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अंतिम सफर

15 अक्टूबर 2023

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रमन अपने किराए के मकान के एक कमरे में बिस्तर पर पड़ा हुआ है। उसके पास उसकी ३० साल की बेटी और लगभग २२ साल का बेटा सिरहाने पर खड़े हुए है। कमरा रौशनी से भरा और हवादार है। उसे हमेशा ही खुले वातावरण में रहने की आदत रही है । आज उसकी उम्र लगभग ६० साल की हो चुकी है और वो अपने जीवन की अंतिम साँसे गिन रहा है। जब तक हाथ पैर चलते रहे वो ज़िंदादिली से जिया मगर कल रात अचानक ही उसने खाट पकड़ ली थी।  उसे ऐसे ही मौत की उम्मीद भी थी जिसमे वो चलते फिरते ही दुनिया से उठ जाए। सुमन को गुजरे हुए पांच साल हो चुके थे और तब से ही वो थोड़ा-थोड़ा करके हर दिन उसकी तरफ यात्रा करने लगा था।  उस औरत के साथ उसने अपने जीवन के ३५ साल गुज़ारे थे। अंत उसका अभी ऐसा था कि अचानक ही एक दिन सभी के साथ हँसते खेलते हुए उसे दिल का दौड़ा पड़ा और भगवान को प्यारी हो गयी।  कल रात रमन के भी साथ यही हुआ था। शाम को जब घर लौटा तो बिल्कुल सही था।  खाना खाया और जाकर बिस्तर पर लेट गया। और फिर ऐसा लेटा कि सुबह उठ ही नहीं पाया। सुबह ही उसे समझ में आ गया था कि उसके प्रस्थान का समय आ चुका है। किसी तरह से उसने माला (बेटी) को खुद ही फोन किया और उसे फ़ौरन चले आने को कहा। अपने साथ ही उसने मयंक को भी लिवा लाने को कह दिया था।  कहते है मरने के पहले  के कुछ पल में जीव का दिमाग उसके पुरे जीवन का एक लेखाचित्र उसके आँखों के सामने चला देता है।  मरने वाले को अपने जीवन का एक एक लम्हा सामने दौरता हुआ दीखता है। उसने कब, किसके साथ, कैसा, क्या, और क्यूँ किया यह सभी कुछ एक फिल्म की भाँती उसके नज़रों के आगे दौड़ने लगता है।  अभी उसके बच्चों के आने में समय था और वही समय उसके जीवन की पुनरावृत्ती के लिए उसके मष्तिस्क ने चुन लिया था। उसके मन के अंदर बड़ी तेज गति से उसके जीवन का हर एक पल बीतता जा रहा था।  

शुरुआत उसके पहले मौजूद यादाश्त से हुई थी जो चलते हुए बीते कल की रात तक आ पहुँची थी।  इस दौरान उसे अपनी मां, भाई-बहन मौसी (जिसे वो मां ही कहता था), बचपन के दोस्तों से लेकर अपने कालेज के दिनों के दोस्त, अपना पहला प्यार और ना जाने कौन कौन सी बातें याद आ रही थी।  सबकुछ दिख रहा था मगर उनमे से कोई भी उससे बात नहीं करता था।  बाप उसे कभी भी प्रिय नहीं था तो पुनरावृत्ति में भी उसे अपने बाप का चेहरा नही दिखा।  बिस्तर पर पड़े पड़े वो बस यमदूत के आने की राह देख रहा था।  आज उसके दोनों बच्चे अपने अपने पैरों पर खड़े हो चुके थे।  बेटी  आर्टिस्ट थी और बेटा भी अपनी मर्ज़ी के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चूका था।  दोनों की ही जिंदगी स्थिर थी और संतुलित भी।  माला ने अभी तक शादी नहीं की थी जैसा की हमेशा से ही उसके इच्छा रही थी।  मयंक अभी निकट भविष्य में इस तरफ ध्यान देने के विचार में भी नहीं था।  

अपने पिता का फोन आते ही दोनों बच्चे अपने घर आ पहुंचे थे।  रमन अभी भी बिस्तर पर ही पड़ा हुआ था।  उसे मालुम था कि उसका आखिरी समय आ चुका है इसीलिए उसने माला को इशारा करके अपनी आखिरी इच्छा वाली वसीयत निकालने को कहा।  उसमे बस उसके हस्ताक्षर ही बाकी थे।  अपनी पुरी ज़िन्दगी में उसने अपने बच्चों को सिर्फ अच्छी शिक्षा के अलावा और कुछ भी नहीं दिया था। कभी भी उसने अपने बच्चो के मन में कोई गलतफहमी नहीं रहने दिया कि उसके पास विरासत में छोड़ने के लिए कुछ भी है।  इस वसीयत में उसने बस एक ही बात लिख रक्खी थी कि उसके मरने के बाद उसके सलामत बचे हुए अंग दान कर दिए जाये और उसके शरीर को किसी प्रयोग शाला के काम में लगा दिया जाए।  उसने अपने अंतिम क्रिया के बंधन से अपने बच्चो को पहले ही मुक्त कर दिया था।  

बेटी के आते ही उसने कहा

कौन?

कौन खड़ा है वहाँ?

मां, तुम आ गई, मैं कब से तुम्हारी ही राह देख रहा था। 

देखो ना कब से मैं बड़े और छोटे भैय्या से कह रहा हूँ कि वो मुझे मेरे किये के लिए माफ़ जार दे।  अब मेरे पास ज्यादा समय है नहीं और मैं अपने मन में किसी भी तरह का बोझ लेकर जाना नहीं चाहता। वहीं पर दीदी भी खड़ी थी मगर वो दोनों भी उससे ज्यादा बात नहीं कर रही थी।  ना तो उसके दोस्त ही उससे कुछ कहते थे। सभी उसके चहरे की तरफ देख रहे थे और अपने अपने भाव में उसे घूरते जा रहे थे।  इतने में बेटी उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहती है-अब आपके सोने का समय हो गया है, चैन से सो जाइये। मैं और भाई यहां है, आपके साथ।  रमन   अपनी आखें बंद कर लेता है और .................।।

जब उसकी आँख खुली तो उसने देखा कि उसके सभी सगे सम्बन्धी उसके आस -पास खड़े हुए थे। इनमे से कुछ वो लोग थे जिन्हे वो प्यार करता था और कुछ वे लोग भी थे जो उसे प्यार करते थे । मगर दोनों तरह के लोग दो अलग-अलग कतार में खड़े हुए थे। मसलन जो उसे प्यार करते थे सभी उसके दाहिनी हाथ की तरफ थे और जिनसे वो प्यार करता था वो उसकी बाई और खड़े थे।  दाए तरफ खड़े लोगों में सबसे पहले उसकी मां थी। फिर उसके बाद उसके दोनों भाई फिर उसकी बहने और फिर उसकी पत्नी  ।  इसी तरह बायीं तरफ सबसे पहले उसके तीनों दोस्त थे, फिर उसकी पत्नी ।  दोनों ही तरफ से उसके बच्चे लापता थे।  यानी कि यहां सिर्फ वो ही लोग थे जो मर चुके थे। लेकिन एक बात साफ़ थी कि उसे चाहने वालो की संख्या उसके द्वारा प्यार किये जाने वालो से कही ज्यादा थी। तो क्या वो मर चुका था ? क्या यमदूत उसे लेकर यमलोक चला आये थे? मगर यह सबकुछ इतनी जल्दी कैसे हो गया?

वो जाग तो गया था मगर खुद से उठकर बैठ नहीं पा रहा था।  उसे उकसा खुद का तन जैसे महसूस ही नहीं हो रहा था।  शरीर पूरी तरह से हल्का, एकदम रुई के जैसा होता जा रहा था।  किसी तरह से उसने अपने हाथ से अपनी मां को अपनी पास बुलाया। आश्चर्य, उसके मां के अलावा और किसी ने उसकी तरफ देखा तक नहीं।  इससे पहले कि वो सेज से उठने के प्रयास में गिर जाता मां ने आगे बढाकर उसका हाथ थाम लिया।  मां का हाथ थामते ही उसे जैसे अपने तह ने होने का एहसास हो गया।  उसका हल्का सा शरीर उसके फिर से जैसे वजनदार हो होने लगा।  मगर यह क्या? मां ने तो उसे अपने गोद उठा लिया था।  वो समझ नहीं पा रहा था कि उस कमज़ोर से दिखनी वाली औरत के बदन में इतना दम कहाँ से आ गया था कि इस ६० किलो के हांर-मांस के संरचना को एकदम से अपने बाहों ने भरकर अपने सिने से चिपका कर वो बिना थके बिना झुके अनवरत चलती ही चली जा रही थी।  

मां की जो छाया उसे दिख रही थी वो तो बिलकुल वही छाया थी जो कि उसके मरने के एक दिन पहले कि थी। उसे याद था मां एकदम कमज़ोर हो चुकी थी। किसी को गोद में उठाना तो बहुत दूर की बात थी वो तो खुद के ही तन को खींच नहीं सकती थी। मगर आज कैसे वो मां अपने साठ साल के बच्चे को अपने गोद में उठाये हुए अपने साथ लिए जा रही थी। रमन को पता नहीं था कि मां उसे कहाँ लिए जा रही थी। अपने साथ लिए जाती हुई मां वही गाना गा रही थी तो वो हमेशा उसे सुलाने के लिए गाया करती थी।  "मेरा राजा बेटा बुझे, एक पहेली, नन्ही प्यारी अँखियो की कौन सहेली? - निंदिया"। अनायास ही उसके मुंह से गीत में पूछे गए सवाल का जवाब निकल गया। अश्रु से उसकी आँखे भर गय। मां उसके पीठ पर ऐसे थपकियाँ दे रही थी जैसे वो उससे कह रही हो कि "अब तेरे चैन से सोने का समय आ गया है बेटा, अब तू सो जा"।   

मां की उस थपकी से जैसा उसका मन शांत हुआ जाता था। तभी मां ने उसे अपने गोद से उतार दिया। रमन ने पलट कर देखा तो यह उसका वही मकान था जहां पर उसका बचपन बीता था।  वही दो कमरों का घर जिसपर खप्पर का छत था। यह उसकी बचपन की यादें थी जिन्हे अक्सर वो अकेले में सोचा करता था। वहाँ पास बैठे उसके दो भाई उसके साथ खेल रहे है। वही खिलौने थे, वही भाई थे जिनसे उसे बेहद प्यार था।  जो उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते थे। अचानक उसे एहसास होता ही कि जैसे वो बारह साल का हो गया है। अब वो स्कूल जाता है और उसके भाई नौकरी करते हैं। घर में उत्सव का माहौल है,  शायद आज होली है। तभी तो मां गरमा गरम माल पुए और पूड़ियाँ तल रही है। वहीं साथ में बैठे वो तीनो भाई गरमा गरम पूड़ियां खाते जाते है। मां बेचारी पूड़ियाँ तलते हुए परेशान थी मगर नाराज़ बिलकुल भी नहीं।

अचानक से उसे एहसास हुआ कि जैसे वो कालेज में पढ़ने लगा है। मां की वर्षो की मेहनत रंग लाई है।  उसने दंसवी की परिक्षा पास कर ली है।  फिर उसे दिखता है कि बड़े भाई की शादी हो गयी है और वो अलग भी हो गए  है। फिर, शायद छोटे भैया की भी शादी हो चुकी है। अचानक से ही उसे एहसास होता है कि वो अब नौकरी करने लगा है। पैसे कमाने लगा है मगर उसकी मां तकलीफ में है। फिर उसे दिखाई देता है कि जैसे उसे किसी ने कैद कर लिया है, जैसे की वो किसी अंधेरी, काली गुफा में बंद है जहां ना तो उसे रौशनी दिखाई देती है और नहीं हवा ही आ रही है। उसका दम घुटने लगता है। वो छटपटाता है, अपने हाथ पांव मारता है, मगर वहाँ से निकल नहीं पता। तभी उसे अँधेरे में से किसी के स्पर्श का एहसास होता है। यह तो मां का ही हाथ है जिसे पककड़ कर वो एक बार फिर से उजाले में चला आता है। एक बार फिर से उसे अपने चारो तरफ खुशियां और चहल पहल दिखाई देती है। 

लेकिन तभी अचानक से उसे वो दृश्य देखाई देता है जिसे देखकर वो अपनी पुरे जीवन काल में पहली बार और शायद आखिरी बार रोया था। सामने उसकी मां का शव पड़ा हुआ था। वो सुहागिन मरी थे मगर उसके जीवन को नर्क बना देने वाला उसका पति आज भी कहीं दिख नहीं रहा था। मरने से पहले अपनी तंग हालत के कारण कुछ धन रमन ने अपनी माँ से लिया हुआ था जिसे लौटाने में वो असफल रहा था और एक दिन उसी धन की कमी के कारण उसकी मां की दवाइयों की कमी से मृत्यु हो गयी थी। उस दिन के बाद से उसने खुद को कभी भी क्षमा नहीं किया था। यहां तक कि उसे मां के मरने की खबर भी लगभग चालीस दिनों के बाद सुनने को नसीब हुआ था। मां मर चुकी थी और अब उसके पास उसके ऐसा कोई भी नहीं बचा था जो उसके दर्द को समझ सके। फिर उसे लगता ही कि सही है उसके साथ ऐसा ही होना भी चाहिए था। जिसने जीते जी कभी किसी की खबर नहीं ली थी उसे उनके मरने की खबर पाने का भी कोई हक़ नहीं था।

जो तकलीफ उसके कारण उसके मां को हुई थी अब उसके गुज़र जाने के बाद इसके उस स्थान पर मौजूद होने से उसके मां की आत्मा को शान्ति नहीं मिलती। इसे तो ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए थी। तभी मां उसके पास आती है और उसे अपने गोद में उठाते हुए फिर से उसके बिस्तर की तरफ लिए जाने लगती है।  रमन चीखता रहता है कि उसे अभी कुछ और देर यहाँ रहना है। कुछ गलतियों को सुधारना हैं मगर मां टस-से-मस ना हुई।  वो उसे बिलकुल उसी तरह उस स्थान से दूर लिए जा रही थी जैसे कोई मां अपने जिद्दी बच्चे को खिलौने की दूकान से खींच कर लिए जाती है। उसे मालूम होता है कि यह खिलौने इसके काम का नहीं है। इसका रोना धोना बस दो क्षण की बात है।  एक बार उसे वो मिल जाए तो अगले ही क्षण वो उसे तोड़ दे। रमन रोता रहा, गिड़गिड़ाता रहा किन्तु माँ ज़रा सा नहीं डिगी और उसे लाकर वापस उसी बिस्तर पर पटक दिया जहां से उसे उठाकर ले गयी थी। इस समय मां की आँखों में थोड़ी सी नाराजगी के साथ थोड़ी सहानुभूति भी थी। बिस्तर पर पड़ते ही उसका शरीर फिर से हल्का हो गया। उसके बदन की ताक़त फिर से क्षीण होने लगी। उसके आँखों से अश्रु बह निकले। वो छटपटाने लगा, फिर से हाथ पांव मारने लगा मगर तभी मां वहां से अदृश्य हो गयी।

एक बार फिर से बिस्तर पर पड़ते ही रमन जैसे मूर्छित सा हुआ जाता था।  फिर से अज्ञानता उसे अ पने पाश में बांधने लगती है लेकिन तभी उसके दोनों भाई आगे आकर उसका हाथ थाम लेते है। भाइयों का हाथ मिलते ही जैसे उसकी डूबती साँसों को कोई सहारा मिल गया था।  दोनों भाइयो ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ फिर से बिस्तर से उतारकर अपने साथ लिए चले।  वे लोग भी उसी रास्ते पर चल रहे थे जिसपर मां उसे लेकर गयी थी मगर उनका कमरा अलग था।  वे दोनों उसे उस कमरे लिए गए जहां उन तीनो के कपडे और क़िताब वगैरह हुआ करते थे। अब रमन उस सुनहरे दौर से गुजर रहा था जब उसकी उसके भाइयो से खूब बनती थी। वो दोनों ही उसपर जान लुटाते थे।  खुद ज्यादा पढ़ नहीं पाए मगर उन्होंने रमन की पढ़ाई में कभी भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।  रमन उनके साथ बचपन की गलियों से होता हुआ अपनी जवानी तक जा पहुंचा।  इस दौरान उसने उन सभी पलों को फिर से जिया जिसे उसने कभी अपने सच्ची ज़िंदगी में जिया था।  उसे उस दिन का दौरा करने का मौक़ा मिला जिस दिन पहली दफा उसे अपने बड़े भाइयो के कपडे सही तरह से बदन में बैठे थे।  अपने भाइयों के साथ पहली फिल्म फिर पहली बार का सैर सपाटा सबकुछ याद आता जा रहा था।  एक-एक करके अच्छे बुरे सभी यादों से होता हुआ वो वहां जा पहुंचा जहां उसके बड़े भाई की शादी हुई थी। यह वही दिन था जहाँ से रमन के परिवार की किस्मत बदल गयी थी। रमन के परिवार के जीवन यात्रा को दो हिस्सों में बाँटा जा सकता है।  एक, बड़े भाई के शादी के पहले की और दूसरा उसके बाद की।  लेकिन आज उसके मन में किसी तरह का कोई बैर नहीं था।  उन गलियों से गुजरते हुए ही अचानक से बड़े भाई ने साथ छोड़ दिया।  रमन ने कमरे की दीवार पर टंगे हुए कैलेण्डर को देखा तो पता चला कि यह दिन जून २००८ के १६ तारीख की थी।  यही तो वो दिन था जिस दिन उसके बड़े भाई की कैंसर के कारण मौत हो गयी थी।


इस दौरान उसके बड़े भाई ने अपने हिस्से के क़िस्से और खेद भी बताये थे। वो उससे उसे छोड़े जाने के लिए दुखी था।  मगर उस समय उसके लिए जो करना सही लगा था वही किया था।  कल तक वो अपने बड़े भाई को थोड़ा बहुत भी दोषी मानता था मगर भाई के आंसू ने उसके मन का हर अवसाद बहा दिया।  इसके बाद मझले भैया की पारी आयी। वो शुरू से लेकर अंत तक इस सफर में उअके साथ रहा था। बड़ा भाई कभी-कभी आता और चला जाता मगर मझले भाई ने कभी भी उसका साथ नही छोड़ा था।  कालेज से लेकर उसके नौकरी के लिए बाहर जाने तक वो हमेशा ही उसके साथ रहा था।  मगर अचानक से वो भी गायब हो गया।  यकायक रमन को कैलण्डर की याद आयी तो देखा कि यह तो वही समय था जब उसने अपने ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती  की थी।  उसने अपनी ज़िंदगी में पहली बार घर छोड़ा था।  और शायद आखिरी बार भी क्यूंकि उसके बाद से मरते दम तलक उसे कभी अपना घर नसीब नहीं हुआ।  दोनों ही भाई ने कभी भी उससे दगा नहीं किया था।  समय और हालात के आगे मज़बूर होकर उन्हें अलग होना पड़ा था।  मझला भाई कभी अलग भी नहीं हुआ था मगर वो साथ भी नहीं था।  एक ही मकान में रहते हुए भी कभी दोनों के बीच पहले जैसा व्यवहार नहीं रह पाया था।  आज रमन सभी के अंदर के अकेलेपन को देख रहा था।  उसे मालूम पड़ रहा था कि ताउम्र उसने खुद को जितना अकेला जितना अधूरा, जितना कमज़ोर महसूस किया था उसके दोनों बड़े भाई भी लगभग उतने ही अकेले और शक्तिहीन थे।  बस अपने ऊपरी आवरण को इतना कठोर बना रखा था कि कोई उसे भेद नहीं सकता था।  वो तीनो खुद भी उसे भेद नही सकते थे।  मगर आज उन तीनो के बीच की यह दीवार टूट गयी थी।  जाते जाते बड़े भाई ने उससे गले मिलने का मन तो जताया मगर मिल नहीं पाया।  रमन को याद आया कि उसने ऐसा क्यों हुआ, क्यूंकि जिस घड़ी उसकी मौत हुई थी वो उसके सामने होकर भी उससे मिल नहीं पाया था या फिर यूं कहे कि मिला ही नहीं था।  उसने उसे दूर से देखा था और फिर वहीं से लौट गया।  मझले भाई की मौत कब हुई उसे ज्ञात नहीं था।  कल तक उसे यह मालूम भी नहीं था।  किन्तु आज बाकी सभी के साथ उसे देखकर रमन को पता चला कि अब वो भी नहीं रह।  जिस तरह से बड़े भाई ने हाथ छोड़ा था उसी तरह से मझले भाई ने भी उसे बिना अलविदा कहे ही साथ छोड़ दिया और गायब हो गया।


रमन फिर से अकेला हो गया और अधूरा भी।  उसे इस समय किसी के लिखे हुए एक शेर की याद आ रही थी " भाई मरे बल घटे ---------"।

उसने अपनी आँखें बंद कर ली और हाथ जोड़कर अपने दोनों बड़े भाइयो से क्षमा याचना की।  उसे लगा जैसे कि उसके तन से कुछ कटकर, नहीं-नहीं चीर कर अलग हो रहा है। ऐसी पीड़ा उसने अपने वास्तविक जीवन में भी कभी अनुभव नहीं की थी।  उसके आँखों से अश्रु की धार लगातार बहती जा रही थी।  वो चाहता था कि उसके बड़े भाई एक बार फिर से उसे गले लगा ले और कहें कि "जाने दे छोटे जो हुआ सो हुआ इसमें तेरा कोई दोष नहीं है।  हमने तुझे माफ़ किया, तू तो छोटा भाई है अपना, भला तुझसे कैसी नाराज़गी"। मगर ऐसा हो ना सका।  दोनों ही गायब हो चुके थे।  एक बार फिर से उसकी आंख खुली तो खुद को उसने उसी बिस्तर में पड़े हुए पाया।  हर बार उसके दाएं तरफ खड़े लोगो की संख्या घटती जा रही थी।  इस बार बस दोनों बहाने बची थी।  उनके पास कहने के लिए ज्यादा कुछ था नहीं।  बस दोनों ही अपने हाथों में ढेर सारे राखियां लिए हुए थी।  रमन ने पिछले ३५ सालों से कभी भी अपनी कलाई पर राखी नहीं बंधवाई थी।  ये उन्ही ३५ सालो की राखियाँ थी जो दोनों बहने हाथ में लिए हुए खड़ी थी।  रमन ने अपनी कलाई आगे बढ़ा दी मगर दोनों बहनो ने राखी बांधे बिना ही विदा ले लिया।  वो दोनों कब भगवान को प्यारी हुई थी रमन को पता ही नहीं था।  मगर आज यहां देखकर जान गया कि सभी उसका भगवान के घर में उसका रास्ता देख रहे है।  बहने चली गयीं और साथ में दोनों जीजा भी जाते रहे।  मतलब कि अपने घर के सदस्यों में से सिर्फ रमन बचा हुआ था जो कि अभी तक मरा नहीं था।  वो भी ऊपर वाले के दरवाजे पर खड़ा हुआ द्वार खटखटा रहा था मगर द्वार खुलने में अभी थोड़ा और समय बाकी  था।

जो अश्रु उसे स्वप्न में बहते हुए लग रहे थे दरअसल वो सच में उसके नेत्रों से बह रहे थे।  जो बातें उसे मालूम होता था कि वो स्वप्न में कर रहा था वो वास्तव में अपने हीं बच्चो के साथ कर रहा था। वो सारी यादें जो उसे सताये जा रही थी वो सभी उसके बच्चों को भी सुनाई दे रही थी। माला को समझ आ गया था कि उसका पिता अब बस चन्द घड़ियों का हीं मेहमान है। उसका बेटा जान चुका था कि उसके सिर से अब बाप का साया उठने हीं वाला है।  मगर सबकुछ जानते हुए भी वो दोनों कुछ करते ना थे। कारण साफ़ था, एक बार रमन ने अपने बच्चों को कहा था कि "जिस दिन भी तुम्हे यह लगे कि मैं मरने वाला हूँ तो जान लेना कि असल में मैं मर चुका होऊँगा।  मेरे पीछे किसी तरह के दवा-दारू करवाने की ज़रुरत नहीं।  अगर तुम्हे ज्यादा परेशानी हो तो पहले से ही अंगदान के अधिकारियों को इत्तला कर देना। मेरे मरने के बाद मेरे शरीर को जलाने की भी कुछ करने की ज़रुरत नहीं। उनसे कहे देना कि अगर उन्हें चाहिए तो मेरी हड्डियां भी ले सकते है। चाहे तो मांस का प्रयोग किसी काम में कर सकते है। मैं नहीं चाहता कि मेरे जाने के बाद तुम लोगों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना करना पड़े। ना तो मेरा अंतिम संस्कार का बोझ लेना और ना ही श्राद्ध हीं करना। तुम पर मेरी खातिर केश नाखून करने का भी कोई प्रतिबन्ध नहीं रहेगा। मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि मेरे मरने की खबर किसी भी रिश्तेदारों को देकर उनका समय और धन खराब करने की भी आवश्यकता नहीं है। बस तुम लोग मुझे हंस कर विदा कर देना इतना ही काफी है।  बेटा तो सख्त दिल होता है , या फिर उसे खुद को सख्त दिल बनाये हुए ही रखना होता है, मगर बेटी? एक बेटी अपने बाप को किस तरह से बिना मुक्ति के विदा कर सकती थी।   

बेटी ने बाप की एक ना सूनी और डाक्टर को बुलाने की कोशिश करने लगी मगर तभी रमन ने उसका हाथ पकड़ लिया और दोनों हाथो को जोड़ते हुए बोला कि मेरे किये की सजा पाने से मुझे ना रोको। मुझे इसी दर्द में तड़पते हुए मरना है। सुकून से जाऊंगा तो अपने परिवार से नज़र नहीं मिला पाउँगा, हाँ मगर मुझे इस तरह से तड़पते हुए मरता देख शायद उनकी आँखों भी नम हो जाए और मेरा पाप कुछ काम हो जाए।  मैं उन सबसे उसी तरह मिलना चाहता हूँ जैसे वे लोग अपने तन को छोड़ते हुए गए थे। मां बेचारी तरसते और तड़पते हुए मरी थी , बड़े भाई की भी मौत दर्द से तर होते हुए हइ थी। मझले भाई और दोनों बहने कब और कैसी मरी मुझे पता ही नहीं चल सका। मगर आज मैंने उन सभी को देखा है, वे सभी लोग अपनी बाहें पसारे मेरा रास्ता देख रहे है।  सभी तो है वहाँ, बस मैं ही नहीं।  कितना अभागा हूँ मैं मुझे ही सबसे काम समय उन लोगो के साथ नसीब होता है। जन्मा भी सबसे बाद में और मर भी रहा हूँ तो सबसे आखिर में। मुझे यक़ीन है कि जैसे ही मैं उनके पास जाऊंगा वे लोग फिर से अपने किसी यात्रा पर निकल जाएंगे।  मुझे फिर से अकेला छोड़ कर चले जाएंगे।  मुझे अब और यहाँ नहीं रहना है।  इतना कहते हुए रमन ने फिर से आँखें मूँद ली और फिर से उसे स्थान पर जा पहुँचा जहां उसके अपने उसका रास्ता देख रहे थे।  रमन का बदन ठंडा पड़ने लगा था।  नब्ज़ धीमी होती जा रही थे, सांसे रुक-रुक कर आती थ। कभी अपनी हाथ हिलाता तो कभी बस एक ऊँगली। कभी पलकें कांपती तो कभी होंठ। कभी हँसता तो कभी आंसू बहाता। यह सबकुछ हो रहा था मगर रमन जाग नहीं रहा था। बेटी समझ रही थी कि वो अपने आख़िरी सफर के साथियों से मुलाक़ात कर रहा हैं । वो बस उसके सिरहाने बैठे हुए उसके शिथिल होने का इंतज़ार कर रहे थी। उसकी आँखे नाम थी मगर उसके चेहरे पर खुशी थी। उसने जैसे अपने पिता को उम्र भर देखा था वैसे ही जाते समय भी उसे देख रही थी।  बिलकुल ज़िद्दी, एकदम ज़िंदादिल उसे इससे ज्यादा और क्या चाहिए था।       

इस बार रमन जब द्वार के उस पार जागा तो उसके बाएं हाथ के पास उसके तीन दोस्त खड़े थे। अब पारी उनकी थी जिनसे वो प्यार करता था। ये वही तीनो मित्र थे जिनके साथ रमन ने अपने छात्र जीवन के और अपने कर्मठ जीवन के कीमती ६ साल बिताते थे।  सच तो यह था कि उनके बाद रमन ने किसी के भी साथ आज तक कभी मित्रता नहीं की थी। आज मगर उनमे से किसी का चेहरा साफ़ नज़र नहीं आता था।  शायद ४० सालों के दूरी ने उनका चेहरा भी धुँधला कर दिया था।  बस उनकी पुरानी आवाज़ से वो उन्हें पहचान रहा था। उनके साथ वो उन गलियों में गया जहां उसकी कालेज के दिन थे। वही दिन जब उसे पहला प्यार हुआ था। वही दिन जब उसकी पहली नौकरी लगी थी। वही दिन जब उनमे से किसी एक ने उसे अपने जाल में फंसाकर उसका पूरा जीवन ही नष्ट करने की कोशिश की थी। एक-एक करके वो सभी के साथ जाता और उसके हिस्से की कहानी सुनता और अपने हिस्से की कहानी बताता। किसी को पछतावा था तो किसी को क्रोध था। किसी को दर्द था तो कोई खुश था मगर सभी उससे बिछड़ कर दोस्ती से मुँह फेर चुके थे। पता चला कि उनमे से एक ने कभी शादी ही नहीं की। दूसरे ने शादी की मगर कभी घर भी बसाया मगर अंदर से कभी खुश नहीं रहा पाया। एक बन्दा जिसे वो सबसे ज्यादा प्रेम करता था उसने तो पश्चाताप करने के लिए अपना जीवन ही खराब कर लिया। सभी उसके आने की राह देख रहे थे। सभी उससे क्षमा मांगना चाहते थे। कुछ रमन के हिस्से की भी माफी थी मगर जब दोस्त खुद ही झुक जाये तो फिर अपने हिस्से की गलती कौन ही सुनाता है। दोस्तों में यही तो होता है ना? एक दूसरे की टांग खींचना, एक दूसरे को लंगड़ी मारना और अपने किये का दंड दूसरों को भूगतावाना।

दोस्तों से मिलकर उसका मन प्रफुल्लित हो गया था।  अभी तक जिनसे भी वो मिला था सभी के अपने हिस्से के दर्द थे, शिकायतें थी , उम्मीदें थी, उलाहनाएं थी। मगर दोस्ती मे यह सब कुछ नही होता। दोस्ती मे भले ही सामने रहने पर आपकी टाम्ग खिंची जाये मगर जब भी कभी मौका पड़ जाता है तो दोस्त अपनी जान लुटाने से भी बाज़ नही आते। हाँ एक उनमे से दो ने उसे ज़ख्म दिये थे मगर एक ने उसक साथ भी तो दिय था। और फिर वो दोस्ती ही क्या जिसमे आपका कुछ नुकसान ना हो। आखिर दोस्ती नफा-नुकसान देखकर तो की नही जाती ना। रमन अब ऐसे हालात मे ( जब वो जान चुका था कि बाकी सभी मारे गये है) उनसे किसी तरह का गीला नही रखना चाहता था। उसने अपने आश्रुओं से साथ अपने मन के सारे शिकवे भी धो डाले थे। उसके पास अब ना तो इतन असमय ही बचा था और ना ही इतनी आत्मशक्ति कि वो बिते हुए बातों के लिये उनसे हुज्जत करे। उसे तो यह समय बस अपने जीवन के कुछ सबसे किमती और हँसीन पल बिताने को मिके थे तो उसे भला कैसे बेकार जाने दे सकता था। लेकिन बाकि लोगों की मिलन के तरह इस मिलन का भी अंत होने वाला था। कुछ खास लम्हों के बाद वे तिनो ही लोग अचानक से उसके सामने से ओझल हो गये। तिनो ही उसे छोड कर तीन अलग-अलग दिशा मे प्रस्थान कर रहे थे। यह एक संकेत था कि कैसे वे तीनो एक दुसरे के जीवन से  लुप्त होते गये थे। सबसे पहले रमन उनसे अलग हुआ, बाकि तिनो साथ थे। फिर तीसरा उन दोनो से खुद ही अलग हो जाता है।

 फिर वो दोनों अकेले हीं चले जाते थे। काफी दूर तक दोनों साथ-साथ चलते रहे थे। तबतक जबतक की उनकी छाया भी धुँधला ना गई। मगर इसके पहले कि वो नेत्रों से ओझल हो जाते वे दोनों भी अलग होते हुए नज़र आये थे। चलो कम-से-कम प्राण निकलने के पहले उसे इस बात का एहसास हो गया था कि वो केवल वो ही अकेला नहीं था बल्कि और उसके बाकी साथी भी उतने ही अकेले थे जितना कि वो। पिछले चालीस साल से वो जिस अकेलेपन से जूझ रहा था उसके बाकी दोस्तों ने भी उस दर्द को महसूस तो किया था, भले ही चार दिनों के लिए ही सही। रमन की सांस उखड़ती जाती थी। उसके होंठ फड़फड़ाते थे, वो अपना सर दाएं-बाएं दोनों हीं तरफ हिलाता था। मानो जैसे कहना चाह रहा हो कि उसे इस भ्रम के दुनिया से कोई बाहर निकला दे। सहसा उसके कानो में एक आवाज़ ने दस्तक दी। रमन ज़रा शांत होने लगा। उसे लगा जैसे कि यह आवाज़ उसे अपनी तरफ खींचती लिए जा रही थी। वो अपने अधखुले आँखों को फिर से बंद किये लेता है।  

इस बार उसके सामने एक औरत की छाया उभरती है।  मारे उजाले के उसकी आँखें चौधिया जाती है। वो बड़ी मशक्कत से अपनी आँखों को खोले हुए रहता है। कभी अपनी हाथ से उसे छुपाता है तो कभी पलकों को कसकर बंद किये जाता है। वो आवाज़ धीरे-धीरे उसके क़रीब और क़रीब आती जाती है। रमन की आंखें अब भी बंद हीं रहती है। तभी वो आवाज़ उसके एकदम पास चली आती है और बिना किसी अग्रिम सुचना के सहसा उसका हाथ पकड़ लेती है। उसे बिस्तर से उठाती हैं और अपने साथ लिए जाती है। मगर यह क्या, जैसी-जैसे वो उसके साथ आगे बढ़ता जाता है वैसे-वैसे वो प्रकाश मद्धिम पड़ता जाता है। और जैसे ही वो उसे एक कमरे में लेकर प्रवेश करती है पूरा कमरा हीं अँधेरे में डूब जाता है।  

  रमन इस कमरे की तरंगों से वाक़िफ़ था।  यह वही कमरा था जिसे उसने अपने मन में जाने कब से छुपा कर रक्खा हुआ था। यह उसके निजी जीवन के काले सच्चाई, गहरे ज़ख्म, हरे घावों, और ना जाने कितने हीं दर्द से भरी हुई बातों का कमरा था। इसे उसने सभी से बचा कर रक्खा था।  इसके बारे में उसने कभी भी किसी से ज़िक्र तक नहीं किया था। यह कमरा रमन के पूरे जीवन का कच्चा चिट्ठा था।  इसके बार एमए किसी को भी मालूम नहीं था। ना तो उसके मां को ना उसके भाइयों को ना हीं उसके दोस्तों को और नाही उसकी पत्नी को हीं।  याद आया कि एक बार किसी एक कमज़ोर लम्हे में उसने अपनी पत्नी से इस कमरे के बारे में ज़िक्र तो किया था मगर अगले हीं क्षण खुद को इसके बार में बात करने से रोक भी लिया था।  और शायद इसीलिए आज उसके अंतिम क्षणों में सिर्फ उसकी पत्नी हीं उसे इस कमरे तक ले आने में सक्षम हुई थी। इसके अलावा किसी ने भी इस कमरे की बात तक नहीं की थी।  

रमन अंदर जाते हीं चीख पड़ा।  उसे उन सभी ज़ख्मो के दर्द उन सभी घावों के पीड़ा उन सभी राज़ के गला घोटू चुप्पी ने दबाना शुरू कर दिया था।  सुमन ने उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर कमरे के एक एक कोने तक की सैर करने लगी। यही किसी कोने में उसे उसके बाप की तस्वीर मिली थी।  जिसपर चाक़ू के अनगिनत वार के निशाँ बने हुए थे। तस्वीर पुरी थी मगर इतनी दर्दनाक तरीके से उसपर वार किया गया था कि साफ़ पता चलाता था कि रमन के अपने बाप के बारे में सोच कैसी थी। उस तस्वीर के एक आँख फोड़ी गयी थी। एक हाथ के कई टुकड़े किये गए थे।  ऐसा लगता था जैसे मनो कि किसे ने अपने सम्पुर्ण  जीवन का क्रोध उसी तस्वीर पर निकाला हो। उसके बाद उसे वहां एक लड़की की तस्वीर मिली जिसे बड़ी हिफाजत से संवार कर रक्खा गया था।   

तस्वीर साफ़ थी और उसका हरेक हिस्सा अनछुआ सा लगता था।  रमन उसे एक बार नज़र भर कर देखना चाहता था मगर सुमन ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। वो उसे उस तस्वीर के सामने से फ़ौरन लेकर चली गयी। इसके बाद एक गत्ते के डिब्बे से एक एक करके कुछ यादें निकलती गयीं। किसी में दोस्त थे तो किसी में उसके दुशमन थे।  रमन हरेक यादो की शीशी को उठाता देखता और उसके अनुसार अपने चहरे के भाव भी बदलता रहता।  सुमन उसके हरेक भाव को देखकर यह समझने की कोशिश करती ही उसके मन में खुशी है या फिर तकलिफ़। लेकिन तभी सुमन फर्श पर पड़े एक कागज़ पर पड़ती है।  

यह रमन की तस्वीर थी मगर उसका चेहरा कुछ बदला हुआ था।  दिखने में तो रमन हीं था , वही नाक-नक्श, वही आँखे, वही व्यक्तित्व, मगर अन्जाना सा मालूम होता था। रमन भी वहां जा पहुँचा और सुमन के हाथो से वो तस्वीर छीन कर दूर फेंक देता है। मगर यह क्या अगले हीं क्षण फिर से वो तस्वीर सुमन के हाथों में थी।  रमन फिर से उसे फेंकता है और सुमन फिर से उसे पा लेती है।  रमन समझ जाता है कि सुमन को जबतक इसके बारे में सबकुछ सच-सच पता नहीं चल जाता वो सुकून से इस संसार से विदा ना होने पायेगा। थक कर वो सुमन के साथ वही पर बैठ जाता है और उस तस्वीर को हाथ में लेकर कहता है।  एक यही सच मेर मन में बोझ सा बना हुआ था जिसे मैंने तुमसे कभी नहीं बताया।  नहीं, सिर्फ तुमसे हीं नहीं मैंने किसी से भी यह नहीं बताया।  यह मैं हीं हूँ या फिर अगर मैं ऐसे कहूँ कि " मैं यही हूँ " तो ज्यादा सही रहेगा।  शादी के दो साल पहले तक मैं यही था। मगर उस दौरान मेरे साथ मेरे दोस्तों ने ऐसा कुछ किया..... यह कहते हुसे उसने पुरी तस्वीर हीं उसके सामने साफ़ कर दी।  और फिर दिल हल्का करते हुए कहा .... अपने इसी सच को या यूं कहूँ कि इसी डर को मैंने तुमसे ज़िंदगी भर छुपाये रखा था।  मगर अब मैं चैन से मर पाऊंगा।  चलो तब ना सही अब हीं सही।  मैंने तुमसे सच तो बता हीं दिया, अब चाहे मुझे वपर वाला जो भी सजा दे मंजूर होगा।    

इतना कहते हीं रमन वापस से सच के संसार में लौट आया।  वो अब भी उसी बिस्तर पर लेटा हुआ था।  माला अब भी उसके सिरहाने पर बैठी हुई थी।  रोहित अभी भी उसके पेअर के सामने खड़ा हुआ था।  मगर दोनों के हीं हाथो में कुछ कागज़ात थे।  वो कागज़ात जो रमन ने अपने कमरे के अंदर एक गुप्त संदूक के तीन तह के अंदर दबा कर रखे थे।  यह उसके बचपन के स्कूल के सर्टिफिकेट, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, और पैन कार्ड थे।  दोनों ही बच्चे बड़े गौर से उन्हें देख रहे थे और कुछ समझने का प्रयास कर रहे थे।  रमन ने उन दोनों के हीं तरफ नम नेत्रों से देखते हुए अपने हाथ जोड़ लिए और माफी माँगने की मुद्रा बनाये हुए रोने लगा।  माला के आँखों में गर्व था और रोहित के आँखों में विस्मय।  दोनों इस सदमे से उबरते उसके पहले हीं रमन के प्राण पखेरू ने उसका तन छोड़ दिया।  वो इस संसार के कैद से मुक्त हो गय। आज वो फिर से अपने मूल स्वरुप में लौट चुका था।  वो फिर से वही बन चूका था जिसे उसकी माँ ने अपने कोख से जाना था।  अपने पुराने परिचय में , अपने मूल रूप में अपने वास्तविक पहचान में।  आज रमन, रमन से  मुक्त हो चुका था।
 

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रचनाएँ
संस्मरण
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उस दिन हर रोज़ की तरह हीं मैं अपने समय पर आफिस के लिये घर से निकला। निकलते समय हीं मेरी बेटी ने कहा कि आज उसे ट्युशन पढने के लिये सुबह हीं जाना है। जाने क्युं मगर उस सुबह मैंने अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजा था। पता नहीं मन में क्या चल रहा था कि उसे स्कूल भेजने से मुझे कोताही हो रही थी। मेरी पत्नी मेरी बेटी को अकेले पढने जाने देना नहीं चाहती थी। तो मैंने मज़ाक मे हीं उनसे कह दिया कि आज तुम ही बेटी को पढने छोड आना। चुकि मेरे दोनों हीं बच्चे एक ही जगह पर पढते है तो दोनों को एक ही साथ जाना भी पडता है। मेरी पत्नी घर से बाहर का कोई भी काम नहीं करती है। उसके सारे कम मुझे हीं करने पडते है और इसमे मुझे कोई शिकायत भी नहीं है। वो विगत लगभग पांच सालों से मांसिक रोग से संघर्ष कर रही है। मगर आज तक कभी भी टूटी नहीं। हालांकि मैं उसके रोग़ के विषय में यहाँ चर्चा नहीं करना चाहता था पर ऐसा ना करने से आगे हुई घटना को आप सही से समझ नहीं पायेंगे इसिलिये मुझे यह बताना पडा। मैं घर से निकलकर सही समय पर आफिस जा पहूंचा। सब कुछ किसी आम दिन के तरह हीं चल रहा था। तभी मेरे फोन की घंटी बज उठती है।
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एक दिन

15 अक्टूबर 2023
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वेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवें सोनू जरा उठो न देखो मुन्ना रो रहा है उसको जरा दूध तो पीला दो। हाँ बस दस मिनट दस मिनट तक बच्चा रोते रहेगा क्या? जाओ उठकर जल्दी से उसका खाना लेकर आओ अच्छा बाबा अच्

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दौड – मौत से ज़िंदगी की तरफ

15 अक्टूबर 2023
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मैं विकास। मुझे आज भी वो दिन बिल्कुल शीशे की तरह याद है, १५ अप्रिल २००३ सुबह के साढे नौ बजे थे। मैं अभी सुबह का नाश्ता कर रहा था क्युंकि आज मुझे  नौकरी पर जल्दी जाना था। दिन सोमवार का था और मुझे आज कि

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अनहोनी या चमत्कार

15 अक्टूबर 2023
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उस दिन हर रोज़ की तरह हीं मैं अपने समय पर आफिस के लिये घर से निकला। निकलते समय हीं मेरी बेटी ने कहा कि आज उसे ट्युशन पढने के लिये सुबह हीं जाना है। जाने क्युं मगर उस सुबह मैंने अपने बेटे को स्कूल नहीं

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अगर तुम साथ हो

15 अक्टूबर 2023
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बात साल 2016 की है, यही सितम्बर का महिना था। पुरा भारत एक परिवर्तन से गुजर रहा था। इस समय सुचना-प्रोद्योगिकि में भारत बडी रफ्तार से आगे बढ रहा था। तत्कालिन समय मे भारत मे तीन बडी टेलीकॉम कंपनियाँ  थी

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क्या हम सच में है?

15 अक्टूबर 2023
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हम अपने पुरे जीवन में जो कुछ भी करते है, जिसे हम कहते है कि हमने किया है, क्या वो सब कुछ सच में हम ही करते हैं? या फिर वो सबकुछ हमारे द्वारा किये जाने के लिये किसी ने पहले से तय करके रखा हुआ है। हम चा

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तुम बदल गये हो!!

15 अक्टूबर 2023
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सुनो, पिछले कुछ दिनों से मैंने महसूस किया है कि अब हमारे रिश्ते में पहले जैसी गर्माहट  नही रही। अब शायद हम दोनों के बीच वैसा प्यार नहीं रहा जैसा तीन साल पहले हुआ करता था। मुझे लगता है कि तुम बदल गये ह

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मदिरा की आत्मकथा

15 अक्टूबर 2023
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मैं मदिरा, आप सभी मुझे शराब या दारू के नाम से जानते है। वैसे तो मुझे शराब, हाला, आसव, मधु, मद्य, वारुणी, सुरा, मद इत्यादी के नाम से भी जाना जाता है मगर प्राचिन काल मे मुझे बस एक ही नाम से जाना जाता था

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तेरा बाप कौन है?

15 अक्टूबर 2023
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मुहल्ले गली में खेलते हुए बच्चों के झुंड मे से एक बच्चे को बाकि के सभी बच्चे बडी देर से चिढा रहे थे- “तेरा बाप कौन है? तेरा अबाप कौन है? बता ना, क्या तुझे नही पता कि तेरा बाप कौन है?”। उन बच्चों के उप

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प्रिय पत्नि

15 अक्टूबर 2023
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कई दिनों से मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था मगर उसे कहने का उचित समय और पर्याप्त सामर्थ्य नहीं जुटा पा रहा था। आज जब हम-तुम दोनों ने अपने जीवन के चौदह साल एक दुसरे के साथ बिता लिया है तो मुझे तुमसे यह कहन

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सुखे पलाश

15 अक्टूबर 2023
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घर की सफाई करना भी एक थकाने वाला मसला है। हर रोज़ ही करने की सोचता हूँ मगर फिर खुद ही जाने भी देता हूँ। पिछले तीन हफ्तों से यह मसला मेरे ज़हन में लगातार द्स्तक देता रहा है और मेरे आलसी स्वभाव से आज़ीज आक

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अंतिम सफर

15 अक्टूबर 2023
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रमन अपने किराए के मकान के एक कमरे में बिस्तर पर पड़ा हुआ है। उसके पास उसकी ३० साल की बेटी और लगभग २२ साल का बेटा सिरहाने पर खड़े हुए है। कमरा रौशनी से भरा और हवादार है। उसे हमेशा ही खुले वातावरण में रहन

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एक पत्र बेटी के नाम

15 अक्टूबर 2023
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मेरी १३ साल की बेटी कई दिनों से कर रही थी कि मैं उसके बारे में लिखूं।  मगर क्या लिखूं यह नहीं बता पाती है।  हुआ कुछ ऐसा था कि उसके स्कूल में अपने प्रिय व्यक्ति के विषय में एक लेख लिखने को कहा गया था त

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स्वर्ग-ज़न्नत-ओमकार-हीवन

15 अक्टूबर 2023
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रायपूर से छुटने वाली गाडी के फर्स्ट क्लास के डिब्बा नम्बर ए.से०१ का कमरा। उस कमरे के अंदर हमारे समाज के चार अलग अलग समुदाय के लोग बैठे है। अब उनमे मे कौन किस समुदाय का है यह बाहर से देखकर समझना जरा भी

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एक रुपये के चार फुलौरियाँ

15 अक्टूबर 2023
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फुलौरियाँ समझते हैं? वही जो चने के बेसन को फेंट कर उसमे जरा सा कलौंजी, थोडा अज्वाइन, ज़रा सी हल्दी, स्वाद के अनुसार नमक इत्यादी मिलाकर उसे पहले फुर्सत से फेंटते है। तब तक फेंटते है जब तक कि उसका गोला प

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