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बाँच ली मैंने व्यथा

24 फरवरी 2022

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बाँच ली मैंने व्यथा की बिन लिखी पाती नयन में !

मिट गए पदचिह्न जिन पर हार छालों ने लिखी थी,
खो गए संकल्प जिन पर राख सपनों की बिछी थी,
आज जिस आलोक ने सबको मुखर चित्रित किया है,
जल उठा वह कौन-सा दीपक बिना बाती नयन में !

कौन पन्थी खो गया अपनी स्वयं परछाइयों में,
कौन डूबा है स्वयं कल्पित पराजय खाइयों में,
लोक जय-रथ की इसे तुम हार जीवन की न मानो
कौंध कर यह सुधि किसी की आज कह जाती नयन में।

सिन्धु जिस को माँगता है आज बड़वानल बनाने,
मेघ जिस को माँगता आलोक प्राणों में जलाने,
यह तिमिर का ज्वार भी जिसको डुबा पाता नहीं है,
रख गया है कौन जल में ज्वाल की थाती नयन में ?

अब नहीं दिन की प्रतीक्षा है, न माँगा है उजाला,
श्वास ही जब लिख रही चिनगारियों की वर्णमाला !
अश्रु की लघु बूँद में अवतार शतशत सूर्य के हैं,
आ दबे पैरों उषाएँ लौट अब जातीं नयन में !
आँच ली मैंने व्यथा की अनलिखी पाती नयन में ! 

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रचनाएँ
दीपगीत
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दीपगीत महादेवी वर्मा की दीपक संबंधी कविताओं का संग्रह है। दीप महादेवी वर्मा का प्रिय प्रतीक है। डॉ शुभदा वांजपे के विचार से दीप महादेवी वर्मा का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। प्रो श्याम मिश्र महादेवी की कविता में दीपक को साधनारत आत्मा का प्रतीक मानते हैं और प्रकाशक का कहना है कि अंधेरे में आलोक को नए नए अर्थ देती दीपगीत की कविताएँ मानवीय करुणा को रेखांकित करती हैं। निःसंदेह इन कविताओं के दीपकों में आशा की किरन और तिमिर से जूझने का साहस दिखाई देता है। उनकी कविताएं हिन्दी साहित्य की एक सार्थक कालजयी उपलब्धि हैं। छायावाद की इस कवयित्री की हिन्दी साहित्य में अपनी एक अनूठी पहचान है। ‘दीप’ महादेवी जी का प्रिय प्रतीक था। अंधेरे में आलोक को नए-नए अर्थ देतीं ‘दीपगीत’ की कविताएं मानवीय करुणा को रेखांकित करती हैं।
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