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2 प्रेम के पल में 

22 दिसम्बर 2021

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कविता:प्रेम के पल में 

 प्रेम के किसी एक पल में 
सहसा उदित होते हैं करोड़ों सूर्य 
सहस्रार चक्र की भांति, 
इसीलिए 
बाद इसके होता है 
आलोकित जीवन पथ
 स्वयं का 
और 
मस्ती का प्याला पिए मानव
 करता आलोकित
 औरों का जीवन भी। 

महाविस्फोट के बाद 
 सूर्य से बने ग्रहों,उपग्रहों के 
परिभ्रमण में भी है
 यही प्रेम तत्व
 इसलिए 
रहते हैं सुरक्षित दूरी पर  
संतुलित,प्रेमपूर्ण और मर्यादित। 

न्याय व धर्म के मूल में
 प्रेम ही है 
कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम 
चल पड़ते हैं, 
सौ योजन समुद्र पार कर 
सीता की खोज में, 
करने विनाश रावण का।

 प्रेम ही जीवन है का संदेश देते कर्तव्यबद्ध कृष्ण
 छोड़ते हैं प्रेममय गोकुल, 
ले राधा से चिर विदा
 पहुँचते मथुरा, करने अंत कंस का।

 सिद्धार्थ त्यागते हैं महल 
सत्य की खोज में, 
और पाकर उसे 
बनते हैं अत्यधिक प्रेमपूर्ण, 
कर प्राणियों से प्रेम 
बिखेरते हैं दुनिया में
 सत्य व धर्म की रौशनी। 

प्रेम के ऐसे क्षण
 होते हैं घटित अब भी,
 ब्रिटिश राज की नींव हिलाते 
बापू के अनशनों के 
सत्य के आग्रह में भी है
 परिणाम,प्रेम के उसी पल के, 
जब मानवता से प्रेम की फूट पड़ती है चिंगारी। 

प्रेम पसरा है सारे ब्रह्मांड में, 
उसके कण-कण में,
प्राणियों में, 
प्रेम है तो है इक चिंगारी, 
इसीलिए,
अभी भी चकोर निहारता है चंद्र को रातभर, 
पक्षी चहचहाते हैं,
भोर होते ही
 और 
अदृश्य हो जाते हैं 
रात के सफर से थककर
 अंबर में चंद्र और तारे, 
दिन निकलते ही, 
जा छिपते हैं सूरज की गोद में, 
और 
इसी वजह से 
 दिन ढलते 
किसी कॉलेज की लाइब्रेरी में  
बांचकर पुस्तकों के हज़ारों पन्ने , 
कोई कहता है किसी से - 
"चलो कैंटीन चलें?
 पीने एक-एक कप चाय!" 

और इसी वजह से ही, 
थकेहारे शाम घर लौटने पर, 
दौड़कर दरवाजे पर पहुंचे 
खिलखिलाते बच्चे को 
अपनी बंद मुठ्ठी दिखाकर, 
पूछता है कोई पिता-
 "बता मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ?"  

योगेंद्र कुमार (कॉपीराइट रचना)  
मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बेहद सटीक और सुन्दर लिखा है आपने सर 👌 मुझे फालो करके मेरी कहानी पढ़कर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

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