shabd-logo

स्वर्ग-ज़न्नत-ओमकार-हीवन

15 अक्टूबर 2023

2 बार देखा गया 2

रायपूर से छुटने वाली गाडी के फर्स्ट क्लास के डिब्बा नम्बर ए.से०१ का कमरा। उस कमरे के अंदर हमारे समाज के चार अलग अलग समुदाय के लोग बैठे है। अब उनमे मे कौन किस समुदाय का है यह बाहर से देखकर समझना जरा भी मुश्किल नही था। कौन किस समुदाय से ताल्लुक रखता है यह तो उनके पहनावे से ही दिख जा रहा था। एक ने हल्के हरे रंग की पठानी कुर्ता और सलवार पहन रक्खी थी लम्बी दाढी, सफाचट मूंछ और सिर पर एक जाली दार टोपी। दुसरे ने गेरुए रंगे की कुर्ते पर सफेद रंग का पायजामा पहन रखा था। गले में एक हनुमान जी की माला लटक रही थी और हाथों मे एक मोटी सी रक्षा सुतरी की कलाई बंध पहनी हुई थी उसके मूंछ उसकी शान को बयान कर रहे थे। तीसरे के सिर पर पगडी बंधी हुई थी जिसका रंग सफेद था, हाथों मे कडा, साथ मे एक छोती खंजर नुमा तलवार भी साथ मे थी। चौथा आदमी एक सफेद रंग के ओवर कोर्ट मे था। हाथो मे क्रास वाली माला लिये हुए और दुसरे हाथ मे एक धार्मिक पुस्तक पकडे हुए था। सभी कमरे के अंदर आकर अपने-अपने स्थान विराजमान हो गये।

कोई किसी से बात नही कर रहा था। सभी एक दुसरे को देखकर अपने नाक-भौंह सिकोडते हुए एक दुसरे से मुनासिब दूरी बनाये हुए और खुद मे ही खोये हुए सफर के शुरु होने का इंतज़ार करने लगे। इतनी देर मे आप यह तो समझ ही गये होंगे कि इनमे से कौन सा व्यक्ति किस समुदाय से सम्बंध रखता है। यह तो कोई छोटा सा बच्चा भी आसानी से समझ भी सकता है और किसी दुसरे को समझा भी सकता है। बहरहाल, ट्रेन चली और सभी अपनी-अपनी दुनिया मे खोये होने का आडम्बर करने मे व्स्त हो गये। एक दुसरे से बात करना तोप बहूत दूर इन चारो ने एक दुसरे के तरफ देखना तक मुनासिब नही समझा। काफी देर तक एक दुसरे से साथ मगर अलग-अलग सफर करते हुए भी इन चारो के बीच एक शब्द की भी अदला-बदली नही हुई थी। हाँ कभी-कभार एक दुसरे से नज़र टकरा जाने पर झूठी और बनावटी हंसी का आदान प्रदान जरूर हो जाता। तभी डिब्बे के अंदर चाय वाले ने आवाज़ लगाई “ चाय बोले, चा-चाय-चाय बोले, स्पेशल चाय बोले, गर्मागरम चाय बोले”। टोपी वाले ने चाय वाले को हाथों से इशारा करते हुए अपने पास बुलाया और एक चाय की पेशकश कर डाली। उसे चाय पीता देखकर कर पगडी वाले ने भी चाय वाले से एक चाय की तलब जतायी। उसके बाद गेरुए कुर्ते वाले ने और फिर अंत मे क्रास धारी साहब ने भी चाय ले ही लिया।

कमरे का माहौल उस चाय की वजह से थोडा सा सहज होने लगा था। जैसे-जैसे चाय की घूंट अंदर उतरती गयी वैसे-वैसे उन चारों के अंदर की कुंठा भी ठंडी पडती चली गयी। वो कहते है ना “पहले पहल कौन करे इसी चक्कर मे सफर बीत जाता है” वही सिल्सिला यहाँ भी चल रहा था मगर एक चाय वाले ने अपनी चाय पिलाकर सभी के मन के अंदर के गुबारे को शांत कर दिया था और अब उस कमरे की गर्मी चाय की चुस्की से ठण्डी हो चली थी। चाय वाल चाय देकर जा चुका था और इन सभी लोगों ने अपनी-अपनी चाय पुरी कर ली थी। करीबन दस मिनट के बाद चाय वाल वापस लौटा अपनेंचाय के पैसे लेने के लिये। सबसे पहले पगडी वाले ने अपने जेब से पैसे निकाले और देने को हुआ। उसके आल्वा किसी की कोई हरकत ना देखते हुए चाय वाले ने उसी पैसे मे से सभी के चाय की कीमत काटकर बचे हुए पैसे उसे लौटाने लगा तो पगडी वाले ने उसे टोकते हुए कहा – बई, यार ऐ की कित्तई? तुसी सभी के पैसे मेरे सिर ही डाल दित्ता? यह सुनकर टोपी वाले ने कहा “सरदार जी, फोकर ना करो, उसने काट लिया तो क्या ही ममअला है, आप जनाब मेरे चाय के पैसे मुझसे ले लिजिए। इतना कहते हुए टोपी वाले ने अपने जेब से पैसे निकाल कर उसे देने की पेशकश की। तभी दुसरी तरफ से गेरुए वस्त्र धारी ने भी कहा – “यजमान, आप मुझसे भी मेरे चाय की कीमत ले लिजिए, इसमे उस बेचारे का कोई दोष नही है, हम ही ने अपने एतरफ से कोई तत्परता नही दिखाई तो इसमे वो बेचारा क्या ही सोच सकता है। बाकि दोनो को पैसे देते हुए देखकर क्रासधारी महोदय ने भी बिना कुछ कहे ही अपने सेब से चाय की कीमत निकाल कर सामने वाली सिट पर धर दिये। इस्के बाद फिर से एक लम्बे से सन्नाटे ने उस कमरे को अपने गिरफ्त मे ले लिया।

सरदार जी ने अपने मन मे सोचा – “कितने चालाक है यह लोग, किसी ने भी पहले अपनी चाय की कीमत नही चुकाई। जब मैं दे चुका तो अफसोस का झूठा दिखावा कर रहे है। ऐसी ही होते है सभी गैर धर्म वाले? सभी को बस दुसरों को लूटना आता है। हम जैसे दुसरों की सहायता करना नही आता। इन्हे तो बस जितना मिल सके उतना ही कम लगता है। एक दस रुपये की चाय पीकर भी इनके जेब से पहले पैसे नहीं निकले। तभी तो ये सभी आपस मे ही लडते रहते है। झुठी उदारता का दिखावा करते है, झूठी सहानुभुती और मर्यादा दिखाते है। सही है सबस अच्छा और सब्से सच्चा धर्म हमारा ही है।

दुसरी तरफ टोपी वाला सोच रहा था – “बस नाम के ही सरदार जी है यह तो, एक दस रुपये की चाय के लिये उस बेचारे लडके से लड पडा। वैसे तो ये लोग बडे ही दानवीर नने फिरते है। हरेक जगह अपने लंगड लगाते है, लाखों लोगों का पेट पालने का दिखावा करते है मगर एक अदने से चाय की कीमत देने मे ही इनके चेहरे से नक़ाब उतर गया”। दुसरी तरफ गेरुआ वस्त्र धारी सोच रहा था –“ सरदार जी को दिखावा करने का शौक जान पडता है। हम मे से किसी ने तो अपने पैसे देने मे कोई आना कानी नही की। यह तो उस बच्चे की गलती थी कि उसने उन्ही के पैसों से सभी के चाय की कीमत काट ली तो इसमे भला बाकी के लोग क्या ही कर सकते है?  

तीसरी तरफ बैठा पिताम्बर वाला सोच रहा था " यह सरदार जी भी कितना ही भोला और उदार है, जानता है कि बाकि दोनों मे से तो कोई पैसा देगा नहीं तो फिर मुझ तीसरे से भी क्युं ही पैसे लिये जाये शायद इसी लिए इसने मुझसे भी पैसे नहीं मांगे।  मगर पैसे नहीं मांगकर इसने कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है।  बल्कि खुद को एक बेवक़ूफ़ इंसान साबित कर दिया। मैंने आज के पहले इतना सीधा इंसान नहीं देखा।  मैं तो कभी  भी किसी अंजान आदमी पर अपने पैसे बर्बाद ना करूँ।  आखिर इन सभी से मेरा क्या ही रिश्ता है? सही गैर धर्म के लोग है । भला मुझे किसी से क्या ही मतलब है? यही सोचकर पीतांबर पहने हुआ आदमी चुपचाप अपनी आँखें मूंदकर ध्यान वाली  मुद्रा में चला गया।  ट्रेन अपनी रफ़्तार में थी, उसे इस बात से कुछ भी फ़र्क़ नहीं पड़ा रहा था की जिस लोगों को अपने पीठ पर लादे हुए लिए जा रही  है वे लोग आपस में एक दूसरे के बारे में क्या सोचते है? उसे तो बस अपनी गति बनाये रखनी थी और जिन्होंने उसकी सेवा का दाम चुकाया है उसे  गंतव्य तक पहुँचाना हीं उसका काम था । वो अपने कर्तव्य का पूरा पालन कर रही थी और ज़ोरो से सिटी बजाती हुई और अपने रास्ते में आने वाले नदी-नालो, पहाड़ो-गुफाओं और ना जाने कितनी हीं प्राकृतिक संरचनाओं को पार करती हुई अपने वेग में बढ़ती चली जा रही थी।  

सुबह से शुरू हुआ सफर अनवरत चलता ही जा रहा था।  दोपहर ढल चुकी थी और अब शाम होने वाली थी।  दाईं तरफ से निकला सूरज अब ट्रेन की बाई खिड़की से झाँक रहा था।  उसका तेज़ मद्धिम हो चुका था।  सफ़ेद दूधिया रंग भी अब लामिमा बिखेरने लगा था। इस पुरे दौरान किसी ने भी भोजन नहीं किया था।  ना तो टोपी वाले ने, ना ही सफ़ेद छोले धारण किये और हाथों में क्रास लिए व्यक्ति ने ना ही पगड़ी और सलवार कुर्ता पहने हुए आदमी ने और ना ही पीताम्बर ओढ़े मनुष्य ने, किसी ने भी नहीं। मगर अब सभी को भूख लग रही थी।  जाने यह ऊपर वाले का कमाल था या फिर मात्र एक संयोग की वे सभी एक ही साथ अपने स्थान पर उठ बैठे और भोजन की तैयारी में जुट गए।  कोई किसी से कुछ कह नहीं रहा था मगर यह साफ़ था की इस समय कोई भी किसी दूसरे की थाली में झांकना नहीं चाहता था।  मनुष्य चाहे तो अपनी इन्द्रियों को अपने वश में कर सकता है मगर वो प्रकृति को किसी भी तरह से अपने वाश में नहीं कर सकता। 

अब इस समय को ही ले लीजिए इस समय इन चारों में से कोई भी एक दूसरे से बात करना तो दूर एक दूसरे की तरफ देख भी नहीं रहा था मगर किसके थाली में क्या सजा हुआ है यह सभी को पता चल चुका था।  हवा में भोजन जी सुगंध फ़ैली जा रही थी।  पगड़ी वाले की तरफ से आने वाली खुशबू बता रही थी की उसके थाली में देसी घी में तले पकवान और मसालेदार सब्ज़ियां पसरी हुई है।  टोपी वाले की तरफ से आने वाली हवा बता रही थी की आज उसके घर वाले ने उसे सेंवइयै या फिर दूध की बनी कोई ख़ास पकवान दी है।  क्रास धारण किये हुए इंसान की तरफ से आने वाली खुशबू किसी अति मादक पेय पदार्थ की सुगंध फैला रही थी।  और अंत में पितामबर पहोने हुए आदमी के तरफ से आने वाली खुशबू मीठी अंचार-पूरी और लड्डू की गवाही दे रही थी।  इतनी सारे खाने के खुशबू से पुरे का पूरा डिब्बा ही महक उठा था।  

तभी उस डीबी में पता नहीं कहाँ से एक अजीब सा बन्दा चला आया।  उसका पहनावा और उसके वयवहार से यह समझना मुश्किल था की वो व्यक्ति किस धर्म विशेष से ताल्लुक रखता है।  बाल उसने बढ़ा रक्खे थे और उसे हल्के लाल रंग से रंगा भी हुआ था।  चेहरे पर दाढ़ी थी मगर मूंछ नहीं दिख रही थी।  हांथो में उसने ना जाने कितने तरह के रंग बिरंगे धागे बाँध रखे थे।  माथे पर तिलक भी था और कुर्ते के अंदर से से उसका जनेऊ भी साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था।  उसने एक हाथ में  कडा भी पहन रखा था और साथ में एक छोटी सी कृपाण भी सजा रक्खी थी।  साथ ही साथ दूसरे हाथ में एक क्रास भी थामा हुआ था जिसपर साफ़-साफ़ अक्षर में उसपर जीसस भी लिखा हुआ था।  कूल मिलाकर उसे देखकर या उससे बातें करके यह जान पाना बहुत ही मुश्किल था की वास्तव में किस धर्म से ताल्लुक रखता है।  यह देखकर बाकी के यह चारो लोग बड़े तकल्लुफी दिखाने लगे।  उनके मन में यब बात चलने लगी की आखिर यह इंसान है कौन और इस तरह से क्यों और क्या बना फिर रहा है।  खैर उस आदमी ने बिना इनसे कुछ कहे और सुने एक-एक कर निवाला सभी की थाली में से उठाया और खाने लगा।  अब सभी सकदे में आ गए कि कौन उससे क्या कहे? 

वो तो बिना किसी परवाह के कि कौन क्या कहेगा, बड़े मज़े से सभी की थाली के पास एक बार जाता और जो सबसे अच्छा पकवान उसे दिखता उसमे से एक निवाला तोड़कर सीधे अपने मुँह में डाल लेता।  उसे इस बात की फिक्र नहीं थी की सामने वाला शायद इस तरह की हरकत से नाराज भी हो सकता है।  बिना रुके उसने एक थाली से दूसरी थाली और फिर तीसरी थाली से चौथी थाली तक का सफर पूरा किया। इतना ही नहीं उसने तो एक थाली से दूसरे थाली में जाते समय अपने हाथ तक नहीं धोये।  अभी तक तो सभी चुप थे मगर उसके इस कृत्य से सभी के सभी नाराज़ होने लगे।  ना जाने इस आदमी के अंदर कोई बुद्धि है भी या नहीं।  इसका तो कोई धर्म मालूम नहीं पड़ता मगर यह क्या इसने तो हमारा भी धर्म भ्रष्ट कर दिया।  सभी के थाली को जूठा कर दिया।  मांस-मच्छी खाने वाले इंसान के साथ शाक सब्ज़ी खाने वाले की थाली मिलाकर रख दी। दारू को हराम समझने वाले के थाली में शराब की बूंदे भी गिरा दी।  कौन इसे सबक सिखाएगा? आखिर कौन इसे सही रास्ते पर लेकर आएगा?  सब यही सोच ही रहे थे कि  तभी अचानक से उस अटपटे आदमी ने कहा - आज पहली बार इतना अच्छा भोजन किया है मैंने।  सच कहूँ तो आज तक कइयों की थाली से खाना खाया है मगर आज के पहले ऐसा स्वादिष्ट खाना कभी नहीं खाया है मैंने।

टोपी वाले ने उसे घूरते हुए कहा - हाँ मज़ा तो आयेगा ही ना, आपको तो सभी के थाली जा आनंद मिल गया, मगर आपने हम सभी का धर्म खराब कर दिया। यहाँ कौन किस जाती से है, किस धर्म से है, किस पेशे से है कोई नही जानता। हम तो वैसे ही एक दुसरे से अलग-थलग बैठे हुए थे तुमने आकर सभी कुछ नष्ट कर दिया। इतने मे पिताम्बर धारी ने कहा -अजी यजमान, आप्को को देखकर मालूम पडता है कि जैसे आपको ना तो अपने धर्म का ज्ञान है और ना ही उससे कोई सरोकार ही है। लेकिन कम-से-कम दुसरे के भावनाओ का तो सम्मान किया किजिये। आप तो ऐसे ही मूँह उठाकर किसी के भी थाली से खाना नही खा सकते ना। भले आपको कोई फर्क़ ना पडता हो मगर दुसरे की इच्छा-अनिच्छा का तो ध्यान आपको रखना ही चाहिये। तभी तपाक से क्रास धारी व्यक्ति ने कहा - माई सन, मुझे तुम्हारे खाने से कोई तक़लिफ नही, भुखे को खाना तो खिलाना ही चाहिये मगर उस भुखे को भी यह समझना चाहिये कि सामने वाला जो उसे दे रहा है उससे कुछ लेना भी चाहता है या नही । मैं तुम्हे अपनी थाली का खाना दे सकता हूँ मगर तुम्हारे साथ बैठकर खाना खा तो नही सकता ना । तुम्हे तो य बार समझनी चाहिये ।

वो आदमी सभी की बात सुनता रहा, किसी से कुछ भी नही कहा । वो सब यह बाते कहते रहे और वो मस्ती से एक एक करके निवाला उठाता रहा और खाता रहा। जब उसका खाना हो गया तो वो उठा और जाते हुए बोला। मैंने आप सभी के थाली से खाना खाया है और मैं हर एक निवाली का कर्ज़दार हूँ। कभी आपके काम आ सकूँ तो बहुर खुशी होगी । इतना कहते हुए वो आदमी उठा और वहाँ से जाने लगा। जैसे-जैसे वो आदमी आगे बढता गया डिब्बे मे माहौल एक दम से बदलता गया। जितनी देर तक वो डिब्बे मे था एक अजीब सा सन्नाटा था। माहौल एकदम से शांत था, ऐसा लगता था जैसे कि कोई दैविय शक्ति वहाँ आअसीन थी मगर उसके डिब्बे से दूर होता गया उस सन्नाटे की जगह एक कोलाहल ने ले ली। चारो तरफ से लोगों के चिखने चिल्लाने की आवाज़ आने लगी। डिब्बे में बैठे सभी लोग यकायक एक दुसरे को दबा कुचलते हुए भागते हुए नज़र आने लगे। इससे पहले की कोई कुछ भी समझ पाता डिब्बे मे एक ज़ोर का धमाका हुआ। और सबकुछ फिर से एकदम से शांत हो गया। उस धमाके के काई घंटे के बाद लोगों को होश आया। मगर ये क्या?, इस डिब्बे में तो बस यही चार लोग मौजूद थे बाकि सभी को जैसी जमीन ने निगल लिया था। 

ना तो कोई बंदा ना ही कोई बंदे की जात। मिलो तक एक भी ज़िंदा शै नज़र नही आ रहा था। ये चारो खूश भी थे और दू:खी भी । खुशी इस बात की थी कि ये सभी ज़िंदा थे, और दू:ख इस बात का कि बस यह चार लोगो ही बचे थे और इनमे से कोई भी एक दुसरे को पसंद नहीं करता था। तभी टोपी वाली की नज़र पगडी वाले पर पडी उसका एक हाथ गायब था। सिर पर चोटों के निशान थे मगर उसे देखकर ऐसा लग नही रहा था कि उसे दर्द हो रहा है । उसी तरह से पाया कि पिताम्बर वाले की एक टांग नही है, क्रास वाले की तो वो हाथ ही नही रही जिसमे क्रास बंधा हुआ था। और वो पुरी तरह से काला भी पड चुका था। टोपि वाले ने अपने जन्मदाता को धन्यवाद दिया कि उसे कोई नुकसान हुआ। मगर जैसे ही उसने अपनी आंखे बंद की उसे अपना खुद का हुलिआ भी नज़र आ गया । दरसल उसका पुरा शरिर ही जल चुका था । ना तो चेहरा बचा था और ना ही शरिर का कोई भी एक अंग ही बचा था । बस आंखे बची थी जिससे कि वो सभी कुछ देख पा रहा था । उसे बडा अफसोस हुआ कि उसके साथ ऐसा कैसे हो सकता है?

तभी एक चमचमाती हुई गाडी वहा आकर रुकी । उस गाडी मे ना तो पहिये थे और नाही उसे चलाने वाला कोई शख्स ही था । वो खुद-ब-खुद वहा चली आ रहे थी । इससे पहले की उन चारों मे से कोई भी कुछ भी सोच पाता उनका तन खुद से ही उस गाडी मे जाकर बैठ चुका था। वो गाडी उन्हे लेकर बडी तेज़ गती से भागी जा रही थी । इतनी तेजी से कि किसी को कुछ भी कहने और सुनने का समय ही नही मिल रहा था। इस दौरान उन सभी के नज़रों के सामने उनके जीवन का पुरा लेखा जोखा चलने लगा। सभी अपने होश पाने के उम्र से लेकर अपने आखिरी पल को अपने ही आंखो के सामने फिर से गुजरता हुआ देख रहे थे । सभी के अपने अपने क़िस्से थे और उनमे अपने-अपने हिस्से भी थे । अबतक वो सभी इस बात को स्वीकार कर चुके थे कि वो मर चुके है।

कितना मुश्किल होता है ना खुद को यह समझा पाना कि "अब मैं मर चुका हूँ"। ये कुछ शब्द ही तो है मगर इसमे ही पुरे जीवन का सार छुपा हुआ है। पुरी उमर हम बस आने वाले समय के लिये साधन बटोरते रह जाते है। कौन हमसे आगे है, कौन पिछे रह गया। किसने कितना पैसा कमाया, व्यक्तिगत रोष, जाति, धर्म , देश, दुनिया और भी ना जाने क्या क्या होता है जो सब कुछ बस एक ही पल मे हमसे बिल्कुल छूट जाता है । हम देखते रह जाते है और हमारे नज़रों के सामने ही हमारे अपने हमारे शरीर को उठाकर ले जाते है। एक पल पहले तक जब तक हमारी सांसे चलती रहती है हमें लगता है कि सभी हमे चाहने वाले है, सभी हमसे प्यार करते है, हमारी परवाह करते है। मगर एक पल मे ही सभी से हमारा नाता टूट जाता है। एक पल पहले जो हमे बाप, भाई, पति, चाचा, मामा, दादा ना जाने किन किन नामों से बुला रहे होते है अगले ही पल मे सभी के लिये हम सिर्फ एक लाश बनकर रह जाते है। एक निर्जीव शरिर जिसे लोग जितनी जल्दी घर से निकाल कर ले जा सके उतना ही अच्छा हो। 

और फिर एक आखिरी बार सबसे मुलाक़ात और फिर सभी अपने असली सफर पर निकल पडते है। मगर इन चारों को तो वो अंतिम मुलाक़ात भी नसीब नही हुई थी। ये तो अचानक से ही उपर चले आये थे । मगर मजे की बात तो यह है कि चारो अलग अलग धर्म या मजहब के होने के बाद भी एक ही जगह कैसे आ पहूंचे थे । सभी के धर्म ग्रंथ मे तो स्वर्ग या नर्क का विविरण अलग-अलग दिया हुआ है। किसी को यम्राज से मिलना होता है तो किसी को फरिश्ते से । किसी को कोई एंजेल लेकर जाने वाला होता है तो किसी को वाहे गुरु से मिलना होता है । मगर यहाँ तो पुरा मामला ही अलग था । यहाँ तो कोई लाईन भी नही थी जैसा कि अक्सर धरती पर रहने वाले जीव कहा करते है । खैर उन तीनों को लेकर जाने वाली गाडी सिधे एक कमरे मे लेकर चला जा पहूंचा । यहाँ चार कुर्सियां लगी हुई थी । उसपर से तीन पर तीन लोग बैठे हुए थे मगर चौथा खाली था । तभी अचानक से एक तीन लोग वहान हंसते हुए और एक दुसरे के साथ मस्ती मज़ाक करते हुए वहाँ आ पहूंचे ।

तिनो को देखकर लगता था जैसे कि वो एक दुसरे को काफी अरसे से जानते हैं । मगर यह क्या जैसे ही ओव तिनों लोग इन चारों के करीब आये तो पता चला कि वो तीन अलग-अलग लोग नहीं है बल्कि एक व्यक्ति के तीन रूप है। एक ने हिंदु धर्मानुसार कपडे पहन रक्खे थे ( विष्णु अवतार ) दुसरे ने गुरु नानक का रूप ले रक्खा था और तिसरे ने इसाह मसीह का। वो तिनो किसे चौथे से बात कर रहे थे जो कि दिखता नही था (अल्लाह)। यह देखकर इन चारों को बहुत ही क्रोध आया कि कोई आदमी उनके भगवान का वेष कैसे धारण कर सकता है । यह तो पाप है । लेकिन तभी उन्होने कुछ और देखा - उन्होने देखा कि एक ही आदमी बारी-बारी से हरेक धर्म के इष्ट का रूप ले रहा है और उसने अनुसार काम भी कर रहा है। उन तिनो मे से जिसे जब जी आता जैसा चाहता वैस रूप धर लेता । कोई भी किसी का काम कर देता । कोई भी किसी के स्थान पर जाकर उसके मानने वालों की बात सुन लेता और उनकी इच्छा के अनुसार उनका काम कर देता। कोई भी किसी के हिस्से के लोगों का भला कर देता।

वो तिनों और एक अज्ञात शख्स साथ बैठ कर एक ही थाली मे खाना भी खा लेते और फिर एक दुसरे के साथ गले भी मिल लेते । तभी उनकी नज़र इन चारों पर पडी । इन चारों को देखकर वो चारो बडी ज़ोर से हंस पडे। उनको देखते हुए वे बोले - देखो इन पाखण्डियों को, यहाँ हम सब मिल्कर एक साथ रहते है, खाते है , पिते है , और एक यह लोग है जो हमारे नाम पर धरती पर तहलका मचाये हुए है। ये लोग अपनी ही मर्ज़ी से हमारा नाम लेकर अपना उल्लू सिधा करने मे लगे हुए है । यह नही जानते कि हम अलग नही बल्कि एक ही है । वो यह कह ही रहे थे कि इतने मे इसाह मसीह उठे और हाथों मे गिता लेकर महाभारत के समय काल मे जाने लगे । जाते हुए वे विष्णु से कहते गये, पिछ्ली बार तु गया था और ज्ञान दिया इस बार मै जाउंगा और अर्जुन को ज्ञान दुंगा । तु ही क्युं बार बार जायेगा। तभी गुरु नानक साहब उठे और कुरान की कुछ आयते सुधारते हुए बोले - इस आयत ने लोगो को भ्रष्ट कर दिया है मुझे इसमे कुछ सुधार करना पडेगा। तभी विष्णु जी ने अपने हाथों मे गुरु ग्रंथ थाम लिया और एक एक करके सभी धर्म ग्रंथो को अपने हाथों मे लेकर कुछ सुधार करने लगे। यह सबकुछ करते हुए वे चारों बहुत हंस रहे थे। आवाज़ तो चार थी मगर शरीर बस तिन ही थे।  

यह सबकुछ देखकर भी वो चारों कुछ समझ नही पा रहे थे कि आखिर यह सबकुछ हो क्या रहा था? क्या ये चार अलग-अलग लोग थे या फिर उन चारों को अपने नज़रिये के हिसाब से अलग-अलग जान पडते थे? आखिर चौथा आदमी दिख क्युं नही रहा था? तभी टोपी वाले ने कहा - वो मेरा खुदा है जिसका कोई आकार नही है। वो किसी को भी दिखाई नही देता, बस सुनाई देता है। इतने मे उस चौथे इंसान की आवाज़ आई - यह बात तुझसे किसने कही कि मैं दिखाई नही देता? मैं दिखता हूँ मगर तुम जैसे इंसानों को नही जो अपने बनाने वाले के नाम पर ही पुरी दुनिया को तबाह करने पर तुले हुए है। मैं दिखाई नही देता क्युंकि तुममे से कोई भी ऐसा काम नही करता कि मैं उसे खुली आंखों से दिख सकूँ। मुझे देखने के लिये तन की आंखें नहीं मन की आंखे चाहिये। जिस दिन तुम सब जो भी मुझे अपना खुदा मानते हो अपनी मन की आंखें खोलोगे मैं भी तुम्हे दिख जाउंगा जैसे इस पिताम्बर वाले को विष्णु दिखते है।

अभी उसकी बात खतम भी नही हुई थी कि विष्णु बीच मे ही बोल पडे - नही , नही ऐसा कुछ भी नही है। तेरे बच्चे मेरे बच्चों से कुछ कम नहीं। इन्होने अपनी ही मर्ज़ी से मेरे चार हाथ बना दिये है। खुद की कल्पना से मेरे जाने कितने रूप बना दिये है। अपनी सुविधा के अनुसार नियम कायदे बनाकर सबकुछ मेरे नाम पर लगा देते है। कम नही है ये अभ भी। तु अकेला है तो भी तेरे कई नाम है, कई कहानियाँ है, कई कायदे है ( जो तुने नही बनाये) और मैं तो ना जाने कितने ही रूप मे इन्हे दिख जाता हूँ। अब तो मैंने भी इन्हे समझाना छोड दिया है। ये सब लोग अपनी सुविधा और खुशी के लिये हमारे नाम का इस्तेमाल करते है। इन्हे अपनी ही धुन मे रमे रहना है। हमने जो किया उससे उन्हे कोई मतलब नही , इन्हे तो बस उस बात से दुसरे लोगों डराकर या फिर दबाकर अपना उल्लू सिधा करना है। यह सोचते है कि जब यह उपर आयेंगे तो इनके कर्मो का हिसाब होगा। जाओ हमारे पास तुम्हारा हिसाब करने का समय नही है। जिस तरह से तुमने हमारे बनायी हुई दुनिया को बर्बाद किया है, अब तो हमे तुम्हारी दुनिया की तरफ देखने का भी मन नही करता। 

इतने मे गुरुनानक साहब बोले, सही कहा तुमने। कुछ मेरे हिस्से के भी बच्चे है जो या तो खुद से बहक जाते हैं या फिर बहकावे मे आ जाते है। मैंने तो इन्हे बस प्यार करना सिखाया था, एक दुसरे की मदद करना, भाई चारा बनाये रखना मगर वहान धरती पर इन लोगो ने खुद को चार अलग-अलह हिस्सों मे बाट दिया। हमारी शिक्षा का ना जाने कैसा अर्थ निकाला है इन  लोगों ने। तभी तो मैने भी इन सभी से कुछ भी कहना चोड दिया है। यह चारों हमारे ही है मगर इन चारों ने हमे एक दुसरे अलग कर दिया है। फिर वि इसाह मसीह की तरफ देखते हुए पुछ बैठे, तुम्हे कुछ नही कहना है ? इसाह मसीह बोले - ना, मैं क्या ही बोलू। मुझे तो इन्ही लोगों ने सुली पर टांग दिया था । पहले मारा, यातनाएं दी, अपमान किया, दुराचार किया और फिर जब मैं मर गया तो मेरा स्मारक बनाकर मुझे अपना भगवान बना दिया। मैंए तो सोच ही लिया है कि फिर कभी भी धरती पर नही जाना है। चाहे ये लोग कटें या काटें, चाहे मरे या मारे चाहे दुनिया का सत्यनाश हो जाये मैं तो ना ही जाने वाला हूँ और ना ही कुछ कहने वाला हूँ । जैसे ये लोग मुझे सुली पर चढता हुआ देखकर भी बेचारे और असहाय बने रहे थे, अब मैं भी इनके साथ वैसा ही करने वाला हूँ ।

इतना कहते हुए वे चारो एक दुसरे के एकदम क़रीब आ गये। चारों ने एक दुसरे का हाथ पकडा और फिर एक दम से चार अलग-अलग रंग की रौशनी मे नहाते हुए चारो का रंग एक हो गया। उनका कद इतना विशाल हो गया कि सिर उठाकर देख पाना भी मुश्किल ही था । धरती पर रहने वाला आम इंसान एक दुसरे को नीचा दिखाने मे और एक दुसरे को मिटाने का हर तरिका अपनाता है मगर यहाँ आकर जो देखा उसे देखने के बाद यह तो समझ मे आ गय था कि भगवान, अल्लाह, ग़ॉड, गुरु साहेब यह सब कुछ अलग-अलग नही है। हम सभी एक ही कारखाने मे बने हुए है । बस जनमने केर बाद हमारी ब्रैंडिंग अलग-अलग की जाती है।  उन चारों अपने अपने भगवान को देख लिया था। किसी को सुना भी था । लेकिन अब सब यह जान गये थे कि असल मे यद धर्म का जो आडम्बर है वो बस धरती ओअर ही है , वहाँ उपर तो बस एक ही शक्ति है जो हमारी सोच के अनुसार हमे दिखाई याह समझ मे आता है।
 

14
रचनाएँ
संस्मरण
0.0
उस दिन हर रोज़ की तरह हीं मैं अपने समय पर आफिस के लिये घर से निकला। निकलते समय हीं मेरी बेटी ने कहा कि आज उसे ट्युशन पढने के लिये सुबह हीं जाना है। जाने क्युं मगर उस सुबह मैंने अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजा था। पता नहीं मन में क्या चल रहा था कि उसे स्कूल भेजने से मुझे कोताही हो रही थी। मेरी पत्नी मेरी बेटी को अकेले पढने जाने देना नहीं चाहती थी। तो मैंने मज़ाक मे हीं उनसे कह दिया कि आज तुम ही बेटी को पढने छोड आना। चुकि मेरे दोनों हीं बच्चे एक ही जगह पर पढते है तो दोनों को एक ही साथ जाना भी पडता है। मेरी पत्नी घर से बाहर का कोई भी काम नहीं करती है। उसके सारे कम मुझे हीं करने पडते है और इसमे मुझे कोई शिकायत भी नहीं है। वो विगत लगभग पांच सालों से मांसिक रोग से संघर्ष कर रही है। मगर आज तक कभी भी टूटी नहीं। हालांकि मैं उसके रोग़ के विषय में यहाँ चर्चा नहीं करना चाहता था पर ऐसा ना करने से आगे हुई घटना को आप सही से समझ नहीं पायेंगे इसिलिये मुझे यह बताना पडा। मैं घर से निकलकर सही समय पर आफिस जा पहूंचा। सब कुछ किसी आम दिन के तरह हीं चल रहा था। तभी मेरे फोन की घंटी बज उठती है।
1

एक दिन

15 अक्टूबर 2023
1
1
1

वेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवेंवें सोनू जरा उठो न देखो मुन्ना रो रहा है उसको जरा दूध तो पीला दो। हाँ बस दस मिनट दस मिनट तक बच्चा रोते रहेगा क्या? जाओ उठकर जल्दी से उसका खाना लेकर आओ अच्छा बाबा अच्

2

दौड – मौत से ज़िंदगी की तरफ

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

मैं विकास। मुझे आज भी वो दिन बिल्कुल शीशे की तरह याद है, १५ अप्रिल २००३ सुबह के साढे नौ बजे थे। मैं अभी सुबह का नाश्ता कर रहा था क्युंकि आज मुझे  नौकरी पर जल्दी जाना था। दिन सोमवार का था और मुझे आज कि

3

अनहोनी या चमत्कार

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

उस दिन हर रोज़ की तरह हीं मैं अपने समय पर आफिस के लिये घर से निकला। निकलते समय हीं मेरी बेटी ने कहा कि आज उसे ट्युशन पढने के लिये सुबह हीं जाना है। जाने क्युं मगर उस सुबह मैंने अपने बेटे को स्कूल नहीं

4

अगर तुम साथ हो

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

बात साल 2016 की है, यही सितम्बर का महिना था। पुरा भारत एक परिवर्तन से गुजर रहा था। इस समय सुचना-प्रोद्योगिकि में भारत बडी रफ्तार से आगे बढ रहा था। तत्कालिन समय मे भारत मे तीन बडी टेलीकॉम कंपनियाँ  थी

5

क्या हम सच में है?

15 अक्टूबर 2023
1
0
0

हम अपने पुरे जीवन में जो कुछ भी करते है, जिसे हम कहते है कि हमने किया है, क्या वो सब कुछ सच में हम ही करते हैं? या फिर वो सबकुछ हमारे द्वारा किये जाने के लिये किसी ने पहले से तय करके रखा हुआ है। हम चा

6

तुम बदल गये हो!!

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

सुनो, पिछले कुछ दिनों से मैंने महसूस किया है कि अब हमारे रिश्ते में पहले जैसी गर्माहट  नही रही। अब शायद हम दोनों के बीच वैसा प्यार नहीं रहा जैसा तीन साल पहले हुआ करता था। मुझे लगता है कि तुम बदल गये ह

7

मदिरा की आत्मकथा

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

मैं मदिरा, आप सभी मुझे शराब या दारू के नाम से जानते है। वैसे तो मुझे शराब, हाला, आसव, मधु, मद्य, वारुणी, सुरा, मद इत्यादी के नाम से भी जाना जाता है मगर प्राचिन काल मे मुझे बस एक ही नाम से जाना जाता था

8

तेरा बाप कौन है?

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

मुहल्ले गली में खेलते हुए बच्चों के झुंड मे से एक बच्चे को बाकि के सभी बच्चे बडी देर से चिढा रहे थे- “तेरा बाप कौन है? तेरा अबाप कौन है? बता ना, क्या तुझे नही पता कि तेरा बाप कौन है?”। उन बच्चों के उप

9

प्रिय पत्नि

15 अक्टूबर 2023
1
1
1

कई दिनों से मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था मगर उसे कहने का उचित समय और पर्याप्त सामर्थ्य नहीं जुटा पा रहा था। आज जब हम-तुम दोनों ने अपने जीवन के चौदह साल एक दुसरे के साथ बिता लिया है तो मुझे तुमसे यह कहन

10

सुखे पलाश

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

घर की सफाई करना भी एक थकाने वाला मसला है। हर रोज़ ही करने की सोचता हूँ मगर फिर खुद ही जाने भी देता हूँ। पिछले तीन हफ्तों से यह मसला मेरे ज़हन में लगातार द्स्तक देता रहा है और मेरे आलसी स्वभाव से आज़ीज आक

11

अंतिम सफर

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

रमन अपने किराए के मकान के एक कमरे में बिस्तर पर पड़ा हुआ है। उसके पास उसकी ३० साल की बेटी और लगभग २२ साल का बेटा सिरहाने पर खड़े हुए है। कमरा रौशनी से भरा और हवादार है। उसे हमेशा ही खुले वातावरण में रहन

12

एक पत्र बेटी के नाम

15 अक्टूबर 2023
1
1
1

मेरी १३ साल की बेटी कई दिनों से कर रही थी कि मैं उसके बारे में लिखूं।  मगर क्या लिखूं यह नहीं बता पाती है।  हुआ कुछ ऐसा था कि उसके स्कूल में अपने प्रिय व्यक्ति के विषय में एक लेख लिखने को कहा गया था त

13

स्वर्ग-ज़न्नत-ओमकार-हीवन

15 अक्टूबर 2023
0
0
0

रायपूर से छुटने वाली गाडी के फर्स्ट क्लास के डिब्बा नम्बर ए.से०१ का कमरा। उस कमरे के अंदर हमारे समाज के चार अलग अलग समुदाय के लोग बैठे है। अब उनमे मे कौन किस समुदाय का है यह बाहर से देखकर समझना जरा भी

14

एक रुपये के चार फुलौरियाँ

15 अक्टूबर 2023
1
0
0

फुलौरियाँ समझते हैं? वही जो चने के बेसन को फेंट कर उसमे जरा सा कलौंजी, थोडा अज्वाइन, ज़रा सी हल्दी, स्वाद के अनुसार नमक इत्यादी मिलाकर उसे पहले फुर्सत से फेंटते है। तब तक फेंटते है जब तक कि उसका गोला प

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए