आज की तारीख़ में भारत की सबसे बड़ी समस्या अगर कोई है तो वो है देशभक्ति . जी हां देशभक्ति. राष्ट्रप्रेम की जो सतही लहर गांव-गांव, गली-गली बह रही है, उसके शोर में बाकी सब कुछ गायब सा हुआ जा रहा है. हमारी नाकामियां, हमारी काहिली, हमारा गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया, हमारी मूलभूत समस्याएं, सब.
अपने देश से प्यार करना अच्छी बात है. लेकिन देश किसे माना जाए इसकी समझ होना भी उतना ही जरुरी है. देश सरहदों के अंदर बंधी ज़मीन का नहीं, बल्कि लोगों के समूह का पर्यायवाची होना चाहिये. प्यार लोगों से हो, झंडे से नहीं. सिलेक्टिव देशभक्ति बहुत घातक है. एक तरफ हम सेना के जवान को देशभक्ति का सर्वोच्च प्रतीक बना कर उसका अतिशयोक्ति अलंकार में गुणगान करते हैं और दूसरी तरफ वही जवान जब समस्याएं गिनाने लगे तो उसकी ज़िंदगी जहन्नुम बना देते हैं. उसी जवान की औलाद को रेप की धमकियां देते हैं. सोच का ये दोहरापन हमारी बेसिक समझ पर बहुत बड़ा सवालिया निशान है.
हम पाकिस्तान को गालियां देकर, ‘भारत महान है’ का श्लोक दोहराते रह कर या फिर तिरंगे को प्रोफाइल पिक्चर बना कर महज़ अपने आक्रोश को शांत करते हैं. अपने अहम की संतुष्टि करते हैं. हमारी देशभक्ति महज़ इतने तक ही सीमित है. सच्ची और कारगर देशभक्ति तभी होगी जब हम जन-सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर बात करेंगे और अपने आसपास के लोगों से प्रेम करना सीख जाएंगे. हम कितने देशभक्त हैं ये हम नहीं कोई और ही तय कर रहा है. और बहुत उथले तौर से तय कर रहा है. क्यों किसी को ये हक़ दें हम?
ग़दर के तारा सिंह को हैंड-पंप उखाड़ते देख कर खुश होना बचपना है. तारा सिंह से ये सीखना है कि वो प्रेम की खातिर ज़माने भर से भिड़ गया. प्रेम ज़्यादा मायने रखता है. हर हाल में. समझना होगा इसे. और हो सके तो इस बात को भी कि मूलभूत समस्याओं का चर्चा के केंद्र में रहना ज़्यादा जरुरी है. बात रोटी, कपड़ा, मकान की हो, ना कि झंडे और डंडे की. प्राथमिकताएं तय करने में हम भारतीय हमेशा फिसड्डी रहे हैं. उम्मीद करता हूं ये मंज़र कभी तो बदलेगा.
साभार मुबारक लल्लनटॉप