रात को बिस्तर पर
अकेला होता हूं
एक सन्नाटा उभरता है
तुम्हारे बोलों की तरह
हवा फुसफुसाती है
बजा के सांकल
हवा खिलखिलाती है
छूकर पैर के तलवे
हवा मुस्कराती है
ऐसे में जागता हूं
और
तुम्हारे ख्यालों में
रात गुजर जाती है
जानता हूं अब नहीं आओगी तुम
फिर भी
जिंदा रहने के लिए
खुशफहमियां जरूरी होती हैं....