सरकार करो कुछ ऐसा राहत हो जाए,
गरीबों की सुनने की तुम्हें आदत हो जाए।
तुम्हारे अहसान तले दबकर जीते रहेंगे हम,
कहीं ऐसा न हो कि जमानत जब्त हो जाए।
कभी तुम्हारे लिए उठे हाथ, दुआएं मांगी थी,
बद्दुआ दी तो कहीं कयामत न हो जाए।
दो साथ जरूरतमंदों का हक दिलाने के लिए,
इंसान बनो, इंसान दिखो, इंसानियत हो जाए।
छल, कपट, ईर्ष्या, अहम जरा कम करो,
वोट पड़े तो ऐसा न हो भीतर घात हो जाए।