आस तोहमत लगाकर मुझ पर,गुफ्तगूं की आस करते हो।मेरे होते हुए तसव्वुर किसी और कामुझसे नज़ाकत की आस करते हो।तवज्जो नहीं दी कभी मेरी बात पर,खाते रहे कसमें झूठी मेरी जान की।बेवफा हो गए तुम मुझसे वफ
ममता का कर्ज उसने चुका दिया ?डॉ शोभा भारद्वाज मैं इस संसमरण का निष्कर्ष नहीं निकाल सकी कुछ वर्ष पुरानी बात है मुस्लिम समाज के रोजे चल रहे थे ईद को अभी एक हफ्ता शेष था इन दिनों बाजारों की रौनक निराली होती हैं महिलाओं बच्चों के नये डिजाइन के रेडीमेड कपड़े आर्टिफिशियल ज्वेलरी चूड़ियां झूमर और न जाने क्
बचपन बनामबुढ़ापा। नर्म हथेलीमुलायम होठ, सिरमुलायम काया छोट।बिन मांगेहोत मुरादे पूर,ध्यान धरे माता गोदी भरे।पहन निरालेकपड़े पापा संग, गाँवघूम कर बाबा-दादी तंग।खेल कूद बड़ेभये, भाई बहनो केसंग। हस खेल जवानी, बीत गईं बीबी के संग। ये दिन जब, सब बीत गए जीवन के। अंखियन नीरबहे, एक आस की खातिर।कठोर हथेलीसूखे हो
दीपों के जगमग त्योहार में नेह लड़ियों के पावन हार में जीवन उजियारा भर जाऊँ मैं आस का नन्हा दीप बनूँ अक्षुण्ण ज्योति बनी रहे मुस्कान अधर पर सजी रहे किसी आँख का आँसू हर पाऊँ मैं आस का नन्हा दीप बनूँ खेतों की माटी उर्वर हो फल-फूलों से नत तरुवर हो समृद्ध धरा को कर पाऊँ मैं आस का नन्हा दीप बनूँ न झोपड़