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21. विदुषी वृजरानी

7 फरवरी 2022

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जब से मुंशी संजीवनलाल तीर्थ यात्रा को निकले और प्रतापचन्द्र प्रयाग चला गया उस समय से सुवामा के जीवन में बड़ा अन्तर हो गया था। वह ठेके के कार्य को उन्नत करने लगी। मुंशी संजीवनलाल के समय में भी व्यापार में इतनी उन्नति नहीं हुई थी। सुवामा रात-रात भर बैठी ईंट-पत्थरों से माथा लड़ाया करती और गारे-चूने की चिंता में व्याकुल रहती। पाई-पाई का हिसाब समझती और कभी-कभी स्वयं कुलियों के कार्य की देखभाल करती। इन कार्यो में उसकी ऐसी प्रवृति हुई कि दान और व्रत से भी वह पहले का-सा प्रेम न रहा। प्रतिदिन आय वृद्धि होने पर भी सुवामा ने व्यय किसी प्रकार का न बढ़ाया। कौड़ी-कौड़ी दाँतो से पकड़ती और यह सब इसलिए कि प्रतापचन्द्र धनवान हो जाए और अपने जीवन-पर्यन्त सान्नद रहे।
सुवामा को अपने होनहार पुत्र पर अभिमान था। उसके जीवन की गति देखकर उसे विश्वास हो गया था कि मन में जो अभिलाषा रखकर मैंने पुत्र माँगा था, वह अवश्य पूर्ण होगी। वह कालेज के प्रिंसिपल और प्रोफेसरों से प्रताप का समाचार गुप्त रीति से लिया करती थी ओर उनकी सूचनाओं का अध्ययन उसके लिए एक रसेचक कहानी के तुल्य था। ऐसी दशा में प्रयाग से प्रतापचन्द्र को लोप हो जाने का तार पहुँचा मानों उसके हुदय पर वज्र का गिरना था। सुवामा एक ठण्डी साँसे ले, मस्तक पर हाथ रख बैठ गयी। तीसरे दिन प्रतापचन्द्र की पुस्त, कपड़े और सामग्रियाँ भी आ पहुँची, यह घाव पर नमक का छिड़काव था।
प्रेमवती के मरे का समाचार पाते ही प्राणनाथ पटना से और राधाचरण नैनीताल से चले। उसके जीते-जी आते तो भेंट हो जाती, मरने पर आये तो उसके शव को भी देखने को सौभाग्य न हुआ। मृतक-संस्कार बड़ी धूम से किया गया। दो सप्ताह गाँव में बड़ी धूम-धाम रही। तत्पश्चात् मुरादाबाद चले गये और प्राणनाथ ने पटना जाने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। उनकी इच्छा थी कि स्त्रीको प्रयाग पहुँचाते हुए पटना जायँ। पर सेवती ने हठ किया कि जब यहाँ तक आये हैं, तो विरजन के पास भी अवश्य चलना चाहिए नहीं तो उसे बड़ा दु:ख होगा। समझेगी कि मुझे असहाय जानकर इन लोगों ने भी त्याग दिया।
सेवती का इस उचाट भवन मे आना मानो पुष्पों में सुगन्ध में आना था। सप्ताह भर के लिए सुदिन का शुभागमन हो गया। विरजन बहुत प्रसन्न हुई और खूब रोयी। माधवी ने मुन्नू को अंक में लेकर बहुत प्यार किया।
प्रेमवती के चले जाने पर विरजन उस गृह में अकेली रह गई थी। केवल माधवी उसके पास थी। हृदय-ताप और मानसिक दु:ख ने उसका वह गुण प्रकट कर दिया, जा अब तक गुप्त था। वह काव्य और पद्य-रचना का अभ्यास करने लगी। कविता सच्ची भावनाओं का चित्र है और सच्ची भावनाएँ चाहे वे दु:ख हों या सुख की, उसी समय सम्पन्न होती हैं जब हम दु:ख या सुख का अनुभव करते हैं। विरजन इन दिनों रात-रात बैठी भाष में अपने मनोभावों के मोतियों की माला गूँथा करती। उसका एक-एक शब्द करुणा और वैराग्य से परिवूर्ण होता थां अन्य कवियों के मनों में मित्रों की वहा-वाह और काव्य-प्रेतियों के साधुवाद से उत्साह पैदा होता है, पर विरजन अपनी दु:ख कथा अपने ही मन को सुनाती थी।
सेवती को आये दो–तीन दिन बीते थे। एक दिन विरजन से कहा–मैं तुम्हें बहुधा किसी ध्यान में मग्न देखती हूँ और कुछ लिखते भी पाती हूँ। मुझे न बताओगी? विरजन लज्जित हो गयी। बहाना करने लगी कि कुछ नहीं, यों ही जी कुछ उदास रहता है। सेवती ने कहा-मैंन मानूँगी। फिर वह विरजनका बाक्स उठा लायी, जिसमें कविता के दिव्य मोती रखे हुए थे। विवश होकर विरजन ने अपने नय पद्य सुनाने शुरु किये। मुख से प्रथम पद्य का निकलना था कि सेवती के रोएँ खड़े हो गये और जब तक सारा पद्य समाप्त न हुआ, वह तन्मय होकर सुनती रही। प्राणनाथ की संगति ने उसे काव्य का रसिक बना दिया था। बार-बार उसके नेत्र भर आते। जब विरजन चुप हो गयी तो एक समाँ बँधा हुआ था मानों को कोई मनोहर राग अभी थम गया है। सेवती ने विरजन को कण्ठ से लिपटा लिया, फिर उसे छोड़कर दौड़ी हुई प्राणनाथ के पास गयी, जैसे कोई नया बच्चा नया खिलोना पाकर हर्ष से दौड़ता हुआ अपने साथियों को दिखाने जाता है। प्राणनाथ अपने अफसर को प्रार्थना-पत्र लिख रहे थे कि मेरी माता अति पीड़िता हो गयी है, अतएव सेवा में प्रस्तुत होने में विलम्ब हुआ। आशा करता हूँ कि एक सप्ताह का आकस्मिक अवकाश प्रदान किया जायगा। सेवती को देखकर चट आपना प्रार्थना-पत्र छिपा लिया और मुस्कराये। मनुष्य कैसा धूर्त है! वह अपने आपको भी धोख देने से नहीं चूकता।
सेवती–तनिक भीतर चलो, तुम्हें विरजन की कविता सुनवाऊं, फड़क उठोगे।
प्राण0–अच्छा, अब उन्हें कविता की चाट हुई है? उनकी भाभी तो गाया करती थी–तुम तो श्याम बड़े बेखबर हो।
सेवती–तनिक चलकर सुनो, तो पीछे हॅंसना। मुझे तो उसकी कविता पर आश्चर्य हो रहा है।
प्राण0–चलो, एक पत्र लिखकर अभी आता हूं।
सेवती–अब यही मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं आपके पत्र नोच डालूंगी।
सेवती प्राणनाथ को घसीट ले आयी। वे अभी तक यही जानते थे कि विरजन ने कोई सामान्य भजन बनाया होगा। उसी को सुनाने के लिए व्याकुल हो रही होगी। पर जब भीतर आकर बैठे और विरजन ने लजाते हुए अपनी भावपूर्ण कविता ‘प्रेम की मतवाली’ पढ़नी आरम्भ की तो महाशय के नेत्र खुल गये। पद्य क्या था, हृदय के दुख की एक धारा और प्रेम–रहस्य की एक कथा थी। वह सुनते थे और मुग्ध होकर झुमते थे। शब्दों की एक-एक योजना पर, भावों के एक-एक उदगार पर लहालोट हुए जाते थे। उन्होंने बहुतेरे कवियां के काव्य देखे थे, पर यह उच्च विचार, यह नूतनता, यह भावोत्कर्ष कहीं दीख न पड़ा था। वह समय चित्रित हो रहा था जब अरुणोदय के पूर्व मलयानिल लहराता हुआ चलता है, कलियां विकसित होती हैं, फूल महकते हैं और आकाश पर हल्की लालिमा छा जाती है। एक–एक शब्द में नवविकसित पुष्पों की शोभा और हिमकिरणों की शीतलता विद्यमान थी। उस पर विरजन का सुरीलापन और ध्वनि की मधुरता सोने में सुगन्ध थी। ये छन्द थे, जिन पर विरजन ने हृदय को दीपक की भॉँति जलाया था। प्राणनाथ प्रहसन के उद्देश्य से आये थे। पर जब वे उठे तो वस्तुत: ऐसा प्रतीत होता था, मानो छाती से हृदय निकल गया है। एक दिन उन्होंने विरजन से कहा–यदि तुम्हारी कविताऍं छपे, तो उनका बहुत आदर हो।
विरजन ने सिर नीचा करके कहा–मुझे विश्वास नहीं कि कोई इनको पसन्द करेगा।
प्राणनाथ–ऐसा संभव ही नहीं। यदि हृदयों में कुछ भी रसिकता है तो तुम्हारे काव्य की अवश्य प्रतिष्ठा होगी। यदि ऐसे लोग विद्यमान हैं, जो पुष्पों की सुगन्ध से आनन्दित हो जाते हैं, जो पक्षियों के कलरव और चाँदनी की मनोहारिणी छटा का आनन्द उठा सकते हैं, तो वे तुम्हारी कविता को अवश्य हृदय में स्थान देंगे। विरजन के ह्दय मे वह गुदगुदी उत्पन्न हुई जो प्रत्येक कवि को अपने काव्यचिन्तन की प्रशंसा मिलने पर, कविता के मुद्रित होने के विचार से होती है। यद्यपि वह नहीं–नहीं करती रही, पर वह, ‘नहीं’, ‘हाँ’ के समान थी। प्रयाग से उन दिनों ‘कमला’ नाम की अच्छी पत्रिका निकलती थी। प्राणनाथ ने ‘प्रेम की मतवाली’ को वहां भेज दिया। सम्पादक एक काव्य–रसिक महानुभाव थे कविता पर हार्दिक धन्यवाद दिया ओर जब यह कविता प्रकाशित हुई, तो साहित्य–संसार में धूम मच गयी। कदाचित ही किसी कवि को प्रथम ही बार ऐसी ख्याति मिली हो। लोग पढते और विस्मय से एक-दूसरे का मुंह ताकते थे। काव्य–प्रेमियों मे कई सप्ताह तक मतवाली बाला के चर्चे रहे। किसी को विश्वास ही न आता था कि यह एक नवजात कवि की रचना है। अब प्रति मास ‘कमला’ के पृष्ठ विरजन की कविता से सुशोभित होने लगे और ‘भारत महिला’ को लोकमत ने कवियों के सम्मानित पद पर पहुंचा दिया। ‘भारत महिला’ का नाम बच्चे-बच्चे की जिहवा पर चढ गया। को इस समाचार-पत्र या पत्रिका ‘भारत महिला’ को ढूढने लगते। हां, उसकी दिव्य शक्तिया अब किसी को विस्मय में न डालती उसने स्वयं कविता का आदर्श उच्च कर दिया था।
तीन वर्ष तक किसी को कुछ भी पता न लगा कि ‘भारत महिला’ कौन है। निदान प्राण नाथ से न रहा गया। उन्हें विरजन पर भक्ति हो गयी थी। वे कई मांस से उसका जीवन–चरित्र लिखने की धुन में थे। सेवती के द्वारा धीरे-धीरे उन्होनें उसका सब जीवन चरित्र ज्ञात कर दिया और ‘भारत महिला’ के शीर्षक से एक प्रभाव–पूरित लेख लिया। प्राणनाथ ने पहिले लेख न लिखा था, परन्तु श्रद्धा ने अभ्यास की कमी पूरी कर दी थी। लेख अतयन्त रोचक, समालोचनातमक और भावपूर्ण था।
इस लेख का मुदित होना था कि विरजन को चारों तरफ से प्रतिष्ठा के उपहार मिलने लगे। राधाचरण मुरादाबाद से उसकी भेंट को आये। कमला, उमादेवी, चन्द्रकुवंर और सखिया जिन्होनें उसे विस्मरण कर दिया था प्रतिदिन विरजन के दशर्नों को आने लगी। बडे बडे गणमान्य सज्ज्न जो ममता के अभीमान से हकिमों के सम्मुख सिर न झुकाते, विरजन के द्वार पर दशर्न को आते थे। चन्द्रा स्वयं तो न आ सकी, परन्तु पत्र में लिखा–जो चाहता है कि तुम्हारे चरणें पर सिर रखकर घंटों रोऊँ। 

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रचनाएँ
वरदान
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। 'वरदान' दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। विश्व के महान कथा-शिल्पी प्रेमचन्द के उपन्यास वरदान में सुदामा अष्टभुजा देवी से एक ऐसे सपूत का वरदान मांगती है, जो जाति की भलाई में संलग्न हो। इसी ताने-बाने पर प्रेमचन्द की सशक्त कलम से बुना कथानक जीवन की स्थितियों की बारीकी से पड़ताल करता है। सुदामा का पुत्र प्रताप एक ऐसा पात्र है जो दीन-दुखियों, रोगियों, दलितों की निस्वार्थ सहायता करता है।
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वरदान 1.

7 फरवरी 2022
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वरदान (उपन्यास) मुंशी प्रेमचंद (‘वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्मा

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2. वैराग्य

7 फरवरी 2022
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मुंशी शालिग्राम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन-वृति वकालत थी और पैतृक सम्पत्ति भी अधिक थी। दशाश्वमेध घाट पर उनका वैभवान्वित गृह आकाश को स्पर्श करता था। उदार ऐसे कि पचीस-तीस हजार की वाषिर्क आय भी व्यय को

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4. एकता का संबंध पुष्ट होता है

7 फरवरी 2022
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कुछ काल से सुवामा ने द्रव्याभाव के कारण महाराजिन, कहार और दो महरियों को जवाब दे दिया था क्योंकि अब न तो उसकी कोई आवश्यकता थी और न उनका व्यय ही संभाले संभलता था। केवल एक बुढ़िया महरी शेष रह गयी थी। ऊपर

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5. शिष्ट जीवन के दृश्य

7 फरवरी 2022
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दिन जाते देर नहीं लगती। दो वर्ष व्यतीत हो गये। पण्डित मोटेराम नित्य प्रात: काल आत और सिद्धान्त-कोमुदी पढ़ाते, परन्त अब उनका आना केवल नियम पालने के हेतु ही था, क्योकि इस पुस्तक के पढ़न में अब विरजन का

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6. डिप्टी श्यामाचरण

7 फरवरी 2022
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डिप्टी श्यामाचरण की धाक सारे नगर में छाई हुई थी। नगर में कोई ऐसा हाकिम न था जिसकी लोग इतनी प्रतिष्ठा करते हों। इसका कारण कुछ तो यह था कि वे स्वभाव के मिलनसार और सहनशील थे और कुछ यह कि रिश्वत से उन्हें

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7. निष्ठुरता/निठुरता और प्रेम

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सुवामा तन-मन से विवाह की तैयारियां करने लगीं। भोर से संध्या तक विवाह के ही धन्धों में उलझी रहती। सुशीला चेरी की भांति उसकी आज्ञा का पालन किया करती। मुंशी संजीवनलाल प्रात:काल से सांझ तक हाट की धूल छानत

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8. सखियाँ

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डिप्टी श्यामाचरण का भवन आज सुन्दरियों के जमघट से इन्द्र का अखाड़ा बना हुआ था। सेवती की चार सहेलियॉ-रूक्मिणी, सीता, रामदैई और चन्द्रकुंवर-सोलहों सिंगार किये इठलाती फिरती थी। डिप्टी साहब की बहिन जानकी

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9. ईर्ष्या

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र ने विरजन के घर आना-जाना विवाह के कुछ दिन पूर्व से ही त्याग दिया था। वह विवाह के किसी भी कार्य में सम्मिलित नहीं हुआ। यहॉ तक कि महफिल में भी न गया। मलिन मन किये, मुहॅ लटकाये, अपने घर बैठा

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10. सुशीला की मृत्यु

7 फरवरी 2022
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तीन दिन और बीते, सुशीला के जीने की अब कोई संभावना न रही। तीनों दिन मुंशी संजीवनलाल उसके पास बैठे उसको सान्त्वना देते रहे। वह तनिक देर के लिए भी वहां से किसी काम के लिए चले जाते, तो वह व्याकुल होने लगत

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11. विरजन की विदा

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राधाचरण रूड़की कालेज से निकलते ही मुरादाबाद के इंजीनियर नियुक्त हुए और चन्द्रा उनके संग मुरादाबाद को चली। प्रेमवती ने बहुत रोकना चाहा, पर जानेवाले को कौन रोक सकता है। सेवती कब की ससुराल आ चुकी थी। यहा

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12. कमलाचरण के मित्र

7 फरवरी 2022
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जैसे सिन्दूर की लालिमा से मांग रच जाती है, जैसे ही विरजन के आने से प्रेमवती के घर की रौनक बढ गयी। सुवामा ने उसे ऐसे गुण सिखाये थे कि जिसने उसे देखा, मोह गया। यहां तक कि सेवती की सहेली रानी को भी प्रेम

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13. कायापलट

7 फरवरी 2022
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पहला दिन तो कमलाचरण ने किसी प्रकार छात्रालय में काटा। प्रात: से सायंकाल तक सोया किये। दूसरे दिन ध्यान आया कि आज नवाब साहब और तोखे मिर्जा के बटेरों में बढ़ाऊ जोड़ हैं। कैसे-कैसे मस्त पट्ठे हैं! आज उनकी

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14. भ्रम

7 फरवरी 2022
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वृजरानी की विदाई के पश्चात सुवामा का घर ऐसा सूना हो गया, मानो पिंजरे से सुआ उड़ गया। वह इस घर का दीपक और शरीर की प्राण थी। घर वही है, पर चारों ओर उदासी छायी हुई है। रहनेचाला वे ही है। पर सबके मुख मलिन

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

7 फरवरी 2022
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जब तक विरजन ससुराल से न आयी थी तब तक उसकी दृष्टि में एक हिन्दु-पतिव्रता के कर्तव्य और आदर्श का कोई नियम स्थिर न हुआ था। घर में कभी पति-सम्बंधी चर्चा भी न होती थी। उसने स्त्री-धर्म की पुस्तकें अवश्य पढ

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

7 फरवरी 2022
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16. स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय

7 फरवरी 2022
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रोगी जब तक बीमार रहता है उसे सुध नहीं रहती कि कौन मेरी औषधि करता है, कौन मुझे देखने के लिए आता है। वह अपने ही कष्ट मं इतना ग्रस्त रहता है कि किसी दूसरे के बात का ध्यान ही उसके हृदय मं उत्पन्न नहीं होत

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17. कमला के नाम विरजन के पत्र

7 फरवरी 2022
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1. ‘प्रियतम, प्रेम पत्र आया। सिर पर चढ़ाकर नेत्रों से लगाया। ऐसे पत्र तुम न लख करो! हृदय विदीर्ण हो जाता है। मैं लिखूं तो असंगत नहीं। यहाँ चित्त अति व्याकुल हो रहा है। क्या सुनती थी और क्या देखती है

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18. प्रतापचंद और कमलाचरण

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र को प्रयाग कालेज में पढ़ते तीन साल हो चुके थे। इतने काल में उसने अपने सहपाठियों और गुरुजनों की दृष्टि में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी। कालेज के जीवन का कोई ऐसा अंग न था जहाँ उनकी प्रत

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19. दुःख-दशा

7 फरवरी 2022
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सौभाग्यवती स्त्री के लिए उसक पति संसार की सबसे प्यारी वस्तु होती है। वह उसी के लिए जीती और मारती है। उसका हँसना-बोलना उसी के प्रसन्न करने के लिए और उसका बनाव-श्रृंगार उसी को लुभाने के लिए होता है। उसक

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20. मन का प्राबल्य

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मानव हृदय एक रहस्यमय वस्तु है। कभी तो वह लाखों की ओर ऑख उठाकर नहीं देखता और कभी कौड़ियों पर फिसल पड़ता है। कभी सैकड़ों निर्दषों की हत्या पर आह ‘तक’ नहीं करता और कभी एक बच्चे को देखकर रो देता है। प्रत

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21. विदुषी वृजरानी

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जब से मुंशी संजीवनलाल तीर्थ यात्रा को निकले और प्रतापचन्द्र प्रयाग चला गया उस समय से सुवामा के जीवन में बड़ा अन्तर हो गया था। वह ठेके के कार्य को उन्नत करने लगी। मुंशी संजीवनलाल के समय में भी व्यापार

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22. माधवी

7 फरवरी 2022
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कभी–कभी वन के फूलों में वह सुगन्धित और रंग-रुप मिल जाता है जो सजी हुई वाटिकाओं को कभी प्राप्त नहीं हो सकता। माधवी थी तो एक मूर्ख और दरिद्र मनुष्य की लड़की, परन्तु विधाता ने उसे नारियों के सभी उत्तम गु

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23. काशी में आगमन

7 फरवरी 2022
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ब से वृजरानी का काव्य–चन्द्र उदय हुआ, तभी से उसके यहां सदैव महिलाओं का जमघट लगा रहता था। नगर मे स्त्रीयों की कई सभाएं थी उनके प्रबंध का सारा भार उसी को उठाना पडता था। उसके अतिरिक्त अन्य नगरों से भी बह

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24. प्रेम का स्वप्न

7 फरवरी 2022
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मनुष्य का हृदय अभिलाषाओं का क्रीड़ास्थल और कामनाओं का आवास है। कोई समय वह थां जब कि माधवी माता के अंक में खेलती थी। उस समय हृदय अभिलाषा और चेष्टाहीन था। किन्तु जब मिट्टी के घरौंदे बनाने लगी उस समय मन

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25. विदाई

7 फरवरी 2022
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दूसरे दिन बालाजी स्थान-स्थान से निवृत होकर राजा धर्मसिंह की प्रतीक्षा करने लगे। आज राजघाट पर एक विशाल गोशाला का शिलारोपण होने वाला था, नगर की हाट-बाट और वीथियाँ मुस्काराती हुई जान पड़ती थी। सडृक के दो

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26. मतवाली योगिनी

7 फरवरी 2022
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माधवी पहले ही से मुरझायी हुई कली थी। निराशा ने उसे खाक मे मिला दिया। बीस वर्ष की तपस्विनी योगिनी हो गयी। उस बेचारी का भी कैसा जीवन था कि या तो मन में कोई अभिलाषा ही उत्पन्न न हुई, या हुई दुदैव ने उसे

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