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5 प्रेम की बेल

24 दिसम्बर 2021

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 प्रेम है
एक क्षण के अंकुरण
से तैयार लहलहाती बेल,
और इससे बनता मन मस्तमौला,
पी कर प्रेम-प्याला नृत्यरत,
बहती नदी सा सतत और अविरल,
तब प्रेम हो जाता है,
पाने और खोने से मुक्त सदा लब्ध,
इसीलिए,
प्रेम है एक गहरा विश्वास।
अव्यक्त एक मौन ध्वनि।
बंधन एक अदृश्य, अटूट,
संबंध अविभाज्य,एकाकार।
इसीलिए सभी रिश्तो में ज़रूरी है प्रेम।
इसीलिए सभी रिश्तों से ऊपर है प्रेम ।
इसीलिए ईश्वर भी हैं स्वयं प्रेम
जैसे राधे-कृष्ण
और है यह सकल ब्रह्मांड भी प्रेममय
इसीलिए इस सृष्टि के 
कण-कण में बिखरा है प्रेम
कि महसूस करना
इन प्रेम बीजों को 
धरती में हर कहीं, 
अपने आसपास भी
और इनसे उगती प्रेम की बेलों को।

योगेंद्र©

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5.0
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