बचपन बनाम
बुढ़ापा।
नर्म हथेली
मुलायम होठ, सिर
मुलायम काया छोट।
बिन मांगे
होत मुरादे पूर,
ध्यान धरे माता गोदी भरे।
पहन निराले
कपड़े पापा संग, गाँव
घूम कर बाबा-दादी तंग।
खेल कूद बड़े
भये, भाई बहनो के
संग।
हस खेल जवानी, बीत गईं बीबी के संग।
ये दिन जब, सब बीत गए जीवन के।
अंखियन नीर
बहे, एक आस की खातिर।
कठोर हथेली
सूखे होठ, सिर बड़ा
काया टूट।
बिन मांगे
न होत मुरादे पूर, अब कौन ध्यान धरे गोदी भरे?
न पहन सके
तन मे कपड़ा, जब हाथ
हो गए तंग।
न घूमा सके
बेटा-बेटी बहू, पोती-पोता
जब पैर हो गए तंग।
आन-मान सब, छूट गईं बुढ़ापे की लड़ाई मे।