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आदत ......

3 जुलाई 2015

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हमे आदत है मुस्कुराने की , पर वो क्या जाने , दर्द है मेरे सीने में , लेकिन हसी है लबो पर , इस हंसी की कीमत तो नहीं , पर जिंदगी जीने का , नयी एहसास है मेरी , निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी की अन्य किताबें

रमेश कुमार सिंह

रमेश कुमार सिंह

अच्छी रचना!!

9 जुलाई 2015

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

धन्यबाद आप सबो को

4 जुलाई 2015

पुष्पा पी. परजिया

पुष्पा पी. परजिया

सुन्दर रचना ... बधाइयाँ .....

3 जुलाई 2015

आशीष श्रीवास्‍तव

आशीष श्रीवास्‍तव

शायद "नया अहसास है मेरा "

3 जुलाई 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

सुन्दर कविता....बधाई !

3 जुलाई 2015

शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

जीवन की पीड़ा सहते हुए आगे बढ़ते रहना ही तो जीवन है ! सुन्दर कविता....बधाई !

3 जुलाई 2015

मंजीत सिंह

मंजीत सिंह

जी हां ... हसी की कोई कीमत नहीं होती .... short but nice ..

3 जुलाई 2015

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दहेज प्रथा

5 अप्रैल 2015
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•••••••••••••••••••• आजकल नारियों पर इतना अत्याचार देखने को मिल रहा है कि कहा नहीं जा सकता।कहीं नारियां दहेज को लेकर झेल रही हैं तो कहीं कुछ और,लेकिन आज मैं विशेष रूप से दहेज़ पर ही लिखने पर मजबूर हूँ। सरकार ने दहेज प्रथा को रोकने के लिए कई कनून चलाए।कहा गये वो कानून,वो बसएक दिन के ल

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लड़कियों पर अत्याचार

10 अप्रैल 2015
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लड़कियों पर क्यों होते अत्याचार , मिलती है प्रताड़ना हर कदम पर , गलती चाहे जिसकी भी हो पर , सबकुछ सहन उसे ही करना पड़ता | यह दुनिया भी अजीब सी हो गयी , सब देखते हुए अनजान बन गयी , उसकी भावनाओ को कोई नहीं समझता , लगता है सबकी मर चुकी है भावना | सुनते नहीं आवाज कोई उसकी , वो किसे सुनाये

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भ्रष्टाचार

13 अप्रैल 2015
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भ्रष्टाचार की तो अंत ही न दिखती , जहां देखो वहाँ मूहँ फाड़े खड़ी , मैंने भी आज वही द्देखि , बीच बाजार में खड़ी हुई | किसी की नजर ही न पड़ती , पड़ती भी तो झुक जाती , आखिर क्या है इसमें वो , सामने देखे पर कोई न बोलें | आखिर अब समझ में आई , भ्रष्टाचार कोई और नहीं , ये तो हम और आप है

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तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे।

17 अप्रैल 2015
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तुम मेरे हो और मेरे ही रहोगे। हमें छोड़ कर आखिर कहाँ जाओगे।

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कन्या भ्रूण हत्या

18 अप्रैल 2015
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कन्या भ्रूण हत्या एक बड़ा घिनौना अपराध है।यह करके मनुष्य आज और कल दोनों को अंधकार मय बना रहा है।उस अबोध शिशु का क्या अपराध जिसे इस धरा पर पैर रखने से पहले ही मार दिया जा रहा है।आखिर उसने एैसा क्या कर दिया जिससे लोग उसके जान के दुश्मन बन गये। उसका यही अपराध था न कि वो लड़की पैदा होने वाली थी

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मित्रता

18 अप्रैल 2015
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मित्रता एक ईश्वरीय देन है,जो दो समान विचारधारा वाले व्यक्तियों के बीच स्वतः स्थापित हो जाती है।जाती,धर्म,रंग,रूप,एवं धन मित्रता के मार्ग में बाधक नहीं होते हैं।अगर ऐसा होता तो कृष्ण और सुदामा,राम और सुग्रीव आदि में मित्रता नहीं होती।मित्रता स्थापित होने के लिये दोनों के बीच खोटा स्वार्थ भी नहीं होना

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माँ से बढकर कुछ नहीं.....

20 अप्रैल 2015
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•••• माँ से बढकर कुछ नहीं,क्या पैसा क्या नाम। चरण छुअे से हो जाये, तीरथ चारों धाम। माँ शब्द बड़ा ही पावन और मनभावन है ये गंगा से निर्मल ,आकाश से भी विस्तृत तथा सागर से भी गहरा है।हमारी भारतीय संस्कृति में। माँ को नारी रूप में देवी स्वरूपा माना गया है। माँ के हृदय में ममता का सागर उमड़ता रहता है स्नेह

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प्रसन्नता का रहस्य।

27 अप्रैल 2015
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प्रसन्नता मनुष्य के सौभाग्य का चिन्ह है।प्रसन्नता एक अध्यात्मिक वृत्ति है,एक दैविय चेतना है सत्य तो यह है कि प्रमुदित मन वाले व्यक्ति के पास लोग अपना दुख दर्द भूल जाते हैं।जीवन में कुछ न होने पर भी यदि किसी का मन आनंदित है तो वह सबसे सम्पन्न मनुष्य है।आन्तरिक प्रसन्नता के लिए किन्हीं बाहरी साधन की आ

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लड़की

29 अप्रैल 2015
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लड़की होना कोई जुर्म नहीं है लड़की होना कोई अपराध नहीं। लड़की पर ये आत्याचार ये तो कोई इंसाफ़ नहीं। लड़की की ये भोली सुरत। जिस दिन ज्वाला बन जायेगी। इस अग्नि में जलने से दुनिया बच नहीं पायेगी। ----------निवेदिता चतुर्वेदी

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सिर्फ तुम्हीं हो।

8 मई 2015
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तुम्हीं हो सिर्फ तुम्हीं हो। न जाने कब तक रहोगे। हर यादों में हर वादों में। हर पलो में हर लम्हों में। तुम्हीं हो सिर्फ तुम्हीं हो। अंधेरे में उजालों में। हर ख्वाबों में हर सपनों में। जब देखो तब तुम्हीं हो। तुम्हीं हो सिर्फ़ तुम्हीं हो। छोड़ न जाना मुझे कभी। नहीं तो तन्हां हो जाऊँगी। तेरे बगैर हमारी।

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---अबला---

9 मई 2015
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हाय रे अबला तेरी यही कहानी, कबतक ऐसी बनी रहेगी तेरी लाचारी, कुछ तो करना ही होगा चाहे वो हो मनमानी, चुप बैठने से नहीं होगा दूर ये कहानी। आखिर सबकी आँखों में क्यों बसीं है नारी, बन्द करो ये अपना सब नहीं तो पड़ेगा भारी, ले ज्वाला की रूप यदि भड़क उठेगी नारी, तब तो मिट जायेगा भ्रष्टाचार की सारी कहानी, हाय

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बेटीयाँ

11 मई 2015
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सच में बेटीयाँ परायी होती हैं | आज यहाँ तो कल वहाँ होती हैं | कभी सुख तो कभी दुःख में होती हैं | लेकिन सबकी आँखों की तारा होती हैं | सच में बेटीयाँ परायी होती हैं | जिस माँ ने बेटी को जन्म दी | आज उन्ही हाथों से बिदाई की | जिस घर आँगन में खेली कूदी | आज उसी घर से परायी हुई | सच में बे

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कम्पन

12 मई 2015
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बार - बार हां जी बार -बार | क्यों हो रहा हैं कम्पन धरा पर| लगता हैं संतुलन बिगड़ गयी | हमारी प्रकृति का | धरती माँ भी सह नही पा रही पापो को | बुरे लोगो का बात कौन करे | अच्छे लोग भी पिसे जायेंगे | इस भूकम्प रूपी चक्की में | अभी भी वक्त बचा हुआ हैं | विनती करे उस धरती माँ से |

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किताबों का कहना हैं |

13 मई 2015
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किताबें कुछ कहना चाहती हैं | किताबों में चिड़ियाँ चहचहाती हैं | किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं | किताबों में झरने गुनगुनाते हैं | परियों के किस्से सुनाते हैं | सबके सब मन बहलाते है | किताबों में राकेट का राज हैं | किताबों में साइंस की आवाज हैं | किताबों का कितना बड़ा संसार हैं | संसार की स

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यादें

14 मई 2015
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आज आपकी यादों में आँखें भर आई ............. क्या कहुँ क्या सुनु कुछ समझ न आयीं | बीतें हुए पलों को याद करके उदासी छायीं | जहाँ भी मैं रहती वहाँ अकेलापन महशुस करती | आज आपकी यादों ...................... याद आती है वो पलें जब साथ रहा करती थी | साथ ही साथ हँसा, बोला ,खेला,करती थी | कभी भी आप

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कर्मपथ

15 मई 2015
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आज की इस अब्यवस्थित ब्यवस्था में | हर ब्यक्ति ब्यवस्थित होना चाहता हैं | परन्तु उसकी चाह में आती हैं बाधाएं| फिर भी वह निरन्तर संकल्पित रहता है | जब वह करता है किसी की भलाई | बदले में मिलती है उसे बुराई | कुछ क्षण के लिए वह होता है आहात | तभी अंतरात्मा देती है उसे आवाज | चल उठ

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जेठ की धूप

20 मई 2015
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जेठ की धूप सही नहीं जाती | चैन न मिलता भरी दुपहरी | गर्मी से ब्याकुल जड़ -चेतन | ठंढी छाव को तरसते सभी | सूरज की किरणे भी , लगे आग बरसाने | पेड़ की झुकी डाली भी , लगे गर्म हवा बहाने | धरती भी अब तप्त हो चली | पशु - पक्षी भी बेचैन हो गए | नदी का पानी अब सुख चले | अब चारो तरफ हाहाकार म

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आशा

21 मई 2015
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आपसे मिले तो आशा हुई | बिछड़े तो फिर निराशा हुई | लेकिन हाँ , एक बात तो हुई | पहले वाली ख़ुशी फिर से मिल गयी | भले एक दो पल के लिए ही | आपसे मिल कर ख़ुशी तो हुई | आप भी उस दिन के इंतजार में थी | कब हो मुलाकात तुमसे , बेचैन थी | फिर तो वही हुआ जो होना था | और क्या ,फिर से हम दोनों को मिलना था

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बेटा-बेटी में भेदभाव

22 मई 2015
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मैं आज तक इस बात को अपने मन में ही सोचती और समझती थी , लेकिन आज इस बात को कलम के सहारे लिखने को मजबूर हो गयी | ये बात कोई और नहीं , ये बात हमारे समाज में लड़कियों क प्रति फैले कुविचार और अपराध हैं | आखिर लड़कियों में ऐसा क्या है या ऐसा क्या नहीं है जिसके कारन उसे समाज में लड़को से निचा दिखाया जाता है

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एक बार ...

3 जून 2015
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एक बार ....

3 जून 2015
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बस एक बार माँ , मुझे भी इस धरा पैर आने दो | मेरी अपनी जिंदगी , इस जहां में जीने दो | क्या कसूर है मेरी , जो मुझे मारना चाहती | मैं भी तुम्हारे जैसा , एक दिन हो जाउंगी | अभी तो मैं कलियाँ हूँ , कलियाँ को फूल जाने दो| मैं अपने दिलों में , उ

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क्या लिखूं ......

4 जून 2015
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क्या लिखू क्या ना लिखूं , मेरी कलम ही रुक जाती | जब से तुम बिछड़ी , लिखना बंद सी हो गयी | लेखनी भी होती तो , तुम पर ही आ रूकती | क्या करू मैं समझ न पाती| मेरी समस्या को दूर , तुम्ही तो करती | अब दिन रात गुजर रहा , तुम्हारे याद और इंतज़ार में | कभी सोचा न था की , ऐसी सजा हमे भी मिलेग

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हरे भरे वृक्ष .........

5 जून 2015
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ये हरे भरे वृक्ष हमे , सदा यु ही भाते हैं | अपने बड़े -बड़े टहनियों से , ठंढी हवा बहाते हैं | फलों से झुकी डाली , नित नया सजाते हैं | अपने लिए तो कुछ नहीं , पराये के लिए सब करते हैं | फिर भी इसका दुसमन , क्यों बना हुआ है इंसान | इसकी कटाई कर , क्यों ज

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याद ............

9 जून 2015
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मैं तुम्हे जितना याद करती , क्या तुम भी याद किया करती हो | ऐसे याद करो या न करो , उस क्षण तो याद जरूर करोगी | जब अँधेरी रातों में तू , तनहा - तनहा सी रहोगी | उस अँधेरी रात के , सपनो में तू याद करोगी | मेरे भी यादों के सपनो में , तुम भी आया कर

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प्यासी -प्यासी धरती .....

12 जून 2015
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आस लगी है सारी नगरी , कब आएगी वर्षा रानी | इस प्यासी -प्यासी धरती पर, कब बरसाओगी बूंदा- बूंदी | मक्खी -मच्छर भिन्न -भिन्न करते , गर्मी वाली सता आखरी | अपनी ताकत दिखा जगत को , गायब कर दो धुप सुनहरी | मन की पीड़ा अब तुम समझो , चैन न मिलता इस दुपहरी | बहा दो

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शत -शत बार उन्हें प्रणाम ....

15 जून 2015
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शत -शत बार उन्हें प्रणाम , जो करेगा गरीबो का सम्मान | वही होगा सच्चा इंसान , ईश्वर करेगा पूरा अरमान | रोता -गाता पथ पर चलता , मांगता सहानुभूति का प्रसाद | कोई देता गाली तो कोई देता दान , कोई न करता उसका सम्मान | चिल्लाता रहता बाबू -भैया , किसी को न सुनाता उसकी आवाज | द

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वर्षो से ........

22 जून 2015
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वर्षो से तमन्ना लिए बैठी , अब करू बाते दिल की , मगर किसके साथ करू बातें जुबानी , यही सोच ली मदद कलम की , कहाँ से बातें शुरू करू मैं , उसी सोच में डूब पड़ी , उसकी सुनु या अपनी सुनाऊ , या पहले हाले गम बताऊ , जो कह न सकी थी बात उस दिन , क्या

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उत्सव ...

24 जून 2015
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मैं अपने जीवन का उत्सव , किस रूप में मनाउ, जब से तुम दूर गयी मेरे से , मेरी जिंदगी बेगानी सी लगती है, मैं अब इस कदर तन्हा हो गयी , कि , ख़ुशी मिलने पर भी , ख़ुशी का इजहार न कर पाउ, तुम्हारी वो प्यार अनोखी थी , जो प्यार हमे दिया करती थी , तेरे ही वि

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नारी .....

25 जून 2015
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नारी को मत समझो अबला , नारी सदा रही हैं सबला , क्यों पड़े हो इसके पीछे , आपने को सम्भालो जरा , नित्य नए -नए करते हो तांडव , इस तांडव से बच नही पाओगे , अरे ये वही नारी हैं , जिसके कारण लंका का विनाश हुआ , उस सीता माँ का रूप हैं नारी , उस द्रोपती को याद करो , जिसक

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बादल ...(बाल कविता )

27 जून 2015
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काले बादल नभ में गरजते , रिमझिम -रिमझिम बरसते बादल , इस तप्त धरती को , शीतलता प्रदान करते बादल , इन बूंदा बूंदी फुहारो में , बच्चे नहाते आँगन में , शोर मचाकर , धूम मचाकर , मस्ती करते आँगन में , हाथ जोड़ कर विनती करते , बार -बार तू आना सावन में , तेरा आना अच्छा लगता , जै

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बेटियां .......

3 जुलाई 2015
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भारत की बेटियों का अलग पहचान है | सब तो कहते अबला लेकिन वो तूफान है | समय- समय पर काली दुर्गा की अवतार है | घर -घर में लक्ष्मी बन देती सबको सम्मान है | प्रीति करने में राधा मीरा की नाम है | कठिन परिस्थिति में में अग्नि परीक्षा देने को तैयार है चूड़ी पहनने वाले हा

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वर्षा ......

3 जुलाई 2015
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ऋतुओ की रानी है वर्षा , रिमझिम -रिम्झिन बरसती वर्षा , चारो तरफ हरियाली छायी , मौषम में खुशिहाली लायी , खुश होती तो भर देती , नदी तालाब में पानी वर्षा , गुस्सा में बाढ़ बनकर, करने लगती मनमानी वर्षा | निवेदिता चतुर्वेदी

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आदत ......

3 जुलाई 2015
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हमे आदत है मुस्कुराने की , पर वो क्या जाने , दर्द है मेरे सीने में , लेकिन हसी है लबो पर , इस हंसी की कीमत तो नहीं , पर जिंदगी जीने का , नयी एहसास है मेरी , निवेदिता चतुर्वेदी

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मेरे सपने ....

4 जुलाई 2015
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काँटों भरी राहो पर फूल बिछाते चलूँ | अपने दुर्गम मार्ग को सुलभ बनाते चलूँ | अपने वाणी में मधुरस घोलते चलूँ | ये है मेरे सपने | अपने कर्तब्य से कभी विमुख न हूँ | सदा कर्तब्यनिष्ठ मैं बनी रहूँ | कभी किसी का दिल ना दुखाऊ | ये है मेरे सपने | सुख -दुःख मे

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सदा अपने चरण -कमल की गुरुदेव भक्ति मुझे दे दो |

31 जुलाई 2015
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सदा अपने चरण-कमल की गुरुदेव भक्ति मुझे दे दो!!

31 जुलाई 2015
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सदा अपने चरण -कमल की गुरुदेव भक्ति मुझे दे दो | मेरा सम्पूर्ण जीवन अपनी भक्ति में ही लगा दो | संसार रूपी माया से अब तुम मुझे छुड़ा दो | मेरा यहाँ कुछ नहीं यह अटल ज्ञान मुझे दे दो | यह जीवन अनमोल है इसे ब्यर्थ न होने दो | मेरा तन -मन- धन सब परमार्थ में ही लगा दो | जीवन भर भटकता है ये जीव सुख की

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विछड़ गये

5 अगस्त 2015
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मनमानी

14 अगस्त 2015
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लोग अपने कर्तव्य से क्यो विमुख हो जाते है,भूल जाते है वो अपनी सारा कर्तव्य जो उसे निभानी होती है जैसे ही उसे मिल जाती है उसकी हाथो मे वो सता फिर वो करने लगते है अपनी वही मनमानी किसी भी क्षेत्र मे मिलती है यही देखने को हम. भी वही देखे है जो चलती आ रही सदियो से कब तक चलती रहेगी ए सबकी अपनी मनमानी

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वो डायरी

14 अगस्त 2015
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वो डायरी...आज खोज रही मै उस पुरानी डायरी को जिस डायरी मे संजोयी थीअपनी पुरानी यादेंमन व्याकुल पढने को थी उन सारी बातो को जिसे सुनहरे अछरो मे मै लिख दी थी.ओह आज मिल गया मेरी पुरानी डायरी जिसे वर्षो से ढुढ रही छान मारी सारी अलमारी वाह क्या खुब लिखा हुआ है इस डायरी मे अब कहॉ वो जमाना कहॉ प्यार. कहॉ

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माँ

18 अगस्त 2015
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तेरी कमी खलती रहती है , ऐसे तुम साथ तो नही ,पर मन से दुर भी नही ,तेरी ममतामयी ऑचल हमेशा , मेरे सरो के उपर सदा ही रहता है , तेरे ही आर्शीवाद से आगे बढ रही हूँ, तुम तन्हा हो मेरे विन, पर मेरी तन्हाई को भी समझती हो मेरी हर कामयाबी मे तुम साथ हो तेरी ही मुखडा हर तरफ नजर आती है मै खामोश हूँ क्योकि विवशत

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छाए बादल

18 अगस्त 2015
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आसमान मे छाए बादल देख , बचपन. की याद आती है ,कैसे झुम उठते थे सब ,जब वर्षा होने लगती थी , संगी साथी मिल सब ,नहाने मे लग. जाते थे ,आपस मे मिलजुल कर ,खुब. मतवाले रहते थे ,नही किसी का परवाह रहता,नही किसी का डर ,सब मिलजुल कर ही ,खुब. मस्ती करते थे ,बचपन का जमाना , होता ही बहुत प्यारा है, ......निवेदिता

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वो डायरी

18 अगस्त 2015
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वो डायरी...आज खोज रही मै उस पुरानी डायरी को जिस डायरी मे संजोयी थीअपनी पुरानी यादेंमन व्याकुल पढने को थी उन सारी बातो को जिसे सुनहरे अछरो मे मै लिख दी थी.ओह आज मिल गया मेरी पुरानी डायरी जिसे वर्षो से ढुढ रही छान मारी सारी अलमारी वाह क्या खुब लिखा हुआ है इस डायरी मे अब कहॉ वो जमाना कहॉ प्यार. कहॉ

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अपनी मनमानी

18 अगस्त 2015
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लोग अपने कर्तव्य से क्यो विमुख हो जाते है,भूल जाते है वो अपनी सारा कर्तव्य जो उसे निभानी होती है जैसे ही उसे मिल जाती है उसकी हाथो मे वो सता फिर वो करने लगते है अपनी वही मनमानी किसी भी क्षेत्र मे मिलती है यही देखने को हम. भी वही देखे है जो चलती आ रही सदियो से कब तक चलती रहेगी ए सबकी अपनी मनमानी

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