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भाग -9

7 जून 2022

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आधी रात का समय है। चारों तरफ अंधेरी छाई हुई है। आसमान पर काली घटा रहने के कारण तारों की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुँचती। जरा-जरा बूंदा-बूंदी हो रही है, मगर वह हवा के झपेटों के कारण मालूम नहीं होती। हरिपुर में चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। ऐसे समय में दो आदमी स्याह पोशाक पहिरे, नकाब डाले (जो इस समय पीछे की तरफ उल्टी हुई है) तेजी से कदम बढ़ाये एक तरफ जा रहे हैं। ये दोनों सदर सड़क को छोड़ गली-गली जा रहे हैं और तेजी से चल कर ठिकाने पहुँचने-की कोशिश कर रहे हैं, मगर गजब की फैली हुई अंधेरी इन लोगों को एक रंग पर चलने नहीं देती, लाचार जगह-जगह रुकना पड़ता है, जब बिजली चमक कर दूर तक का रास्ता दिखा देती है तो फिर ये कदम चलते हैं।

ये दोनों गली-गली चल कर एक आलीशान मकान के पास पहुँचे जिसके फाटक पर दस-बारह आदमी नंगी तलवारें लिए पहरा दे रहे थे। दोनों ने नकाब ठीक कर ली और एक ने आगे बढ़ कर कहा, “महादेव!” इसके जवाब में उन सभों ने भी “महादेव!” कहा। इसके बाद एक सिपाही ने जो शायद सभी का सरदार था, आगे बढ़ कर उस आदमी से, जिसने ‘महादेव’ कहा था, पूछा, “आज आप अपने साथ और भी किसी को लेते आए हैं? क्या ये भी अन्दर जायेंगे?”

आगन्तुक : नहीं, अभी तो मैं अकेला ही अन्दर जाऊँगा और ये बाहर रहेंगे, लेकिन अगर सरदार साहब इनको बुलायेंगे तो ये भी चले जायेंगे।

सिपाही : बेशक, ऐसा ही होना चाहिए। अच्छा, आप जाइए।

इन दोनों में से एक तो बाहर रह गया और इधर-उधर टहलने लगा और एक आदमी ने फाटक के अन्दर पैर रक्खा। इस फाटक के बाद नक़ाबपोश को और तीन दरवाजे लाँघने पड़े, तब वह एक लम्बे-चौड़े सहन में पहुँचा, जहाँ एक फर्श पर लगभग बीस के आदमी बैठे आपुस में कुछ बातें कर रहे थे। बीच में दो मोमी शमादान जल रहे थे और उसी के चारों तरफ वे लोग बैठे हुए थे। ये सब रोआबदार, गठीले और जवान आदमी थे तथा सभों ही के सामने एक-एक तलवार रक्खी हुई थी। उन लोगों की चढ़ी हुई मूंछों और तनी हुई छाती, बड़ी-बड़ी सुर्ख आँखें कहे देती थीं कि ये सब तलवार के जौहर के साथ अपना नाम रोशन करने वाले बहादुर हैं। ये लोग रेशमी चुस्त मिरजई पहिरे, सर पर लाल पगड़ी बाँधे, रक्‍त-चन्दन का त्रिपुण्ड लगाए, दोपट्टी आमने-सामने वीरासन पर बैठे बातें कर रहे थे। ऊपर की तरफ बीच में एक कम-उम्र बहादुर नौजवान बड़े ठाठ के साथ जड़ाऊ कब्जे की तलवार सामने रक्खे बैठा हुआ था। उसकी बेशकीमती- मछली टकी हुई सुर्ख मखमल की चुस्त पोशाक साफ-साफ कह रही थी कि वह किसी ऊँचे दर्जे का आदमी, बल्कि किसी फौज का अफसर है, मगर साथ ही इसके उसकी चिपटी नाक रहे-सहे भ्रम को दूर करके निश्चय करा देती थी कि वह नेपाल का रहने वाला है बल्कि यों कहना चाहिए कि वह नेपाल का सेनापति या किसी छोटी फौज का अफसर है। चार आदमी बड़े-बड़े पंखे लिए इन सभों को हवा कर रहे हैं।

यह नकाबपोश उस फर्श के पास जाकर खड़ा हो गया और तब वीरों को एक दफे झुक कर सलाम करने के बाद बोला, “आज मैं सच्चे दिल से महाराजा नेपाल को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने हम लोगों का अर्थात्‌ हरिपुर की रिआया का दुःख दूर करने के लिए अपने एक सरदार को यहाँ भेजा है। मैं उस सरदार को भी इस कमेटी में मौजूद देखता हूँ, जिसमें यहाँ के बड़े क्षत्री जमींदार, वीर और धर्मात्मा लोग बैठे हैं। अस्तु, प्रणाम करने बाद (सर झुका कर) निवेदन करता हूँ कि वे उन जुल्मों की अच्छी तरह जाँच करें जो राजा करनसिंह की तरफ से हम लोगों पर हो रहे हैं। हम लोग इसका सबूत देने के लिए तैयार हैं कि यहाँ का राजा करनसिंह बड़ा ही जालिम, संगदिल और बेईमान है!

उस नकाबपोश की बात सुन कर नेपाल के सरदार ने, जिसका नाम खड़गसिंह था, एक क्षत्री वीर की तरफ देख कर पूछा—-

खड़ग : अनिरुद्ध सिंह, यह कौन है?

अनिरुद्ध : (हाथ जोड़ कर) यह उस नाहरसिंह का कोई साथी है जिसे यहाँ के राजा ने डाकू के नाम से मशहूर कर रक्खा है। अकसर हम लोगों की पंचायत में यह शरीक हुआ करता है। इसका नाम सोमनाथ है।

खड़ग : मगर क्या तुम उस नाहरसिंह डाकू के साथी को अपना शरीक बनाते हो, जिसने हरिपुर की रिआया को तंग कर रक्खा है और जिसकी दबंगता और जुल्म की कहानी नेपाल तक मशहूर हो रही है?

सोम : नाहरसिंह को केवल यहाँ के बेईमान राजा ने बदनाम कर रक्खा है, क्योंकि वह उन्हीं के साथ बुरी तरह पेश आता है, उन्हीं का खजाना लूटता हैं, और उन्हीं की कैद से बेचारे बेकसूरों को छुड़ाता है। सिवाय राजकर्मचारियों के हरिपुर का एक अदना आदमी भी नहीं कह सकता कि नाहरसिंह जालिम है या किसी को सताता है।

खड़ग : (अनिरुद्ध की तरफ देख कर) क्या यह सच है?

अनिरुद्ध : बेशक, सच है। नाहरसिंह बड़ा ही नेकमर्द, रहमदिल, धर्मात्मा और वीर पुरुष है। वह किसी को तंग नहीं करता, बल्कि वह महीने में हजारों रुपये यहाँ की गरीब प्रजा में गुप्त रीति से बाँटता, दरिद्रों का दुख दूर करता, और ब्राह्मणों की सहायता करता है। हाँ राजा करनसिंह को अवश्य सताता है, उनकी दौलत लूटता है, और उनके सहायकों की जानें लेता है।

खड़ग : अगर ऐसा है तो हम बेशक नाहरसिंह को बहादुर और धर्मात्मा कह सकते हैं (सोमनाथ की तरफ देख कर) मगर राजा करनसिंह नाहरसिंह की बहुत बुराई करता है और उसे जालिम कहता है, सबूत में हाल ही की यह नई बात दिखलाता है कि नाहरसिंह नमकहराम बीरसिंह को कैद से छुड़ा ले गया, जिस पर राजकुमार का खून हर तरह से साबित हो चुका था और तोप के सामने रख कर उड़ा देने के योग्य था। नाहरसिंह इसका क्या जवाब रखता है?

अनिरुद्ध : सोमनाथ बराबर हम लोगों की पंचायत में मुँह पर नकाब डाल कर आया करते हैं। हम लोग इस बात की जिद नहीं करते कि वे अपनी सूरत दिखाएँ बल्कि कसम खा चुके हैं कि इनके साथ कभी दगा न करेंगे। जिस दिन से नाहरसिंह ने बीरसिंह को छुड़ाया है, उस दिन से आज ही मुलाकात हुई है। हम लोग खुद इस बात का जवाब इनसे लिया चाहते थे कि उस आदमी की मदद नाहरसिंह ने क्यों की, जिसने राजा के लड़के को मार डाला? नाहरसिंह से ऐसी उम्मीद हम लोगों को न थीं। हम लोग बेशक राजा के दुश्मन हैं, मगर इतने बड़े नहीं कि उसके लड़के के खूनी को भगा दें। मगर हम लोगों को सब से ज्यादा ताज्जुब इस बात का है कि बीरसिंह के हाथ से ऐसा काम क्योंकर हुआ! वह बड़ा ही नेक, धर्मात्मा और सच्चा आदमी है। राजा से भी ज्यादा हम लोग उसे मानते हैं और उससे मुहब्बत रखते हैं, क्योंकि इस राज्य में या कर्मचारियों में एक बीरसिंह ही ऐसा था, जिसकी बदौलत रिआया आराम पाती थी या जो रिआया को अपने लड़के के समान मानता था, मगर ताज्जुब है कि……

सोम : इस बाते का जवाब मैं दे सकता हूँ और निश्चय करा सकता हूँ कि नाहरसिंह ने कोई बुरा काम नहीं किया और बीरसिंह बिल्कुल बेकसूर है।

खड़ग : अगर नाहरसिंह और बीरसिंह की बेकसूरी साबित होगी तो हम बेशक उनके साथ कोई भारी सलूक करेंगे। सुनो सोमनाथ, राजा के खिलाफ यहाँ की रिआया तथा नाहरसिंह की अर्जियाँ पाकर महाराजा नेपाल ने खास इस बात की तहकीकात करने के लिए मुझे यहाँ भेजा है और मैं अपने मालिक का काम सच्चे दिल से धर्म के साथ किया चाहता हूँ। (बहादुरों की तरफ इशारा करके) ये लोग मुझे भली प्रकार जानते हैं और मुझ पर प्रेम रखते हैं, तभी मैं इन लोगों की गुप्त पंचायत में आ सका हूँ और ये लोग भी अपने दिल का हाल साफ-साफ मुझसे कहते हैं। हाँ, बीरसिंह की बेकसूरी के बारे में तुम क्या कहना चाहते हो कहो?

सोम : बीरसिंह कौन है और आप लोगों को कहाँ तक उसकी इज्जत करनी चाहिए, यह फिर कभी कहूँगा, इस समय केवल उसकी बेकसूरी साबित करता हूँ।

बीरसिंह ने महाराज के लड़के को नहीं मारा। यह महाराज ने जाल किया है। महाराज का लड़का अभी तक जीता-जागता मौजूद है, और महाराज ने उसे छिपा रक्खा है, मैं आपको अपने साथ ले जाकर राजकुमार को दिखा सकता हूँ।

खड़ग : हैं ! राजा का लड़का सूरजसिंह जीता-जागता मौजूद है!

सोम: जी हाँ।

खड़ग : ज्यादा नहीं, केवल एक इसी बात का विश्वास हो जाने से हम यहाँ के रिआया की दरखास्त सच्ची समझेंगे और राजा करनसिंह को गिरफ्तार करके नेपाल ले जायेंगे।

सोम : केवल यही नहीं, राजा ने बीरसिंह के कई रिश्तेदारों को मार डाला है, जिसका खुलासा हाल सुन कर आप लोगों के रोंगटे खड़े होंगे। बेचारा बीरसिंह अभी तक चुपचाप बैठा है।

खड़ग : (तलवार के कब्जे पर हाथ रख के) अगर यह बात सही है तो हम लोग बीरसिंह का साथ देने के लिए इसी वक्त से तैयार हैं, मगर नाहरसिंह को खुद हमारे सामने आना चाहिए।

इतना सुनते ही खड़गसिंह के साथ अन्य सरदारों और बहादुरों ने भी तलवारें स्थान से निकाली और धर्म की साक्षी देकर कसम खाई कि हम लोग नाहरसिंह के साथ दगा न करेंगे, बल्कि उनके साथ दोस्ताना बर्ताव करेंगे। उन सभों को कसम खाते देख सोमनाथ ने अपने चेहरे से नकाब उलट दी और तलवार म्यान से निकाल, सर के साथ लगा, गरज कर बोला, “आप लोगों के सामने खड़ा हुआ नाहरसिंह भी कसम खाता है कि अगर वह झूठा निकला तो दुर्गा की शरण में अपने हाथ से अपना सिर अर्पण करेगा। मेरा ही नाम नाहरसिंह है। आज तक मैं अपने को छिपाये हुए था और अपना नाम सोमनाथ जाहिर किए था।

शमादान की रोशनी एकदम नाहरसिंह के खूबसूरत चेहरे पर दौड़ गई। उसकी सूरत, आवाज और उसके हियाब ने सभों को मोहित कर लिया, यहाँ तक कि खड़गसिंह ने उठ कर नाहरसिंह को गले लगा लिया और कहा, “बेशक, तुम बहादुर हो! ऐसे मौके पर इस तरह अपने को जाहिर करना तुम्हारा ही काम है! भगवती चाहे तो अवश्य तुम सच्चे निकलोगे, इसमें कोई शक नहीं। (सरदारों और जमींदारों की तरफ देख कर) उठो और ऐसे बहादुर को गले लगाओ, इन्हीं के हाथ से तुम लोगों का कष्ट दूर होगा! ”

सभों ने उठ कर नाहरसिंह को गले लगाया और खड़गसिंह ने बड़ी इज्जत के साथ उसे अपने बगल में बिठाया।

नाहर : बीरसिंह को मैं बाहर दरवाजे पर छोड़ आया हूँ।

खड़ग : क्या आप उन्हें अपने साथ लाए थे?

नाहर : जी हाँ।

खड़ग : शाबाश ! तो अब उनको यहाँ बुला लेना चाहिए! (एक सरदार की तरफ देख कर) आप ही जाइए।

सरदार: बहुत अच्छा।

सरदार उठा और बीरसिंह को लिवा लाने ड्योढ़ी पर गया, मगर उनके लौटने में देरी अन्दाज से ज्यादे हुई, इसलिए जब वह बीरसिंह को साथ लिए लौट आया तो खड़गसिंह ने पूछा, “इतनी देर क्यों लगी?

सरदार : (बीरसिंह की तरफ इशारा कर के) ये टहलते हुए कुछ दूर निकल गए थे।

नाहर : बीरसिंह, तुम इधर आओ और अपने चेहरे से नकाब हटा दो, क्योंकि आज हमने अपना पर्दा खोल दिया।

यह सुन कर बीरसिंह ने सिर हिलाया, मानो उसे ऐसा करना मंजूर नहीं है।

नाहर: ताज्जुब है कि तुम नकाब हटाने से इन्कार करते हो? जरा सोचो तो कि मेरी जुबानी तुम्हारा नाम इन लोगों ने सुन लिया तो पर्दा खुलने में फिर क्या कसर रह गई? क्या तुम्हारी सूरत इन लोगों से छिपी है? बीरसिंह, हम तुम्हें बहादुर और शेरदिल समझते थे। यह क्या बात है?

बीरसिंह ने फिर सर हिला कर नकाब हटाने से इन्कार किया, बल्कि दो-तीन कदम पीछे की तरफ हट गया। यह बात नाहरसिंह को बहुत बुरी मालूम हुई। वह उछल कर बीरसिंह के पास पहुँचा तथा उसकी कलाई पकड़ क्रोध से भर उसकी तरफ देखने लगा। कलाई पकड़ते ही नाहरसिंह चौंका और एक निगाह सिर से पैर तक बीरसिंह पर डाल, खड़गसिंह की तरफ देख कर बोला, “मुमकिन नहीं कि बीरसिंह इतना बुजदिल और कमहिम्मत हो! यह हो ही नहीं सकता कि बीरसिंह मेरा हुक्म न माने! देखिए कितनी बड़ी चालाकी खेली गई! बेईमान राजा ने हम लोगों को कैसा धोखा दिया! हाय अफसोस, बेचारा बीरसिंह किसी आफत में फँसा मालूम होता है!!”

इतना कह नाहरसिंह ने बीरसिंह के चेहरे से नकाब खेंच कर फेंक दी। अब सभों ने उसे पहिचाना कि यह राजा का प्यारा नौकर बच्चनसिंह है।

खड़ग : नाहरसिंह, यह क्या मामला है?

नाहर : भारी चालबाजी की गई, यह इस उम्मीद में यहाँ बेखौफ चला आया कि चेहरे से नकाब न हटानी पड़ेगी, शायद इसे यह मालूम हो गया था कि मैं यहाँ आकर चेहरे से नकाब नहीं हटाता। मैं नहीं कह सकता कि इसके साथ हमारे दुश्मनों को और कौन-कौन-सा भेद हम लोगों का मालूम हो गया। यही पाजी बीरसिंह के कैद होने के बाद उसके बाग में बीरसिंह की मोहर चुराने गया था जो वहाँ मेरे मौजूद रहने के सबब इसके हाथ न लगी, न-मालूम मोहर लेकर राजा नया-क्या जाल बनाता!

इतना सुनते ही खड़गसिंह उठ खड़े हुए और नाहरसिंह के पास पहुँच कर बोले :

खड़ग : बेशक, हम लोग धोखे में डाले गए। इसमें कोई शक नहीं कि इस कमेटी का बहुत-कुछ हाल करनसिंह को मालूम हो गया, इन सब सरदारों में से जो यहाँ बैठे हैं, जरूर कोई राजा का पक्षपाती है और जाल करके इस कमेटी में मिला है।

नाहर : खैर, क्या हर्ज है, बूझा जायेगा, इस समय बाहर चल कर देखना चाहिए कि बीरसिंह कहाँ है और पता लगाना चाहिए कि उस बेचारे पर क्या गुजरी। मगर इस दुष्ट को किसी हिफाजत में छोड़ना मुनासिब है।

इस मामले के साथ ही कमेटी में खलबली पड़ गई, सब उठ खड़े हुए, क्रोध के मारे सभों की हालत बदल गई। एक सरदार ने बच्चनसिंह के पास पहुँच कर उसे एक लात मारी और पूछा, “सच बोल, बीरसिंह कहाँ है और उसे क्या धोखा दिया गया, नहीं तो अभी तेरा सिर काट डालता हूँ!!”

इसका जवाब बच्चनसिंह ने कुछ न दिया, तब वह सरदार खड़गसिंह की तरफ देख कर बोला, “आप इसे मेरी हिफाजत में छोड़िए और बाहर जाकर बीरसिंह का पता लगायें, मैं इस हरामजादे से समझ लूँगा!!

खड़गसिंह ने इशारे से नाहरसिंह से पूछा कि “तुम्हारी क्या राय है?”

नाहरसिंह ने झुककर खड़गसिंह के कान में कहा, “मुझे इस सरदार पर भी शक है, जो इन सब सरदारों से बढ़ कर हमदर्दी दिखा रहा है।”

खड़ग : (जोर से) बेशक, ऐसा ही है!

खड़गसिंह ने उस सरदार को, जिसका नाम हरिहरसिंह था और बच्चनसिंह को, दूसरे सरदारों के हवाले किया और कहा, “राजा की बेईमानी अब हम पर अच्छी तरह जाहिर हो गई, इस समय ज्यादे बातचीत का मौका नहीं है। तुम इन दोनों को कैद करो, हम किसी और काम के लिए बाहर जाते हैं।“

खड़गसिंह ने अपने साथी तीन बहादुरों को अपने साथ आने का हुक्म दिया और नाहरसिंह से कहा, “अब देर मत करो, चलो!” ये पाँचों आदमी उस मकान के बाहर हुए और फाटक पर पहुँचकर रुके। नाहरसिंह ने पहरे वालों से पूछा कि जिस आदमी को हम यहाँ छोड़ गए थे, वह हमारे जाने के बाद इसी जगह रहा या कहीं गया था?

पहरे : वह इधर-उधर टहल रहे थे, एक आदमी आया और उन्हें दूर बुला ले गया, हम लोग नहीं जानते कि वे कहाँ तक गए थे, मगर बहुत देर के बाद लौटे, इसके बाद हुक्म के मुताबिक एक सरदार आकर उन्हें भीतर ले गया।

नाहर : (खड़गसिंह से) देखिये, मामला खुला न!

खड़ग : खैर, आगे चलो।

नाहर : अफसोस! बेचारा बीरसिंह!!

खड़ग : तुम चिन्ता मत करो, देखो, अब हम क्या करते हैं।

पाँचों आदमी वहाँ से आगे बढ़े, आगे-आगे हाथ में लालटेन लिए एक पहरे वाले को चलने का हुक्म हुआ। नाहरसिंह ने अपने चेहरे पर नकाब डाल ली। थोड़ी दूर जाने के बाद सड़क पर एक लाश दिखाई दी, जिसके इधर-उधर की जमीन खूनाखून हो रही थी।

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रचनाएँ
कटोरा भर खून
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प्रस्तुत उपन्यास कटोरा भर खून चन्द्रकान्ता की ही परम्परा खत्री जी का एक अत्यन्त रोचक और मार्मिक उपन्यास है। इसमें वातावरण सामन्तीय होते हुए भी मानवीय संवेदनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। "काजर की कोठरी एक लघु उपन्यास है। इसका विशेष महत्त्व इसलिए भी है कि स्वयं खत्री जी ने तिलस्मी और ऐय्यारी के चक्करों से निकलकर जीवन के अपेक्षाकृत यथार्थ घटना-क्रम को अपनाने का साहस किया। इसमें घटना-क्रम की रोचकता, उत्सुकता और रहस्यमयता वैसी ही है
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बीरसिंह तारा से विदा होकर बाग के बाहर निकला और सड़क पर पहुंचा। इस सड़क के किनारे बड़े-बड़े नीम के पेड़ थे, जिनकी डालियों के ऊपर जाकर आपस में मिले रहने के कारण, सड़क पर पूरा अंधेरा था। एक तो अंधेरी रात

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आसमान पर सुबह की सुफेदी छा चुकी थी जब लाश लिए हुए बीरसिंह किले में पहुंचा । वह अपने हाथों पर कुंअर साहब की लाश उठाये हुए था। किले के अन्दर की रिआया तो आराम में थी, केवल थोड़े-से बुड्ढे, जिन्हें खांसी

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भाग -4

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बेचारे बीरसिंह कैदखाने में पड़े सड़ रहे हैं। रात की बात ही निराली है, इस भयानक कैदखाने में दिन को भी अंधेरा ही रहता है; यह कैदखाना एक तहखाने के तौर पर बना हुआ है, जिसके चारों तरफ की दीवारें पक्की और म

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7 जून 2022
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घटाटोप अंधेरी छाई हुई है, रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है, मूसलाधार पानी बरस रहा है, सड़क पर बित्ता-बित्ता-भर पानी चढ़ गया है, राह में कोई मुसाफिर चलता हुआ नहीं दिखाई

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हरिपुर गढ़ी के अन्दर राजा करनसिंह अपने दीवानखाने में दो मुसाहबों के साथ बैठा कुछ बातें कर रहा है। सामने हाथ जोड़े हुए दो जासूस भी खड़े महाराज के चेहरे की तरफ देख रहे हैं। उन दोनों मुसाहबों में से एक क

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अब हम थोड़ा-सा हाल तारा का लिखते हैं, जिसे इस उपन्यास के पहले ही बयान में छोड़ आये हैं। तारा बिल्कुल ही बेबस हो चुकी थी, उसे अपनी जिन्दगी की कुछ भी उम्मीद न रही थी। उसका बाप सुजनसिंह उसकी छाती पर बैठा

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भाग -12

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हम ऊपर लिख आये हैं कि जमींदारों और सरदारों को कमेटी में से अपने तीनों साथियों और नाहरसिंह को साथ ले बीरसिंह की खोज में खड़गसिंह बाहर निकले और थोड़ी दूर जाकर उन्होंने जमीन पर पड़ी हुई एक लाश देखी। लालट

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भाग -13

7 जून 2022
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खड़गसिंह जब राजा करनसिंह के दीवानखाने में गये और राजा से बातचीत करके बीरसिंह को छोड़ा लाये तो उसी समय अर्थात जब खड़गसिंह दीवानखाने से रवाने हुए, तभी राजा के मुसाहबों में सरूपसिंह चुपचाप खड़गसिंह के पी

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भाग -14

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रात पहर-भर जा चुकी है। खड़गसिंह अपने मकान में बैठे इस बात पर विचार कर रहे हैं कि कल दरबार में क्या-क्या किया जाएगा। यहाँ के दस-बीस सरदारों के अतिरिक्त खड़गसिंह के पास ही नाहरसिंह, बीरसिंह और बाबू साहब

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भाग -15

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हरिपुर के राजा करनसिंह राठू का बाग बड़ी तैयारी से सजाया गया, रोशनी के सबब दिन की तरह उजाला हो रहा था, बाग की हर एक रविश पर रोशनी की गई थी, बाहर की रोशनी का इन्तजाम भी बहुत अच्छा था। बाग के फाटक से लेक

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भाग- 16

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