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22. माधवी

7 फरवरी 2022

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कभी–कभी वन के फूलों में वह सुगन्धित और रंग-रुप मिल जाता है जो सजी हुई वाटिकाओं को कभी प्राप्त नहीं हो सकता। माधवी थी तो एक मूर्ख और दरिद्र मनुष्य की लड़की, परन्तु विधाता ने उसे नारियों के सभी उत्तम गुणों से सुशोभित कर दिया था। उसमें शिक्षा सुधार को ग्रहण करने की विशेष योग्यता थी। माधवी और विरजन का मिलाप उस समय हुआ जब विरजन ससुराल आयी। इस भोली–भाली कन्या ने उसी समय से विरजन के संग असधारण प्रीति प्रकट करनी आरम्भ की। ज्ञात नहीं, वह उसे देवी समझती थी या क्या? परन्तु कभी उसने विरजन के विरुद्ध एक शब्द भी मुख से न निकाला। विरजन भी उसे अपने संग सुलाती और अच्छी–अच्छी रेशमी वस्त्र पहिनाती इससे अधिक प्रीति वह अपनी छोटी भगिनी से भी नहीं कर सकती थी। चित्त का चित्त से सम्बन्ध होता है। यदि प्रताप को वृजरानी से हार्दिक समबन्ध था तो वृजरानी भी प्रताप के प्रेम में पगी हुई थी। जब कमलाचरण से उसके विवाह की बात पक्की हुई जो वह प्रतापचन्द्र से कम दुखी न हुई। हां लज्जावश उसके हृदय के भाव कभी प्रकट न होते थे। विवाह हो जाने के पश्चात उसे नित्य चिन्ता रहती थी कि प्रतापचन्द्र के पीडित हृदय को कैसे तसल्ली दूं? मेरा जीवन तो इस भांति आनन्द से बीतता है। बेचारे प्रताप के ऊपर न जाने कैसी बीतती होगी। माधवी उन दिनों ग्यारहवें वर्ष में थी। उसके रंग–रुप की सुन्दरता, स्वभाव और गुण देख–देखकर आश्चर्य होता था। विरजन को अचानक यह ध्यान आया कि क्या मेरी माधवी इस योगय नहीं कि प्रताप उसे अपने कण्ठ का हार बनाये? उस दिन से वह माधवी के सुधार और प्यार में और भी अधिक प्रवृत हो गयी थी वह सोच-सोचकर मन–ही मन-फूली न समाती कि जब माधवी सोलह–सत्रह वर्ष की हो जायेगी, तब मैं प्रताप के पास जाऊंगी और उससे हाथ जोडकर कहूंगी कि माधवी मेरी बहिन है। उसे आज से तुम अपनी चेरी समझो क्या प्रताप मेरी बात टाल देगें? नहीं–वे ऐसा नहीं कर सकते। आनन्द तो तब है जब कि चाची स्वयं माधवी को अपनी बहू बनाने की मुझसे इच्छा करें। इसी विचार से विरजन ने प्रतापचन्द्र के प्रशसनीय गुणों का चित्र माधवी के हृदय में खींचना आरम्भ कर दिया था, जिससे कि उसका रोम-रोम प्रताप के प्रेम में पग जाय। वह जब प्रतापचन्द्र का वर्णन करने लगती तो स्वत: उसके शब्द असामान्य रीति से मधुर और सरस हो जाते। शनै:-शनै: माधवी का कामल हृदय प्रेम–रस का आस्वादन करने लगा। दर्पण में बाल पड़ गया।
भोली माधवी सोचने लगी, मैं कैसी भाग्यवती हूं। मुझे ऐसे स्वामी मिलेंगें जिनके चरण धोने के योग्य भी मैं नहीं हूं, परन्तु क्या वें मुझे अपनी चेरी बनायेगें? कुछ तो, मैं अवश्य उनकी दासी बनूंगी और यदि प्रेम में कुछ आकषर्ण है, तो मैं उन्हें अवश्य अपना बना लूंगी। परन्तु उस बेचारी को क्या मालूम था कि ये आशाएं शोक बनकर नेत्रों के मार्ग से बह जायेगी ? उसको पन्द्रहवां पूरा भी न हुआ था कि विरजन पर गृह-विनाश की आपत्तियां आ पडी। उस आंधी के झोंकें ने माधवी की इस कल्पित पुष्प वाठिका का सत्यानाश कर दिया। इसी बीच में प्रताप चन्द्र के लोप होने का समाचार मिला। आंधी ने जो कुछ अवशिष्ठ रखा था वह भी इस अग्नि ने जलाकर भस्म कर दिया।
परन्तु मानस कोई वस्तु है, तो माधवी प्रतापचन्द्र की स्त्री बन चुकी थी। उसने अपना तन और मन उन्हें समर्पण कर दिया। प्रताप को ज्ञान नहीं। परन्तु उन्हें ऐसी अमूल्य वस्तु मिली, जिसके बराबर संसार में कोई वस्तु नहीं तुल सकती। माधवी ने केवल एक बार प्रताप को देखा था और केवल एक ही बार उनके अमृत–वचन सुने थे। पर इसने उस चित्र को और भी उज्जवल कर दिया था, जो उसके हृदय पर पहले ही विरजन ने खींच रखा था। प्रताप को पता नहीं था, पर माधवी उसकी प्रेमाग्नि में दिन-प्रतिदिन घुलती जाती है। उस दिन से कोई ऐसा व्रत नहीं था, जो माधवी न रखती हो , कोई ऐसा देवता नहीं था, जिसकी वह पूजा न करती हो और वह सब इसलिए कि ईश्वर प्रताप को जहां कहीं वे हों कुशल से रखें। इन प्रेम–कल्पनाओं ने उस बालिका को और अधिक दृढ सुशील और कोमल बना दिया। शायद उसके चित ने यह निणर्य कर लिया था कि मेरा विवाह प्रतापचन्द्र से हो चुका। विरजन उसकी यह दशा देखती और रोती कि यह आग मेरी ही लगाई हुई है। यह नवकुसुम किसके कण्ठ का हार बनेगा? यह किसकी होकर रहेगी? हाय रे जिस चीज को मैंने इतने परिश्रम से अंकुरित किया और मधुक्षीर से सींचा, उसका फूल इस प्रकार शाखा पर ही कुम्हलाया जाता है। विरजन तो भला कविता करने में उलझी रहती, किन्तु माधवी को यह सन्तोष भी न था उसके प्रेमी और साथी उसके प्रियतम का ध्यान मात्र था–उस प्रियतम का जो उसके लिए सर्वथा अपरिचित था पर प्रताप के चले जाने के कई मास पीछे एक दिन माधवी ने स्वप्न देखा कि वे सतयासी हो गये है। आज माधवी का अपार प्रेम प्रकट हंआ है। आकाशवाणी सी हो गयी कि प्रताप ने अवश्य संन्यास ते लिया। आज से वह भी तपस्वनी बन गयी उसने सुख और विलास की लालसा हृदय से निकाल दी।
जब कभी बैठे–बैठे माधवी का जी बहुत आकुल होता तो वह प्रतापचनद्र के घर चली जाती। वहां उसके चित की थोडी देर के लिए शांति मिल जाती थी। परन्तु जब अन्त में विरजन के पवित्र और आदर्शो जीवन ने यह गाठ खोल दी वे गंगा यमुना की भांति परस्पर गले मिल गयीं , तो माधवी का आवागमन भी बढ गया। सुवामा के पास दिन–दिन भर बैठी रह जाती, इस भवन की, एक-एक अंगुल पृथ्वी प्रताप का स्मारक थी। इसी आँगन में प्रताप ने काठ के घोडे दौड़ाये और इसी कुण्ड में कागज की नावें चलायी थीं। नौकरी तो स्यात काल के भंवर में पडकर डूब गयीं, परन्तु घोडा अब भी विद्वमान थी। माधवी ने उसकी जर्जीरत असिथ्यों में प्राण डाल दिया और उसे वाटिका में कुण्ड के किनारे एक पाटलवृक्ष की छायों में बांध दिया। यहीं भवन प्रतापचन्द्र का शयनागार था।माधवी अब उसे अपने देवता का मन्दिर समझती है। इस पलंग ने पंताप को बहुत दिनों तक अपने अंक में थपक–थपककर सुलाया था। माधवी अब उसे पुष्पों से सुसज्ज्ति करती है। माधवी ने इस कमरे को ऐसा सुसज्जित कर दिया, जैसे वह कभी न था। चित्रों के मुख पर से धूल का यवनिका उठ गयी। लैम्प का भाग्य पुन: चमक उठा। माधवी की इस अननत प्रेम-भाक्ति से सुवामा का दु:ख भी दूर हो गया। चिरकाल से उसके मुख पर प्रतापचन्द्र का नाम अभी न आया था। विरजन से मेल-मिलाप हो गया, परन्तु दोनों स्त्रियों में कभी प्रतापचन्द्र की चर्चा भी न होती थी। विरजन लज्जा की संकुचित थी और सुवामा क्रोध से। किन्तु माधवी के प्रेमानल से पत्थर भी पिघल गया। अब वह प्रेमविह्रवल होकर प्रताप के बालपन की बातें पूछने लगती तो सुवामा से न रहा जाता। उसकी आँखों से जल भर आता। तब दोनों रोती और दिन-दिन भर प्रताप की बातें समाप्त न होती। क्या अब माधवी के चित्त की दशा सुवामा से छिप सकती थी? वह बहुधा सोचती कि क्या तपस्विनी इसी प्रकार प्रेमग्नि मे जलती रहेगी और वह भी बिना किसी आशा के? एक दिन वृजरानी ने ‘कमला’ का पैकेट खोला, तो पहले ही पृष्ठ पर एक परम प्रतिभा-पूर्ण चित्र विविध रंगों में दिखायी पड़ा। यह किसी महात्म का चित्र था। उसे ध्यान आया कि मैंने इन महात्मा को कहीं अवश्य देखा है। सोचते-सोचते अकस्मात उसका घ्यान प्रतापचन्द्र तक जा पहुंचा। आनन्द के उमंग में उछल पड़ी और बोली–माधवी, तनिक यहां आना।
माधवी फूलों की क्यारियां सींच रहीं थी। उसके चित्त–विनोद का आजकल वहीं कार्य था। वह साड़ी पानी में लथपथ, सिर के बाल बिखरे माथे पर पसीने के बिन्दु और नत्रों में प्रेम का रस भरे हुए आकर खडी हो गयी। विरजन ने कहा–आ तूझे एक चित्र दिखाऊं।
माधवी ने कहा–किसका चित्र है , देखूं।
माधवी ने चित्र को घ्यानपूर्वक देखा। उसकी आंखों में आंसू आ गये।
विरजन–पहचान गयी ?
माधवी –क्यों? यह स्वरुप तो कई बार स्वप्न में देख चुकी हूं? बदन से कांति बरस रही है।
विरजन–देखो वृतान्त भी लिखा है।
माधवी ने दूसरा पन्ना उल्टा तो ‘स्वामी बालाजी’ शीर्षक लेख मिला थोडी देर तक दोंनों तन्मय होकर यह लेख पढती रहीं, तब बातचीत होने लगी।
विरजन–मैं तो प्रथम ही जान गयी थी कि उन्होनें अवश्य सन्यास ले लिया होगा।
माधवी पृथ्वी की ओर देख रही थी, मुख से कुछ न बोली।
विरजन–तब में और अब में कितना अन्तर है। मुखमण्डल से कांति झलक रही है। तब ऐसे सुन्दर न थे।
माधवी–हूं।
विरजन–इर्श्वर उनकी सहायता करे। बड़ी तपस्या की है।(नेत्रो में जल भरकर) कैसा संयोग है। हम और वे संग–संग खेले, संग–संग रहे, आज वे सन्यासी हैं और मैं वियोगिनी। न जाने उन्हें हम लोंगों की कुछ सुध भी हैं या नहीं। जिसने सन्यास ले लिया, उसे किसी से क्या मतलब? जब चाची के पास पत्र न लिखा तो भला हमारी सुधि क्या होगी? माधवी बालकपन में वे कभी योगी–योगी खेलते तो मैं मिठाइयों कि भिक्षा दिया करती थी। माधवी ने रोते हुए ‘न जाने कब दर्शन होंगें’ कहकर लज्जा से सिर झुका लिया।
विरजन–शीघ्र ही आयंगें। प्राणनाथ ने यह लेख बहुत सुन्दर लिखा है।
माधवी–एक-एक शब्द से भाक्ति टपकती है।
विरजन -वक्तृतता की कैसी प्रशंसा की है! उनकी वाणी में तो पहले ही जादू था, अब क्या पूछना! प्राण्नाथ केचित पर जिसकी वाणी का ऐसा प्रभाव हुआ, वह समस्त पृथ्वी पर अपना जादू फैला सकता है।
माधवी–चलो चाची के यहाँ चलें।
विरजन–हाँ उनको तो ध्यान ही नहीं रहां देखें, क्या कहती है। प्रसन्न तो क्या होगी।
माधवी –उनको तो अभिलाषा ही यह थी, प्रसन्न क्यों न होगीं?
उनकी तो अभिलाषा ही यह थी, प्रसन्न क्यों न होंगी?
विरजन–चल? माता ऐसा समाचार सुनकर कभी प्रसन्न नहीं हो सकती। दोंनो स्त्रीयाँ घर से बाहर निकलीं। विरजन का मुखकमल मुरझाया हुआ था, पर माधवी का अंग–अंग हर्ष सिला जाता था। कोई उससे पूछे–तेरे चरण अब पृथ्वी पर क्यों नहीं पहले? तेरे पीले बदन पर क्यों प्रसन्नता की लाली झलक रही है? तुझे कौन-सी सम्पत्ति मिल गयी? तू अब शोकान्वित और उदास क्यों न दिखायी पडती? तुझे अपने प्रियतम से मिलने की अब कोई आशा नहीं, तुझ पर प्रेम की दृष्टि कभी नहीं पहुची फिर तू क्यों फूली नहीं समाती? इसका उत्तर माधवी देगी? कुछ नहीं। वह सिर झुका लेगी, उसकी आंखें नीचे झुक जायेंगी, जैसे डलियां फूलों के भार से झुक जाती है। कदाचित् उनसे कुछ अश्रुबिन्दु भी टपक पडे; किन्तु उसकी जिह्रवा से एक शबद भी न निकलेगा।
माधवी प्रेम के मद से मतवाली है। उसका हृदय प्रेम से उन्मत हैं। उसका प्रेम, हाट का सौदा नहीं। उसका प्रेमकिसी वस्तु का भूखा सनहीं है। वह प्रेम के बदले प्रेम नहीं चाहती। उसे अभीमान है कि ऐसे पवीत्रता पुरुष की मूर्ति मेरे हृदय में प्रकाशमान है। यह अभीमान उसकी उन्मता का कारण है, उसके प्रेम का पुरस्कार है।
दूसरे मास में वृजरानी ने, बालाजी के स्वागत में एक प्रभावशाली कविता लिखी यह एक विलक्षण रचना थी। जब वह मुद्रित हुई तो विद्या जगत् विरजन की काव्य–प्रतिभा से परिचित होते हुए भी चमत्कृत हो गया। वह कल्पना-रुपी पक्षी, जो काव्य–गगन मे वायुमण्डल से भी आगे निकल जाता था, अबकी तारा बनकर चमका। एक–एक शब्द आकाशवाणी की ज्योति से प्रकाशित था जिन लोगों ने यह कविता पढी वे बालाजी के भ्क्त हो गये। कवि वह संपेरा है जिसकी पिटारी में साँपों के स्थान में हृदय बन्द होते हैं। 

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रचनाएँ
वरदान
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। 'वरदान' दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्माण के अपने सपने थे और भावी जीवन के निर्धारण के लिए अपनी विचारधारा थी। किन्तु उनकी कल्पनाओं का महल शीघ्र ढह गया। विश्व के महान कथा-शिल्पी प्रेमचन्द के उपन्यास वरदान में सुदामा अष्टभुजा देवी से एक ऐसे सपूत का वरदान मांगती है, जो जाति की भलाई में संलग्न हो। इसी ताने-बाने पर प्रेमचन्द की सशक्त कलम से बुना कथानक जीवन की स्थितियों की बारीकी से पड़ताल करता है। सुदामा का पुत्र प्रताप एक ऐसा पात्र है जो दीन-दुखियों, रोगियों, दलितों की निस्वार्थ सहायता करता है।
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वरदान 1.

7 फरवरी 2022
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वरदान (उपन्यास) मुंशी प्रेमचंद (‘वरदान’ दो प्रेमियों की दुखांत कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले, जिन्होंने तरुणाई में भावी जीवन की सरल और कोमल कल्पनाएं संजोईं, जिनके सुन्दर घर के निर्मा

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2. वैराग्य

7 फरवरी 2022
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मुंशी शालिग्राम बनारस के पुराने रईस थे। जीवन-वृति वकालत थी और पैतृक सम्पत्ति भी अधिक थी। दशाश्वमेध घाट पर उनका वैभवान्वित गृह आकाश को स्पर्श करता था। उदार ऐसे कि पचीस-तीस हजार की वाषिर्क आय भी व्यय को

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4. एकता का संबंध पुष्ट होता है

7 फरवरी 2022
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कुछ काल से सुवामा ने द्रव्याभाव के कारण महाराजिन, कहार और दो महरियों को जवाब दे दिया था क्योंकि अब न तो उसकी कोई आवश्यकता थी और न उनका व्यय ही संभाले संभलता था। केवल एक बुढ़िया महरी शेष रह गयी थी। ऊपर

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5. शिष्ट जीवन के दृश्य

7 फरवरी 2022
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दिन जाते देर नहीं लगती। दो वर्ष व्यतीत हो गये। पण्डित मोटेराम नित्य प्रात: काल आत और सिद्धान्त-कोमुदी पढ़ाते, परन्त अब उनका आना केवल नियम पालने के हेतु ही था, क्योकि इस पुस्तक के पढ़न में अब विरजन का

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6. डिप्टी श्यामाचरण

7 फरवरी 2022
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डिप्टी श्यामाचरण की धाक सारे नगर में छाई हुई थी। नगर में कोई ऐसा हाकिम न था जिसकी लोग इतनी प्रतिष्ठा करते हों। इसका कारण कुछ तो यह था कि वे स्वभाव के मिलनसार और सहनशील थे और कुछ यह कि रिश्वत से उन्हें

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7. निष्ठुरता/निठुरता और प्रेम

7 फरवरी 2022
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सुवामा तन-मन से विवाह की तैयारियां करने लगीं। भोर से संध्या तक विवाह के ही धन्धों में उलझी रहती। सुशीला चेरी की भांति उसकी आज्ञा का पालन किया करती। मुंशी संजीवनलाल प्रात:काल से सांझ तक हाट की धूल छानत

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8. सखियाँ

7 फरवरी 2022
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डिप्टी श्यामाचरण का भवन आज सुन्दरियों के जमघट से इन्द्र का अखाड़ा बना हुआ था। सेवती की चार सहेलियॉ-रूक्मिणी, सीता, रामदैई और चन्द्रकुंवर-सोलहों सिंगार किये इठलाती फिरती थी। डिप्टी साहब की बहिन जानकी

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9. ईर्ष्या

7 फरवरी 2022
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प्रतापचन्द्र ने विरजन के घर आना-जाना विवाह के कुछ दिन पूर्व से ही त्याग दिया था। वह विवाह के किसी भी कार्य में सम्मिलित नहीं हुआ। यहॉ तक कि महफिल में भी न गया। मलिन मन किये, मुहॅ लटकाये, अपने घर बैठा

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10. सुशीला की मृत्यु

7 फरवरी 2022
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तीन दिन और बीते, सुशीला के जीने की अब कोई संभावना न रही। तीनों दिन मुंशी संजीवनलाल उसके पास बैठे उसको सान्त्वना देते रहे। वह तनिक देर के लिए भी वहां से किसी काम के लिए चले जाते, तो वह व्याकुल होने लगत

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11. विरजन की विदा

7 फरवरी 2022
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राधाचरण रूड़की कालेज से निकलते ही मुरादाबाद के इंजीनियर नियुक्त हुए और चन्द्रा उनके संग मुरादाबाद को चली। प्रेमवती ने बहुत रोकना चाहा, पर जानेवाले को कौन रोक सकता है। सेवती कब की ससुराल आ चुकी थी। यहा

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12. कमलाचरण के मित्र

7 फरवरी 2022
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जैसे सिन्दूर की लालिमा से मांग रच जाती है, जैसे ही विरजन के आने से प्रेमवती के घर की रौनक बढ गयी। सुवामा ने उसे ऐसे गुण सिखाये थे कि जिसने उसे देखा, मोह गया। यहां तक कि सेवती की सहेली रानी को भी प्रेम

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13. कायापलट

7 फरवरी 2022
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पहला दिन तो कमलाचरण ने किसी प्रकार छात्रालय में काटा। प्रात: से सायंकाल तक सोया किये। दूसरे दिन ध्यान आया कि आज नवाब साहब और तोखे मिर्जा के बटेरों में बढ़ाऊ जोड़ हैं। कैसे-कैसे मस्त पट्ठे हैं! आज उनकी

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14. भ्रम

7 फरवरी 2022
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वृजरानी की विदाई के पश्चात सुवामा का घर ऐसा सूना हो गया, मानो पिंजरे से सुआ उड़ गया। वह इस घर का दीपक और शरीर की प्राण थी। घर वही है, पर चारों ओर उदासी छायी हुई है। रहनेचाला वे ही है। पर सबके मुख मलिन

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

7 फरवरी 2022
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जब तक विरजन ससुराल से न आयी थी तब तक उसकी दृष्टि में एक हिन्दु-पतिव्रता के कर्तव्य और आदर्श का कोई नियम स्थिर न हुआ था। घर में कभी पति-सम्बंधी चर्चा भी न होती थी। उसने स्त्री-धर्म की पुस्तकें अवश्य पढ

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15. कर्तव्य और प्रेम का संघर्ष

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16. स्नेह पर कर्त्तव्य की विजय

7 फरवरी 2022
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रोगी जब तक बीमार रहता है उसे सुध नहीं रहती कि कौन मेरी औषधि करता है, कौन मुझे देखने के लिए आता है। वह अपने ही कष्ट मं इतना ग्रस्त रहता है कि किसी दूसरे के बात का ध्यान ही उसके हृदय मं उत्पन्न नहीं होत

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17. कमला के नाम विरजन के पत्र

7 फरवरी 2022
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1. ‘प्रियतम, प्रेम पत्र आया। सिर पर चढ़ाकर नेत्रों से लगाया। ऐसे पत्र तुम न लख करो! हृदय विदीर्ण हो जाता है। मैं लिखूं तो असंगत नहीं। यहाँ चित्त अति व्याकुल हो रहा है। क्या सुनती थी और क्या देखती है

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18. प्रतापचंद और कमलाचरण

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प्रतापचन्द्र को प्रयाग कालेज में पढ़ते तीन साल हो चुके थे। इतने काल में उसने अपने सहपाठियों और गुरुजनों की दृष्टि में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली थी। कालेज के जीवन का कोई ऐसा अंग न था जहाँ उनकी प्रत

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19. दुःख-दशा

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सौभाग्यवती स्त्री के लिए उसक पति संसार की सबसे प्यारी वस्तु होती है। वह उसी के लिए जीती और मारती है। उसका हँसना-बोलना उसी के प्रसन्न करने के लिए और उसका बनाव-श्रृंगार उसी को लुभाने के लिए होता है। उसक

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20. मन का प्राबल्य

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मानव हृदय एक रहस्यमय वस्तु है। कभी तो वह लाखों की ओर ऑख उठाकर नहीं देखता और कभी कौड़ियों पर फिसल पड़ता है। कभी सैकड़ों निर्दषों की हत्या पर आह ‘तक’ नहीं करता और कभी एक बच्चे को देखकर रो देता है। प्रत

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21. विदुषी वृजरानी

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जब से मुंशी संजीवनलाल तीर्थ यात्रा को निकले और प्रतापचन्द्र प्रयाग चला गया उस समय से सुवामा के जीवन में बड़ा अन्तर हो गया था। वह ठेके के कार्य को उन्नत करने लगी। मुंशी संजीवनलाल के समय में भी व्यापार

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22. माधवी

7 फरवरी 2022
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कभी–कभी वन के फूलों में वह सुगन्धित और रंग-रुप मिल जाता है जो सजी हुई वाटिकाओं को कभी प्राप्त नहीं हो सकता। माधवी थी तो एक मूर्ख और दरिद्र मनुष्य की लड़की, परन्तु विधाता ने उसे नारियों के सभी उत्तम गु

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23. काशी में आगमन

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ब से वृजरानी का काव्य–चन्द्र उदय हुआ, तभी से उसके यहां सदैव महिलाओं का जमघट लगा रहता था। नगर मे स्त्रीयों की कई सभाएं थी उनके प्रबंध का सारा भार उसी को उठाना पडता था। उसके अतिरिक्त अन्य नगरों से भी बह

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24. प्रेम का स्वप्न

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मनुष्य का हृदय अभिलाषाओं का क्रीड़ास्थल और कामनाओं का आवास है। कोई समय वह थां जब कि माधवी माता के अंक में खेलती थी। उस समय हृदय अभिलाषा और चेष्टाहीन था। किन्तु जब मिट्टी के घरौंदे बनाने लगी उस समय मन

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25. विदाई

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दूसरे दिन बालाजी स्थान-स्थान से निवृत होकर राजा धर्मसिंह की प्रतीक्षा करने लगे। आज राजघाट पर एक विशाल गोशाला का शिलारोपण होने वाला था, नगर की हाट-बाट और वीथियाँ मुस्काराती हुई जान पड़ती थी। सडृक के दो

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26. मतवाली योगिनी

7 फरवरी 2022
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माधवी पहले ही से मुरझायी हुई कली थी। निराशा ने उसे खाक मे मिला दिया। बीस वर्ष की तपस्विनी योगिनी हो गयी। उस बेचारी का भी कैसा जीवन था कि या तो मन में कोई अभिलाषा ही उत्पन्न न हुई, या हुई दुदैव ने उसे

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