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7 :शिकायत छोड़ें, सुख दुख समझें एक समान 

5 जून 2023

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7 :शिकायत छोड़ें, सुख दुख समझें एक समान 

 छात्रावास के बालक पृथ्वी को हर चीज से शिकायत रहती है।मानो उसने शिकायत करने के लिए ही जन्म लिया है।छात्रावास में उसे कोई भी असुविधा हुई तो शिकायत।नल में पानी नहीं आ रहा,तो "कुछ समय में मिल जाएगा" की सूचना मिलने के बाद भी शिकायत। पढ़ने के समय भी उसका ध्यान इसीलिए विचलित रहता है।स्वयं की पढ़ाई पर ध्यान देने के बदले वह"और बच्चे क्या कर रहे हैं",इस पर अधिक ध्यान देता है। गर्मी में उसे गर्मी लगने की शिकायत है।     यह ठंड के दिनों की कहानी है।ठंड के दिन हैं तो उसकी शिकायत प्रकृति में पड़ रही कड़ाके की ठंड से लेकर उसके अनुसार सूर्यदेव के आलस्य तक से है।आचार्य सत्यव्रत ने ठंड का सामना करने के लिए छात्रावास में पर्याप्त प्रबंध करवा रखा है। पृथ्वी है कि उसे अपने लिए अलग से सुविधा चाहिए।छात्रावास के एक कमरे में चार बालक रहते हैं।वहां प्रत्येक विद्यार्थी के लिए बिस्तर,पढ़ने की टेबल,एक टेबल लैंप,सामान व किताबें रखने के लिए अलमारी और ठंड के दिनों में एक गीजर की व्यवस्था है,ताकि कक्ष में गरम पानी मिल सके। कुल मिलाकर छात्रावास में न अधिक सुविधाएं हैं और न अभाव की स्थिति है।वहीं पृथ्वी है कि उसे किसी भी स्थिति में संतुष्टि नहीं होती है।  आज की सांध्य चर्चा में पृथ्वी ने आचार्य से शिकायत के स्वर में कहा:-  पृथ्वी: आचार्य जी,भीषण भीषण ठंड पड़ रही है। सुबह उठकर योगाभ्यास के लिए जाना मुझसे तो संभव नहीं है । मुझे तो इस ठंड के कारण बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है गुरुदेव कि ठंड का प्रकोप कम हो जाए?  आचार्य ने मुस्कुराते हुए कहा: -  आचार्य सत्यव्रत : शीत ऋतु में वातावरण का ठंडा होना प्रकृति की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है,पृथ्वी।हमें इसे सहन करना ही होगा।  गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से अध्याय 2 के 14 वें श्लोक में कहा भी है:-  हे कुन्तीपुत्र!शीत- उष्ण और सुख-दुख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग का प्रारम्भ और अन्त होता है।उनकी उत्पत्ति होती है तो विनाश भी होता है।वे अनित्य हैं।इसलिए,हे भारत !उनको तुम सहन करो।  पृथ्वी:आचार्य जी,आपके कहने का मतलब यह है कि चाहे जितनी ठंड पड़े,हम लोग इसे सहन कर लें।यहां तक कि हम लोग ठंड से बचाव के लिए पर्याप्त व्यवस्था भी न करें।  आचार्य सत्यव्रत: नहीं पृथ्वी! तुम ठीक तरह से नहीं समझ पाए। ठंड को सहन करने का मतलब यह नहीं है कि कोई व्यक्ति शीत लहर में भी बिना गर्म कपड़ों के रहे और बाहर निकल जाए। जैसे वर्षा से बचाव के लिए छाता जरूरी है,उसी तरह से ठंड से बचाव के अपने सुरक्षा उपाय तो अपनाने ही होंगे।हां, हमें दृष्टिकोण को बदलना होगा। हमें अपने ध्यान को बार-बार इस अनुभूति से दूर ले जाना होगा कि बहुत ठंड पड़ रही है और मैं ठिठुर रहा हूं।  पृथ्वी: तो क्या आचार्य जी "ठंड नहीं पड़ रही है", ऐसा सोच लेने मात्र से ठंड कम हो जाएगी?  आचार्य सत्यव्रत: नहीं पृथ्वी, ठंड तो कम नहीं होगी लेकिन उस ठंड को सहन करने की तुम्हारी क्षमता बढ़ जाएगी। फिर यह भी तो सोचो कि देश के अनेक लोगों के पास आज भी पर्याप्त गर्म कपड़े उपलब्ध नहीं हैं।अत्यधिक ठंड के उस चिंतन ने तुम्हें तुम्हारे स्वाभाविक कर्मों को करने से रोक दिया है,इसलिए तुम मौसम की एक अवस्था को मुसीबत के रूप में ले रहे हो। यह एक तरह का आलस्य ही है।  पृथ्वी: समझ गया गुरुदेव।  आचार्य सत्यव्रत ने उपस्थित श्रोताओं के समक्ष अब अगले अर्थात 15 वें श्लोक का दार्शनिक अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा:-  यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।  समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते।।2/15।।  इसका अर्थ है,हे पुरुषश्रेष्ठ ! दुख और सुख में समान भाव से रहने वाले धीर पुरुष को इंद्रियों और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते हैं।ऐसा व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी होता है।  वास्तव में यह बहुत कठिन होगा कि दुःख और सुख को एक जैसा मान लिया जाए।जीवन में सुख और दुख दोनों का प्रवाह होता है।यह स्वाभाविक है कि सुख का प्रसंग आने पर हमारा मन खुशी से झूम उठता है और दुख आने पर हम शोक और कभी-कभी अवसाद में डूब सकते हैं।विषयों में प्रबल आकर्षण होता है और हमारी इंद्रियां उसके अभिमुख होती हैं।आकर्षण का एक कारण अलग-अलग चीजों के प्रति अवस्थाजन्य भी होता है।बचपन में तितलियों,पत्तियों, रंगबिरंगे फूलों और पशुपक्षियों को देखकर प्रसन्न होने वाला मन किशोरावस्था में अपने स्वतंत्र या स्वायत्त अस्तित्व की तलाश करता है तो यौवन में अधिकारभाव चाहता है। अगर उम्र के उत्तरार्ध में मनुष्य ईश्वर या उस परम सत्ता; जिसे वह अपनी-अपनी आस्था के अनुसार अलग-अलग नामों से जानता है की ओर न मुड़े, तो फिर जीवन में सारी प्राप्त चीजों के छूटने का भाव पैदा होगा और यह उसके अविचलन, दुख व अशांति का कारण बनने लगता है।अतः यह कठिन अवश्य है लेकिन हम सुख और दुख दोनों को समान मानकर अधिक से अधिक संतुलित रहने की कोशिश करें। हम यह सोचें कि दुख और सुख दोनों ही स्थायी नहीं हैं और आते-जाते रहते हैं।ऐसे में इंद्रियों व विषयों के संयोग हमें व्याकुल नहीं करेंगे।


  डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय  
deena

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बहुत बढ़िया विश्लेषण मनुष्य को हर तरह की परीक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए

5 जून 2023

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रचनाएँ
भगवान श्रीकृष्ण उवाच
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परिचय श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है। इस धारावाहिक में लेखक द्वारा अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों की साहित्यिक प्रस्तुति है,जिसमें कहीं-कहीं लेखक की रचनात्मक कल्पना और भक्तिभाव भी भरे हैं।यह धारावाहिक -"भगवान श्री कृष्ण उवाच" भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्रों को ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण रचनात्मक लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रतिदिन प्रस्तुत करने का प्रयत्न है, कृपया पढ़िएगा अवश्य…….✍️🙏
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1:रोजमर्रा के छोटे-छोटे 'मोह' से करें किनारा

29 मई 2023
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:-कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन।।2/2।।इसका अर्थ है,"हे अर्जुन! इस विषम समय पर तुम्

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2 : सफलता के लिए आवश्यक है मनोबल

31 मई 2023
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सफलता के लिए आवश्यक है मनोबल गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है:-क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप।(2/3)। अर्थ

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3 : आवश्यकता से अधिक सोच-विचार और चिंतन से नकारात्मकता के प्रवेश का डर

31 मई 2023
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3 : आवश्यकता से अधिक सोच-विचार और चिंतन से नकारात्मकता के प्रवेश का डरगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है:- अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिता

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4:आप और हम सब हर युग में रहेंगे

1 जून 2023
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आप और हम सब हर युग में रहेंगे भारतवर्ष का भावी इतिहास तय करने वाले निर्णायक युद्ध के पूर्व ही अर्जुन को चिंता से ग्रस्त देखकर भगवान श्री कृष्ण ने समझाया कि मनुष्य का स्वभाव चिंता करने वाला

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5 :शरीर की अवस्था में बदलाव स्वीकार करें

2 जून 2023
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अवस्था में बदलाव स्वीकार करें हजारों वर्ष पूर्व श्री कृष्ण के मुखारविंद से कही गई गीता आज भी उसी उत्साह के साथ पढ़ी और सुनी जाती है।आधुनिक संदर्भों में इसके और नए-नए उपयोगी

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6:सुख - दुख हैं अस्थाई, इनमें संतुलित रहें

3 जून 2023
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6 सुख और दुख हैं अस्थायी, इनमें संतुलित रहें श्री कृष्ण प्रेमालय में बने कृष्ण मंदिर में रोज शाम को सांध्य पूजा और आरती के बाद संक्षिप्त धर्म चर्चा होती है। आचार्य सत्यव्रत की ज्ञान चर्चा मे

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7 :शिकायत छोड़ें, सुख दुख समझें एक समान 

5 जून 2023
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7 शिकायत छोड़ें, सुख दुख समझें एक समान छात्रावास के बालक पृथ्वी को हर चीज से शिकायत रहती है।मानो उसने शिकायत करने के लिए ही जन्म लिया है।छात्रावास में उसे कोई भी असुविधा हुई तो शिकायत।

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8 :जीत सत्य की होती है

6 जून 2023
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जीत सत्य की होती हैपृथ्वी द्वारा उठाए गए प्रश्न और उसके समाधान को विवेक ने कल की ज्ञान चर्चा में ध्यानपूर्वक सुना था।वह विचार करने लगा कि दुनिया में जो भी घटित होता है, वह वही होता है जो उसे किस

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9: आत्मा में है जादुई शक्ति

7 जून 2023
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जीवन सूत्र 9 आत्मा में है जादुई शक्तिवास्तव में वह एक परम सत्ता ही अविनाशी तत्व है,जिसे लोग अपनी-अपनी उपासना पद्धति के अनुसार अलग-अलग नामों से जानते हैं।मनुष्य को प्राप्त जीवन, उसके प्राण का अस्तित्व,

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10: नाशवान शरीर को सुविधाभोगी ना बनाएं

8 जून 2023
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जीवन सूत्र 10 नाशवान शरीर की जरूरत से ज्यादा देखभाल न करें परमात्मा के एक अंश के रूप में शरीर में आत्मा तत्व की उपस्थिति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हम इसके माध्यम से उस परमात्मा से जुड़ सकते हैं

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11. अंतरात्मा होता है सच का अनुगामी

9 जून 2023
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जीवन सूत्र 11: अंतरात्मा सच का अनुगामी होता हैभगवान श्री कृष्ण और अर्जुन में चर्चा जारी है।यह संसार नाशवान है और अगर कोई चीज नश्वर है तो वह है परमात्मा तत्व जो सभी मनुष्यों के शरीर में स्थित है।(श्लोक

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12 :आपके भीतर ही है चेतना,ऊर्जा और दिव्य प्रकाश

10 जून 2023
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12 :आपके भीतर ही है चेतना,ऊर्जा और दिव्य प्रकाश भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन में चर्चा जारी है। जो इस आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसको मरा समझता है वे दोनों ही नहीं जानत

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13: कभी अप्रिय निर्णय भी हो जाते हैं अपरिहार्य

12 जून 2023
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13: कभी अप्रिय निर्णय भी हो जाते हैं अपरिहार्य(भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन में चर्चा जारी है।)यह आत्मा कभी किसी काल में भी न जन्म लेता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर गायब हो जाने वाला है।यह आत

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14.सुंदरता के बदले आंतरिक प्रसन्नता और सक्रियता है जरूरी

13 जून 2023
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14.सुंदरता के बदले आंतरिक प्रसन्नता और सक्रियता है जरूरीइस लेखमाला में मैंने गीता के श्लोकों व उनके अर्थों को केवल एक प्रेरणा के रूप में लिया है।यह न तो उनकी व्याख्या है न विवेचना क्योंकि मुझमें मेरे

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15. आपके पास ही है अक्षय शक्ति वाली आत्मा

14 जून 2023
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15.आपके पास ही है अक्षय शक्ति वाली आत्मा, आत्मशक्ति का लोकहित में हो विस्तार गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जिज्ञासु अर्जुन से कहा है:- नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

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16. एकाग्र होने और पूर्ण मनोयोग रखने पर प्राप्त होती है आत्मा से सूझ और शक्ति  

16 जून 2023
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16. एकाग्र होने और पूर्ण मनोयोग रखने पर प्राप्त होती है आत्मा से सूझ और शक्ति गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा की शक्तियों की विवेचना करते हुए आगे कहा है:- अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक

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17. इस जन्म की पूर्णता के बाद एक और नई यात्रा,कुछ भी स्थायी न मानें इस जग में  

17 जून 2023
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जीवन सूत्र 17. इस जन्म की पूर्णता के बाद एक और नई यात्रा,कुछ भी स्थायी न मानें इस जग में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन की चर्चा जारी है। आत्मा की शक्तियां दिव्य हैं और यह हमारी देह में साक्षात

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18: भीतर की आवाज की अनदेखी न करें

18 जून 2023
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18:भीतर की आवाज की अनदेखी न करें इस लेखमाला में मैंने गीता के श्लोकों व उनके अर्थों को केवल एक प्रेरणा के रूप में लिया है।यह न तो उनकी व्याख्या है न विवेचना क्योंकि मुझमें मेरे आराध्य भगवान क

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19: सारे कार्य महत्वपूर्ण हैं, कोई छोटा या बड़ा नहीं

19 जून 2023
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19:कार्य सारे महत्वपूर्ण हैं, कोई छोटा या बड़ा नहीं गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि। धर्म्याद्धि युद्धाछ्रेयोऽन्यत्क्षत्र

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20. वीरों के सामने ही आती हैं जीवन में चुनौतियां

20 जून 2023
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20:वीरों के सामने ही आती हैं जीवन की चुनौतियां गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- यदृच्छया चोपपन्नं स्वर्गद्वारमपावृतम्। सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम

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21.चुनौतियों में जन सेवा धर्मयुद्ध के समान

22 जून 2023
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21.चुनौतियों में जन सेवा धर्मयुद्ध के समान गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- अथ चैत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि। ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हि

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22.अपयश से बचने साहसी चुनते हैं वीरता  

23 जून 2023
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22.अपयश से बचने साहसी चुनते हैं वीरता गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:- अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्। संभावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।।2/34।।

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23 आत्म सम्मान की सीमा रेखा की रक्षा करें

24 जून 2023
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23 आत्म सम्मान की सीमा रेखा की रक्षा करें भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है: - अवाच्यवादांश्च बहून् वदिष्यन्ति तवाहिताः। निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम्।(2/3

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24. आगे बढ़ें तो सारे विकल्प उपलब्ध होते रहेंगे

27 जून 2023
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24. आगे बढ़ें तो सारे विकल्प उपलब्ध होते रहेंगे अर्जुन श्रीकृष्ण की इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि अगर वे युद्ध से हटते हैं तो उन्हें "अर्जुन कायरता के कारण युद्ध से हट गया" ऐसे निंदा और अपमान

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