जब इस बारे में संपर्क करने पर एचआरडी मिनिस्ट्री ने कहा कि हाल ही के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में जीएटीई (गेट) के स्कोर के जरिए नियुक्तियां हो रही हैं और इनमें से कई लोग आईआईटी के हैं।
एक आधिकारिक आंकड़े में खुलासा हुआ है कि हर 3 में से एक आईआईटी ग्रेजुएट को नौकरी नहीं मिल रही या कैंपस प्लेसमेंट में उन्हें नौकरी के माफिक नहीं माना जा रहा। यह देश के इंजीनियरिंग टैलेंट के लिए अवसरों की कमी की ओर इशारा कर रहा है। मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय को आईआईटी संस्थानों ने जो आंकड़े मुहैया कराए हैं, उसके मुताबिक 2016-17 में कुल 66 प्रतिशत छात्रों को कैंपस प्लेसमेंट के जरिए नौकरियां मिलीं। जबकि 2015-16 में यह आंकड़ा 79 प्रतिशत और 2014-15 में 78 प्रतिशत था। एचटी की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 17 आईआईटी संस्थानों के 9,104 छात्रों में इस साल सिर्फ 6,013 को ही नौकरियां मिली थीं। प्लेसमेंट का ये डेटा 17 आईआईटी संस्थानों ने एचआरडी मिनिस्ट्री को भेजी थी। फिलहाल देश के 23 आईआईटी संस्थानों में 75 हजार छात्र पढ़ रहे हैं।
आईआईटी सूत्रों के मुताबिक संस्थान में आने वाली कंपनियां तो बढ़ीं, लेकिन उनके जॉब अॉफर कम हो गए। आईआईटी मद्रास के कैंपस प्लेसमेंट में करीब 665 छात्र शामिल थे, लेकिन जॉब मिली, सिर्फ 521 छात्रों को, जिसमें औसतन सालाना पैकेज 12.91 लाख का था। आईआईटी रूड़की में इस साल 974 छात्रों में से 653 को ही नौकरी मिली। आईआईटी दिल्ली के 563 छात्रों में से कुल 502 को ही जॉब नसीब हुई।
जब इस बारे में संपर्क करने पर एचआरडी मिनिस्ट्री ने कहा कि हाल ही के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में जीएटीई (गेट) के स्कोर के जरिए नियुक्तियां हो रही हैं और इनमें से कई लोग आईआईटी के हैं। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि ये आंकड़े कैंपस प्लेसमेंट में शामिल नहीं हैं। हमें किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले इन्हें भी आईआईटी छात्रों के लिए रोजगार अवसरों में शामिल करना चाहिए। मंत्रालय ने आईआईटी छात्रों के लिए रोजगार के अवसर कम होने की बात को खारिज कर दिया।
देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में नौकरियों का गिरता ग्राफ भारत में आर्थिक मंदी को वैश्विक स्तर पर भी दिखाता है। साल 2016-17 में भारत की विकास दर का अनुमान 7.1 प्रतिशत लगाया गया है। जबकि पिछले साल यह 7.9 प्रतिशत था। उदाहरण के तौर पर लार्सन एंड टर्बो ने पिछले साल अप्रैल-सितंबर में 14000 कर्मचारियों की छंटनी की थी। कंपनी ने कहा था कि चुस्त और प्रतिस्पर्धी रहने के लिए यह कदम जरूरी था। मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में कई कंपनियों ने नवंबर-जनवरी में नौकरियों में कटौती की थी, ताकि नोटबंदी के बाद मुनाफे को बचाया जा सके।
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