पता नहीं कितनी आकांक्षाएं
कितने स्वप्न
अपने में ही सिमटकर रह गए
पता नहीं क्या है
जो कांटे सा चुभता है
सोने नहीं देता रात भर
एकांत बन जाता है
जिंदगी का सिलसिला
विवशता बनती है
जिंदगी की परिभाषा
पता नहीं कैसे जी लेता हूं
जबकि
तुम हो यादों में केवल
पता नहीं क्यों
जिंदगी हर्षित है रेगिस्तान में
पता नहीं कैसे जी लेता हूं
जबकि तुम
केवल यादों में हो...