मैं मदिरा, आप सभी मुझे शराब या दारू के नाम से जानते है। वैसे तो मुझे शराब, हाला, आसव, मधु, मद्य, वारुणी, सुरा, मद इत्यादी के नाम से भी जाना जाता है मगर प्राचिन काल मे मुझे बस एक ही नाम से जाना जाता था “सोमरस”। देवराज़ इंद्र के दरबार में मेरी बहूत ही ज्यादा मांग रहती थी। वो खुद तो मुझे पसंद करते ही थे मगर अपने मित्रों के साथ मुझे बाँटने से भी हिचकिचाते नहीं थे। यह बात तब की थी जब मानव ने इस धरा पर अपने पाँव नही धरे थे। मगर आज तो इस धरती पर कई राष्ट्र अस्तित्व मे आ चुके है। आज के दौर में हर देश में मे मेरी मौजूदगी है। जितने देश उतने ही नामों से मुझे जाना जाता है। मैं पहले भी सभी की प्रिय रही थी आज भी सभी की प्रिय हूँ। ऐसा माना जाता है कि इस संसार में अगर जल के बाद सबसे ज्यादा किसी दुसरे पेय पदार्थ का महत्व है तो वो मैं ही हूँ। मेरे बिना ना तो खुशियाँ मनाई जाती है और ना हीं शोक ही पुरा हो पाता है। अवसर चाहे जैसा भी जो मेरा उस अवसर पर होना अनिवार्य है।
वैसे तो मैं समाज का एक अहम हिस्सा हूँ मगर मुझे कोई भी सही नज़र से नहीं देखता। वो लोग भी, जो मुझे बहुत पसंद करते है, सरे आम मुझे पहचानने से इंकार कर देते है। हमारे देश के लगभग हरेक बडे धर्म में मुझे घृणा और ओछी दृष्टि से ही देखा जाता है। मगर यह भी सत्य है कि वे सभी जो भरे समाज में मेरा विरोध करते हैं जब अपनी तक़लिफों से घिर जाअते है, खुद से और समाज से हार जाते है तो फिर वे मेरी ही आगोश में आकर शांति पाते है। मैं भले ही तनिक देर के लिये मगर उनको सभी प्रकर के दू:खों से मुक्त कर देती हूँ। आप माने या ना माने मगर मैं सच मे ऐसा करने के योग्य हूँ। मेरी इस गुण को तो बस वही जानता है जिसने कभी भी मेरा सेवन किया हो। लोग कहते है कि मैं सभी के सिर पर चढ जाती हूँ। मगर यकिन मानिये ऐसा करने का मेरा कोई भी इरादा नही होता। बल्कि मैं तो सभी के दिल में उतरना चाहती हूँ। मैं किसी के उपर अपना असर नहीं छोडती, किसी को बहकाती नहीं बल्कि जो जैसा है उसकी असलियत सामने लाने में मदद करती हूँ।
हाँ इस कारण कई बार दो अच्छे मित्र शत्रु बन जाते है तो कभी कभी बहुत पुरानी दुश्मनी भी मित्रता मे बदल जाती है। लोग अहते है कि मैं घर तोडने का काम करती हूँ मगर ऐसा है नहीं। मैं कभी भी किसी का हाथ पकडकर अपने पास नहीं लाती। मैं खुद से उनके पैमाने में जाकर नहीं गिर जाती। लोग मेरे गुणों के कारण ही मेरी तरफ खिंचे चले आते है। वो खुद ही अपने आप को मेरे हवाले कर देते है। मैं तो बस उनके दर्द को , उनके डर को, उनके संताप को दूर करने का सहारा बनती हूँ। सभी के दर्द को बस एक ही घूँट में समेटकर उन्हे मुक्त कर देती हूँ। अक्सर औरतों को मुझसे शिकायत रहती है कि मैं उनके पति को या उनके प्रेमी को या फिर उनके घर के मुखिया को बेकार और बर्बाद कर देती हूँ, मग आपको यह बात जानकर हैरानी होगी की इस समाज में मेरा सेवन करने वालों में औरतों की संख्या भी मर्दों के बराबर ही है। सही कहते है कि एक औरत ही दुसरे औरत जी सबसे बडी दुश्मन होती है। मैं उनकी दुश्मन नहीं बल्कि वे सामाजिक औरते मेरी दुश्मन है जो अपने घर के मुखिया को मुझ तक आने से रोक नहीं पती।
अब ज़रा बात करते है मेरे बनने की। कोई भी किमती सामान यूँ ही किमती नहीं हो जाती। उसके लिये उसे कई कसौटियों से होकर गुज़रना पडता है। मेरे लिये भी अंगूर से या किसी भी दिसरे फल से मदिरा बनने तक का सफर असान नहीं होता। सबसे पहले तो मुझे मेरी माँ से अलग किया जाता है। फिर मुझे नहवाया जाता है। इसके बाद मुझ जैसी कई दुसरी अंगुरों मे से कुछ हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ अंगूरों को चुना जाता है। इसके बाद हमे किसी बडे से चक्की में पिसा जाता है। उस चक्की में हमारे मांस से हमारी खाल को अलग कर दिया जाता है। इसके बाद हमारी खाल का क्या होता है नही पता। इसके बाद हमारे मसले गये मांस से निकलने वाले लहू को इकट्ठा करके किसी कोने में कई दिनों तक सडने के लिये छोड दिया जाता है। हमारा अपना लहू ही फिर हमें अच्छा नही लगता। अपने आप से हमें बदबू आने लगती है। खुद से ही मम उठने लगता है। कई दिनों तक सडने के बाद एक दिन मैं भूल जाती हूँ कि मैं कौन थी। अब तक मेरा नया रंग और रूप अपना कमाल दिखा चुका होता है।मैं पुरी तरह से बदल चुकी होती हूँ। कल तक जिसे खाकर लोग खुद के अच्छे स्वास्थ को प्राप्त करना चाहते थे, वो अचानक से मेरे नये रूप से नफ़रत करने लगते है। मिन मगर अप्ने नये रूप रंग से काफी खूश होती हूँ। अब मेरी कीमत पहले से कहीं ज्यादा हो गयी थी। पहले मुझे बस एक ही नाम से पुकारा जाता था मगर अब ना जाने कितने नाम से मुझे पुकारा जाना लगा था। पहले मैं बस एक भोग का सामान हुआ करती थी इस नये रूप मे मै किसी की प्रेमिका, किसी की पत्नी, किसी की मित्र, किसी का शत्रु, किसी का अपना, किसी का राज़दार, कुछ भी बन सकती हूँ। जितने भी लोग होश मे रहते हुए सच्चे होने का दावा करते है ना वे सभी मुझे पीकर सच्चे बन ही जाते है। मैं लोगों के अंदर का कालापन और सच्चा पन दोनों ही सामने लाकर रख देती हूँ। तभी तो मुझे पिने वाले भी मेरा नशा उतरते हीं मुझसे नफरत करने लगते है। मगर मुझे अपने आप पर गर्व है। मैं अपने पास आने वाले से कोइ भी पर्दा नहीं रखती। जो जैसे मुझसे मिलता है मैं वैसी ही उसकी हो जाती हूँ। मैं शराब हूँ, अंगूर की बेटी, सत्य की साथी, बेईमानी की शत्रु, मिथ्या की सौतन। अब अप मुझे जैसा भी देखना चाहे देख सकते है। मगर जब्तक मुझे चखें नहीं अपनी राय ना हीं बनाये तो बेहतर है वरना मेरे चाहने वालों से आपको भगवान ही बचाये 😀 😀 😀 😀 😀 😀|