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नारी तेरी किस्मत (भाग-2)

22 फरवरी 2022

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लता वहां पर रूकी रही और एक आशावादी दृष्टि से उस राह को ताकती रही जिसे पाने के लिए उसे इस संकट का सामना करना पड रहा था। उसकी कातर निगाहों को देखकर किसी को भी दया आ जानी थी लेकिन सुंदरता के नशे में चूर उसका पति जो उसकी सभी उम्मीदों को विफल करने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचा रहा था। जब लता की ओझल आंखें इंतजार करने में सक्षम न रही तब लता ने अपने इरादों को कमजोर करते हुए वापस अपने मायके जाने की राह पकड़ने को फैसला किया। वह रास्ते में जा ही रही थी कि उसे लता की मौसेरी सास (जो उसी गांव की थी) मिली। वह लता को देखकर चौकन्नी हो गई। उसने लता को आवाज देकर अपने पास बुला लिया। वह लता से पूछने लगी तुम कहां से आ रही हो?  तुम पीहर से कब आई ? उसने लता का सारा हाल-चाल पूछा। जब लता से उसकी मौसेरी सासू यह बात पूछ रही थी तो उसकी आंखों से अश्रु धारा का प्रवाह होने लगा जो कभी रुकने वाला नहीं था। लता अब फफक-फफक कर रोने लगी और अपनी किस्मत को कोसने लगी।
मौसी मैं क्या करूं? मुझे कुछ पता ही नहीं कि मेरी किस्मत में क्या लिखा है ? जो मुझे इतना कुरूप बनाया कि मैं रास्ते में धक्के खाते घूम रही हूं ।  इस संसार में काले लोगों की कुछ अहमियत नहीं है जो आपका बेटा मुझे रखने के लिए तैयार ही नहीं है। मैं ठहरी एक अभागे पिता की रूपहीन पुत्री। लता का रोना रूक नहीं पा रहा था। वह लगातार रोए जा रही थी।
लता की मौसेरी सास ने उसे ढांढस बंधाया। वह कहने लगी  लता तू रो मत। मैं तेरे साथ चलती हूं और उसे समझाने का प्रयास करती हूं।

 अब लता की मौसेरी सास उसे अपने घर ले गई। लता ने सुबह से खाना भी नहीं खाया था क्योंकि वह बिना कुछ खाए पीए घर से सुबह ही निकल गई थी उसे यहां होने वाले नाटक का जरा भी शक नहीं था। लता को उसकी मौसेरी सासू ने घर पर लाकर कुछ सान्त्वना दी और सभी ने समझाया। सभी लोग लता से कहने लगे कि लता  सब कुछ सही है जायेगा अब तुम खाना खा लो लेकिन  लता के  मूंह से खाने का निवाला उतर ही नहीं रहा था।वह एक जगह बैठकर मन ही मन लगातार रोए जा रही थी। जब उसे उसके साथ हो रहे अत्याचार की बातें याद आती तो वह याद करते-करते रोने लग जाती।
इधर लता की मौसेरी सास लता के घर पहुंच गयी। वहां पर बैठे लता के सास-ससुर और पति को समझाने लगी। लता के सास-ससुर और पति उसे रख़ने के लिए तनिक भी राजी नहीं थे।लता का पति कहने लगा कि मौसी में लता को किसी हालत में नहीं रख पाऊंगा। यदि इस संबंध में मेरे ऊपर किसी ने दबाव डाला तो मैं कहीं जाकर मर जाऊंगा। यह कहकर वह वहां से चला गया। जब उसके माता-पिता ने यह बातें सुनी तो वे लता की मौसी से कहने लगे कि हम उस कुलक्षणी काली लता  के लिए अपने बेटे को नहीं खोना चाहते। अब आप हमें बिलकुल मत समझाओ और यहां से चली जाओ। हम उस लता का मूंह देखना नहीं चाहते। लता की मौसेरी सास अब निराश हो गई वह जिस उम्मीद के साथ लता को वादा करके आयी। वह उम्मीद खत्म हो गई।
अब लता की मौसेरी सास उठकर चल दी। वह रास्ते में चल रही थी वह बहुत ही निराश थी क्योंकि उसे उम्मीद थी कि उसकी बात मान ली जाएगी। अब वह इतनी हताश हो गई कि उसके पैर वापस आ रहे थे। वह लता की दशा की लगातार सोच रही थी। बेचारी लता का अब क्या होगा? उसका अब कौन सहारा रहेगा? स्त्री का एक सहारा पति ही होता है।वह उसे रखना नहीं चाहता। अब वह  किसके साथ रहेगी और कैसे जीवनयापन करेगी इन सारी बातों को सोचती जा रही थी। उसे पता ही नहीं चला कि उसका रास्ता अब खत्म हो गया। वह अपने घर पर पहुंच गई। जैसे ही उसकी दृष्टि लता पर पड़ी वह उससे नजरें नहीं मिला पा रही थी। उसके चेहरे पर निराशा के भाव देखकर लता भांप गई। अब उसकी जिंदगी में उसका सहारा नहीं रहा। वह तुरंत उठकर मौसेरी सास से पूछने लगी मौसी क्या हुआ कुछ बताओ ना लेकिन वह जबाव नहीं दे पा रही थी। आखिर लता ने कह दिया कि यह मुझे पता था कि मेरी किस्मत ही मेरे साथ नहीं है। वह वहां से जाने लगी उसकी मौसेरी सास उसे रूकने के लिए कहने लगी लेकिन उसकी बात में नकारात्मक भाव झलक रहे थे। वह वहां से अपने मायके चली गई।
लता मायके पहुंचकर मां के गले लगकर फफक-फफक कर रोने लगी। उसकी मां भी अपनी बेटी से लिपटकर बुरी तरह से रोने लगी और उनके पास में बैठा उसका बेबस  पिता जिसकी आंखों में आसूं निकलने लगे। वह अपनी गरीब हालत के लिए मजबूर था। ऐसी हालत में लता के लिए कुछ नहीं कर पा रहा था। अब उसे लता की शादी बचपन में और बेमेल लड़के के साथ करने का अहसास हो रहा था। लेकिन अगले ही क्षण उसने अपने आंसू रोके और लता को समझाने लगा बेटी सब कुछ ठीक हो जायेगा।अभी तेरा बाप मरा नहीं है। वह लता के आंसुओं को पोंछते हुए कहने लगा। 

उसी समय लता की वह छोटी बिटिया कहीं से दौड़ी आई। जोर-जोर से चिल्लाने लगी। मम्मी आ गई मम्मी आ गई। लता की बिटिया लता से लिपट गई  वह खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी। वह कहने लगी मेरे लिए खाने के लिए क्या लाई हो। लता ने उसे छाती से लगा लिया और खुश होने का नाटक करते हुए उसने अपने आंचल से एक रूपया निकालकर हाथ में देते हुए कहा ले बेटी चीज लेकर आजा मैं तेरे लिए चीज लाना भूल गई।लता की बिटिया हाथ में रूपया लेकर इस तरह भागी मानो उसे सारी दुनिया से कीमती वस्तु मिल गई हो। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।वह आंगन में उछलते कूदते हुए दुकान की तरफ बढ़ रही थी। लता ने जब अपनी बेटी की मासूमियत और अज्ञानता को देखा तो वह एक पल के लिए मुस्कराने लगी। अब वह थोड़ी खुशी में आ गई थी। लता अपनी बेटी को देखकर अपने चेहरे के भाव इस तरह प्रकट कर रही थी मानो उसे अपने मन की सारी इच्छित चीजें मिल गई हों।वह अपनी बेटी पर लगातार नजरें गढ़ाते हुए उसी खुशी के अहसास को देख रही थी।लता को पता ही नहीं चला कि कब उसकी नज़रों से उसकी बेटी अलग हो गई। क्योंकि अब स्वप्नों के  सागर में पहुंच चुकी थी।उसे अब भी यह महसूस हो रहा था कि उसकी बेटी उसके सामने ही खड़ी है। अचानक वह ठिठकी और देखा कि इस समय उसके सामने और आसपास कोई नहीं है। वह उस उजड़े चमन की तरह थी जिसमें पेड़ों के पत्ते झंडे हुए हो और उसमें चारों तरफ केवल रोशनी द्वारा डेरा डाला हुआ हो।लता अकेला पाकर पुनः दुखी हो गई।
इधर लता के ससुराल में दृढनिश्चय किया हुआ लता का पति अपनी अड़ियल इरादों पर मजबूती से पकड़ बनाते हुआ था। क्योंकि वह क्या जाने कि एक बेटी को शादी के बाद छोड़ देने के बाद उसके पिता और उस बेटी के ऊपर कैसे-कैसे संकट आते होंगे। यह तो उस लड़की का पिता और वह लड़की ही समझ सकती है।कुछ समय बीत जाने के बाद लता के पति और उसके माता-पिता सोचने लगे जब हमको लता को लाना नहीं है। तो हमें दूसरी शादी कर लेनी चाहिए।
एक दिन उसके घर पर लड़के के मामा-मामी आये। यह विचार लड़के माता-पिता ने उनके सामने रखा कि हमें हमारे लड़के की शादी करनी है। हमने पहले की बहु को छोड़ने का निर्णय कर लिया है। उसके मामा-मामी ने उन्हें समझाया लेकिन उनके एक बात भी दिमाग में नहीं उतर रही थीं।अंत में उन्होंने अपनी बात पर ही अटल रहते हुए लड़के की शादी करने का निश्चय कर लिया। उसके मामा की नजर में एक लड़की थी। जिसका किसी बात को लेकर पहले से तलाक चल रहा था। उसे देखने का विचार किया। यह प्रस्ताव लड़के और उसके माता-पिता ने स्वीकार कर लिया।
अगली सुबह पेड़ों पर चिड़िया चहचहा रही थी। लोग शौच इत्यादि से निवृत हो रहे थे। कुछ लोग खेतों की ओर बढ़ रहे थे। घरों में दही बिलोने की आवाजें सभी के कानों तक पहुंच रही थी। इधर लड़के के माता-पिता और मामा-मामी थोड़ी सुगबुगाहट के साथ कुछ चर्चा करने में लगे हुए थे। वे भी जल्दी से जल्दी नित्यकर्मो से निपट कर नहा धोकर तैयार हो गये थे। लड़का भी थोड़ी प्रसन्नता के माहौल में गोते लगा रहा था। क्योंकि उसे नई लड़की को देखने जाना था। वह भी जल्द ही तैयार हो गया था।सभी तैयार होकर घर निकल गये।
सारा दिन गुजर गया। गांव में किसी को भनक तक नहीं लगी। कि लता के ससुराल में करता हो रहा है। रवि अपनी किरणों को समेट रहा था। और पश्चिम की तरफ होने वाली उस स्वर्णिम आभा का दृश्य देखते ही बनता है। वह एक कनक गिरि की तरह लग रहा है। जैसे-जैसे शाम बढ़ने की ओर आ रही वह स्वर्णिम आभा उस भंडार की तरह लुप्त होती जा रही थी। मानो किसी सोने के भंडार को कोई लुटेरों का समूह लूट कर ले जा रहा हो। इसी स्वर्णिम आभा के प्रकाश में लडका और उसके माता-पिता प्रसन्नता के भाव लेकर आ रहे थे। उनकी खुशी देखकर शायद लग रहा था। कि उन्हें वह लड़की बेहद पसंद आ गई। कुछ दिनों तक यह बात दीवारों के अंदर ही घुटती रही किसी दीवार को भेदकर नहीं जाने दी।
लता अपने दृढनिश्चय पर अडिग थी। कि मुझे उसी घर की बहु बनना है अन्यथा में कहीं नहीं जाऊंगी।लता को अपने मायके में रहते हुए काफी समय गुजर चुका था।उसके भाईयों की भी शादी हो जाने के बाद लता उसके माता-पिता के लिए एक बोझ बन चुकी थी। वह घर के सभी कार्यों में हाथ बंटाती लेकिन यदि किसी कार्य को बिगाड देती तो उसकी भाभी उसे ताना मारने लगी। माता-पिता इस बात से परेशान थे लेकिन वे उसे कहां जाने के लिए कहे क्योंकि उसकी प्रतिज्ञा के आगे वे भी बेबस और लाचार थे। उनकी गरीबी और अशिक्षा उन्हें बार-बार दुखों के सागर में डाल रही थी। यदि उनके पास धन होता तो कानूनी कार्यवाही से लता को शर्मा दिलवा सकते थे।और कानून के विषय में उन्हें ज्यादा पता नहीं था। इसलिए अपनी लाचारी पर वे हाथ पर हाथ धरकर बैठे थे।तभी उन्होंने एक तरीका अपनाया उनके द्वारा लता के लिए कुछ बकरियां खरीद ली जिन्हें वह चराने जाने लगी। इनसे लता की बेटी को पीने के लिए दूध भी मिल जाता।अब लता इस कार्य में व्यस्त रहते हुए अपना जीवन गुजार रही थी।और अपनी मासूम बेटी का लालन-पालन कर रही थी।

                                                   क्रमशः


कविता रावत

कविता रावत

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नारी तेरी किस्मत
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यह स्त्री पर होने वाले अत्याचार और नारी की सहनशीलता का वर्णन है।
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