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एक पत्र बेटी के नाम

15 अक्टूबर 2023

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मेरी १३ साल की बेटी कई दिनों से कर रही थी कि मैं उसके बारे में लिखूं।  मगर क्या लिखूं यह नहीं बता पाती है।  हुआ कुछ ऐसा था कि उसके स्कूल में अपने प्रिय व्यक्ति के विषय में एक लेख लिखने को कहा गया था तो उसने मेरे बारे में ही लिखा था। अब मेरे ऊपर या ज़ोर पड़ रहा था कि मैं भी उसके बारे में कुछ लिखूं। अब उसे कैसे समझाता कि किसी के भी बारे में सोचकर कुछ लिखा नहीं जाता। जब मन से कोई बात निकलती है तो खुद बा खुद एक खूबसूरत लेख का रूप ले लेती है। मगर आज मैं उसके बारे में लिखूंगा। कोशिश करूंगा कि वो इसे पढ़े और समझे। पढ़ते तो सभी है मगर उन शब्दों में छिपे भावो को अगर समझ जाए तभी लिखने वाले की मेहनत सार्थक समझी जाती है।  

तो माहि, मेरी पहली संतान, जिसने मुझे एक साधारण आदमी से एक पिता बनने का अवसर दिया, तुमसे मैं क्या कहूँ? मैं यह तो नहीं कह सकता कि मैं इस संसार का सबसे अच्छा पिता हूँ, मगर यह बनने की कोशिश जरूर करता हूँ। मेरे जीवन में तुम्हारे आने के पहले ऐसा कुछ  भी नहीं था जिसके खातिर मैं खुद को बचाये रखने के लिए तत्पर रहता। यानी के मैं खुद को सुरक्षित रखता इसका कोई भी मुख्य कारण नहीं था। मगर जबसे तुमने मेरे जीवन में स्थान बनाया था तब से मैं ज्यादा गंभीर और जिम्मेदार बन गया हूँ। कहते के एक बालक को युवा बनाने का श्रेय मां को जाता है और एक युवा को पति बनाने का श्रेय उसकी पत्नी को जाता है किंतु एक पुरुष को एक जिम्मेदार व्यक्ति केवल एक बेटी ही बना सकती है।  

जब किसी पुरुष के जीवन में उसकी अपनी कन्या संतान आती है तभी जाकर वो सच में दूसरे औरतों का सम्मान करने लगता है। इसके पहले तक औरत जाती उसके लसिर्फ त्याग करने वाली जीव मात्र होती है। मगर जब एक पिता पहली बार अपनी पुत्री को अपने गोद में उठाता है उसी क्षण से उसे यह समझ में आ जाता है कि वास्तव में औरत या स्त्री जाती क्या होती है। मैं नहीं कहता कि सभी पिता ऐसा ही सोचते है मगर मेरी सोच तो यही है कि जबसे तुमने मेरे जीवन में प्रवेश किया है तब से मैं वास्तव में अपने जीवन के मकसद को पा सका हूँ।  मेरे जीवन में दोस्तों की कमी हमेशा से रही है मगर जब से तुम्हे मैंने गोद में उठाया तब से लेकर आज तक मुझे फिर कभी किसी दोस्त की ज़रुरत महसूस ही नही हुई। यह मेरे ख़ुशक़िस्मती है कि तुमने हमारे घर में जन्म लिया है और मुझे तुम्हारे पिता कहलाये जाने का गौरव दिया है। 

मुझे यह सुनकर अत्यंत खुशी होती है कि तुम्हे अपने जीवन का लक्ष्य पहले से ही तय कर लिया है। क्यूंकि इससे मुझे यह संतुष्टी रहती है कि तुम्हे जीवन में स्थिर होने के लिए मेरे जैसे उम्र भर हाथ पांव नहीं मारने पड़ेंगे। मैं आज उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी खुद को स्थिर नहीं मान पाया। मुझे इस बात का मलाल हमेशा ही रहता है कि मैं तुम्हे बाकी सभी बच्चों की तरह खुशहाल बच्चपन नहीं दे पा रहा हूँ। तुम्हे कितनी ही बार अपने मन को मसोस कर रह जाना पड़ता होगा मगर उसी समय एक  बात की खुशी  भी होती है कि भगवान ने तुम्हे इतना समझदार बनाया है कि तुम मेरे आर्थिक हालातों को समझ कर उनसे तालमेल बैठा लेती हो। ऐसे बच्चे बहुत ही नसीब वाले पिता को मिलते है, और उनमे से एक पिता मैं भी हूँ।

तुम समझदार हो, चालाक हो और पढ़ने में भी ठीक हो। मैं तुमसे बस यही आशा करता हूँ कि तुम बस अपने जीवन के लक्ष्य से ना भटको। अब तुम उम्र के उस दौर में हो जब सभी गलत चीजे सही लगती है और माँ - बाप की बातें गलत लगती है। ऐसे मे बस मैं तुमसे यही आशा करता हूँ कि हमारे बीच (मेरे, माँ और तुम्हारे) कभी भी बात-चीत बंद नहीं होनी चाहिए। तुम्हे इस बात की छूट है कि तुम मुझसे या फिर अपनी माँ से किसी भी विषय पर दिल खोल कर बात कर सकती हो। आपस में संवाद बने रहने से हम बड़े से बड़े मुश्किल को भी आसानी से हल निकाल सकते है। यह उम्र तुम्हारे पढ़ने लिखने और अपने सपने पुरे करने का है।  मैं तुमसे बस यही चाहता भी हूँ।  

तूम खुलकर साँसे लो, खुलकर जीवन का आनंद उठाओ, ढेर सारे सपने देखो और उन सपनो को पूरा करने के लिए  जितनी मेहनत चाहिए वो भी करो। तुम्हे इनमे से किसी भी बात के लिए किसी के आदेश की जरूरत नहीं है। तुम स्वतंत्र हो, अपना सही गलत समझती हो, और अगर हमारी जरूरत महसूस हो तो कभी भी हिचकोगी नहीं यह भी मुझे पता है। मैं खुद भी यही चाहता हूँ। तुम मेरा स्वाभिमान हो, मेरा गर्व हो, मेरा अभिमान हो। मैं तुमसे कभी भी किसी भी बात पर पराया नहीं हो सकता हूँ। नाराज़ भले हो जाऊं मगर कभी अलग नहीं हो सकता। मैं जानता हूँ कि तुम जो भी करोगी सही और अच्छा ही करोगी। और तुम्हारे हरेक फैसले पर तुम मुझे अपने साथ खड़ा पाओगी। कम से कम इतना तो मैं कर ही सकता हूँ।
 

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

सुन्दर लेख 👌 आप मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

15 अक्टूबर 2023

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रचनाएँ
संस्मरण
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उस दिन हर रोज़ की तरह हीं मैं अपने समय पर आफिस के लिये घर से निकला। निकलते समय हीं मेरी बेटी ने कहा कि आज उसे ट्युशन पढने के लिये सुबह हीं जाना है। जाने क्युं मगर उस सुबह मैंने अपने बेटे को स्कूल नहीं भेजा था। पता नहीं मन में क्या चल रहा था कि उसे स्कूल भेजने से मुझे कोताही हो रही थी। मेरी पत्नी मेरी बेटी को अकेले पढने जाने देना नहीं चाहती थी। तो मैंने मज़ाक मे हीं उनसे कह दिया कि आज तुम ही बेटी को पढने छोड आना। चुकि मेरे दोनों हीं बच्चे एक ही जगह पर पढते है तो दोनों को एक ही साथ जाना भी पडता है। मेरी पत्नी घर से बाहर का कोई भी काम नहीं करती है। उसके सारे कम मुझे हीं करने पडते है और इसमे मुझे कोई शिकायत भी नहीं है। वो विगत लगभग पांच सालों से मांसिक रोग से संघर्ष कर रही है। मगर आज तक कभी भी टूटी नहीं। हालांकि मैं उसके रोग़ के विषय में यहाँ चर्चा नहीं करना चाहता था पर ऐसा ना करने से आगे हुई घटना को आप सही से समझ नहीं पायेंगे इसिलिये मुझे यह बताना पडा। मैं घर से निकलकर सही समय पर आफिस जा पहूंचा। सब कुछ किसी आम दिन के तरह हीं चल रहा था। तभी मेरे फोन की घंटी बज उठती है।
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