याद आती हो तुम
सुबह नहाकर खिड़की के करीब
बाल सुखाती
याद आती हो तुम
माथे पर सुर्ख बिंदी मांग में मेरे नाम का
सिंदूर लगाती
याद आती हो तुम
नित सांझ-सबेरे नियम से पूजन-अर्चन
घर को स्वर्ग बनाती
याद आती हो तुम
आफिस से लौटकर सोफे पर निढाल होते ही
पानी का गिलास थमाती
याद आती हो तुम
किसी समस्या में चिंता से घिर जाने पर
सब ठीक होगा समझाती
याद आती हो तुम
उन दिनों कुछ पैसे बचाने मेरे साथ
पैदल चलती जाती
याद आती हो तुम
दे न सका सोने की अंगूठी, चांदी की पायल
कोई शिकायत नहीं जताती
याद आती हो तुम
मैं राम बन न सका फिर भी सीता बन
हर पल साथ निभाती
याद आती हो तुम