हम अपने पुरे जीवन में जो कुछ भी करते है, जिसे हम कहते है कि हमने किया है, क्या वो सब कुछ सच में हम ही करते हैं? या फिर वो सबकुछ हमारे द्वारा किये जाने के लिये किसी ने पहले से तय करके रखा हुआ है। हम चाहे जो कुछ भी कर लें और कहते फिरे कि यह सबकुछ मैंने किया है मेरे अपने के लिये किया है, मेरे अपनों के लिये किया है, तो क्या यह कहना गलत है? और अगर गलत नही है तो फिर कितना सही है। हमारा जो ये पुरा जीवन चक्र है हमेशा ही किसी निर्दिष्ट दिशा मे चलयमान रहता है। उसका एक निश्चित लक्ष्य होता है जहाँ तक जाकर ही उसकी यात्रा समाप्त होती है।
ना जाने आज मैं क्या-क्या कहे जा रहा हूँ? मगर आज मेरे पत्नि के एक छोटी सी बात ने जीवन को देखने का नज़रिया ही बदल कर रख दिया। जाने कहाँ से उसने दो पंक्तियाँ सुन ली थी “जिंदगी है जब तलक मुश्किलें तो आएंगी ही, मरने के बाद तो चलने का भी एहसास नही होता”। मुझे ऐसा लगता है कि अगर दुनिया में कोई भी अलौकिक शक्ति है जो इस पुरे संसार को चला रहा है उसने सभी के जीवन यात्रा की रूपरेखा पहले से ही तैयार किया हुआ है। जैसा हमें हमेशा से बताया गया है कि इस दुनिया में जनम लेने वाले हरेक जीव का कोई ना कोई उद्देश्य जरूर होता है। उसके जनम लेने का प्रयोजन पहले से ही इस संसार में उपस्थित होता है। उस प्रयोजन को पूर्ण करना ही उसके जीवन का एक मात्र उद्देश्य होता है। मगर मेरा मानना है कि उस अलौकिक शक्ति के कई कार्य ऐसे होते है जिन्हे वो खुद अवतरित होकर पुरा नहीं कर सकता। या फिर वो ऐसा करना चाहता ही नही तभी तो वो अपने हरेक कार्य के लिये अपना एक अंश इस संसार में भेजता रहता है। जो उसके द्वारा आरंभ किये गये कार्य को उसके अंत तक लेकर जा सके।
अब हर स्थान पर हर समय उसका पहुँच पाना तो सम्भव नही है तो इसिलिये वो समय समय पर हमें इस धरती पर भेजता रहता है। हमारे जीवन का बस एक ही लक्ष्य होता है – उसके द्वारा आरम्भ किये गये कार्यों को पुरी तरह से समाप्त करना। अब भले हीं हमें यह बात समझ मे आये ना आये। जैसा कि मैंने शुरुआत मे ही कहा कि क्या हम जो भी कुछ करते है वो अपनी मर्ज़ी से करते है या फिर कोई हमसे करवाता है। मैं अक्सर अपने आप को किसी ऐसी स्थिति में पाता हूँ जहाँ पर मेरे होने का या पहुँचने का कोई तुक ही नहीं बनता। मेरे साथ ऐसी कई घटनाएं होती है घटित हुई है जिनका मेरे जीवन से सिधे तौर पर कोई भी लेना देना नही रहा किंतु उस घटना के बाद मेरा जीवन प्रभावित जरूर हुआ है। पहले मैं इस बात को अपनी समझ से आंक नही सकता था मगर अब मुझे यह लगने लगा है कि मेरा ऐसे किसी भी स्थान पर होने का कोई तो कारण रहा ही होगा। क्युं मैं किसी ऐसी परिस्थिति मे पद जाता हूँ जिससे मेरा दूर-दूर तक कोई भी वास्ता नही होता। शायद वोप शक्ति मुझे बार-बार मेरे जीवन के परोजन को समझाने जी कोशिश ज्कर रहा है जिसे मैं समझ नही पा रहा हूँ।
इतना तो तय है कि जब तक मैं अपने उस प्रयोजन को पुरा नहीं कर लेता तबतक मेरा यह जीवन समाप्त नही हो सकता। ऐसा हो सकता है कि आज तक मैंने जो कुछ भी किया हो वो सबकुछ मेरे उद्देश्य के तरफ मेरे बढते रहने का साधन मात्र हो। मसलन मैने जितनी भी पढाई मेरे उद्देश्य के लिये उतने ही ज्ञान की ज़रूरत रही हो। या फिर मैं मेरा घर बनाना या मेरा परिवार बढाना या फिर कोई भी सामाजिक रूप से किये जाने वाला काम जिसे मैं बस मेरा खुद का फैसला समझता हूँ मेरी अपनी इच्छा समझता हूँ वो सबकुछ मेरे अंतिम उद्देश्य के तरफ बढने के लिये करवाया गया कार्य हो, जो उस शक्ति ने मुझसे करवाया है। क्या ऐसा हो सकता है कि मेरे द्वारा किये गये हरेक काम से उस शक्ति का अपना मक़सद पुरा हो रहा हो? जो काम वो खुद आकर नहीं कर सकता वही काम वो मुझसे करवा रहा हो। जैसे कि श्री राम ने जो भी महान कार्य किये वो उनके जीवन का उद्देश्य था। मगर दशरथ जिन्होने राम को जन्म दिया उनके जीवन का उद्देश्य बस राम जैसे पुत्र को पैदा करना था। वही कैकयी के जीवन का उद्देश्य मात्र राम को बनवास भेजने भर का था। लक्ष्मण का सुर्पणखा के नाक काटने भर का रावण का सिता को हरण करने भर का। और य सभी घटना क्रम एक दुसरे से जुडे हुए थे। सभी एक दुसरे पर आश्रित भी थे और एक दुसरे के पूरक भी।
हमारे जीवन में घटने वाली हरेक घटना का किसी और के जिंदगी से नाता होता है। वो हमारे साथ-साथ किसी दुसरे को भी उतना ही प्रभावित करती है जितना की हमें। चुकि ऐसे कोई दो व्यक्ति कभी भी सात-साथ नही होते इसिलिये हमें दुसरे के उपर पडे प्रभाव का पता नही होता। हम आज जो भी करते है उसका असर कब, कैसे, कितना, और किसपर होगा यह तो मात्र भविष्य के गर्भ मे छुपा रहता है। तो क्या इसका मतलब यह है कि हमने आज तक जो भी फैसले लिये वो हमारे अपने हो ही नही बल्कि किसी और के कार्य को सिद्ध करने के लिये हमसे करवाये गये है? क्या ऐसा हो सकता है कि हम असल में हो ही नहीं बल्कि किसी शक्ति के विचारों का प्रभाव मात्र हो। वो होता है ना कि जब हम किसी समस्या में पडते है तो हमारे मसतिष्क में ढेरों विचार आते है और हरेक विचार किसी-ना किसी पात्र की तरह ही व्यवहार करते है। ठिक उसी प्रकार क्या हम सब भी किसी आलौकिक शक्ति के मसतिष्क में उपजे हुए विचार मात्र है। जिनका अपना कोई भी अस्तित्व नहीं। जो खुद से कोई भी निर्णय नही ले पाते। जो बस इसिलिये इस संसार में है क्युंकि किसी ने उसके होने की कल्पना मात्र की है।