देखा था आखरी बार .... अपनी मुंडेर पर...! चुनती वो चावल के दाने... नन्हीं सी चोंच में ...! गिरते दानों को ... बार-बार उठाती...! फिर छोटे से मुंह को ... दो दानों से भर जाती ...! सफेद भुरे रंगों पर .... काला धार जैसे .... नजर का टीका लगाए ..…! सिर घुमाती , आंखें मटकाती... फुदक-फुदक कर कदम बढ़ाती ...! गुस्से में पीछे के पंखों को... बार-बार धरा पर पटकती...! थोड़ी सी आहट पर ... फुर्ररर... र..र.. से उड़ जाती...!! धन्यवाद दोस्तों 🙏🙏 स्वरचित : अर्चना सिंह ✍️
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