दलित कह रहे हैं ब्राह्मणवाद खत्म होना चाहिए. और बहन मायावती पंडित सतीश चन्द्र मिश्रा को पार्टी के चुनाव प्रभार की बागडोर सौंप रही हैं. भक्त कह रहे हैं मुसलमान बीफ से परहेज करें वरना हिसाब होगा. उधर मोदी जी अरब के बीचोंबीच अबु धाबी में मंदिर निर्माण कर रहे हैं. कन्हैया मज़दूर की लड़ाई लड़ना चाहता है और दूसरी ओर कामरेड जावेद अख्तर जेट एयरवेज की डायरेक्टरशिप लेकर पूँजीवाद का पूरा मज़ा ले रहे हैं.
इस देश में संवाद और यथार्थ में बड़ा अंतर है.
होना भी चाहिए जब नीरा राडिया के साथ 900 चूहे खाने के बाद इस देश में कोई सोशल जर्नलिज्म के हज पर निकलता है. 500 करोड़ की टैक्स चोरी में फंसा चैनल जब कहता है 'जुबां पर सच और दिल में..तब संवाद और यथार्थ में अंतर दीखता है. जो बंधु वामपंथी पार्टी का झंडा लेकर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की जगह राजनीत में वक़्त खपा रहे थे वो आज संपादक बनकर कन्हैया के लिए कसीदे पढ़ रहे हैं. जो एबीवीपी के नेता थे वो एंकर बनकर कन्हैया को कोस रहे हैं.
ये छद्म संघर्ष कब तक चलेगा?
हम क्यों नही कहते कि हम पत्रकारिता नहीं पत्रकारिता की आड़ में अपनी विचारधारा को लेकर पाठकों के साथ छल करते हैं. और बिज़नेस फ्रंट पर कॉर्पोरेट इंटरेस्ट को लेकर दूसरों को गुमराह.
हम पत्रकार नही छलिया हैं और छलना अब हमने पेशा बना लिया है.
मैं विनम्र निवेदन करूँगा भाई दिलीप मंडल से की फेसबुक पोस्ट की अगली क़िस्त में वो पंडित सतीश चन्द्र मिश्रा, पंडित ब्रजेश पाठक और पंडित रामवीर उपाध्याय पर लिखें और मायावती के चेहरे से नीला नकाब उतारें.
मैं चाहूंगा बरखा दत्त हमे भ्रस्टाचार पर रिलायंस और इंडिया बुल्स के अरबों रूपए के मीडिया निवेश से अवगत कराएं.
मैं विनम्र निवेदन करूँगा सुधीर चौधरी से कि वो ये बताएं की माफिया सरगना मुख़्तार अंसारी और उनके मालिक सुभाष चन्द्र के बीच रिश्ते क्या थे और हैं?
ये तीनों बड़े पत्रकार हैं और पैनी निगाह रखते हैं. अगर वो इन मामलों पर रोशिनी डालेंगे तो समाज और मीडिया के बीच बढ़ती खाई और घटती साख कुछ कम हो सकेगा
इंडिया संवाद पोर्टल के संस्थापक पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से