बिक गये घर कई, बिक गयी खेतियां,
बैठ पायी है डोली में तब बेटियां!
माँ की चूड़ी बिकी, बिक गयीं बालियां,
हाथ मेहँदी रचा पायी तब बेटिया।
हलवा, पूड़ी तो बेटो के खातिर बने,
बॉसी रोटी चबाती रही बेटिया।
भैया, भाभी भी अपमान करते बहुत,
फिर भी राखी भिजवाती रही बेटियां।
बेटा रोये तो दादी के हाथों में है,
गीले बिस्तर पे सोती रही बेटियां।
पैदा होने पे बेटो के गोली चले,
कोख में ही तो मारी गयी बेटियां।
इनकी इच्छा को पूछा कभी न गया,
बैठ डोली में जाती रही बेटियां।
बनके नैना सी जलती रही बेटियां,
दर्द होने का सहती रही बेटियां।
बिक गये घर कई,,,,,,