मेरे मन के आंगन में
सुधि चंद्रप्रभा है फैली
तन सिहर सिहर जाता
यह कैसी दशा है मेरी।
लखकर भी खोज न पाता
प्रकृति की यह कैसी माया
क्यों मन में उतर ही आई
जीवन दर्शन की ऐसी छाया।
मन की आंखों में झलका
लेकर मनुहरी रंगों की धारा
नए रूप अनूप संग जीवन में
छविमय बसंत है आया।
देखा सुखिमय बसंत में
कोमल कलियों का खिलना
मधु से गीली गलियों में
आकर अलियों का मिलना।
कोयल कूके कुहू-कुहू
अमुआ पे बौर जो आई
सोलह श्रृंगार किए सी
सुंदर बसंत ऋतु आई।