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भाई, छेड़ो नही, मुझे

16 अप्रैल 2022

14 बार देखा गया 14

भाई, छेड़ो नहीं, मुझे

खुलकर रोने दो

यह पत्थर का हृदय

आँसुओं से धोने दो,

रहो प्रेम से तुम्हीं

मौज से मंजु महल में,

मुझे दुखों की इसी

झोपड़ी में सोने दो।

कुछ भी मेरा हृदय

न तुमसे कह पायेगा,

किन्तु फटेगा; फटे-

बिना क्यों रह पायेगा;

सिसक-सिसक सानंद

आज होगी श्री-पूजा,

बहे कुटिल यह सुख

दु:ख क्यों बह पायेगा।

वारूँ सौ-सौ श्वास

एक प्यारी उसाँस पर,

हारूँ, अपने प्राण, दैव

तेरे विलास पर,

चलो, सखे तुम चलो

तुम्हारा कार्य चलाओ

लगे दुखों की झड़ी

आज अपने निराश पर!

हरि खोया है? नहीं,

हृदय का धन खोया है,

और, न जाने वहीं

दुरात्मा मन खोया है

किन्तु आज तक नहीं

हाय इस तन को खोया,

अरे बचा क्या शेष,

पूर्ण जीवन खोया है।

पूजा के ये पुष्प-

गिरे जाते हैं नीचें,

यह आँसू का स्रोत

आज किसके पद सींचे,

दिखलाती, क्षण मात्र

न आती, प्यारी प्रतिमा

यह दुखिया किस भाँति

उसे भूतल पर खींचे!

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रचनाएँ
माखन लाल चतुर्वेदी की प्रसिद्ध कविताएं
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इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर बलिदान होने वालों पर डालने के लिए माली से अपनी इच्छा प्रकट कर रहा है।
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एक तुम हो

16 अप्रैल 2022
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गगन पर दो सितारे: एक तुम हो, धरा पर दो चरण हैं: एक तुम हो, ‘त्रिवेणी’ दो नदी हैं! एक तुम हो, हिमालय दो शिखर है: एक तुम हो, रहे साक्षी लहरता सिंधु मेरा, कि भारत हो धरा का बिंदु मेरा । कला के जो

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लड्डू ले लो

16 अप्रैल 2022
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ले लो दो आने के चार लड्डू राज गिरे के यार यह हैं धरती जैसे गोल ढुलक पड़ेंगे गोल मटोल इनके मीठे स्वादों में ही बन आता है इनका मोल दामों का मत करो विचार ले लो दो आने के चार। लोगे खूब मज़ा लाये

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दीप से दीप जले

16 अप्रैल 2022
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सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें। लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में लक्ष्मी श्रम के साथ घा

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मैं अपने से डरती हूँ सखि

16 अप्रैल 2022
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मैं अपने से डरती हूँ सखि ! पल पर पल चढ़ते जाते हैं, पद-आहट बिन, रो! चुपचाप बिना बुलाये आते हैं दिन, मास, वरस ये अपने-आप; लोग कहें चढ़ चली उमर में पर मैं नित्य उतरती हूँ सखि ! मैं अपने से डरती

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कैदी और कोकिला

16 अप्रैल 2022
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क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो! ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खान

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कुंज कुटीरे यमुना तीरे

16 अप्रैल 2022
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पगली तेरा ठाट ! किया है रतनाम्बर परिधान अपने काबू नहीं, और यह सत्याचरण विधान ! उन्मादक मीठे सपने ये, ये न अधिक अब ठहरें, साक्षी न हों, न्याय-मन्दिर में कालिन्दी की लहरें। डोर खींच मत शोर म

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गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीर

16 अप्रैल 2022
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सूझ ! सलोनी, शारद-छौनी, यों न छका, धीरे-धीरे ! फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ, री, न थका, धीरे-धीरे ! कम्पित दीठों की कमल करों में ले ले, पलकों का प्यारा रंग जरा चढ़ने दे, मत चूम! नेत्र पर आ, मत जाय

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सिपाही

16 अप्रैल 2022
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गिनो न मेरी श्वास, छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान? भूलो ऐ इतिहास, खरीदे हुए विश्व-ईमान !! अरि-मुड़ों का दान, रक्त-तर्पण भर का अभिमान, लड़ने तक महमान, एक पँजी है तीर-कमान! मुझे भूलने में सुख पाती,

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वायु

16 अप्रैल 2022
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चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हवा, डालियों को यों चिढाने-सी लगी, आंख की कलियां, अरी, खोलो जरा, हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी, पत्तियों की चुटकियां झट दीं बजा, डालियां कुछ ढुलमुलाने-सी लगीं। किस परम आ

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वरदान या अभिशाप?

16 अप्रैल 2022
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कौन पथ भूले, कि आये ! स्नेह मुझसे दूर रहकर कौनसे वरदान पाये? यह किरन-वेला मिलन-वेला बनी अभिशाप होकर, और जागा जग, सुला अस्तित्व अपना पाप होकर; छलक ही उट्ठे, विशाल ! न उर-सदन में तुम समाये।

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बलि-पन्थी से

16 अप्रैल 2022
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मत व्यर्थ पुकारे शूल-शूल, कह फूल-फूल, सह फूल-फूल। हरि को ही-तल में बन्द किये, केहरि से कह नख हूल-हूल। कागों का सुन कर्त्तव्य-राग, कोकिल-काकलि को भूल-भूल। सुरपुर ठुकरा, आराध्य कहे, तो चल रौरव

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जवानी

16 अप्रैल 2022
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प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी ! कौन कहता है कि तू विधवा हुई, खो आज पानी?   चल रहीं घड़ियाँ, चले नभ के सितारे, चल रहीं नदियाँ, चले हिम-खंड प्यारे; चल रही है साँस, फिर तू ठहर जाये? दो सदी प

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अमर राष्ट्र

16 अप्रैल 2022
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छोड़ चले, ले तेरी कुटिया, यह लुटिया-डोरी ले अपनी, फिर वह पापड़ नहीं बेलने; फिर वह माल पडे न जपनी। यह जागृति तेरी तू ले-ले, मुझको मेरा दे-दे सपना, तेरे शीतल सिंहासन से सुखकर सौ युग ज्वाला तपना

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उपालम्भ

16 अप्रैल 2022
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क्यों मुझे तुम खींच लाये? एक गो-पद था, भला था, कब किसी के काम का था? क्षुद्ध तरलाई गरीबिन अरे कहाँ उलीच लाये? एक पौधा था, पहाड़ी पत्थरों में खेलता था, जिये कैसे, जब उखाड़ा गो अमृत से सींच

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मुझे रोने दो

16 अप्रैल 2022
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भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो। यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो। रहो प्रेम से तुम्हीं मौज से मजुं महल में, मुझे दुखों की इसी झोपड़ी में सोने दो। कुछ भी मेरा हृदय न तुमसे कह पावेगा

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तुम मिले

16 अप्रैल 2022
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तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई! भूलती-सी जवानी नई हो उठी, भूलती-सी कहानी नई हो उठी, जिस दिवस प्राण में नेह बंसी बजी, बालपन की रवानी नई हो उठी। किन्तु रसहीन सारे बरस रसभरे हो गए जब तुम्हारी छ

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बदरिया थम-थमकर झर री

16 अप्रैल 2022
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बदरिया थम-थनकर झर री ! सागर पर मत भरे अभागन गागर को भर री ! बदरिया थम-थमकर झर री ! एक-एक, दो-दो बूँदों में बंधा सिन्धु का मेला, सहस-सहस बन विहंस उठा है यह बूँदों का रेला। तू खोने से नहीं बाव

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यौवन का पागलपन

16 अप्रैल 2022
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हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया। सपना है, जादू है, छल है ऐसा पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा, मिट-मिटकर दुनियाँ देखे रोज़ तमाशा। यह गुदगुदी, यही बीमारी, मन हुलसावे, छीजे काया। हम कहते

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झूला झूलै री

16 अप्रैल 2022
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संपूरन कै संग अपूरन झूला झूलै री, दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री। गड़े हिंडोले, वे अनबोले मन में वृन्दावन में, निकल पड़ेंगे डोले सखि अब भू में और गगन में, ऋतु में और ऋचा में कसके रिमझिम

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घर मेरा है?

16 अप्रैल 2022
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क्या कहा कि यह घर मेरा है? जिसके रवि उगें जेलों में, संध्या होवे वीरानों मे, उसके कानों में क्यों कहने आते हो? यह घर मेरा है? है नील चंदोवा तना कि झूमर झालर उसमें चमक रहे, क्यों घर की याद दिल

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तान की मरोर

16 अप्रैल 2022
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तू न तान की मरोर देख, एक साथ चल, तू न ज्ञान-गर्व-मत्त शोर, देख साथ चल। सूझ की हिलोर की हिलोरबाज़ियाँ न खोज, तू न ध्येय की धरा गुंजा, न तू जगा मनोज। तू न कर घमंड, अग्नि, जल, पवन, अनंग संग

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पुष्प की अभिलाषा

16 अप्रैल 2022
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चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ, मुझे

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तुम्हारा चित्र

16 अप्रैल 2022
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मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया कुछ नीले कुछ श्वेत गगन पर हरे-हरे घन श्यामल वन पर द्रुत असीम उद्दण्ड पवन पर चुम्बन आज पवित्र बन गया, मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया। तुम आए, बोले, तुम खेले दिवस-रात्र

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दूबों के दरबार में

16 अप्रैल 2022
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क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में? नीली भूमि हरी हो आई इस किरणों के ज्वार में ! क्या देखें तरुओं को उनके फूल लाल अंगारे हैं; बन के विजन भिखारी ने वसुधा में हाथ पसारे हैं। नक्शा उतर ग

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बसंत मनमाना

16 अप्रैल 2022
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चादर-सी ओढ़ कर ये छायाएँ तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ। धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग में हिरणें, दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर किन्तु आँ

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तुम मन्द चलो

16 अप्रैल 2022
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तुम मन्द चलो, ध्वनि के खतरे बिखरे मग में तुम मन्द चलो। सूझों का पहिन कलेवर-सा, विकलाई का कल जेवर-सा, घुल-घुल आँखों के पानी में फिर छलक-छलक बन छन्द चलो। पर मन्द चलो। प्रहरी पलकें? चुप, सोने

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जागना अपराध

16 अप्रैल 2022
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जागना अपराध! इस विजन-वन गोद में सखि, मुक्ति-बन्धन-मोद में सखि, विष-प्रहार-प्रमोद में सखि, मृदुल भावों स्नेह दावों अश्रु के अगणित अभावों का शिकारी- आ गया विध व्याध; जागना अपराध! बंक वाली, भौ

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यह किसका मन डोला

16 अप्रैल 2022
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यह किसका मन डोला? मृदुल पुतलियों के उछाल पर, पलकों के हिलते तमाल पर, नि:श्वासों के ज्वाल-जाल पर, कौन लिख रहा व्यथा कथा? किसका धीरज `हाँ' बोला? किस पर बरस पड़ीं यह घड़ियाँ यह किसका मन डोला?

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चलो छिया-छी हो अन्तर में

16 अप्रैल 2022
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चलो छिया-छी हो अन्तर में! तुम चन्दा मैं रात सुहागन चमक-चमक उट्ठें आँगन में चलो छिया-छी हो अन्तर में! बिखर-बिखर उट्ठो, मेरे धन, भर काले अन्तस पर कन-कन, श्याम-गौर का अर्थ समझ लें जगत पुतलि

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भाई, छेड़ो नही, मुझे

16 अप्रैल 2022
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भाई, छेड़ो नहीं, मुझे खुलकर रोने दो यह पत्थर का हृदय आँसुओं से धोने दो, रहो प्रेम से तुम्हीं मौज से मंजु महल में, मुझे दुखों की इसी झोपड़ी में सोने दो। कुछ भी मेरा हृदय न तुमसे कह पायेगा,

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उस प्रभात, तू बात न माने

16 अप्रैल 2022
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उस प्रभात, तू बात न माने, तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई, फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं पर न वहाँ तेरी छवि पाई, कलियों का यम मुझ में धाया तब साजन क्यों दौड़ न आया? फिर पंखड़ियाँ ऊग उठीं वे फूल उठी, मे

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ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा

16 अप्रैल 2022
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ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा मेरी सुरत बावली बोली उतर न सके प्राण सपनों से, मुझे एक सपने में ले ले। मेरा कौन कसाला झेले? तेर एक-एक सपने पर सौ-सौ जग न्यौछावर राजा। छोड़ा तेरा जगत-बखेड़ा चल उठ, अब

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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक

16 अप्रैल 2022
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मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक! प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में जी का विश्व बसा दो मालिक! रागें हैं लाचारी मेरी, तानें बान तुम्हारी मेरी, इन रंगीन मृतक खंडों पर, अमृत-रस ढुलका दो मालिक! मधुर-मधुर कुछ

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आज नयन के बँगले में

16 अप्रैल 2022
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आज नयन के बँगले में संकेत पाहुने आये री सखि! जी से उठे कसक पर बैठे और बेसुधी के बन घूमें युगल-पलक ले चितवन मीठी, पथ-पद-चिह्न चूम, पथ भूले! दीठ डोरियों पर माधव को बार-बार मनुहार थकी मैं

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यह अमर निशानी किसकी है?

16 अप्रैल 2022
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यह अमर निशानी किसकी है? बाहर से जी, जी से बाहर तक, आनी-जानी किसकी है? दिल से, आँखों से, गालों तक यह तरल कहानी किसकी है? यह अमर निशानी किसकी है? रोते-रोते भी आँखें मुँद जाएँ, सूरत दिख जाती है,

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मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी

16 अप्रैल 2022
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मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! उस सीमा-रेखा पर जिसके ओर न छोर निशानी; मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! घास-पात से बनी वहीं मेरी कुटिया मस्तानी, कुटिया का राजा ही बन रहता कुटिया की रानी ! मचल मत, दूर-दूर

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अंजलि के फूल गिरे जाते हैं

16 अप्रैल 2022
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अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं। चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं उठने,उठ पड़ने की बात रही साँसों से गीत बे-अनुपात रही बागों में पंखनियाँ झूल रहीं कुछ अप

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क्या आकाश उतर आया है

16 अप्रैल 2022
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क्या आकाश उतर आया है दूबों के दरबार में नीली भूमि हरि हो आई इस किरणों के ज्वार में। क्या देखें तरुओं को, उनके फूल लाल अंगारे हैं वन के विजन भिखारी ने वसुधा में हाथ पसारे हैं। नक्शा उतर गया

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कैसी है पहिचान तुम्हारी

16 अप्रैल 2022
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कैसी है पहिचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो ! पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने विविध धुनों में कितना गाया दायें-बायें, ऊपर-नीचे दूर-पास तुमको कब पाया धन्य-कुसुम ! पाषाणों पर ही तुम खिलते हो तो ख

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नयी-नयी कोपलें

16 अप्रैल 2022
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नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरी चुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी। उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीते निशि की प्रेम-कहानी पीते, शशि की नव-अगवानी पीते। उस अलमस

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ये प्रकाश ने फैलाये हैं

16 अप्रैल 2022
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ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में अन्धकार का अमित कोष भर आया फैली व्याली में ख़ाली में उनका निवास है, हँसते हैं, मुसकाता हूँ मैं ख़ाली में कितने खुलते हो, आँखें भर-भर लाता हूँ मैं इत

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फुंकरण कर, रे समय के साँप

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फुंकरण कर, रे समय के साँप कुंडली मत मार, अपने-आप। सूर्य की किरणों झरी सी यह मेरी सी, यह सुनहली धूल; लोग कहते हैं फुलाती है धरा के फूल! इस सुनहली दृष्टि से हर बार कर चुका-मैं झुक सकूँ-इनकार

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संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं

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सन्ध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं सूरज की सौ-सौ बात नहीं भाती मुझको बोल-बोल में बोल उठी मन की चिड़िया नभ के ऊँचे पर उड़ जाना है भला-भला! पंखों की सर-सर कि पवन की सन-सन पर चढ़ता हो या सूरज हो

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जाड़े की साँझ

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किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चपु अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस उ ण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस! ये नटखट फिर से सुबह-सुबह आवेंगी पंखनियाँ स्वागत-गीत कि

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समय के समर्थ अश्व

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समय के समर्थ अश्व मान लो आज बन्धु! चार पाँव ही चलो। छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।। रूप फूल का कि रंग पत्र का बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।। समय के समर्थ उश्व मान लो

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मधुर! बादल, और बादल, और बादल

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मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।। गरज में पुस्र्षार्थ उठता, बरस में कस्र्णा उतरती उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया श्रृङ्गर करती बूँद-बूँद मचल उठी है

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जीवन, यह मौलिक महमानी

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जीवन, यह मौलिक महमानी! खट्टा, मीठा, कटुक, केसला कितने रस, कैसी गुण-खानी हर अनुभूति अतृप्ति-दान में बन जाती है आँधी-पानी कितना दे देते हो दानी जीवन की बैठक में, कितने भरे इरादे दायें-बायें

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उठ महान

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उठ महान ! तूने अपना स्वर यों क्यों बेंच दिया? प्रज्ञा दिग्वसना, कि प्राण् का पट क्यों खेंच दिया? वे गाये, अनगाये स्वर सब वे आये, बन आये वर सब जीत-जीत कर, हार गये से प्रलय बुद्धिबल के वे घर सब

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ये वृक्षों में उगे परिन्दे

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ये वृक्षों में उगे परिन्दे पंखुड़ि-पंखुड़ि पंख लिये अग जग में अपनी सुगन्धित का दूर-पास विस्तार किये। झाँक रहे हैं नभ में किसको फिर अनगिनती पाँखों से जो न झाँक पाया संसृति-पथ कोटि-कोटि निज आँख

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इस तरह ढक्कन लगाया रात ने

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इस तरह ढक्कन लगाया रात ने इस तरफ़ या उस तरफ़ कोई न झाँके। बुझ गया सूर्य बुझ गया चाँद, तस्र् ओट लिये गगन भागता है तारों की मोट लिये! आगे-पीछे,ऊपर-नीचे अग-जग में तुम हुए अकेले छोड़ चली पहचान,

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गाली में गरिमा घोल-घोल

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गाली में गरिमा घोल-घोल क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल कितने मीठे, कितने प्यारे अर्पण के अनजाने विरोध कैसे नारद के भक्ति-सूत्र आ गये कुंज-वन शोध-शोध! हिल उठे झूलने भरे झोल गाली में गरिमा घोल-घोल

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प्यारे भारत देश

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प्यारे भारत देश गगन-गगन तेरा यश फहरा पवन-पवन तेरा बल गहरा क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले चरण-चरण संचरण सुनहरा ओ ऋषियों के त्वेष प्यारे भारत देश।। वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी प्रथम प्रभात

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साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा

16 अप्रैल 2022
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साँस के प्रश्न-चिन्हों, लिखी स्वर-कथा क्या व्यथा में घुली, बावली हो गई! तारकों से मिली, चन्द्र को चूमती दूधिया चाँदनी साँवली हो गई! खेल खेली खुली, मंजरी से मिली यों कली बेकली की छटा हो गई वृक्

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वेणु लो, गूँजे धरा

16 अप्रैल 2022
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वेणु लो, गूँजे धरा मेरे सलोने श्याम एशिया की गोपियों ने वेणि बाँधी है गूँजते हों गान,गिरते हों अमित अभिमान तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। युग-धरा से दृग-धरा तक खींच मधुर लकीर उठ पड़े हैं चरण

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गंगा की विदाई

16 अप्रैल 2022
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शिखर शिखारियों मे मत रोको, उसको दौड़ लखो मत टोको, लौटे ? यह न सधेगा रुकना दौड़, प्रगट होना, फ़िर छुपना, अगम नगाधिराज, जाने दो, बिटिया अब ससुराल चली | तुम ऊंचे उठते हो रह रह यह नीचे को दौड़ ज

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वर्षा ने आज विदाई ली

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वर्षा ने आज विदाई ली जाड़े ने कुछ अंगड़ाई ली प्रकृति ने पावस बूँदो से रक्षण की नव भरपाई ली। सूरज की किरणों के पथ से काले काले आवरण हटे डूबे टीले महकन उठ्ठी दिन की रातों के चरण हटे। पहले उदार थ

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बोल तो किसके लिए मैं

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बोल तो किसके लिए मैं गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ? प्राणों की मसोस, गीतों की- कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं, आँखों की बूँदें बूँदों पर, चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं! रे निठुर किस के लिए मैं आँसुओं में प्

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ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें

16 अप्रैल 2022
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ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें तेरा चौड़ा छाता रे जन-गण के भ्राता शिशिर, ग्रीष्म, वर्षा से लड़ते भू-स्वामी, निर्माता ! कीच, धूल, गन्दगी बदन पर लेकर ओ मेहनतकश! गाता फिरे विश्व में भारत तेरा

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