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तेरा बाप कौन है?

15 अक्टूबर 2023

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मुहल्ले गली में खेलते हुए बच्चों के झुंड मे से एक बच्चे को बाकि के सभी बच्चे बडी देर से चिढा रहे थे- “तेरा बाप कौन है? तेरा अबाप कौन है? बता ना, क्या तुझे नही पता कि तेरा बाप कौन है?”। उन बच्चों के उपहास भरे तानों से वो बेचारा अकेला बच्चा काफी लज्जित और खुद छोटा समझ रहा था। मुहल्ले के बच्चे अक्सर ही उसे इसी तरह से चिढाया करते थे। ऐसा नही था कि वो मासूम बच्चा किसी ग़रीब औरत की अनचाही या नाज़ायज़ औलाद था मगर यह सच था कि आज तक इस मुहल्ले में किसी ने भी उसके बाप को नहीं देखा था। लोग कहते है कि यह इस मुहल्ले के सबसे सक्षम सज्जन की एकलौती बेटी की संतान है। उक्त व्यक्ति का इस समाज में मान सम्मान भी बहूत है मगर अपनी बेटी की एक ग़लती के कारण उनका सिर पुरे मुहल्ले में झुक गया है। करीबन आठ साल पहले जब उनकी बेटी लगभग २१ साल की रही होगी तब वो पढाई के लिये दुसरे शहर को गयी थी। उसे हिंदी साहित्य में एम.ए करना था मगर बडे ही आश्चर्यजनक रूप से वो अपनी पढाई को बीच में ही छोड कर चली आयी थी। और लौटते समय उसके गोद में एक आठ महिने का बच्चा था। यह बच्चा वही था।

लोग ऐसा कहते है कि जिस रोज़ वो घर लौटी थी उसी रात को उनके घर में काफी हंगामा हुआ था। बेचारे सज्जन व्यक्ति अपनी बेटी की ग़लती को किसी भी तरह से पचा नहीं पा रहे थे। कहते है ना कि इस तरह की बातें कभी छुपी नही रह सकती। खूशबू चाहे कैसी भी हो, सुगंध हो या फिर दुर्गंध वो दीवारों को भेद कर दुसरों के घरों तक पहूँच ही जाती है। वैसे ही इस तरह की बातें कभी भी छुपी नही रह सकती। इनके अंदर भी घर की दिवारों को भेदने की ताक़त होती है। उस रात के झगरे का असर इतना गहरा था कि तीन महिने के अंदर ही बेचारे सज्जन महोदय की पत्नि का देहांत हो गया। जब तक वो थी तबतक किसी तरह से बाप बेटी के बीच के संतुलन को बनाये रखने की असफल प्रयत्न किया करती थी। मगर उसके जाने के बाद से जैसे बाप-बेटी में एक खामोशी भरी लडाई चलती ही ज रही थी। कई बार बाप ने बेटी को घर छोड कर चले जाने को भी कह दिया था मगर बेटी थी कि ज़िद पर अडी हुई थी कि यह संतान उसकी गलती नहीं है और ना ही उसे ऐसा लगता है कि उसने कोई पाप ही किया है। तो फिर वो घर छोडकर क्युं जाये?

बाप बेटी के इस कलह का साक्षि पुरा मुहल्ला था। जब भी कभी घर की बात बाहर जाती है तो उसपर लोग अपनी तरफ से नमक मिर्च लगा कर और भी मसाले दार बना ही देते है। चुकि उस सज्जन व्यक्ति ने उस दिन के बाद ना तो अपनी बेटी को स्वीकारा और ना ही इस बच्चे को अपनाया इसिलिये औरे मुहल्ले में इस बात की चर्चा होने लगी कि शायद यह बच्चा उसकी बेटी की नाज़ायज़ औलाद ही है। इसी कारण बाप ने कभी भी अपनी बेटी को उसका हक़ नही दिया। बावजुद इसके वो तिनों लोग एक ही घर में रहते थे। बिते आठ सालों से बेटी दोनो के लिये ही खाना बनाती है। फिर काम पर भी जाती है और फिर घर की देखभाल भी करती है। यहाँ तक की उसका एक प्रेमी भी है जो उसके घर आता है। उसके बाप के सामने ही उससे मिलता है उस बच्चे से मिलता है। मगर उसका बाप कभी भी इस बात से खुश नज़र नहीं आता। सच कहें तो उसे भी यही लगता था कि यह बच्चा उसकी बेटी की नाज़ायज़ औलाद है। शायद किसी ने उसे धोखे से माँ बना दिया होगा और फिर अपनी जान बचाकर भाग गया।

लेकिन इस लडकी की हिम्मत की भी दाद देनी चाहिये इसने कभी भी इस बच्चे को खुद से दूर नही होने दिया। हमेशा एक सगी माँ की ही तरह उसके साथ साया बनकर रही। जब भी मुहल्ले वाले उसके बच्चे को चिढाया करते तो वो खुद एक शेरनी की तरह सभी का सामना करने के लिये खडी हो जाती। धिरे-धिरे मुहल्ले के बडे लोगो ने तो कुछ भी कहना सुनना छोड दिया था मगर मुहल्ले के बच्चे अक्सर खेल-खेल मे उसे चिढा दिया करते थे। हर बार जब भी वो बच्चा उस लडकी के पास जाकर अपने बाप के बारे में पूछ्ता तो वो अपने बाप की तरफ देखते हुए कहती कि एक दिन तेरा बाप खुद ही सबके सामने तुझे अपनाने को मज़बूर हो जयेगा। उस दिन तुझे किसी के ताने को सहने की जरूरत नही होगी। ऐसे में तीन सा और बीत गये और फिर एक दिन इस लडकी ने विवाह करने करने का निश्चय कर लिया। बडी ही सादगी के साथ अपनी शादी हो जाने के बाद वो उस सज्जन व्यक्ति के घर से रवाना हो गयी। और जाते जाते अपनी एक सहेली को उस बच्चे की देख-रेख के लिये छोड गयी। अपनी बेटी के जाने के दो हफ्ते के बाद ही उसके बाप की भी मौत हो गयी। पुलिस की तहक़ीक़ात से पता चला कि उन्होने आत्महत्या की थी।  

जब पुलिस ने इस मामले की पुरी तहक़ीक़ात की तब कही जाकर एक सच बाहर आया। एक ऐसा सच जिसके बारे में कोई भी सोचकर हीं अपना सिर पिट ले। पिछले अठ सालों से और अमुहल्ला जिस बच्चे को उस बेचारी लडकी की औलाद समझ रही थी वो असल में उसकी सहेली और उसके बाप की नाज़ायज़ रिश्ते की निशानी थी। जब वो लडकी पढने के लिये दुसरे शहर गयी थीउस दौरान अक्सर उसका बाप उससे मिलने के लिये जाया करता था। उसी दौरान उसकी मुलाक़ात अपनी बेटी की सहेली से हुई थी। उसे देखते ही इस आदमी के अंदर का हैवान जाग उठा। पहले तो उसने इस लडकी को बहला-फुसला कर उसका फयादा उठाया और फिर उसे बिन ब्याही माँ बना दिया। इसके बाद जब उसे इस बात का पता चला तो उसने कुछ पैसे देकर अपना पिछा छुडाना चाहा। मगर जब वो लडकी नहीं मानी तो फिर उसने उसे मारने की धमकी भी दे डाली। बेचारी डरी-सहमी कच्ची उम्र की लडकी करती भी तो क्या करती। मगर यह बात ह्सन्योग वश सज्जन व्यक्ति के बेटी को पता चल गयी।

उसने ना सिर्फ उस लडकी को बच्चा गिराने से रोका बल्कि अपने बाप को सबक सिखाने के लिये पिछले आठ सालों से अपने ही सौतेले भाई की नाज़ायज़ माँ बनने किरदार निभाती रही। ऐसा नहीं था कि उसके बाप को यह सब कुछ पता था। मगर उसने अपनी माँ से यह सारी बात बता दी थी तभी तो अपने पति के पाप को वो सहन ना कर पाई और हृदय घात से उसका देहांत हो गया। एक अरसे तक जिस बच्चे को अपनी बेटी की ग़लती मनता रहा था आज उसकी सहेली को देखकर और अपनी गलती को याद करके ही वो खुद के ही नज़रों गिर गया था। विदाइ की समय जब बेटी ने बाप को पुरी बात बताई तो उसे यह सब कुछ ईतना असहय होने लगा कि उसने अपनी जान ले ली। मगर आखिर कार उस बच्चे को उसके बाप का नाम मिल ही गया। सज्जन व्यक्ति ने एक कःअत लिखकर अपनी सभी ग़लतियों के लिये क्षमा मांगी थी और अपनी पुरी समपत्ती अपनी बिन ब्याही पत्नि और अनचाहे बेटे के नाम कर दिया और खुद को फांसी से लटका लिया। जब यह सच्चाई मुहल्ले वालों के सामने आई तो सभी के नज़र में वो बेटी अचानक से ही बदचलन लडकी से एक महान लडकी में बदल गयी। और वो सज्जन व्यक्ति एक राक्षस मे तब्दिल हो गया।

उस दिन के बाद से उस बच्चे से फिर किसी ने नहीं पुछा कि “तेरा बाप कौन है?” बल्कि उस बच्चे को सभी पहले से ज्यादा प्यार करने लगे।
 

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रचनाएँ
संस्मरण
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उस दिन हर रोज़ की तरह हीं मैं अपने समय पर आफिस के लिये घर से निकला। निकलते समय हीं मेरी बेटी ने कहा कि आज उसे ट्युशन पढने के लिये सुबह हीं जाना है। जाने क्युं मगर उस सुबह मैंने अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजा था। पता नहीं मन में क्या चल रहा था कि उसे स्कूल भेजने से मुझे कोताही हो रही थी। मेरी पत्नी मेरी बेटी को अकेले पढने जाने देना नहीं चाहती थी। तो मैंने मज़ाक मे हीं उनसे कह दिया कि आज तुम ही बेटी को पढने छोड आना। चुकि मेरे दोनों हीं बच्चे एक ही जगह पर पढते है तो दोनों को एक ही साथ जाना भी पडता है। मेरी पत्नी घर से बाहर का कोई भी काम नहीं करती है। उसके सारे कम मुझे हीं करने पडते है और इसमे मुझे कोई शिकायत भी नहीं है। वो विगत लगभग पांच सालों से मांसिक रोग से संघर्ष कर रही है। मगर आज तक कभी भी टूटी नहीं। हालांकि मैं उसके रोग़ के विषय में यहाँ चर्चा नहीं करना चाहता था पर ऐसा ना करने से आगे हुई घटना को आप सही से समझ नहीं पायेंगे इसिलिये मुझे यह बताना पडा। मैं घर से निकलकर सही समय पर आफिस जा पहूंचा। सब कुछ किसी आम दिन के तरह हीं चल रहा था। तभी मेरे फोन की घंटी बज उठती है।
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