी काम के लिए चले जाते, तो वह व्याकुल होने लगत

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11. विरजन की विदा

7 फरवरी 2022
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राधाचरण रूड़की कालेज से निकलते ही मुरादाबाद के इंजीनियर नियुक्त हुए और चन्द्रा उनके संग मुरादाबाद को चली। प्रेमवती ने बहुत रोकना चाहा, पर जानेवाले को कौन रोक सकता है। सेवती कब की ससुराल आ चुकी थी। यहा

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12. कमलाचरण के मित्र

7 फरवरी 2022
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जैसे सिन्दूर की लालिमा से मांग रच जाती है, जैसे ही विरजन के आने से प्रेमवती के घर की रौनक बढ गयी। सुवामा ने उसे ऐसे गुण सिखाये थे कि जिसने उसे देखा, मोह गया। यहां तक कि सेवती की सहेली रानी को भी प्रेम

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13. कायापलट

7 फरवरी 2022
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पहला दिन तो कमलाचरण ने किसी प्रकार छात्रालय में काटा। प्रात: से सायंकाल तक सोया किये। दूसरे दिन ध्यान आया कि आज नवाब साहब और तोखे मिर्जा के बटेरों में बढ़ाऊ जोड़ हैं। कैसे-कैसे मस्त पट्ठे हैं! आज उनकी

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14. भ्रम

7 फरवरी 2022
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वृजरानी की विदाई के पश्चात सुवामा का घर ऐसा सूना हो गया, मानो पिंजरे से सुआ उड़ गया। वह इस घर का दीपक और शरीर की प्राण थी। घर वही है, पर चारों ओर उदासी छायी हुई है। रहनेचाला वे ही है। पर सबके मुख मलिन

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

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जब तक विरजन ससुराल से न आयी थी तब तक उसकी दृष्टि में एक हिन्दु-पतिव्रता के कर्तव्य और आदर्श का कोई नियम स्थिर न हुआ था। घर में कभी पति-सम्बंधी चर्चा भी न होती थी। उसने स्त्री-धर्म की पुस्तकें अवश्य पढ

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

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16. स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय

7 फरवरी 2022
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रोगी जब तक बीमार रहता है उसे सुध नहीं रहती कि कौन मेरी औषधि करता है, कौन मुझे देखने के लिए आता है। वह अपने ही कष्ट मं इतना ग्रस्त रहता है कि किसी दूसरे के बात का ध्यान ही उसके हृदय मं उत्पन्न नहीं होत

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17. कमला के नाम विरजन के पत्र

7 फरवरी 2022
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1. ‘प्रियतम, प्रेम पत्र आया। सिर पर चढ़ाकर नेत्रों से लगाया। ऐसे पत्र तुम न लख करो! हृदय विदीर्ण हो जाता है। मैं लिखूं तो असंगत नहीं। यहाँ चित्त अति व्याकुल हो रहा है। क्या सुनती थी और क्या देखती है

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18. प्रतापचंद और कमलाचरण

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र को प्रयाग कालेज में पढ़ते तीन साल हो चुके थे। इतने काल में उसने अपने सहपाठियों और गुरुजनों की दृष्टि में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी। कालेज के जीवन का कोई ऐसा अंग न था जहाँ उनकी प्रत

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19. दुःख-दशा

7 फरवरी 2022
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सौभाग्यवती स्त्री के लिए उसक पति संसार की सबसे प्यारी वस्तु होती है। वह उसी के लिए जीती और मारती है। उसका हँसना-बोलना उसी के प्रसन्न करने के लिए और उसका बनाव-श्रृंगार उसी को लुभाने के लिए होता है। उसक

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20. मन का प्राबल्य

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मानव हृदय एक रहस्यमय वस्तु है। कभी तो वह लाखों की ओर ऑख उठाकर नहीं देखता और कभी कौड़ियों पर फिसल पड़ता है। कभी सैकड़ों निर्दषों की हत्या पर आह ‘तक’ नहीं करता और कभी एक बच्चे को देखकर रो देता है। प्रत

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21. विदुषी वृजरानी

7 फरवरी 2022
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जब से मुंशी संजीवनलाल तीर्थ यात्रा को निकले और प्रतापचन्द्र प्रयाग चला गया उस समय से सुवामा के जीवन में बड़ा अन्तर हो गया था। वह ठेके के कार्य को उन्नत करने लगी। मुंशी संजीवनलाल के समय में भी व्यापार

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22. माधवी

7 फरवरी 2022
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कभी–कभी वन के फूलों में वह सुगन्धित और रंग-रुप मिल जाता है जो सजी हुई वाटिकाओं को कभी प्राप्त नहीं हो सकता। माधवी थी तो एक मूर्ख और दरिद्र मनुष्य की लड़की, परन्तु विधाता ने उसे नारियों के सभी उत्तम गु

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23. काशी में आगमन

7 फरवरी 2022
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ब से वृजरानी का काव्य–चन्द्र उदय हुआ, तभी से उसके यहां सदैव महिलाओं का जमघट लगा रहता था। नगर मे स्त्रीयों की कई सभाएं थी उनके प्रबंध का सारा भार उसी को उठाना पडता था। उसके अतिरिक्त अन्य नगरों से भी बह

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24. प्रेम का स्वप्न

7 फरवरी 2022
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मनुष्य का हृदय अभिलाषाओं का क्रीड़ास्थल और कामनाओं का आवास है। कोई समय वह थां जब कि माधवी माता के अंक में खेलती थी। उस समय हृदय अभिलाषा और चेष्टाहीन था। किन्तु जब मिट्टी के घरौंदे बनाने लगी उस समय मन

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25. विदाई

7 फरवरी 2022
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दूसरे दिन बालाजी स्थान-स्थान से निवृत होकर राजा धर्मसिंह की प्रतीक्षा करने लगे। आज राजघाट पर एक विशाल गोशाला का शिलारोपण होने वाला था, नगर की हाट-बाट और वीथियाँ मुस्काराती हुई जान पड़ती थी। सडृक के दो

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26. मतवाली योगिनी

7 फरवरी 2022
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माधवी पहले ही से मुरझायी हुई कली थी। निराशा ने उसे खाक मे मिला दिया। बीस वर्ष की तपस्विनी योगिनी हो गयी। उस बेचारी का भी कैसा जीवन था कि या तो मन में कोई अभिलाषा ही उत्पन्न न हुई, या हुई दुदैव ने उसे

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