बात साल 2016 की है, यही सितम्बर का महिना था। पुरा भारत एक परिवर्तन से गुजर रहा था। इस समय सुचना-प्रोद्योगिकि में भारत बडी रफ्तार से आगे बढ रहा था। तत्कालिन समय मे भारत मे तीन बडी टेलीकॉम कंपनियाँ थी जो की भारत के पुरे दूरसंचार का पर कब्ज़ा जमाये हुए थी। एयरटेल, वोडाफोन, और आईडिया। इनके अलावा और भी कई छोटी मोटी कंपनियाँ थी मगर वो अपनी जडें बचाने के लिये संघर्ष कर रही थी। एक समय जहाँ भारत मे लगभग १०-१२ टेलीकॉम कंपनियाँ हुआ करती थी वहां अब मात्र तीन ही बची थी। बाकी की सारी या तो बाज़ार से गायब हो गयी या फिर इन्ही तीनों मे उनका विलय हो गया। 4जी के क्षेत्र मे एयरटेल का कोइ मुक़ाबला नही था। मगर उसी समय मार्केट मे एक नए ख़िलाडी ने प्रवेश किया। जियो, रिलायंस ग्रूप से। जियो ने टेलीकॉम इंडस्ट्री मे आते हीं तहलका मचा दिया। उस समय जब हमें 1 जिबी डेटा के लिये लगभग 200-300 रुपये तक खरचने पडते थे, जियो ने हमारे हाथों मे एक ऐसा हथियार डाल दिया जिससे हमे हर रोज़ 2 जिबी डेटा फ्री मे मिल रहा था। चाहे जितना फोन करो, चाहे जितना टेक्स्ट करो सब कुछ मुफ्त। इसकी वजह से कितनो को क्या-क्या फायदा हुआ पता नही मगर कुछ लोगों लिये इसने एक ऐसा द्वार खोल दिया जिसके दुसरे तरफ वे ना जाने कब से छोटे से छेद से झांक रहे थे। अब तक जिस चीज़ को देखने से पहले उन्हे अपने जेब को टटोलना होता था अब अचानक से जैसे उस सेवा के लिये किसी को भी जेब की जरुरत ही नही रही।
हर रोज़ 2जिबी डेटा मतलब अब हर कोई जी भर कर मैं ईंटर्नेट चला सकता था। अपनी किशोरावस्था से जो शौक मित्रों के वजह से लगी थी वो अब एक ऐसे आदत मे बदलने वाली थी जिसका खमियाज़ा उन्हे आज लगभग पांच सालो के बाद भुगतना पर रहा है। किशोर अपने जवानी के दिनो से ही पोर्न देखने का शौकिन रहा है। ये आदत उसे अपने कुछ अच्छे दोस्तों से लगी थी। उस समय तो सब एक ही तरह के होते है मगर कुछ लोगों की ये आदत कभी नजीं जाती। इसके लिये आप किसी को भी इसका ज़िम्मेदार नही मान सकते क्युंकि इससे निकलना या ना निकलना हमेशा से सामने वाले हाथ मे ही होता है। मगर किशोर ने ही इसे अपने ज़िंदगी मे जगह दे रक्खी थी। आज से दो महिने पहले तक वो इसके सिकंजे मे था। अब भी है मगर अब वो इससे निज़ात पाने की कोशिश में है। उसे लगा जब मैं इससे मुक्त हो सकता हूँ तो क्युं ना उन लोगों की मदद के जाय जो जाने अंजाने इस खतरनाक बीमारी मे फंसे हुए है। आगे की कहानी कोशोर की ज़ुबानी।
आपने सही सुना पोर्न देखना एक बीमारी ही है। बस आपको इसके प्रत्यक्ष असर को समझने मे काफी समय लग जाता है। और जब तक आपको पता चलता है की आप बीमार हो तब तक आपकी मानसिक हालत खराब हो चुकी होती है। 2016 के पहले मैने कभी स्मार्ट फोन इस्तेमाल नही किया था। चुकी उस समय ईंटर्नेट की सुविधा भी ऐसी कुछ खास थी नही तो स्मार्ट फोन चलाना भी एक समस्या ही थी। मगर 2016 मे जब जियो लौंच हुआ तो मैंने भी स्मार्ट फोन ले लिया। ऐसा लगा जैसे पुरी दुनिया मेरी मुट्ठी मे समा गयी है। मेरे पास स्मार्ट फोन का केवल दो ही मुख्य उपयोग था पहला आफिस का काम करना और दुसरा जी भर कर पोर्न देखना। दो महीने के अंदर ही मैने इतना पोर्न देख लिया था जितना की मैने अपने पुरे किशोरावस्था मे भी नही देखा होगा। हाँ ये बात और है की उस समय इतनी सुविधाये भी नही थी मगर साधन तो और भी कई थे। समय के अनुसार जो भी साधन उपलब्ध थे मैं उन सबको मिलाकर भी इतना पोर्न नही देख सका था जितना इन दो महिनो मे मैंने देखा था। ये जैसे मेरे जीवन की एक आवश्यक्ता बनकर उभरा था। मैं छुपछुप कर पोर्न देखने के मौके ढुंढने लगा। एक बात मैं आपको बता दूं की 2016 तक मेरे शादी को 7 साल हो चुके थे और मेरी एक 6 साल की बच्ची भी थी। मेरे बिवी और बच्चे आज भी मेरे साथ ही रहते है। तो मैं कह रहा था की मुझे ये आदत हो गयी थी कि जबतक मैं दिन मे तीन-से-चार बार पोर्न ना देख लूं मुझे चैन नही आता था। मैं चाहे घर पर हूँ या आफिस मे किसी ना किसी तरह नज़र चुरा कर पोर्न देख हीं लिया करता था। मतलब चस्का ऐसा लगा था कि मेरे दिन की शुरुआत पोर्न देखने से होती थी और रात का समापन भी पोर्न देखकर ही होता था।
अब मैं सुबह जल्दी जागने लगा और सीधे बाथरूम मे चला जाता। अंदर जाकर कान मे हेड्फोन ठूसकर धीरे-धीरे पोर्न देखने लगा। आफिस मे भी कई बार नम्बर 2 के बहाने दस पंद्रह मिनट का समय निकाल ही लेता था। बस मे आते-जाते या किसी होटेल मे खाना खाते हूए मैं अब हर जगह पोर्न देखने लगा था। मौका मिला नही की मोबाईल पर विडियो देखना शुरू। इतनी बुरी लत लग गयी की मेरा मानसिक संतुलन बिगडने लगा। रात को देर से सोना और सुबह ही जग जाना। कभी कभी तो मैं सोते हुए एक ऐसी हालत मे होता था जब कि मुझे मेरी आंखे बंद होने का तो एहसास होता मगर मैं सो नही रहा होता। मैं उन गंदी वेबसाईट्स पर ना जाने क्या-क्या खोजता रहता था। जितनी गंदी-से-गंदी बातें आप सोच सकते है उससे भी कई ज्यादा गंदी चीजें मैं देखने की कोशिश करता था। कभी सगे रिश्तेदारों से सम्बंध तो कभी सौतेले रिश्तों के नाजायज़ समबंध खोजता रहता था। मैं शारिरिक और मानसिक हिंसा भी देखने लगा था। मतलब मेरे दीमाग मे बिल्कुल कचरा भर गया था। ऐसा एक दिन भी नही बीतता होगा जिस दिन मैने पोर्न नही देखा हो। जिन दिन मुझे पोर्न नही मिलता उस दिन जैसे मुझे कुछ खो जाने जैसा महसुस होने लगता था। मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि मैं राह चलते औरतों को इस कदर घूरता रहता की जैसे मैं उनके कपडो को भेद कर उनके अंग देख रहा हूँ।
लगातार पोर्न देखने के कारण मेरा स्वास्थ भी बिगरने लगा था। पोर्न देखने के बाद मैथुन करने से खुद को रोक पाना मेरे लिये नामुमकिन था। कभी-कभी तो दिन मे चार बार तक मैं मैथुन कर लिया करता था। जिसके कारण मुझे धीरे धीरे ये अहसास हुआ की मेरी आंखे कमजोर हो रही है। अत्यधीक मैथुन का असर आंखो पर होता है या नही मुझ नही पता मगर मेरे आंखो की रोशनी बडी तेजी के घटने लगी थी। मन किसी काम मे नही लगता था। एक समय ऐसा भी आया जब हर समय मेरे दीमाग मे बस पोर्न के दृश्य घूमा करते थे। चाहे मैं खाना खा रहा हूँ य फिर मैं कुछ पढ रहा हूँ या किसी से बात ही क्यु ना कर रहा हूँ। मेरे दीमाग मे बस पोर्न ही घूमने लगा था। इसका एक सबसे बडा असर मेरे और मेरी पत्नी के वैवाहिक जीवन पर भी पडा। अत्यधिक मैथुन के कारण मैं सहवास के समय ज्यादा समय देने मे असमर्थ होने लगा। और तब जाकर मुझे इस बात का एहसास हुआ की मैं खुद ही अपनी गृहस्थी बर्बाद करने पर तुल गया हूँ। पत्नी को शारिरीक खुशी ना दे पाना मुझे मेरे खुद की नज़र मे गिराने लगा। मैं ग्लानी से भरने लगा और उस ग्लानी के कारण मेरे अंदर क्रोध ने घर बना लिया। अब मैं चिढ्चिढा और सनकी होने लगा था। बात-बात पर गुस्सा और हिंसा मेरे आदत मे झलकनी लगी थी। एक बार तो ऐसा भी हुआ की कई घण्टों तक मेरे लिंग मे तनाव बना ही रह गया और उसी के कारण मैं पुरे दिन घर से बाहर ही नही निकला।
अब मुझे मेरे परिस्थिती मेरे हाथ से निकलती हुइ लगने लगी थी। इस समय मुझे किसी ऐसे व्यक्ति के आवश्यक्ता थी जो मेरे बिमारी को पहले तो समझे, फिर उसे लेकर मेरी अवहेलना ना करे और मुझे एक सही रास्ता दिखाए। पर मेरे आस-पास ऐसा कोइ शख्स दिख नही रहा था। पर मुझे तो इस दलदल से बाहर आना ही था तो मैने ये सारी बात अपनी पत्नी को दिल खोलकर बता दी। बीना ये सोचे समझे की इसका हश्र क्या हो सकता है? मगर मेरी पत्नी ने मेरा पुरा साथ दिया। शायद इसे ही शादी कहते है, जिसमे जब कोइ एक पथ से भटक जाए तो दुसरा उसे खिंच कर सही रास्ते पर लाने के लिये जुट जाए। मेरी बिवी ने मेरा साथ नही छोडा। उसने सबसे पहले बडे ध्यान से मेरी परेशानी सुनी, समझी और मेरे कंधे पर हाथ रखक्र कहा- तुम क्युं परेशान और उदास हो, हम दोनो मिलकर इसका हल निकाल लेंगे। ना तो उसने नराज़गी जताई और ना ही कोइ झगरा किया बस मेरे हाथों को हाथ मे लेकर कहा मैं हूँ ना! कोइ बात नही, सब ठिक हो जाएगा। उस समय मुझे लगा जैसे सच मे मैं इस बीमारी से पार पा लुंगा। और हुआ भी ऐसा हीं। मेरे दिल खोल कर बात करने और सच बताने के कारण मेरी बिवी मेरी सच्ची दोस्त बनकर आगे आयी और मुझे इस बीमारी से बाहर लाने के रास्ते ढूंढने लगी।
बीमारी हम दोनों ही जानते थे और इसका इलाज़ भी पता था मगर उस इलाज़ को आदत बनाना मुशिकल था। आज के समय मे आप एक बार भोजन करना छोड सकते है मगर मोबाईल छोडना बडा ही मुश्किल लगता है। मेरे काम के चलते मैं अपने आप को मोबाईल से अलग नही कर सकता था और मोबाईल रहते हुए पोर्न से दुर रहना मेरे लिये नामुमकिन लग रहा था। मेरी बिवी ने इसका एक तोड निकाला। सबसे पहले उसने मुझे मोबाईल का इस्तेमाल घटाने की सलाह दी मसलन जब तक बहुत ज़रुरी ना हो मुझे इंटेर्नेट का इस्तेमाल नही करने देना। इसके बाद उसने मुझसे कहा के मैं अपने ब्राउजर से सर्च हिस्ट्री और वाच्ड हिस्ट्री मिटा दूं। मैंने वो सब किया मगर इसका कोइ खास फायदा नही हो रहा था। बाहे-अगाहे मैं पोर्न देख ही लेता था। मेरी बिवि ने मेरे फोन में कई ऐसे ऐप्पस डाल दिये जिसमे ढेरों कहानियां और गीत हो। उनसे मेरा ध्यान तो भटक जाता मगर पोर्न की तलब नही जा रही थी। धीरे-धीरे मेरी बिवी मेरे साथ ज्यादा समय बीताने लगी। उसने मेरे कार्यकलाप पर ध्यान देना शुरू किया। जब भी मैं उसके आस पास होता तो वो मुझसे ढेर सारी बात किया करती। मेरे अंदर की गंदगी को निकालने के लिये उसने ढेरों प्रयास किये और उसका असर दिखने भी लगा। अब जब भी मुझे पोर्न देखने की तलब होती तो वो मेरा ध्यान भटकाने के लिये युट्युब पर मुशायरा वाले विडियो लगा देती थी। मेरा मन इसमे लगने लगा था। उन दिनों ही मैने पहले पहल कुमार विश्वास को सुना। फिर मुन्नवर राणा, राहत इंदौरी, जौन एलिया, और ना जाने किन किन लोगों को सुनने लगा। मैंने महसुस किया के इनकी शायरी सुनने मे मुझे सुकुन मिलता है। जब की पोर्न देखने से मेरे अंदर एक तरह की विकृती आ रही थी।
जिस दिन मैने इस बदलाव को महसुस किया उस दिन से मेरा मन पोर्न से हटने लगा। फिर एक दिन मैं इन्ही शायरो में से किसी एक का एक शेर अपनी बिवी को सुनाया, उसे अच्छा लगा तो फिर उसने मुझसे पुछ लिया कि क्या मैं इनसे सीख कर कुछ लिख सकता हूँ? ये सवाल मेरे लिये वरदान साबीत हुआ क्युंकि उस दिन से मैने लिखना शुरू कर दिया। कितना अच्छा लिखा या कितना बुरा मेरे लिये वो मायने नही रखता था क्युंकि इस लिखने की चाह के कारण मैं पोर्न से दूर होता चला गया। जब भी मन मे कुछ आता तो मैं लिखने लग जाता। अब तो अलम ये है की मुझे पोर्न मे बिल्कुल भी दिलचस्पी नही है। ना, मैं इसे देखना बुरा नही मानता मगर अब इसे देखने की लेरी ललक और वो बचपने वाला ज़िद खत्म हो चुका है। अब मैं अच्छे सेक्स और पोर्न का अंतर समझ चुका हूँ। मेरे मन से गंदगी का एक बडा भाग खतम हो चुका है और मैं मानसिक रुप से सडने से बच गया हूँ। अब इसकी तलब नही होती और नाही इसकी ज़रुरत महसुस होती है। मोबाईल अब भी मेरे पास रहता है, डाटा अब भी पहले की तरह बीना किसी सीमा के ही है मगर अब मैने खुद को सीमाओं मे बांध लिया है।
अब मैं उन गलियों मे नही जाता और नाहीं किसी महिला को घुरता हूँ। नज़र साफ रखने की कोशिश करता हूँ। मन हल्का करने मे मेरी बिवी आज भी मेरा साथ पुरी सख्ती से दे रही है। अब मैं शारिरीक रुप से मजबूत भी हो रहा हूँ, मेरी कमजोरी भी दूर हो रही है और मैं अपनी पत्नी को भी खुश करने मे सक्षम हो रहा हूँ।अब मैं समझ रहा हूँ की इसे छोडना इतना भी मुश्किल नही है, बस इसके टक्कर का कोइ दुसरा आकर्षण हमारी जीवन मे आना चाहिये। मैं कहुंगा की इसे किसी दुसरी अच्छे आदत से विस्थापित करना चाहिये। मेरी आज की परिस्थिति के लिये मैं आपनी पत्नी का जीवन भर आभारी रहुंगा। अगर वो ना होती तो शायद मैं किसी गर्त में पडा मानसिक और शारिरिक रूप से सड चुका होता।
किशोर आज पुरी तरह से स्वस्थ है, जीवंत है और अपनी पत्नी के साथ एक सुखी जीवन व्यतित कर रहा है। यह घटना उसिने मुझे सुनायी थी। वो अपनी पत्नी को विशेष धन्यवाद देना चाहता है। मेरी शुभकामनाएं हमेशा से उसके साथ है।