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भाग - 6

7 जून 2022

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किनारे पर जब केवल नाहरसिंह और बीरसिंह रह गए तब नाहरसिंह ने वह चीठी पढ़ी, जो रामदास की कमर से निकली थी। उसमें यह लिखा हुआ था:

मेरे प्यारे दोस्त,

अपने लड़के के मारने का इल्जाम लगा कर मैंने बीरसिंह को कैदखाने में भेज दिया। अब एक-ही-दो दिन में उसे फांसी देकर आराम की नींद सोऊँगा। ऐसी अवस्था में मुझे रिआया भी बदनाम न करेगी। बहुत दिनों के बाद यह मौका मेरे हाथ लगा है। अभी तक मुझे मालूम नहीं हुआ कि रिआया बीरसिंह की तरफदारी क्यों करती है और मुझसे राज्य छीन कर बीरसिंह को क्यों दिया चाहती है? जो हो, अब रिआया को भी कुछ कहने का मौका न मिलेगा। हाँ, एक नाहरसिंह डाकू का खटका मुझे बना रह गया, उसके सबब से मैं बहुत ही तंग हूँ। जिस तरह तुमने कृपा करके बीरसिंह से मेरी जान छुड़ाई, आशा है कि उसी तरह से नाहरसिंह की गिरफ्तारी की भी तरकीब बताओगे।

तुम्हारा सच्चा दोस्त,

करनसिंह।

इस चीठी के पढ़ने से बीरसिंह को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और उसने नाहरसिंह की तरफ देख कर कहा :

बीर : अब मुझे निश्चय हो गया कि करनसिंह बड़ा ही बेईमान और हरामजादा आदमी है। अभी तक मैं उसे अपने पिता की जगह समझता था और उसकी मुहब्बत को दिल में जगह दिए रहा। आज तक मैंने उसकी कभी कोई बुराई नहीं की, फिर भी न-मालूम क्यों वह मुझसे दुश्मनी करता है। आज तक मैं उसे अपना हितू समझे हुए था मगर..

नाहर० : तुम्हारा कोई कसूर नहीं, तुम नहीं जानते कि तुम कौन हो, करनसिंह कौन है! जिस समय तुम यह सुनोगे कि तुम्हारे पिता को करनसिंह ने मरवा डाला तो और भी ताज्जुब करोगे और कहोगे कि वह हरामजादा तो कुत्तों से नुचवाने लायक है।

वीर: मेरे बाप को करनसिंह ने मरवा डाला!

नाहर: हाँ।

बीर : वह क्योंकर और किस लिये?

नाहर : यह किस्सा बहुत बड़ा है, इस समय मैं कह नहीं सकता, देखो, सवेरा हो गया और पूरब तरफ सूर्य की लालिमा निकली आती है। इस समय हम लोगों का यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं है। मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम मुझे अपना सच्चा दोस्त या भाई समझोगे और मेरे घर चल कर दो-तीन दिन आराम करोगे। इस बीच में जितने छिपे हुए भेद हैं, सब तुम्हें मालूम हो जाएँगे।

बीर : बेशक, अब मैं आपका भरोसा रखता हूँ, क्योंकि आपने मेरी जान बचाई और बेईमान राजा की बदमाशी से मुझे सचेत किया। अफसोस इतना ही है कि तारा का हाल मुझे कुछ भी मालूम न हुआ।

नाहर : मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें बहुत जल्द तारा से मिलाऊँगा और तुम्हारी उस बहिन से भी तुम्हें मिलाऊँगा, जिसके बदन में सिवाय हड्डी के और कुछ नहीं बच गया है।

बीर: (ताज्जुब से) क्या मेरी कोई बहिन भी है?

नाहर : हाँ हैं, मगर अब ज्यादा बातचीत करने का मौका नहीं है। उठो और मेरे साथ चलो, देखो ईश्वर क्या करता है।

बीर : करनसिंह ने वह चिट्ठी जिसके पास भेजी थी, उसे क्या आप जानते हैं?

नाहर : हाँ, मैं जानता हूँ, वह भी बड़ा ही हरामजादा और पाजी आदमी है, पर जो भी हो, मेरे हाथ से वह भी नहीं बच सकता।

दोनों आदमी वहाँ से रवाने हुए और लगभग आध कोस जाने के बाद एक पीपल के पेड़ के नीचे पहुँचे, जहाँ दो साईस दो कसे-कसाये घोड़े लिए मौजूद थे। नाहरसिंह ने बीरसिंह से कहा, “अपने साथ तुम्हारी सवारी का भी बन्दोबस्त करके मैं तुम्हें छुड़ाने के लिए गया था, लो इस घोड़े पर सवार हो जाओ और मेरे साथ चलो।”

दोनों आदमी घोड़ों पर सवार हुए और तेजी के साथ नेपाल की तराई की तरफ चल निकले। ये लोग भूखे-प्यासे पहर-भर दिन बाकी रहे तक बराबर घोड़ा फेंके चले गए। इसके बाद एक घने जंगल में पहुँचे और थोड़ी हर तक उससें जाकर एक पुराने खण्डहर के पास पहुँचे। नाहरसिंह ने घोड़े से उतर कर बीरसिंह को भी उतरने के लिए कहा और बताया कि यही हमारा घर है।

यह मकान जो इस समय खण्डहर मालूम होता है, पाँच-छः बिगहे के घेरे में होगा। खराब और बर्बाद हो जाने पर भी अभी तक इसमें सौ-सवा सौ आदमियों के रहने की जगह थी। इसकी मजबूत, चौड़ी और संगीन दीवारों से मालूम होता था कि इसे किसी राजा ने बनवाया होगा और बेशक यह किसी समय में दुलहिन को तरह सजा कर काम में लाया जाता होगा। इसके चारों तरफ की मजबूत दीवारें अभी तक मजबूती के साथ खड़ी थीं, हाँ भीतर की इमारत खराब हो गई थी, तो भी कई कोठरियाँ और दालान दुरुस्त थे, जिनमें इस समय नाहरसिंह और उसके साथी लोग रहा करते थे। बीरसिंह ने यहाँ लगभग पचास बहादुरों को देखा, जो हर तरह से मजबूत और लड़ाके मालूम होते थे।

बीरसिंह को साथ लिए हुए नाहरसिंह उस खण्डहर में घुस गया और अपने खास कमरे में जाकर उन्हें पहर-भर तक आराम करके सफर की हरारत मिटाने के लिए कहा।

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रचनाएँ
कटोरा भर खून
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प्रस्तुत उपन्यास कटोरा भर खून चन्द्रकान्ता की ही परम्परा खत्री जी का एक अत्यन्त रोचक और मार्मिक उपन्यास है। इसमें वातावरण सामन्तीय होते हुए भी मानवीय संवेदनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। "काजर की कोठरी एक लघु उपन्यास है। इसका विशेष महत्त्व इसलिए भी है कि स्वयं खत्री जी ने तिलस्मी और ऐय्यारी के चक्करों से निकलकर जीवन के अपेक्षाकृत यथार्थ घटना-क्रम को अपनाने का साहस किया। इसमें घटना-क्रम की रोचकता, उत्सुकता और रहस्यमयता वैसी ही है
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7 जून 2022
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भाग -3

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भाग -4

7 जून 2022
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भाग -5

7 जून 2022
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बेचारे बीरसिंह कैदखाने में पड़े सड़ रहे हैं। रात की बात ही निराली है, इस भयानक कैदखाने में दिन को भी अंधेरा ही रहता है; यह कैदखाना एक तहखाने के तौर पर बना हुआ है, जिसके चारों तरफ की दीवारें पक्की और म

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भाग -7

7 जून 2022
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भाग - 8

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भाग -9

7 जून 2022
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भाग -10

7 जून 2022
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भाग -11

7 जून 2022
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अब हम थोड़ा-सा हाल तारा का लिखते हैं, जिसे इस उपन्यास के पहले ही बयान में छोड़ आये हैं। तारा बिल्कुल ही बेबस हो चुकी थी, उसे अपनी जिन्दगी की कुछ भी उम्मीद न रही थी। उसका बाप सुजनसिंह उसकी छाती पर बैठा

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भाग -12

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भाग -13

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खड़गसिंह जब राजा करनसिंह के दीवानखाने में गये और राजा से बातचीत करके बीरसिंह को छोड़ा लाये तो उसी समय अर्थात जब खड़गसिंह दीवानखाने से रवाने हुए, तभी राजा के मुसाहबों में सरूपसिंह चुपचाप खड़गसिंह के पी

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भाग -14

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रात पहर-भर जा चुकी है। खड़गसिंह अपने मकान में बैठे इस बात पर विचार कर रहे हैं कि कल दरबार में क्या-क्या किया जाएगा। यहाँ के दस-बीस सरदारों के अतिरिक्त खड़गसिंह के पास ही नाहरसिंह, बीरसिंह और बाबू साहब

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भाग -15

7 जून 2022
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हरिपुर के राजा करनसिंह राठू का बाग बड़ी तैयारी से सजाया गया, रोशनी के सबब दिन की तरह उजाला हो रहा था, बाग की हर एक रविश पर रोशनी की गई थी, बाहर की रोशनी का इन्तजाम भी बहुत अच्छा था। बाग के फाटक से लेक

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भाग- 16

7 जून 2022
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दूसरे दिन यह बात अच्छी तरह से मशहूर हो गई कि वह बाबाजी जिन्हें देख करनसिंह राठू डर गया था, बीरसिंह के बाप करनसिंह थे। उन्हीं की जुबानी मालूम हुआ कि जिस समय राठू ने सुजनसिंह की मार्फत करनसिंह को जहर दि

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